हो सकता है डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत का असर सरकार पर ना पड़ रहा हो और सरकार ये सोच रही हो कि उसका वोटर तो देशभक्त है और रुपया देशभक्ति का प्रतीक है क्योंकि डॉलर तो विदेशी करेंसी है। पर जब किसी देश की अर्थव्यवस्था संभाले ना संभले तो सवाल सिर्फ करेंसी का नहीं होता। और ये कहकर कोई सरकार बच भी नहीं सकती है कि उसके खजाने में डॉलर भरा पड़ा है । विदेशी निवेश पहली की सरकार की तुलना में कहीं ज्यादा है । तो फिर चिन्ता किस बात की। दरअसल किस तरह देश जिस रास्ते निकल पड़ा है, उसमें सवाल सिर्फ डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने भर का नहीं है । देश में उच्च शिक्षा का स्तर इतना नीचे जा चुका है कि 40 फीसदी की बढ़ोतरी बीते तीन बरस में छात्रों के विदेश जाने की हो गई है। सिर्फ पेट्रोल-डीजल ही नहीं बल्कि कोयला खादानो को लेकर सरकार के रुख ने ये हालात पैदा कर दिए हैं कि कोयले का आयात 66 फीसदी तक बढ़ गया है । भारत में इलाज सस्ता जरुर है लेकिन जो विदेश में इलाज कराने जाने वालो की तादाद में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है । चीनी , चावल, गेहूं , प्याज के आयात में भी 6 से 11 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। और दुनिया के बाजार से कोई भी उत्पाद लाने या दुनिया के बाजार में जाकर पढ़ाई करने या इलाज कराने का मतलब है डॉलर से भुगतान करना।
तो सच कहां से शुरु करें। पहला सच तो शिक्षा से ही जुड़ा है । 2013-14 में भारत से विदेश जाकर पढने वाले छात्रों को 61.71 रुपये के हिसाब से डॉलर का भुगतान करना पड़ता था । तो विदेश में पढ रहे भारतीय बच्चों को ट्यूशन फीस और हास्टल का कुल खर्चा 1.9 बिलियन डॉलर यानी 117 अरब 24 करोड 90 लाख रुपये देने पड़ते थे। और 2017-18 में ये रकम बढकर 2.8 बिलियन डॉलर यानी 201 अरब 88 करोड़ रुपये हो गई । और ये रकम इसलिये बढ़ गई क्योंकि रुपया कमजोर हो गया। डॉलर का मूल्य बढ़ता गया । यानी डॉलर जो 72 रुपये को छू रहा है अगर वह 2013-14 के मूल्य के बराबर टिका रहता तो करीब तीस अरब रुपये से ज्यादा भारतीय छात्रों का बच जाता । पर यहा सवाल सिर्फ डॉलर भर नहीं है । सवाल तो ये है कि आखिर वह कौन से हालात हैं, जब भारतीय यूनिवर्सिटिज को लेकर छात्रों का भरोसा डगमगा गया है । तो सरकार कह सकती है कि जो पढने बाहर जाते है उन्हें वह रोक नहीं सकते लेकिन शिक्षा के हालात तो बेहतर हुये हैं। तो इसका दूसरा चेहरा विदेश से भारत आकर पढ़ने वाले छात्रों की तादाद में कमी क्यो आ गई इससे समझा जा सकता है । रिजर्व बैंक की ही रिपोर्ट कहती है कि 2013-14 में जब मनमोहन सरकार थी तब विदेश से जितने छात्र पढने भारत आते थे उससे भारत को 600 मिलियन डालर की कमाई होती थी । पर 2017-18 में ये कम होते होते 479 मिलियन डालर पर आ गई । यानी कही ना कही शिक्षा अनुरुप हालात नहीं है तो फिर डॉलर या रुपये से इतर ज्यादा बडा सवाल तो ये हो चला है कि उच्च सिक्षा के लिये अगर भारतीय बच्चे विदेश जा रहे हैं और पढाई के बाद भारत लौटना नहीं चाहते हैं तो जिम्मेदारी किसकी होगी या फिर वोट बैक पर असर नही पडता है, यह सोचकर हर कोई खामोश है।
क्योंकि आलम तो ये भी है कि अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जाकर पढने वाले बच्चों की तादाद लाखों में बढ़ गई है । सिर्फ अमेरिका जाने वाले बच्चो की तादाद मनमोहन सरकार के आखिरी दिनों में 1,25,897 थी जो 2016-17 में बढकर 1,86,267 हो गई । इसी तरह आस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले बच्चो की संख्या में 35 फिसदी से ज्यादा का इजाफा हो गया । 2014 में 42 हजार भारतीय बच्चे आस्ट्रलिया में थे तो 2017 में ये बढकर 68 हजार हो गये । लोकसभा में सरकार ने ही जो आंकडे रखे वह बताता है कि बीते तीन बरस में सवा लाख छात्रो को वीजा दिया गया । तो क्या सिर्फ डॉलर के मुकाबले रुपये की कम होती कीमत भर का मामला है । क्योंकि देश छोडकर जाने वालो की तादाद और दुनिया के बाजार से भारत आयात किये जाने वाले उत्पादों में लगातार वृद्दि हो रही है। और इसे हर कोई जानता समझता है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होगा तो आयल इंपोर्ट बिल बढ जायेगा । चालू खाते का घाटा बढ़ जायेगा। व्यापार घाटा और ज्यादा बढ जायेगा । जो कंपनियां आयात ज्यादा करती है उनका मार्जिन घट रहा है । विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ने लगा है क्योंकि दुनिया के बाजार में छात्रों की ट्यूशन फीस की तरह ही सरकार को भी भुगतान डालर में ही करना पडता है । और इन सब का सीधा असर कैसे महंगाई पर पड़ रहा है और सवाल मीडिल क्लास भर का नहीं है बल्कि देश में किसानों को सिंचाई तक की व्यवस्था ना पाने वाली अर्थवयवस्था या कहे इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के दावों के बीच का सच यही है कि 42 फीसदी किसान डीजल का उपयोग कर ट्यूबवेल से पानी निकालते है । और महंगा होता डीजल उनकी सुबह शाम की रोटी पर असर डाल रहा है । तो महंगे हालात या कहें डॉलर के मुकाबले रुपये की चिंता तब नहीं होती जब भारत स्वालंबी होता । सरकार ही जब विदेशी चुनावी फंड या विदेशी डालर के कमीशन पर जा टिकेगी तो फिर डालर की महत्ता होगी क्या ये बताने की जरुरत होनी नहीं चाहिये। और ये सवाल होगा ही कि सरकार इक्नामी संभालने में सक्षम नहीं है, क्योंकि चीन अमेरिका व्यापार युद्द में भी भारत फंसा । अमेरिकी फेडरेल बैक ने ब्याज दर बढाई तो अमेरिकी कारोबारी उत्साहित हुय़े । भारत में डालर लगाकर बैठे अमेरिकी कारोबारी ही नहीं दुनिया भर के कारोबारियों ने या कहें निवेशकों ने भारत से पैसा निकाला। वह अमेरिका जाने लगे हैं।
इससे अंतर्रष्ट्रीय बाजार में डालर की मांग लगातार बढ़ गई । यूरोपिय देशों के औसत प्रदर्शन से भी अमेरिका में निवेश और डॉलर को लगातार मजबूती मिल रही है । और इन हालातो के बीच कच्चे तेल की बढती किमतो ने भारत के खजाने पर कील ठोंकने का काम कर दिया है । यानी ये सोचा ही नहीं गया कि इक्नामी संभालने का मतलब ये भी होता है कि भारत खुद हर उत्पाद का इतना उत्पादन करें कि वह निर्यात करने लगे । तक्षशिला और नालंदा यूनिवर्सिटी के जरीये दुनिया को पाठ पढाने वाले भारत को आज विदेशी शिक्षकों तक की जरुरत पड़ गई । यानी कैसे सत्ता ने खुद को ही देश से काटकर देश से जुडे होने का दावा किया ये भी कम दिलचस्प नहीं है । लकीर महीन पर पर समझना जरुरी है कि गांव का देश भारत कैसे स्मार्ट सीटी
बनाने की दिशा में बढ गया । और स्मार्ट सिटी बनाने के लिये जिस इन्फ्रस्ट्क्चर को खड़ा करने की जरुरत बनायी गई उसमें भी विदेशी कंपनियो की ही भरमार है । चीन ने अपने गांव को देखा । जनसंख्या के जरीये श्रम को परखा । अपनी करेंसी की कीमत को कम कर दुनिया के बाजारा को अपने उत्पाद से भर दिया । भारत ने गांव की तरफ देखा ही नहीं । खेत से फैक्ट्री कैसे जुडे । खनिज संसाधनो का उपयोग उत्पादन बढाने में कैसे लगाये । उत्पादन के साथ रोजगार को कैसे जोडें । इन हालातो को दरकिनार कर उल्टे रास्ते इकनामी को चला दिया । जिससे सरकार का खजाना बढे या कहे राजनीतिक सत्ता तले ही सारे निर्णय हो । उसकी एवज में उसी पूंजी मिले । उसी पूंजी से वह चुनाव लडे । और चुनाव लडने के लिये रास्ता इतना महंगा कर दें कि कोई सामान्य सोच ना सके कि लोकतंत्र का स्वाद वह भी चख सकता है । तो हुआ यही कि भारतीय मजदूर सबसे सस्ते हैं । जमीन मुफ्त में मिल जाती है । खनिज संपदा के मोल कौड़ियों के भाव हैं। और इसकी एवज में सत्ता सरकार को कुछ डालर थमाने होंगे। क्योंकि ध्यान दीजिये देश की संपदा की लूट बेल्लारी से लेकर झारखंड तक कैसे होती है । और तो और भारतीय कंपनिया ही लूट में हिस्सेदारी कर कैसे बहुराष्ट्रीय बन जाती है । सबकुछ आंखों के सामने है पर ये कोई बोलने की हिम्मत कर नहीं पाता कि राजनीतिक सत्ता ने देश की इक्नामी का बेडा गर्क कर देश के सामाजिक हालातो को उस पटरी पर ला खड़ा किया जहां जाति-धर्म का बोलबाला हो । क्योंकि जैसे ही नजर इस सच पर जायेगी कि रिजर्व बैंक को भी अब डॉलर खरीदने पड रहे है । और अपनी जरुरतों के लेकर भारत दुनिया के बाजार पर ही निर्भर हो चुका है । तो फिर अगला सवाल ये भी होगा कि चुनाव जीतने का प्रचार मंत्र भी जब गुगल , ट्विटर , सोशल मीडिया या कहें विदेशी मीडिया पर जा टिका है तो वहा भी भुगतान को डालर में ही करना पडता है । तो तस्वीर साफ होगी कि सवाल सिर्फ डॉलर की किमत बढने या रुपये का मूल्य कम होने भर का नहीं है बल्कि देश की राजनीतिक व्यवस्था ने सिर्फ तेल, कोयला, स्टील , सेव मेवा, प्याज, गेहू भर को डालर पर निर्भर नहीं किया है बल्कि एक वोट का लोकतंत्र भी डालर पर निर्भर हो चला है।
33 comments:
ACHI JANKARI DI SIR JI
You are doing great job sir ...continue...
Gajab sir ji
Sir, grear work.
Absolutely Right Sir..
पर भक्तों के दिमाग में तो गोबर भर दिया गया हैं, वो ये सब नहीं समझ सकते ।
Very good sir ..aap youtube pe apna page bnayie aur waha masterstroke dikhayie ..
भाजपा भक्त हिन्दू की जय हो
चिंताजनक आर्थिक हालातों की सटीक जानकारी।।
Excellent,likhte rho sir.
Sir aap you tube par aapna koi chainal bana lijiye na aapko dekhe bahut din ho gaya mai jab aapka bloge padh raha tha to hamko bas aapki aawaz hi sunai padh rahi thi lag raha tha ki mastes strokes hi dekh rahe hai
By sir ji
All the 👍💯
Bahut sarthak alekh
Sir where are you we want to see you on you tube or on TV
Lovely piece! Aap youtube pe aao na sir, miss you. Abhi jab padh raha tha to apne aap hi man me aapki style aur aawaz dono chal pari. MISS YOU
Modi sarkar savi morcho par fail ho chuki hai. Baat saaf hai RSS/BJP ke kisi v neta ko desh chalana nahi aata, agar kuchh ataa hai to wo hai bas ullu banana aur gumrah karna !
चैनल जॉइन करिएगा प्रसुन जी प्लीज़ हम घर घर जाएंगे आप की आर्थिक सहायता भी करेंगे पर आप किसी चैनल को जॉइन करे या फिर कोई नया चैनल ही बनाले🙏🙏
👍👍👍
जबरदस्त जानकारी एवं एक दिशा भी दिखाई है। साधुवाद।
बहुत सही और सटीक जानकारी के साथ विष्लेषण।
सर क्यो नहीं आप इसे विडीयो form graphics के साथ पेश करते? हम सब बहुत मिस कर रहे है आपको।
Sir, very true information with proper data , start a YouTube channel sir 1 million+ aapke chahane wale aapka intejar kar rahe hai. Ab toh na z,at,about koi bhi news channel dekhne ka Mann nahi karta. Please sir start all world is waiting for you.
parsoon keep writing and keep fighting this system.
Hats off to you, Sir.
Nice one, Thanks sir! please keep continue your hard work.
Bahut achhi jankari sir ye jyada se jyada public tak pahuchani chahiye agar desh k OK bachana hai.
Sir ,ji aap bahut achchha likhte aur bolte hai ,q nhi aap utube channel par aate ? Aapko bolte hue dekhe bahut din ho gye.
Important information..thanks
Nice sir mIn aapki kalam ke jajbe ko salam krta hun. Aap jaise log h to media pr kuch bhrosa h.
Sharm Aati hai muzhe Hamari vyavasta par jo Aap jaise patrakar mainstream Media se Bahar hai
Correct hai
बहुत बहुत धन्यवाद सर्
Thank You sir,
Your knowledge sharing is empowering, common people.
आलेख में जानकारी सटीक सार्थक और सराहनीय तो है परन्तु सवाल आज के हालात का है। दौर नकटों का है, नाक वालों की गिनती नकुओं में हो चली है।
सर ! महंगाई बढ़ती क्यों है ? इसे कम कैसे किया जा सकता है ? किसी देश मे महंगाई कम रहती है तो किसी देश मे ज्यादा , ऐसा क्यों होता है ? इसके लिए सरकार को क्यों दोषी ठहराया जाता है ? क्या अगर सरकार चाहे तो महंगाई पर काबू रख सकती है ? कैसे रख सकती है इसकी प्रक्रिया क्या है ? कोई सरकार देश मे महँगाई बढ़ा कर क्यों रखती है ? इससे उसके पार्टी को क्या लाभ होता है ? भारत मे ही इतनी महंगाई क्यों है ?......इन सारे सवालों का जवाब जानना है मुझे और शायद आपके सहारे ही ये सब मैं जान सकता हूँ । अगर समय हो आपके पास तो कृपया एक विश्लेषण इन बिंदुओं पर भी कर दे । पत्रकारिता का छात्र होने के नाते आपसे सीखने का उम्मीद रखता हूँ ।🙏
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