Tuesday, July 5, 2016

पढ़ा लिखा युवा गढ़ रहा है आतंक की नयी परिभाषा

9/11 यानी अमेरिका के ट्विन टावर पर अटैक । और बगदाद में दो दिन पहले दो धमाके । यानी बीते 15 बरस में आतंक के साये में दुनिया ही कुछ इस तरह आई कि 12 लाख से ज्यादा मौत आतंकी हिसा में हो गई । पचास लाख से ज्यादा लोगघायल हो गये । और ये सवाल बड़ा होने लगा कि क्या आतंक दुनिया को अपने मेंसमेटने वाला सबसे बडा धर्म और अर्थतंत्र तो नहीं बन रहा है । क्योंकि आतंकके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र से ही पांच स्थायी सदस्य देशों की हथियारलॉबी ने बीते 15 बरस में नब्बे लाख करोड का सीधा मुनाफा बनाया । धंधाकितने का हुआ और कुल लाभ कितना हो सकता है इसका कोई आंकड़ा कहीं नहीमिलेगा । लेकिन इसी आतंक ने दुनिया में तेल की राजनीति और कीमत दोनों परअसर डाल दिया । और दुनिया में अमेरिका , चीन रुस और यूरोपिय देशों के बीच नये गठबंधन बाजार अर्थव्यवस्था को लेकर अपरोक्ष तौर पर बने । लेकिन किसआतंक के खिलाफ कौन किसके साथ खडा है इसपर संबंध सीधे बने । और शायद आतंकके ग्राउंड जीरो एक नये पहचान के साथ उभरे ।

क्योंकि अफगानिस्तान , सिरिया और इराक में आतंक ने ऐसे पैर पसारे कि सिर्फइन तीन देसो में 11 लाख से ज्यादा मौतें हुई । तीस लाख से ज्यादा लोग घायलहो गये । और इन तीन देशो में आतंक पर नकेल कसने के लिये दुनिया के तमामताकतवर देश कुछ इस तरह कूदे कि आतंक ने पहली बार दुनिया को ही बांट दिया। क्योंकि 9/11 के आतंकी हमले ने सम्यताओं के टकराव के तौर पर अगर दुनियाको बांटा । तो बीते 15 बरस में रंगो में बांटी जा रही दुनिया में यह सवाल बड़ा होने लगा है कि क्या आतंक दुनिया को बांट देगा । जहा एक तरफ ईसाई 2 अरब 20 करोड़ है तो मुस्लिम एक अरब 60 करोड़ । और हिन्दू एक अरब । लेकिन टकराव धर्म के आदार पर नहीं बल्कि अर्थतंत्र की लडाई को ज्यादा उम्मीद से देख रही है । इसीलिये आतंक की पीठ पर सवार बाजार को महत्व देने वालीइक्नामी को संभाले दुनिया के सामने नया संकट खत्म होते विक्लपो का है । तो ध्यान दिजिये 2001 से पहले अगर आतंकवाद गरीबो के जरीये दुनिया में पैर पसार रहा था । तो 9/11 के बाद घार्मिक कट्टरता और पश्चिमी सम्यता के विकल्प की सोच लिये आतंकवाद को थामने वाला युवा आधुनिक शिक्षा-समाज-बाजार
सबसे जुडा है । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट ही बताती है कि बीते 15 बरस में दुनिया भर में 2 हजार से ज्यादा आतंकी हिंसा हुई । इसमें शामिल 58 फीसदी आतंकवादी उच्च शिक्षा लिये हुये थे । 48 फिसदी तमाम सुख सुविधाओ को भोग चुके युवा थे । और 72 पिसदी कभी छात्र राजनीति या किसी ट्रेड यूनियन से इससे पहले कभी नहीं जुडे थे । यानी आतंक को लेकर जो चौकाने वाला सच 9/11 के वक्त पहली बार मिस्र के मोहम्मद अता के जरीये सामने आया कि जो हैम्बर्ग में उच्च शिक्षा लेने के बाद आतंक से जुडा । वह सच 2016 आते आते दुनिया की हकीकत बन जायेगा यह किसने सोचा होगा । क्योकि बीते एक महीने में यानी रमजान के दौर में ही अगर दुनिया के नक्शे पर जार्डन,लेबनान , यमन टर्की, बांगलादेश और इराक में हुये आतंकी हमलो में शामिल 60 फिसदी युवा उस परिवेश से निकला जिसे आधुनिक विकास के दायरे में आतंक से डरना चाहिये था । लेकिन इन युवा आतंकवादियो ने धर्म को भी अपने आतंक से परिभाषित किया । लेकिन परखना इस सच को भी होगा कि आखिर क्यो पढा लिखा और रईसी में जीने वाले आतंक के राह पर क्यो आ गये । क्योकि फेरहिस्त खासी लंबी है । मसलन ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी , मोहम्मद अता ,अनवर अल अवलाकी ,निदाल हसन, बगदादी , जेहादी जॉन । यानी अलकायदा से लेकर आईएस तक के आतंकवादी गरीबी से नहीं बल्कि रईसी से निकले । उच्च सिक्षा के साथ निकले । और ढाका में ही जिन युवा आतंवादियों के क्रूरता के साथ हत्या की । वह भी उच्चतर समाज के हिस्सा रहे है । याद कीजिए 9-11 के हमले के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता एलि वेसेल ने तर्क दिया था कि , " शिक्षा के जरीये आतंक पर नकेल कसी जा सकती है । " तो 9-11 के बाद आतंकवाद ने पढ़े लिखे और संपन्न परिवारों के युवाओं को लुभाना क्यो शुरु किया इसका जबाब किसी ने नहीं दिया । क्योंकि गौर कीजिए तो ढाका में खूनी खेल खेलने वाले आतंकियों ने न केवल जवानी की दहलीज पर कदम रखा था बल्कि अच्छी यूनिवर्सिटी से पढ़े लिखे थे।

आतंकवादी निब्रस , ढाका की नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी से पढ़ने के बाद मलेशिया के मोनाश यूनिवर्सिटी गया। तो आतंकवादी मुबाशीर, ढाका के टॉप  इंग्निश मीडियम स्कूल में पढ़ा लिखा।और आतंकवादी रोहन इम्तियाज के तो पिता ही अवामी लीग के नेता हैं। और घर में हर सुविधा । समाज में हर मान्यता । यानी पढ़े लिखे रईस परिवार के युवा आतंक की राह चल रहे तो सच यही है कि समस्या की जड़ें कहीं गहरी हैं। दरअसल, समाजशास्त्रियो की नजर में छह वजहे है । पहला अलग अलग देशो के राजनीतिक अतंरविरोध का लाभ आतंक को मिलता है । दूसरा, आतंक को लेकर संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा भी अलग अलग है । तीसरा आतंक और विद्रोही हिंसा के बीच लकीर राजनीतिक है । चौथा , राजनीतिक सत्ता से मोहभंग की स्थिति में युवा कही ज्यादा है । पांचवा, राजनीतिक विचारधाराओ का खत्म होना आतंकवाद के लिये अच्छा साबित हो रहा है । छठा विकास में लोगो से ज्यादा पूंजी की बढती भागेदारी मोहभंग पैदा कर रही है । वजह भी यही है कि जॉर्डन,मोरक्को,पाकिस्तान और टर्की में 2004 में एक एक सर्वे में पढ़े लिखे नौजवानों ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ आत्मघाती हमलों की ज्यादा वकालत की बनिस्पत उन लोगों ने,जिनकी शिक्षा कम थी। कम पढ़े लिखे लोगों ने नो ओपनियन यानी कोई राय नहीं वाला विकल्प चुना। तो पढ़े लिखे युवा रेडिकलाइज हो रहे हैं-इससे इंकार किया नहीं जा सकता, और कोई सरकारें इन युवाओं की बेचैनी को साध नहीं पा रही-ये दूसरा सच है।

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