Tuesday, November 7, 2017

नोटबंदी के दिन कालेधन पर सत्ता-नेता दिल बहलायेंगे !

2008 से 2017 तक। यानी लिंचेस्टाइन बैंक के पेपर से लेकर पैराडाइज पेपर तक।इस दौर में पिछले बरस पनामा पेपर और बहमास लीक्स। 2015 में स्विस लीक्स। 2014 में लक्जमबर्ग लीक्स। 2013 में आफसोर लीक्स। 2011 में एचएसबीसी पेपर। 2010 में विकिलीक्स। और 2008 में लिंचिस्टाइन पेपर। यानी क्या मनमोहन का दौर या क्या मौजूदा दौर। किसी का नाम आजतक सामने आया नहीं कि कौन सा रईस टैक्स चोरी कर दुनिया में कहां कहां कितना पैसा छुपाये हुये है। या फिर ये भी पता नही चला कि जिनके नाम 2008 से लेकर 2017 तक लीक्स में निकल कर आये उनपर कार्रवाई क्या हुई। क्योंकि मंगलवार को भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यही कहा कि पनामा पेपर की जांच हो रही  है। इनकम टैक्स नोटिस भेज रहा है। कार्रवाई या कहें जांच जारी है। तो अरुण जेटली गलत नहीं कह रहे हैं। बकायदा 450 लोगो को नोटिस दिया गया। और
जांच सीबीडीटी कर रही है यानी इनक्म टैक्स विभाग ही तय कर रहा है लीक्स में आये नामो के खिलाफ कौन सी जांच हो।

यानी दुनियाभर में जब अदालतों के जरीये जांच हो रही हैं और अदालती जांच के बाद ही पाकिस्तान में नवाज शरीफ की कुर्सी चली गई, तब हमारे सरकारी विभाग अगर जांच कर रहे हैं तो समझना होगा द बोस्टन कंसल्टिंग के मुताबिक दुनिया में आफ शोर के करीब 10 हजार  अरब डालर मौजूद हैं। और दुनिया के जिन लोगो का ये पैसा आफ शोर में है, वह उनकी हैसियत सत्ता चलाने वाले की है। मसलन राजनेता। सेलिब्रिटी। कारपोरेट ज्इट्स। कारोबारी। और तमाम जमा संपत्ति की 80 फिसदी जिनके पास है वह सिर्फ 0 .1 फीसदी है। और इस 0 .1 फिसदी के भी एक फीसदी अमीरों के पास इस 80 फिसदी का 50 फिसदी धन है। तो ऐसा भी नहीं है कि भारत में जिन लोगों के नाम लिंचेस्टाइन से लेकर पैराडाइज पेपर तक में आये होंगे, वह सिर्फ रईस होंगे। बल्कि उनकी रईसी दुनिया के उन्हीं सत्ताधारियों की तरह होगी जो हमेशा राज करते है चाहे सत्ता किसी की भी रहे। ऐसे में कालधन पर नकेल  कसने का सच यही है। देश की पांच सुप्रीम जांच एजेंसी सीबीडीटी, सेबी, ईडी, आरबीआई और एफईयू यानी फाइनेंशियल इंटेलिजेन्स यूनिट पैराडाइज पेपर्स लीक में आये 714 भारतीयों के खाते संपत्ति की जांच करेगी। और उससे पहले पनामा पेपर्स में आये तकरीबन 500 भारतीय के नामो की जांच इनकम टैक्स कर रहा है। जबकि 2011 में एचएसबीसी पेपर लीक में आये 1100 भारतीयों की जांच पूरी हो हो चुकी है। जिसकी जानकारी वित्त मंत्री ने इसी बरस 21 मार्च  में दी । तो जांच पूरी हुई पर निकला क्या ये कोई नहीं जानता। यानी दोषी कौन। नाम किस किस के। किसका कितना धन । यकीनन कोई नहीं जानता क्योंकि सारा कच्चा चिट्टा तो सरकार के ही पास है। ठीक उसी तरह जैसे कभी मनमोहन रकार के पास होता था और 2014 में कालेधन को लेकर ही बीजेपी इस अंदाज में यूपीए पर हमला करती थी कि सत्ता में आते ही वह सारे नाम सार्वजनिक कर देगी।

तो क्या चार बरस पहले का कालेधन को लेकर हंगामा सिर्फ चुनावी शोर था। या हर सरकार की तरह मौजूदा वक्त भी है। क्योंकि सच यह है कि कालेधन पर सरकार बनते ही एसआईटी बनाने के अलावा सरकार की हर उपलब्धि पर विरोधी निशाना साधते हैं क्योंकि नतीजा कुछ नहीं है। नोटबंदी से कितना कालाधन वापस आया-कोई नहीं बता पाया। उल्टा कहीं कालाधन धारकों ने कालाधन सफेद तो नहीं कर लिया-इसकी आशंका बरकरार है। कालाधन घोषित करने की दो सरकारी योजनाओं से सरकार को महज 69,357 करोड़ की रकम मिली-जो उम्मीद से खासी कम है। तो ऐसे में क्या याद करें कि बीजेपी ने 2014 चुनाव के वक्त 100 दिन के भीतर कालाधन वापस लाने का दावा किया था-लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और फिर कालाधन के खिलाफ लड़ाई को विदेश के बजाय देश में सीमित कर दिया गया-जिसकी परिणिति नोटबंदी के रुप में दिखी। जबकि सच ये भी है कि 2014 से पहले कालाधन के खिलाफ लडाई का मतलब विदेशों में जमा कालाधन ही था। क्योंकि हर शख्स का आकलन विदेशों में जमाकालाधन ही था-जिसके आसरे देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सकता था। याद कीजिये सुब्रहणयम स्वामी कहते थे 120 लाख करोड। बाबा रामदेव कहते थे 400 लाख करोड। सीताराम येचुरी कहते थे 10 लाख करोड़। अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते थे 100 लाख करोड कालाधनहै। फिर अब इस कालेधन का जिक्र क्यों नहीं होता। यूं जिक्र तो सरकारी संस्थान भी किया करते थे। सीबीआई ने 29.5 लाख करोड बताया। तो एसोचैम ने ट्रिलियम डॉलर बताया। मनमोहन सिंह ही 23374 करोड़ का जिक्र करते थे। और स्व्जिजरलैंड का केन्द्रीय बैक 14,000 करोड के कालाधन के होने का जिक्र करता रहा । पर वक्त के साथ हर आकलन धरा का धरा रह गया । तो सवाल दो है । पहला, क्या कालाधन पर सारी कवायदें बेमानी हैं? दूसरा, क्या कालाधन पर लगाम लगाना संभव ही नहीं, और यह मुद्दा महज राजनीतिक मुद्दा भर है? तो ऐसे में अब नोटबंदी के दिन को ही सरकार कालाधन विरोधी दिवस या विपक्ष काला दिवस मनाती है तो इसका कोई मतलब नहीं है। और पैराडाइज पेपर्स ही  नहीं बल्कि किसी भी पेपर लीक्स में किसाका नाम है । किसको सजा हई ये देश
के नागरिक जान पायेगें इसकी उम्मीद भी बेमानी है।

2 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 97वां जन्म दिवस - सितारा देवी - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Unknown said...

Sir kya aapko nahi lgta ki aap bahut nakaratmak ho...