Tuesday, March 7, 2017

लोकतंत्र की गलियों में खुद को गढ़ते मोदी .....

रामनगर की संकरी गली में पैदल ही जाते पीएम मोदी । इसी गली के आखिरी छोर पर पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री का घर । तो चुनाव बीच जिस तरह यूपी में बीजेपी का चेहरा बने प्रधानमंत्री मोदी लालबहादुर शास्त्री के घर पहुंचे । उसमे हर किसी को लगा जरुर कि ये पीएम मोदी नहीं बल्कि कांग्रेस की विरासत और सियासी जमीन को हथियाने पहुंचे बीजेपी के सबसे बडा प्रचारक हैं । तो क्या मोदी ने पहली बार देश की उस नब्ज को पकड़ा है जिस नब्ज को पकडने से पहले बीजेपी का कोई भी नेता सैकडों बार सोचता । या फिर मोदी ने
देश के उन आईकान को ही अब बीजेपी के साथ खडा करने की नई शुरुआत की है जो अभी तक कांग्रेस की पहचान रहे । या जिनकी पहचान हिन्दुइज्म से इतर रही । याद कीजिये स्वच्छता मिशन के जरीये पहले महात्मा गांधी को मोदी ने अपने साथ जोड़ा । फिर किसानों के आसरे लौह प्रतिमा का जिक्र कर सरदार पटेल को
साथ लिया । बाबा साबहेब की 125 जयंती पर संसद में बहस कराकर मोदी ने आंबेडकर को साधा । और अब लाल बहादुर शास्त्री के घर पहुंचकर साफ संकेत दिये कि लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस के नहीं देश के हैं।

यानी सिर्फ नेहरु परिवार को ही लगातार निसाने पर लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद बारीक लकीर कांग्रेस के उन्हीं नेताओं को लेकर खींची जो देश की आईकान हैं । यानी बीजेपी के सामने ये संकट हमेशा से रहा है कि वह संघ, जनसंघ या बीजेपी के कौन से आईकॉन को राष्ट्रीय आईकान के तौर पर अपनाये जिससे राष्ट्रीय सहमति मिले । संघ को बनाने वाले हेगडेवार हो या हिन्दू महासभा बनाने वाले सावरकर या फिर जनसंघ बनाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी । या बीजेपी के पहले अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपपेयी या आडवाणी । ध्यान दें
तो प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कि लिये जो राजनीतिक लकीर खींची है वह राष्ट्रीय नेता के तौर पर अंतराष्ट्रीय छवि वाली है । और उस अक्स में हेगडेवार या सावरकर फिट बैठते नहीं । श्यामाप्रसाद मुखर्जी या दीन दयाल
उपाध्याय की भी परिधि देश के भीतर भर की है । और वाजपेयी बीजेपी के लिये पोस्टरों में चस्पा है तो आडवाणी जिन्हे खुद एक वक्त बीजेपी नेता लौह पुरुष कहते रहे वह मोदी के दौर में कितने कमजोर हो चुके हैं । इसका जिक्र जरुरी नहीं । यानी मोदी के सामने सवाल ये नहीं है कि लालबहादुर शास्त्री काग्रेस के नेता थे । और वह उनके घर जाकर काग्रेस से उन्हे छिन रहे है । या फिर माहात्मा गांधी या सरदार पटेल भी काग्रेस के ही थे ।और आंबेडकर तो उस हिन्दु राष्ट्र  थ्योरी के एकदम खिलाफ थे जिस पर संघ चला । दरअसल मोदी की राजनीतिक फिलासफी लगातार बीजेपी के लिये उस जमीन को बनाने या हथियाने की दिशा में जा रही है जिस राजनीति को कांग्रेसियों ने छेड़ दिया है । या कहे जिस दौर में काग्रेस सबसे कमजोर होकर मोदी को केन्द्र में रखकर राजनीति कर रही है । उसी राजनीति का लाभ उठाकर मोदी देश के उन आईकॉन को अपने साथ ले रहे है जो कभी संघ परिवार या जनसंघ या बीजेपी के थे ही नहीं । तो क्या यूपी चुनाव के जरीये मोदी चुनाव के तौर तरीकों को राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ ले जा रहे है । क्योकि यूपी में मोदी प्रचार के लिये उतरे तो पिर अखिलेश का चेहरा हो या मायावती का या फिर राहुल गांधी का । सभी एक ही लकीर पर चल पडे । जिसमें आरोप प्रत्यारोप एक दूसरे पर था । मगर चेहरो के आसरे किसी ने यूपी के चुनाव मैदान में कूदे 4853 उम्मीदवारो को किसी ने नहीं देखा । तो क्या यूपी चुनाव ने संकेत दे दिये है कि देश धीरे धीरे संसदीय प्रणाली से इतर राष्ट्रपति प्ऱणाली की दिशा में जा रहा है । जहा पार्टी नहीं व्यक्ति महत्वपूर्ण होगा । और चाहे अनचाहे पीएम ने जिस अंदाज में चुनाव प्रचार किया । और जिस अंदाज में चेहरो की लडाई एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप तले फंसती उलझती गई उसमें ये किसी ने नहीं पूछा । और ना ही जानना चाहा कि 4853 उम्मीदवारों में हर तीसरे शख्स पर क्रिमिनल केस क्यों दर्ज हैं । 62 उम्मीदवारो पर हत्या का केस यानी धारा 302 दर्ज है । 148 उम्मीदवारो पर हत्या के प्रयास यानी धारा 307 दर्ज है । 34 उम्मीदवारो पर किडनैपिंग का आरोप है । 31 उम्मीदवारो पर रेप का आरोप । यूपी इलेक्शन वॉच और एडीआर की इस रिपोर्ट का मतलब फिर है कितना । क्योकि जिन चेहरो पर यूपी चुनाव जा सिमटा है और सारी बहस दलित--मुस्लिम के समीकरण यानी मायावती । अति पिछडा - उंची जाति के समीकरण यानी मोदी ।

यादव-मुस्लिम-पिछडी जाति समीकरण यानी अखिलेश-राहुल पर जा सिमटी है । तो ऐसे में ये सवाल भी कहा मायने रखते है कि मायवती के 40 पिसदी उम्मीदवार दागी है । अखिलेश के 37 फिसदी उम्मीदवार दागी है ।मोदी के 36 फिसदी उम्मीदवार दागी है । राहुल गांधी के 32 फिसदी उम्मीदवार दागी है । तो फिर महीने भर लंबा चुनाव प्रचार अब पूरी तरह जब थम चुका है तो क्या जनता के लिये सुकुन का वक्त है या फिर इस चुनाव के वक्त जो रोजगार था वह भी अब थम गया । क्योकि रैलियो से लेकर रोड शो का दौर खत्म हुआ । और औसतन हर बडी रैली का खर्चा 50 लाख रुपये से ज्यादा का रहा । 1457 करोडपति उम्मीदवार की बडी रैलियो का औसतन खर्चा तो एक करोड तक भी पहुंचा । 2790 उम्मीदवारो ने तो इनकम टैक्स रिटर्न की जानकारी भी नहीं दी । इनमें 218 करोडपति हैं । यानी लगातार जिन सवालो को पीएम से सीएम तक हर रैली में उठाते रहे । उन्ही
सवालो को पीएम से लेकर सीएम तक चुनाव जीतने के लिये उम्मीदवारो के दाग को ढोते रहे । तो सवाल है जनादेश कुछ भी हो लोकतंत्र हार रहा है और पहल बार हारते लोकतंत्र के केन्द्र में कौन खडा है ?

1 comment:

Rajendra jain said...

सर,
सर्वप्रथम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने सूरतगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोइल हेल्थ कार्ड स्कीम के उद्घाटन से संबंधित खबर को 10:00 तक के अपने बुलेटिन में स्थान दिया! आप की खबर का यह असर हुआ कि खबर के प्रसारण के दूसरे दिन
ही सरकार द्वारा सूरतगढ़ में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला का उद्घाटन स्थानीय विधायक राजेंद्र भादू द्वारा करवा दिया गया! यह अलग बात है कि प्रयोगशाला में अब भी किसी प्रकार का कोई उपकरण या फिर मृदा जांच से संबंधित किसी तरह की कोई सुविधा नहीं है लेकिन फिर भी आपने मेरे सुझाव पर त्वरित प्रतिक्रिया दी और किसानों से जुड़ी इस महत्वपूर्ण खबर को दस्तक में प्रमुख स्थान दिया इसके लिए एक बार पुनः आपका आभार व धन्यवाद! इस उम्मीद के साथ की बाजारवाद के इस दौर में पत्रकारिता को जिंदा रखने का प्रयास आप सदैव करते रहेंगे! धन्यवाद !
राजेंद्र जैन सूरतगढ़
9928298484