26 महीने बीत गए और 34 महीने बाकी हैं । तो विपक्ष हो या संघ परिवार के भीतर के संगठन पहली बार खुले सवाल लेकर हर कोई अपना रास्ता बनाने की दिशा में बढना चाह रहा है । और प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते हुये एकतरफ क्षत्रप एकजुट हो रहे है । तो मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर संघ परिवार में विरोध के स्वार ना उठे उसकी मशक्कत खुद सरसंघचालक मोहन भागवत और सुरेश सोनी अब खुलकर कर रहे हैं। हालात को परखें तो नीतिश कुमार संघ परिवार पर सीधे चोट कर देश भर के साहित्यकार लेखकों को जमा कर अपनी राजनीतिक हैसियत बिहार के बाहर राष्ट्रीय स्तर पर देखना चाह रहे हैं। यानी निगाहों में 2019 अभी से समाने लगा है। ममता बनर्जी संघीय. ढांचे का सवाल उठाकर ना सिर्फ मोदी सरकार पर सीधी चोट कर रही है बल्कि नीतीश कुमार और केजरीवाल से मुलाकात कर 2019 की बिसात तीसरे मोर्चे की दिशा में ले जाने का प्रयास कर रही है ।
केजरीवाल तो सीधे अब प्रदानमंत्री मोदी से टकराने के रास्ते निकल पड़े हैं । इसलिये हर उस मुद्दे के साथ खुद को खड़ा कर रहे हैं, जहां मोदी पर सीधे निशाना साधा जा सके । जाहिर है बिहार, बंगाल और दिल्ली की इस आवाज में कितना दम होगा या 2019 तक क्या ये वाकई कोई विकल्प बना पायेंगे ये अभी दूर की गोटी है । लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिये असल सवाल तो संघ परिवार को अपने साथ सहेज कर रखने का है । क्योंकि दूसरी तरफ बीएमएस मोदी सरकारी की आर्थिक नीतियों को मजदूर विरोधी मान रहा है । और उसे लग रहा है कि ऐसे में उसके सरोकार मजदूर संगठन के तौर पर कैसे बचेगें । तो स्वदेशी जागरण मंच के सामने मुस्किल हर क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश को लेकर बढती मोदी सरकार की लालसा है । ऐसे में ििस्वदेशी जागरण मंच के सामने अपनी महत्ता को बनाये रखने का होता जा रहा है। वहीं संघ के भीतर के ठेंगडी गुट को लगने लगा है कि मोदी सरकार की इक्नामी वाजपेयी दौर के ही समान है तो वह अब खुली अर्थव्यस्था के विकल्प का सवाल उटा कर ये चेताने लगा है कि अगर चुनाव अनुकुल इक्नामी नहीं अपनायी गई तो 2019 में चुनाव जीतना भी मुश्किल हो जायेगा । लेकिन खास बात ये है कि संघ परिवार के भीतर की हलचल की आंच मोदी सरकार पर ना आये इसके लिये शॉक आब्जर्वर का काम खुद संघ के मुखिया मोहन भागवत और दो बरस बाद छुट्टी से लौटे सुरेश सोनी कर रहे हैं।
और दोनों ही स्वयंसेवक इस हालात को बनने से रोक रहे है कि 2004 वाले हालात 2019 में कही ना बन जाये जब स्वयंसेवको ने खुद को वाजपेयी सरकार के चुनाव से खुद को अलग कर लिया था । इसीलिये दिल्ली के गुजरात भवन में आर्थिक नीति को लेकर तो दो दिन पहले हरियाणा भवन में शिक्षा नीति को लेकर जिस तरह संघ के मुखिया की मौजूदगी में संघ के संगठनो के नुमाइन्दे और सरकार के आला मंत्रियों से चर्चा हुई । उसने ये संकेत तो साफ दे दिये मोदी सरकार के हर मंत्रालय का कच्चा चिट्ठा अब आरएसएस देखना नहीं बताना चाहता है । यानी संघ की लकीर पर सरकार कैसे चले । और जहा ना चले वहा तालमेल कैसे बिठाये । क्योकि आर्थिक नीतियों पर संघ परिवार की तरफ से और सरकार की तरफ से बैठा कौन ये भी कम दिलचस्प नहीं । संघ के सात संगठन बीएमएस , स्वदेशी जागरण मंच, किसान संघ , ग्राहक पंचायत, लघु उघोग भारती, सहकार बारती, दीनदयाल संस्धान बैठ तो दूसरी तरफ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ अरुण जेटली । वैकेया नायडू, पीयूष गोयल, निर्माला सितारमण, कलराज मिश्र , बंडारु दत्तात्रेय । तो शिक्षा नीति को बनाने के लिये संघ के विघा भारती , भारतीय शिक्षा मंडल , एबीवीपी , शिक्षक महाविघालय , शिक्षा संस्कृति न्यास , संस्कृत भारती तो सिक्षा मंत्री प्रकाश जावडेकर , राज्य मंत्री महेन्द्र नाथ पांडे और उपेन्द्र कुशवाहा बैठे । । और सहमति बनाने तके लिये संघ के मुखिया मोहन भागवत के अलावे दत्तात्रेय होसबोले , सुरेश सोनी , कृष्ण गोपाल और बीजेपी संगटन
मंत्री रामलाल मौजूद रहे । यानी लग ऐसा रहा है कि सरकार का कामकाज संघ परिवार को संतुष्ट करना है । क्योंकि मोदी सरकार को भी साफ लगने लगा है कि सरकार से ज्यादा आम जनता से सरोकार स्वयंसेवकों के ही है । और राजनीतिक तौर पर सरकार की सफलता नीतियो से नहीं चुनावी जीत से समझी मानी जाती है । और अगर वाजपेयी के दौर की तर्ज पर कही संघ के भीतर सरकार को लेकर ही टकराव हो गया तो हर चुनाव में मुश्किल होगी । इसीलिये बैठक में जब संघ ने एफडीआई, विनिवेश और बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर आपत्ति जतायी । तो अमित शाह समेत सात मंत्रियों ने संघ के सुझाव के पालन का भरोसा जता दिया । इसी तर्ज पर शिक्षा नीति को लेकर पहली बार जब एचआरडी मंत्री प्रकाश जावडेकर के साथ संघ के संगठन शिक्षा भारती के साथ एवीबीपी, शिक्षा संस्कृति न्यास बैठे और उन्होने महंगी शिक्षा , व्यवसायिक होती शिक्षा , शिक्षा के कारपोरेटीकरण का सवाल उठाया । तो प्रकाश जावडेकर ने संघ के सुझाव के पालन का भरोसा जताया । और बैठक में दीनानाथ बत्रा हो या अतुल कोठारी उनकी लीक को ही शिक्षा नीति का हिस्सा बनाने पर सहमति जतायी गई । जाहिर है ये सिलसिला यही रुकेगा नहीं । क्योकि मोदी सरकार के दो बरस बीत चुके है और बैचेनी हर किसी में है कि नीतिया ना संघ के अनुकुल बन पा रही है ना ही नीतियो से चुनावी जीत मिलेगी । ऐसे मोड पर विहिप भी अब विचार समूह के तहत राम मंदिर ही नहीं बल्कि धर्मातरण और क़ॉमन सिविल कोड पर भी सरकार से बात करने पर जोर दे रहा है । तो सवाल यही है कि 26 महीने बीते चुके मोदी सरकार के सामने वक्त वाकई 34 महीने का है । या फिर अगले 16 महीनो में यूपी, पंजाब, गोवा और गुजरात के चुनाव की जीत हार ही सबकुछ तय कर देगी ।
Wednesday, July 27, 2016
संघ परिवार को संतुष्ट करना है मोदी सरकार का काम ?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:44 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment