आंतक ने कश्मीर को छलनी जरुर किया लेकिन बाढ़ की त्रासदी ने तो कश्मीर के आस्त्तिव पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। वैली और लेक की खूबसूरती ने ही कश्मीर को जन्नत बनाया लेकिन अब वैली और लेक ही जिन्दगी पर भारी पड़ रही है। झेलम का पानी दर्जन भर लेक में और लेक का पानी वैली को तहस-नहस कर अब तक डेढ़ हजार गांवों को अपनी हदों में ले चुका है जहां लाखों लोगों के सामने पहला और आखिरी सवाल किसी तरह जिन्दगी बचाने का है। खासकर दर्जन भर लेक से घिरी कश्मीर वैली। आधुनिकता की चादर ओढे घाटी बाढ़ की त्रासदी में एक झटके में सातवी सदी में पहुंच गयी जब आवाजाही के लिये सिर्फ लकड़ी की कश्ती होती थी। लेकिन उस दौर में भी संपर्क साधे जा सकते थे । लेकिन 21 वीं सदी में कश्मीर ने पहली बार उस सच को करीब से देखा है, जब हाथ में मोबाइल है लेकिन बात हो नहीं सकती क्योंकि साढ़े तीन सौ टावर गिर चुके हैं। बारह सौ ने काम करना बंद कर दिया है।
शाम ढलते ही अंधेरा जिन्दगी का हिस्सा बन गया है। क्योंकि डेढ़ हजार ट्रांसफारमर पानी में हैं। पावर सप्लाई बंद है। बच्चो के लिये दूध, पावरोटी तक के लाले पड़ चुके हैं। सतह पर बने घरों में पानी है और घाटी में सिर्फ बीस फिसदी घर ही ऐसे हैं जो दो मंजिला हैं यानी मौजूदा त्रासदी में पानी के उपर आसरा लेने के लिये घाटी के 12 लाख लोगों के लिये जगह भी नहीं है। ज्यादातर खुले आसमान तले मदद की आस में हर पल मौत को देख रहे हैं या फिर कश्मीर की उन लेक से दूर होना चाह रहे है जो कश्मीर की खूबसूरती की पहचान रही। मुश्किल यह है कि डल लेक, गंगाबल लेक, शेषनाग लेक , सतसार लेक , मानसबल लेक, नुंदकोल लेक से लेकर सरीखे दर्जन भर लेक बाढ़ की इस त्रासदी में गडसर लेक में बदल चुके हैं, जिसका मतलब ही होता है डेथ आफ लेक यानी मौत। यानी वैली और लेक की जिस खूबसूरती ने कश्मीर को जन्नत बनाया और हर कश्मीरी हसीन वादियों पर रश्क करता रहा आज उन्हीं वादियों से जिन्दगी बचाने के लिये हर आंख पानी में कश्ती तो आसमान में वायुसेना के विमान को ही देख रही है। क्योंकि कश्मीर की जिस जमीन को लेकर 1947 से ही संघर्ष होता रहा और 1989 के बाद से तो जिस जमीन को सांप्रदायिकता के झरोखे में रखकर दिल्ली से श्रीनगर सुकुन की सिय़ासत करते रहे उस जमीन पर आयी बाढ की त्रासदी ने उन्हें बेबस बना दिया है।
ध्यान दें तो एक हजार करोड की मदद के एलान के साथ प्रधानमंत्री मोदी 36 घंटे पहले कश्मीर दौरा कर लौटे। और उसके बाद से पानी में फंसे करीब पचास लाख लोगो के लिये बीते 36 घंटे से वायु सेना के 23 विमान, 26 हेलीकाप्टर राहत के लिये लगे हुये हैं। दस हजार कंबल , तीस हजार टेंट । सौ से ज्यादा नाव। बोरियो में भरकर खाने की व्यवस्था। लेकिन यह सब कुछ शहरी श्रीनगर में ही खप रहा है या कहे राहत घाटी के उन क्षेत्रों से आगे बढ़ा ही नहीं है, जो कश्मीर देश से कटा हुआ है। आलम यह है कि बाढ़ की वजह से रेडियो कश्मीर, श्रीनगर की सेवाएं भी बंद हो गई हैं। लोगों को बचाने पहुंची राहत टीमें ख़ुद बाढ़ में कई जगह फंस फंस कर आगे बढ पा रही हैं। सारे संपर्क सूत्र कट चुके हैं। यानी एक तरफ कश्मीर की वादियों को पहचान देने वाले हजरत बल, शालीमार निशात बाग, चश्मेशाही सबकुछ पानी पानी है। और त्रासदी का यह नजारा दिखायी भी दे रहा है लेकिन यह कल्पना के परे है कि उन इलाकों में क्या होगा जहा सबकुछ खत्म हो चला है लेकिन वहां ना राहत पहुंच पायी है ना ही कोई कैमरा। अनंतनाग, कुलगाम पुलवामा,बडगाम, शोपिया, बारामूला , कूपवाडा यानी करीब 25 से तीस लाख की आबादी। यह पूरा इलाका पानी में है और अभीतक यहा पानी में रेंगती कश्ती भी नहीं पहुंची है और आसमान में मंडराते 26 हेलीकाप्टर भी नहीं। अनंतनाग की वानपोह, डायलगाम, नौगाम, शीर, सरीखे टाउन में तो हालात कही ज्यादा बदतर होने की खबर है। यह सभी बहुल बस्तियां है और यह इलाके हस्तकरधा की पहचान वाले क्षेत्र हैं। लेकिन बाढ की त्रासदी में सबकुछ बर्बाद हो चुका है। कूपवाडा की लोलाब वैली। पुलवामा का पंपोर, तराल,काकापोरा । शोपिया का तो जिला अस्पताल ही पानी में है। इन इलाको के करीब साढे तीन लाख आबादी तक राहत की कोई लकीर नहीं पहुंची है। वहीं नया खतरा दक्षिण कश्मीर से पानी बहकर मध्य कश्मीर के तरफ आने का हो चला है। श्रीनगर तो पानी से घिरा हुआ है, वहा हालत बहुत ख़राब है। लेकिन अब पानी सोपोर में पहुंचने के आसार है जिससे झेलम का स्तर और बढ़ जाएगा और पूरे शहर के डूबने का ख़तरा भी मंडराने लगा है।लेकिन कश्मीर की त्रासदी तो उस लाइन आफ कन्ट्रोल पर है जिसे लेकर भारत पाकिस्तान के बीच चार बार युद्द हो चुके हैं। और हर बार सारा विवाद लाइन आफ कन्ट्रोल पर ही आ टिका है। गोलियों और घमाके ने लाइन आफ कन्ट्रोल के आर पार खडी सेना को कई मौकों पर आमने सामने ला खड़ा किया।
लेकिन पहली बार बाढ़ के जरीये प्रकृतिक आपदा की ऐसी तस्वीर लाइन ऑफ कन्ट्रोल पर ही उभरी कि सबकुछ पानी पानी हो गया। क्या इस पार क्या उस पार। दोनों तरफ त्रासदी का ऐसा मंजर है कि पहली बार दोनों ही देशों के प्रधानमंत्रियो ने एक दूसरे को मदद देने की गुहार लगा दी। हालात दोनों तरफ के हैं कैसे यह इससे भी समझा जा सकता है कि बारी बारिश, नदियो में उफान, बाढ और भूस्खलन से मौतों की तादाद हो या बेघर लोगों की त्रासदी। लाइन ऑफ कन्ट्रोल के इसपार का पानी हो या उसपार का पानी सभी उन्हीं नदियों की तबाही से निकला मंजर है जो कश्मीर की जननी है। झेलम हो या नीलम। रावी हो या चेनाब। हर नदी के उफान ने दोनो तरफ तबाही फैलायी है। यहां 200 से ज्यादा मौतें हुई है तो पीओके में 183 । इस पार तीन लाख लोग प्रभावित हुये है तो उसपार 28 हजार प्रभावित हुये है। इस पार तीन हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है तो उसपार 600 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। बेघरों की तादाद की जानकारी दोनो तरफ नहीं है लेकिन सेना का जरिये इस पार बीस हजार बेघर है तो उसपार 16 हजार बेघर । पुनर्वास कैसे हो इसका इंतजाम अभी तक किया नहीं जा सका है। बावजूद इसके छिटपुट व्यवस्ता तले इसपार पुनर्वास शिविर में तीन हजार पहुंचे है तो उसपार पुनर्वास शिविर में 700 लोग हैं। पीओके में सैकड़ों मकान ध्वस्त हो चुके हैं। हजारों लोगों के सामने पीओके में सवाल खड़ा हो गया है कि उनके लिये टेंट तक नहीं पहुंचे। कंबल, दरिया कुछ भी नहीं है। लेकिन त्रासदी ने एलओसी को भी अपनी गिरप्त में ले लिया है । सुरक्षा के कई पोस्ट बह गये हैं। खतरा यह भी मंडरा रहा है कि उस पार से कहीं आतंकवादी इस त्रासदी का लाभ उठाकर कश्मीर में घुस ना आयें। लेकिन पहली बार जमी के जन्नत के आस्त्तितव पर खतरा मंडरा रहा है और दिल्ली हो या इस्लामाबाद श्रीनगर हो या मुज्जफराबाद सोचा कभी किसी ने नहीं कि ऐसी प्रकृतिक विपदा आयेगी तो निपटेंगे कैसे और कोई तंत्र क्यों नहीं है इसपर हर कोई खामोश है। लेकिन जिस हालात में कशमीर अभी खड़ा है कल्पना कीजिये जब पानी उतरेगा उसके बाद के मंजर को देखने के लिये कौन तैयार है!
Monday, September 8, 2014
कश्मीर में पानी उतरने के बाद के खौफनाक मंजर देखने के लिए कौन तैयार है?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:44 PM
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2 comments:
Aapne likha hai Donor ne madad ki guhar lgai. Sir guhar nahin peshkash.
Bilkul jab pani utrega to uske baad ka manjar dekhne ko kon taiyaar hoga aur us per jaldi se kaise jivan dubara basaya ja sakega. Gambhir aur vicharniya hai.
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