सबसे बडी चुनौती इकनॉमी की है । और बिगडी इकनॉमी को कैसे नये आयाम दिये जाये जिससे राजनीतिक लाभ भी मिले अब नजर इसी बात को लेकर है । तो एक तरफ नीति आयोग देश के 100 पिछडे जिलों को चिन्हित करने में लग गया है तो दूसरी तरफ वित्त मंत्रालय इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिये ब्लू प्रिंट तैयार कर रहा है । नीति आयोग के सामने चुनौती है कि 100 पिछड़े जिलों को चिन्हित कर खेती, पीने का पानी , हेल्थ सर्विस और शिक्षा को ठीक-ठाक कर राष्ट्रीय औसम के करीब लेकर आये तो वित्त मंत्रालय के ब्लू प्रिंट में विकास दर कैसे बढे और रोजगार कैसे पैदा हो। नजर इसी पर जा टिकी है। और इन सबके लिये मशक्कत उघोग क्षेत्र, निर्माण क्षेत्र , रियल स्टेट और खनन के क्षेत्र में होनी चाहिये इसे सभी मान रहे हैं। यानी चकाचौंध की लेकर जो भी लकीर साउथ-नार्थ ब्लाक से लेकर हर मंत्रालय में खिंची जा रही हो, उसके अक्स में अब सरकार को लगने लगा है कि प्रथामिकता इकनॉमी की रखनी होगी इसीलिये अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जा रहा है । जिससे जीडीपी में तेजी आये , रोजगार बढ़े। और बंटाधार हो चुके रियल इस्टेट और खनन क्षेत्र को पटरी पर लाया सके । लेकिन सवाल इतना भर नहीं । इक्नामिस्ट मनमोहन सिंह सत्ता में रहते हुये इकनॉमी को लेकर फेल मान लिये गये । और जनता की नब्ज को समझने वाले मोदी सत्ता संभालने के बाद इकनॉमी संबालने से जूझ रहे हैं। और देश का सच ये है कि नेहरु ने 1960 में सौ पिछडे जिले चिन्हित किया । मोदी 2017 में 100 पिछडे जिलों के चिन्हित कर रहे हैं । 1960 से 1983 तक नौ कमेटियों ने सौ पिछड़े जिलों पर रिपोर्ट सौपी । कितना खर्च हुआ । या रिपोर्ट कितनी अमल में लायी गई ये तो दूर की गोटी है ।
सोचिये कि जो सवाल आजादी के बाद थे, वही सवाल 70 बरस बाद है । क्योकि जिन सौ जिलों को चिन्हित कर काम शुरु करने की तैयारी हो रही है उसमें कहा तो यही जा रहा है कि हर क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत के समकक्ष 100 पिछडे जिलो को लाया जाये । लेकिन जरुरत कितनी न्यूनतम है किसान की आय बढ जाये । पीने का साफ पानी मिलने लगे ।शिक्षा घर घर पहुंच जाये । हेल्थ सर्विस हर किसी को मुहैया हो जाये ।और इसके लिये तमाम मंत्रालयों या केन्द्र राज्य के घोषित बजट के अलावे प्रचार के लिये 1000 करोड़ देने की बात है । यानी हर जिले के हिस्से में 10 करोड । तो हो सकता है पीएम का अगला एलान देश में सौ पिछडे जिलों का शुरु हो जाये । यानी संघर्ष न्यूनतम का है । और सवाल चकाचौंध की उस इकनॉमी तले टटोला जा रहा है जहां देस का एक छोटा सा हिस्सा हर सुविधाओ से लैस हो । बाकि हिस्सों पर आंख कैसे मूंदी जा रही है ये मनरेगा के बिगडते हालात से भी समझा जा सकता है । क्योंकि मानिये या ना मानिये । लेकिन मनरेगा अब दफ्न होकर स्मारक बनने की दिशा में जाने लगा है । क्योकि 16 राज्यो की रिपोर्ट बताती है मनरेगा बजट बढते बढते चाहे 48 हजार करोड पार कर गया लेकिन रोजगार पाने वालो की तादाद में 7 लाख परिवारो की कमी आ गई । क्योंकि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ही रिपोर्ट कहती है कि 2013-14 में पूरे 100 दिनों का रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या 46,59,347 थी,। जो साल 2016-17 में घटकर 39,91,169 रह गई । तो मुश्किल ये नहीं कि सात लाख परिवार जिन्हे काम नहीं मिला वह क्या कर रहे होंगे । मुश्किल दोहरी है , एक तरफ नोटबंदी के बाद मनरेगा मजदूरों में 30 फिसदी की बढोतरी हो गई । करीब 12 लाख परिवारों की तादाद बढ गई । दूसरी तरफ जिन 39 लाख परिवारों को काम मिला उनकी दिहाड़ी नही बढ़ी। आलम ये है कि इस वित्तीय वर्ष यानी अप्रैल 2017 के बाद से यूपी, बिहार,असम और उत्तराखंड में मनरेगा कामगारों की मजदूरी में सिर्फ एक रुपये की वृद्धि हुई । ओडिशा में यह मजदूरी दो रुपये और पश्चिम बंगाल में चार रुपये बढ़ाई गई ।
और दूसरी तरफ -बीते साल नवंबर से इस साल मार्च तक बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तो काम मांगने वालों की संख्या में 30 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज हुई । तो मनरेगा का बजट 48000 करोड़ कर सरकार ने अपनी पीढ जरुर ठोकी । लेकिन हालात तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लागू ना करा पाने तक के है । एक तरफ 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा , मनरेगा की मजदूरी को राज्यों के न्यूनतम वेतन के बराबर लाया जाए । लेकिन इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति ने मनरेगा के तहत दी जानी वाली मजदूरी को न्यूनतम वेतन के साथ जोड़ने को गैर-जरूरी करार दे दिया जबकि खुद समिति मानती है कि 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मनरेगा की मजदूरी खेत मजदूरों को दी जाने वाली रकम से भी कम है। तो फिर पटरी से उतरते देश को राजनीति संभालेगी कैसे । और इसी लिये जिक्र युवाओ का हो रहा है । बेरोजगारी का हो रहा है । और ध्यान दीजिये राहुल के निशाने पर रोजगार का संकट है। पीएम मोदी के निशाने पर युवा भारत है। और दोनों की ही राजनीति का सच यही है कि देश में मौजूदा वक्त में सबसे ज्यादा युवा है । सबसे ज्यादा युवा बेरोजगार है। और अगर युवा ने तय कर लिया कि सियासत
की डोर किसके हाथ में होगी तो 2019 की राजनीति अभी से पंतग की हवा में उड़ने लगेगी । क्योकि 2014 के चुनाव में जितने वोट बीजेपी और काग्रेस दोनो को मिले थे अगर दोनों को जोड़ भी दिया जाये उससे ज्यादा युवाओ की तादाद मौजूद वक्त में है । मसलन 2011 के सेंसस के मुताबिक 18 से 35 बरस के युवाओ की तादाद 37,87,90,541 थी । जबकि बीजेपी और काग्रेस को कुल मिलाकर भी 28 करोड़ वोट नहीं मिले । मसलन 2014 के चुनाव में बीजेपी को 17,14,36,400 वोट मिले । तो कांग्रेस को 10,17,32,985 वोट मिले और देश का
सच ये है कि 2019 में पहली बार बोटर के तौर पर 18 बरस के युवाओ की तादाद 13,30,00,000 होगी यानी जो सवाल राहुल गांधी विदेश में बैठ कर उठा रहे हैं उसके पीछे का मर्म यही है कि 2014 के चुनाव में युवाओं की एक बडी तादाद कांग्रेस से खिसक गई थी । क्योकि दो करोड रोजगार देने का वादा हवा हवाई हो
गया था और याद किजिये तब बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में रोजगार कामुद्दा ये कहकर उठाया था कि "कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बीते दस साल के दौरान कोई रोजगार पैदा नहीं कर सकी, जिससे देश का विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ"। तो मोदी ने सत्ता में आने के लिये नंवबर 2013 को आगरा की चुनावी रैली में पांच बरस में एक करोड रोजगार देने का वादा किया था । पर रोजगार का संकट किस तरह गहरा रहा है और हालात मनमोहन के दौर से भी बुरे हो जायेंगे ये जानते समझते हुये अब ये सवाल राहुल गांधी , मोदी सरकार
को घेरने के लिये उठा रहे हैं । यानी मुश्किल ये नहीं कि बेरोजगारी बढ़ रही है संकट ये है कि रोजगार देने के नाम पर अगर युवाओं को 4 बरस पहले बीजेपी बहका रही थी और अब नजदीक आते 2019 को लेकर कांग्रेस वही सवाल उठा रही तो अगला सवाल यही है कि बिगडी इकनॉमी , मनरेगा का ढहना और रोजगार संकट
सबसे बडा मुद्दा तो 2019 तक हो जायेगा लेकिन क्या वाकई कोई विजन किसी के पास है की हालात सुधर जाये ।
Thursday, September 21, 2017
बिगड़ी इकनॉमी, ढहता मनरेगा और बेरोजगारी में फंसा देश 2019 का चुनाव देख रहा है
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:01 PM
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5 comments:
क्या राहुल गांधी भारत लौटने पर अपना प्रदर्शन जारी रख पायेंगे?
नई दिल्ली, क्या राहुल गांधी अपनी ताजपोशी से पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज़ पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे है , जिस तरह प्रधान मंत्री अपने विदेशी दौरे के दौरान विपक्ष पर हमला करते है, कांग्रेस की पूर्व की सरकारों को कटघरे में खड़ा करते है, पूर्व की सरकारों के घोटालों का ज़िक्र कर ये बात भी दर्शाते हैं कि अब भारत बदल रहा है, विकास के नए आयाम तय कर रहा है।पुलिस प्रशाशन हो या अफसरशाही, मंत्री हर के काम मे परिवर्तन आरहा है।कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी उसी आक्रमक रूप में दिखाई दे रहे है।पहले बर्कले की प्रतिष्टित यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया में सरकार पर और सरकार की नीतियों पर हमला किया और अब ऐसा ही हमला अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भी किया।
राहुल गांधी भी अब प्रधान मंत्री की तर्ज़ पर अपने मतदाताओं को सीधे टारगेट कर रहे है, 2014 में जिस रोज़गार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नौजवानो को एकजुट कर रहे थे अब यही काम राहुल गांधी कर रहे है और राहुल गांधी ने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भी प्रधानमंत्री की नीतियों की आलोचना करते हुए इसी बात को दोहराया कि रोज़गार के मौके जैसे पैदा किये जाने चाहिए थे नही हुए, इसमें सरकार पूरी तरह नाकाम हुई है।
राहुल गांधी ने मेक इन इंडिया का भी ज़िक्र किया राहुल गांधी ने कहा कि मेरा मानना है कि मेक इन इंडिया का लक्ष्य छोटे उधोगों को लाभ पहुचाना होना चाहिए था लेकिन इसके तहत बड़े उधोगों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
मतलब साफ है राहुल के निशाने पर नौजवान तो है ही साथ ही साथ छोटे उद्योग वाले मतदाता भी है, मज़दूर , कामगार, हो या वो नौजवान जिसको 2014 में उम्मीद थी कि केंद्र में नरेंद्र मोदी को अगवाई में सरकार के गठन से उन्हें अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाएगा लेकिन अब सरकार खुद मान रही है कि देश मे स्वीकृत सरकारी पदों पर भी भर्ती नही हो पाई और आधी से ज़्यादा स्वीकृत सीटें खाली है।
। दो महीने पहले ही जब राज्यसभा में सवाल उठा तो कैबिनेट राज्य मंत्री जितेन्द्र प्रसाद ने जवाब दिया। केन्द्र सरकार के कुल 4,20,547 पद खाली पड़े हैं। और महत्वपूर्ण ये भी है केन्द्र के जिन विभागो में पद खाली पड़े हैं, उनमें 55,000 पद सेना से जुड़े हैं। जिसमें करीब 10 हजार पद आफिसर्स कैटेगरी के हैं। इसी तरह सीबीआई में 22 फीसदी पद खाली हैं। तो प्रत्यर्पण विभाग यानी ईडी में 64 फीसदी पद खाली हैं। इतना ही नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सरीखे आम लोगो की जरुरतों से जुडे विभागों में 20 से 50 फीसदी तक पद खाली हैं। तो क्या सरकार पद खाली इसलिये रखे हुये हैं कि काबिल लोग नहीं मिल रहे। या फिर वेतन देने की दिक्कत है । या फिर नियुक्ति का सिस्टम फेल है । हो जो भी लेकिन जब सवाल रोजगार ना होने का देश में उठ रहा है तो सरकार की भी जवाबदेही बनती है।और यही सवाल देश भी जानना चाहता है और इसी का ज़िक्र कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी बार बार कर रहे है।
राहुल गांधी ने सत्ता के केंद्रीकरण की बात भी की और लगे हाथों कानून बनाने में पारदर्शिता की अहमियत पर ज़ोर भी डाला। खुद की पार्टी में भी कानून बनाने की प्रक्रिया में शफफ़ियात लाने का यकीन दिलाया और केंद्र की मोदी सरकार पर सत्ता के केन्द्रीयकरण का आरोप भी।यानी राहुल खुद मानते है कि कानूनन बनाने में शफफ़ियात सिर्फ केंद्र का नही उनकी पार्टी का भी मसला है
लेकिन एक बात तो ज़रूर है कि इस दौरान जो पार्टी राहुल गांधी के बयान को अहमियत नही दे रही थी अब उनके हर सवाल का जवाब देने के लिए प्रवक्ताओं की टीम को ज़िम्मेदारी दे दी गयी है।तभी तो बरथले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया में राहुल गांधी के बयान के बाद केंद्रीय मंत्री इसमीरती ईरानी ने मोर्चा संभाला और राहुल गांधी के आरोपों का न सिर्फ जवाब दिया बल्कि कांग्रेस पार्टी को भी कई मुद्दों पर कटघरे में खड़ा किया।
राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के पहले सरकार की नीतियों की मुखालफत के साथ साथ अपनी पार्टी का भी मोहसबा कर रहे है अब देखना है कि राहुल गांधी जब देश मे लौटते है और पार्टी के सदर बनते है तो क्या इसी तरह वो भाजपा की नीतियों पर आक्रमण कर पाएंगे और खुद अपनी पार्टी की जिन खामियों का वो खुद ज़िक्र कर रहे है क्या वो उसे दूर कर पाएंगे क्योंकि 2019 के चुनाव की तैयारी के लिए राहुल के सामने इन दोनों चुनौतीयो को पार कर पाना आसान नही होगा।
मैंने कल ही लिखा था आपका ये आर्टिक्ल देख कर मन किया तो कॉमेंट बॉक्स में डाल दिया, कुछ बात मिलती जुलती ही है, लेकिन मैं आपकी तरह विचार और शब्द नही ले सकता , उसके लिए पता नही कितने साल लगेंगे मुझे----लेकिन आपको पढ़ता हूँ, आपके शब्दों को चुराता हु,
https://farkindia.org/gang-rape-18-year-girl-and-acid-put-on-the-body/
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बाजपाई जी आपके ब्लाग में कहीं भी आम आदमी पार्टी का जिक्र नहीं किया गया है ! क्या आपको नहीं लगता कि आज के संधर्ब में केजरीवाल की भूमिका अहम है जो देश के बुनियादी प्रश्न भ्रष्टाचार को खत्म कर एक नया भारत बनाने के लिये संघर्ष रत हैं !
ज्यातर पत्रकार केजरीवाल को कोई खास तबज्जो नहीं देते हैं और शायद इसलिये कि उन्हें केजरीवाल से किसी भी तरह के गैरवाजिद लाभ के मिलने की कोई उम्मीद नहीं है जो कि अक्सर कांग्रेस भाजपा या अन्य किसी भी दल से आसानी से मिल जाया करती है ! मैं मानता हूं कि आखिर आप लोग भी इंसान ही हैं फिर भी सोचने पर मजबूर हूं कि जब कोई पूरी ईमानदारी से काम करेगा तो लाभ जनता को बराबर होगा और सामान्य इंसान भी ईमानदारी से अपना भरण पोषण कर सकेगा ! मैं मानता हूं कि रामराज तो नहीं आयेगा पर यदि शाशन प्रशाशन ईमानदारी से काम करेगा तो देश में रामराज भी लाया जा सकता है !
जरूरत है तो बस ईमानदार लोगों को ईमानदारी से हौसला बढ़ाने की ! धन्यवाद
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