एक लाख 70 हजार करोड़ का 2 जी घोटाला और 1लाख 86 हजार करोड़ के कोयला घोटाले ने मनमोहन सरकार की सियासी नाव में ऐसा छेद किया की सरकार का सूपड़ा ही साफ हो गया और कांग्रेस इतिहास के सबसे बुरे दौर में जा पहुंची। और इसी दौर में इन घोटालों की जांच कर रही सीबीआई के कामकाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सरकारी तोता कहने में कोताही नहीं बरती। इसलिये 2 जी सपेक्ट्रम और कोयलागेट की जांच को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में ले लिया। लेकिन दिल्ली के 2 जनपथ यानी सीबीआई डायरेक्टर के सरकारी घर पर मिलने वालो की सूची ने देश के प्रीमियर जांच एजेंसी सीबीआई के डायरेक्टर को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। और अब यह सवाल देश के सामने सबसे बड़ा हो चला है कि क्या कोई पद अगर संवैधानिक हो उसे कटघरे में खड़ा करना प्रधानमंत्री के लिये भी मुश्किल है। हालात परखे तो पहली बार भ्रष्टाचार को लेकर जांच कर रही सीबीआई के डायरेक्टर के घर के मेहमानों ने यह तो सवाल खड़ा कर ही दिया है कि देश में सबसे ताकतवर वहीं है जिसके पास न्याय करने के सबसे ज्यादा अधिकार है। कांग्रेस के दौर में चीफ जस्टिस रहे रंगनाथ मिश्र को सियासी लाभ और बीजेपी के दौर में चीफ जस्टिस
रहे सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाने को भी इस हालात से जोड़ा जा सकता है। पूर्व सीएजी विनोद राय की बीजेपी से निकटता भी इस दायरे में आ सकता है। लेकिन बड़ा सवाल तो सीबीआई डायरेक्टर का है, जिन्हें लोकपाल में लाने के खिलाफ वही सियासत थी जो दागियो की फेरहिस्त से इतर मुलाकातियों की सूची में दर्ज है।
मुलाकातियों के डायरी के इन पन्नो में जिन नामों को जिक्र बार बार है। उनमें 2 जी स्पेक्ट्रम, कोयला खादानों के अवैध आंवटन, हवाला घपले, सरघाना चीटफंड का घपला यानी किसी आरोपी ने सीबीआई दफ्तर जाकर अपनी बात कहने की हिम्मत नहीं दिखायी बल्कि सभी ने दसियों बार सीबीआई डायरेक्टर के घर का दरवाजा खटखटाने में कोई हिचक नहीं दिखायी। फेहरिस्त खुद ही कई सवालो को जन्म देती है। मसलन, कोयला घोटाले में फंसे महाराष्ट्र के दर्डा परिवार के देवेन्द्र दर्डा एक दो बार नहीं बल्कि 30 बार सीबीआई डायरेक्टर से मिलने पहुंचे। तीन कोयला खादान पाने वाले एमपी रुगटा तो 40 बार सीबीआई डायरेक्टर के घर पहुंचे। रिलायंस यानी अनिल अंबानी का नाम भी 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आया है तो उसके दिल्ली के एक अधिकारी टोनी पचास बार मिलने पहुंचे। इस फेहरिस्त में हवाला घोटाले में फंसे पूर्व सीबीआई डायरेक्टर एपी सिंह और विवादास्पद मोईन अख्तर कुरैशी भी कई बार सीबीआई डायरेक्टर के घर पहुंचे। खास बात यह भी है कि
चुनाव प्रचार के दौरान तो प्रधानमंत्री मोदी भी मीट एक्सपोर्टर मोईन अख्तर कुरैशी को आरोपो के कटघरे में खडा कर चुके थे और उन्होंने कुरैशी के संबंध 10 जनपथ से भी जोड़े थे। मुश्किल सिर्फ यह नहीं है कि सीबीआई डायरेक्टर के घर कोयलाघोटाले के आरोपियों के अलावा 2 जी स्पेक्ट्रम के खेल में फंसे कई कारपोरेट्स के अधिकारी भी पहुंचे। परेशानी का सबब यह है कि 2013-2014 के दौरान आधे दर्जन से ज्यादा अधिकारियों के नाम सीबीआई डायरेक्टर के साथ मुलाकातियों की फेरहिस्त में जिक्र है जिनके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। और नामों की फेरहिस्त में देश के वीवीआईपी भी है । यानी देश की जिस जांच एंजेसी को लेकर लोगो में भरोसा जागना चाहिये उस जांच एजेंसी का खौफ ही इस तरह हो चुका है कि हर कोई सीबीआई डायरेक्टर की मेहमाननवाजी चाहती है क्योंकि सीबीआई डायरेक्टर के घर पहुंचे मेहमानों की डायरी के इन पन्नो में सिर्फ दागी नहीं है बल्कि राजनीतिक गलियारे के दलाल भी है राजनेता भी और वीवीआईपी कतार में खड़े खास भी।
तो क्या सीबीआई डायरेक्टर इस देश का सबसे ताकतवर शख्स है जिसके सामने हर किसी को नतमस्तक होना पड़ता है या फिर सीबीआई डायरेक्टर से हर खास की मुलाकात एक आम बात है। क्योंकि नामों की फेरहिस्त में हिन्दुस्तान जिंक के विनिवेश मामले में फंसे वेदांता के अनिल अग्रवाल का नाम भी है। एस्सार कंपनी के प्रतिनिधि सुनील बजाज का भी नाम है जो कंपनी 2 जी मामले में फंसी है। दीपक तलवार का नाम भी है जो राजनीति गलियारे में लॉबिइस्ट माना जाता है। इतना ही नहीं देश के पूर् विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद हो या सेबी के पूर्व अध्यक्ष यू के सिन्हा, पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य हो या दिल्ली के पूर्व पुलिस कमीशनर नीरज कुमार या फिर ओसवाल ग्रूप के अनिल भल्ला या बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज हुसैन। हर ताकतवर शख्स सीबीआई डायरेक्टर के घर सिर्फ चाय पीने जाता है या सीबीआई डायरेक्टर के घर मेहमान बनना दिल्ली की रवायत है। यह सारे सवाल इसलिये बेमानी है क्योंकि खुद सीबीआई डायरेक्टर को इससे ताकत मिलती है। और ताकतवर लोग अपनी ताकत, ताकतवाले ओहदे के नजदीकी से पाते है। क्योंकि सीबीआई डायरेक्टर ही लगातार बदलते रहे और आखिर में यह कहने से नहीं चुके कि अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि जांच पर असर पड़ेगा तो वह खुद को अलग कर सकते है। लेकिन यह हालात क्यों कैसे आ गये। यह भी दिलचस्प है। मीडिया में डायरी की बात आई तो सबसे पहले कहा ऐसी कोई डायरी नहीं है। जब पन्ने छपने लगे तो फिर कहा , मैंने किसी को लाभ नहीं पहुंचाया। अब कहा सुप्रीम कोर्ट चाहे तो वह खुद को जांच से अलग कर लेंगे। मुश्किल सिर्फ इतनी नहीं है बल्कि ताकतवर नैक्सेस कैसे मीडिया को भी दबाना चाहता है यह भी इसी दौर में नजर आया क्योंकि मीडिया डायरी के पन्नों को ना छापे, ना दिखाये या सीबीआई
डायरेक्टर एक प्रीमियर पद है इसलिये इसपर रोक लगनी चाहिये। यह सवाल भी सीबीआई डायरेक्टर ने ही सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जब इससे इंकार कर दिया तो फिर सबसे दिलचस्प सच सामने यह आ गया कि जबसे सीबीआई के मेहमानों के नाम सार्वजनिक होने लगे उन 72 घंटों में सीबीआई डायरेक्टर के घर देश का कोई वीवीआईपी चाय पीने नहीं पहुंचा। यानी 2013-14 के दौरान दिल्ली में 2 जनपथ यानी सीबीआई डायरेक्टर का सरकारी निवास जो हर दागी और खास का सबसे चुनिंदा घर था उस घर में जाने वालों ने झटके में ब्रेक लगा दी।
देश में भ्रष्टाचार की असल मुश्किल यही है कि ताकतवर को हर रास्ता कानून की ताकत तबतक देता है जब तक वह कानून की पकड़ में ना आये और इस दौर में जबतक वह चाहे कानून की घज्जिया उड़ा सकता है। क्योंकि ताकतवर लोगों के सरोकार आम से नहीं खास से होते है। और यही नैक्सस इस दौर में सत्ता का प्रतीक बन चुका है। और संसद कुछ कर नहीं पाती क्योंकि वहा भी दागियों की फेरहिस्त सांसदों से नैतिक बल छिन लेती है। और चुनाव के दौर में चुनावी पूंजी को परखे तो ज्यादातर पूंजी उन्हीं कारपोरेट और उघोगपतियों की लगी होती है जो एक वक्त दागी होते है और संसद के जरिये दाग घुलवाने के लिये चुनाव से लेकर सत्ता बनने तक के दौर में राजनेताओं के सबसे करीब हो जाते है!
Friday, September 5, 2014
भ्रष्टाचार के सत्ताधारी नैक्सेस को कौन तोड़ेगा
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:53 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
अब सारे मुहावरे अर्थ खो चुके हैं-'हम्माम में सब नंगे हैं'-'सारे कुँए में भंाग पड़ी है' -'चोर चोर मौसेरे भाई' -?
यक्ष प्रश्न है कि इस स्थिति से देश/प्रजातंत्र कैसे उबरे.नई सरकार के कार्यकलाप आर्थिक क्षेत्र में कारपोरेट सेक्टर के हितों में जाते दिखते हैं.विशेष एजेंडे के तहत कार्यक्रम हो रहे हैं और साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा है.देश तेज़ी से वैचारिक रूप से बँट रहा है.मिडिया अपनी स्वतंत्रता खो कर सत्ता पक्ष का ' तोता' हो गया है. अच्छे नहीं 'बुरे दिनों' का आगाज लगता है.
Is desh ka itihas utha kar dekh lijiye kabhi kisi rajneta ya mantri ke khilaf koi F.I.R hoti nahi Agar ho bhi jaye to us pet karyawahi hoti hi nahi.agar karyawahi ho bhi jaye to use saja hoti nahi.
wah re kanoon wah re loktantra.
बेहद दिलचस्प।
Post a Comment