Friday, December 19, 2014

धर्मांतरण पर संघ का पाठ पीएम कैसे पढें?

घर वापसी सेक्यूलरिज्म की दृष्टि से बाधक नहीं है। हिन्दुत्व तो दर्शन और व्यवहार दोनों स्तर पर सर्वधर्म सम्भाव के सिद्दांत को लेकर चलता है। जिसका वेद के प्रसिद्द मंत्र," एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति " में सुदंर तरीके से उद्घोष भी है। इसलिये हिन्दुत्व को कभी भी अपनी संख्या वृद्दि के लिये धोखाधड़ी और जबरदस्ती का आश्रय लेना नहीं पड़ा है। धर्मांतरण को लेकर बहस के बीचे यह विचार आरएसएस के हैं और अगर प्रधानमंत्री मोदी को धर्मांतरण पर अपनी बात कहनी है तो फिर संघ के इस विचार से इतर वह कैसे कोई दूसरी व्याख्या धर्मांतरण को लेकर कर सकते हैं। यह वह सवाल है जो प्रधानमंत्री को राज्यसभा के हंगामे के बीच धर्मांतरण पर अपनी बात कहने से रोक रहा है। सवाल यह भी नहीं है कि धर्मांतरण को लेकर जो सोच आरएसएस की है वह प्रधानमंत्री मोदी राज्यसभा में कह नहीं सकते।

सवाल यह है कि हिन्दुत्व की छवि तोड़कर विकास की जो छवि प्रधानमंत्री मोदी लगातार बना रहे हैं, उसमें धर्मांतरण सरीके सवाल पर जबाब देने का मतलब अपनी ही छवि पर मठ्ठा डालने जैसा हो जायेगा। लेकिन यह भी पहली बार है कि धर्मांतरण के सवाल पर मोदी सरकार को मुश्किल हो रही है तो इससे बैचेनी आरएसएस में भी है। माना यही जा रहा है कि जो काम खामोशी से हो सकता है उसे हंगामे के साथ करने का विचार धर्म जागरण मंच में आया ही क्यों। क्योंकि मोदी सरकार को लेकर संघ की संवेदनशीलता कहीं ज्यादा है। यानी वाजपेयी सरकार के दौर में एक वक्त संघ रुठा भी और वाजपेयी सरकार के खिलाफ खुलकर खड़ा भी हुआ। लेकिन मोदी सरकार को लेकर आरएसएस की उड़ान किस हद तक है इसका अंदाजा इससे भी लग सकता है कि सपनो के भारत को बनाने वाले नायक के तर्ज पर प्रधानमंत्री मोदी को सरसंघचालक मोहन भागवत लगातार देख रहे हैं और कह भी रहे हैं। हालांकि इन सबके बीच संघ परिवार के तमाम संगठनों को यह भी कहा गया है कि वह अपने मुद्दो पर नरम ना हों। यानी मजदूरों के हक के सवाल पर भारतीय मजदूर संघ लड़ता हुआ दिखेगा जरुर। एफडीआई के सवाल पर स्वदेशी जागरण मंच कुलबुलाता हुआ नजर जरुर आयेगा और घर वापसी को धर्मांतरण के तौर पर धर्म जागरण मंच नहीं देखेगा।

दरअसल धर्म जागरण मंच की आगरा यूनिट ने घर वापसी को ही जिस अंदाज में सबके सामने पेश किया, उसने तीन सवाल खड़े किये हैं। पहला क्या संघ के भीतर अब भी कई मठाधीशी चल रही हैं, जो मोदी सरकार के प्रतिकूल हैं। दूसरा क्या विहिप को खामोश कर जिस तरह जागरण मंच को उभारा गया, उससे विहिप खफा है और उसी की प्रतिक्रिया में आगरा कांड हो गया। और तीसरा क्या मोदी सरकार के अनुकुल संघ के तमाम संगठनों को मथने की तैयारी हो रही है, जिससे बहुतेरे सवाल मोदी सरकार के लिये मुश्किल पैदा कर रहे हैं। हो जो भी लेकिन संघ को जानने समझने वाले नागपुर के दिलिप देवधर का मानना है कि जब अपनी ही सरकार हो और अपने ही संगठन हो और दोनों में तालमेल ना हो तो संकेत साफ है कि संघ की कार्यपद्दति निचले स्तर तक जा नयी पायी है। यानी सरसंघचालक संघ की उस परंपरा को कार्यशैली के तौर पर अपना चाह रहे हैं, जिसका जिक्र गुरु गोलवरकर अक्सर किया करते थे , " संघ परिवार के संस्थाओं में आकाश तक उछाल आना चाहिये। लेकिन जब हम दक्ष बोलें तो सभी एक लाइन में खड़े हो जायें" । मौजूदा वक्त में मोदी सरकार और संघ परिवार के बीच मुश्किल यह है कि दक्ष बोलते ही क्या वाकई सभी एक लाइन में खड़े हो पा रहे हैं। वैसे पहली बार आरएसएस की सक्रियता किस हद तक सरकार और पार्टी को नैतिकता के धागे में पिरोकर मजबूती के साथ खड़ा करना चाह रही है यह संघ परिवार के भीतर के परिवर्तनों से भी समझा जा सकता है। क्योंकि मोहन भागवत के बाद तीन स्तर पर कार्य हो रहा है। जिसमें भैयाजी जोशी संघ और सरकार के बीच नीतिगत फैसलो पर ध्यान दे रहे हैं तो सुरेश सोनी की जगह आये कृष्णगोपाल संघ और बीजेपी के बीच तालमेल बैठा रहे हैं। और दत्तात्रेय होसबोले संघ की कमान को मजबूत कर संगठन को बनाने में लगे हैं। यानी बारीकी से सरकार और संघ का काम आपसी तालमेल से चल रहा है।

ऐसे में धर्मांतरण के मुद्दे ने पहली बार संघ के बीच एक नया सवाल खड़ा किया है कि अगर संघ के विस्तार को लेकर कोई भी मुश्किल सरकार के सामने आती है तो फिर रास्ता निकालेगा कौन। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी विकास की जिस छवि के आसरे मजबूत हो रहे हैं, उसके दायरे में देश के वोटरों को बांटा नहीं जा सकता
और धर्मांतरण सरीखे मुद्दे पर अगर प्रधानमंत्री को जबाब देना पड़े तो फिर वोटरों का भी विभाजन जातीय तौर पर और धर्म के आधार पर होगा। यानी एक तरफ संघ का विस्तार भी हो और दूसरी तरफ बीजेपी को सत्ता भी हर राज्य में मिलते चले इसके लिये संघ और सरकार के बीच तालमेल ना सिर्फ गुरु गोलवरकर की सोच के मुताबिक होना चाहिये बल्कि प्रचारक से पीएम बने मोदी दोबारा प्रचारक की भूमिका में ना दिखायी दें, जरुरी यह भी है। यानी पूरे हफ्ते राज्यसभा जो प्रधानमंत्री के धर्मांतरण पर दो बात सुनने में ही स्वाहा हो गया और 18 दिसंबर को तो पीएम राज्यसभा में आकर भी धर्मांतरण के हंगामे के बीच कुछ ना बोले। तो सवाल पहली बार यही हो चला है कि धर्मांतऱण का सवाल  कितना संवैधानिक है या कितना अंसवैधानिक है और दोनों हालातों के बीच घर वापसी पर अडिग संघ परिवार की लकीर इतनी मोटी है, जो सरकार को भी उसी लकीर पर चलने को बाध्य कर रही है। ऐसे में संघ का पाठ प्रधानमंत्री कैसे पढ़ सकता है। इसे विपक्ष समझ रहा है या नहीं लेकिन प्रचारक से पीएम बने मोदी जरुर समझ रहे हैं।

3 comments:

Aadil said...

मुझे तो ये सांप – छछूंदर वाली स्थिति लग रही है जो न तो निगला जा रहा है न छोड़ा जा रहा है. पर यहाँ सांप कौन है और छछूंदर कौन? ये शायद आने वाला समय बताएगा .
www.achchisalah.blogspot.com

Ironman said...

Prasunjee,

Aap hume ek chij smjha dijie. Woh hai ki keon 65 sal ke ajaadi ke baad humare soch mein koi badlao nehi hui. Kis tarah ki education (or I would rather say information required for a just developed democratic nation), administer kiya gaya ki aaj hum ek samajik asahayoj ke anth mein pahunch gaye. Zindegi bhar musalman bole to reservation samjha jata hai. 65 sal se ek paribar ne des ko kahin ka nehi chora. Us ne apna marji se Sanatan dharma ko Hindu dharm banake desko aur ghaddha me dhakela. Aaj agar koi Dharm Jagarn Manch hai to keon hai. Kis tarah ki education diye gaye inhe ki yeh aaj sab kaam chodke ye saab kaam kar rahe hai. Keo pahale dharmantaran hua. Social justic e keon nehi mila logo ko. Itna conversion pahele keyon hua. Aap ise bhi pahal karenge ya sasta publicity ke lie kuch bhi likh dalenge. Aap to pardhe likhe hai, itna samjh mein nehi ataa hai apko ki secular banne ke lie jo edcuation aur information chahie tha use kabhi dia nehi gia aur aap log jaise patrakar faltu ke editorial likhte gaye. Narendra Modi jee jo kar rahe woh thik kar rahe. Aur han aap ne Netajee Subhash Chandra Bose ke naam sune hai?

Anonymous said...

वो आदिवासी ईसाई कैसे बने?? इस पर भी एक लेख हो जाये।