" ना तो हम रुके हुये थे और ना ही आपत्तिजनक अवस्था में थे। हमारी ओर से कोई उकसावा नहीं था मगर कास्टेबल ने गोली चला दी। " ये लखनऊ की सना खान का बयान है, जो कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठी थी । और ड्राइवर की सीट पर उनका बॉस विवेक तिवारी बैठा हुआ था । दोनो ही एप्पल कंपनी में काम करने वाले प्रोफेनल्स हैं। और शाम ढलने के बाद अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम से रात होने पर निकले तो किसी फिल्मी अंदाज में पुलिस कास्टेबल ने सामने से आकर सर्विस रिवाल्वर से गोली चली दी । जो कार के शीशे को भेदते हुये विवाक तिवारी के चेहरे के ठीक नीचे ठोडी में जा फंसी । और कैसे सामने मौत नाचती है और कैसे पुलिस हत्या कर देती है इसे अपने बॉस की हत्या के 30 घंटे बाद पुलिस की इजाजत मिलने पर सना खान ने कुछ यूं बताया , 'हम कार्यक्रम से निकले और सर ने कहा कि वह मुझे घर छोड़ देंगे।
मकदूमपुर पुलिस पोस्ट के पास बायीं और से दो पुलिसवाले कार के बराबर आकर चलने लगे। वे चिल्लाये रुको । मगर सर गाडी चलाते रहे क्योंकि रात का समय़ था। उन्हें मेरी सुरक्षा की चिंता थी। पर तभी इनमें से एक कास्टेबल बाईक से उतरा और लाठी से गाड़ी पर वार करना शुरु कर दिया। मगर सर ने कार नहीं रोकी। तो दूसरे ने गाडी को ओवरटेक किया और 200 मीटर आगे जाने के बाद सडक के बीच में बाईक रोक दी और हमें रुकने को कहा। हमारी कार कम गति से आगे बढ़ रही थी और फिर गाड़ी रोक दी। तभी कास्टेबल ने अपनी बंदूक निकाली और सामने से सर पर गोली चला दी। सर ने गाडी पर नियंत्रण खो दिया और वह आगे चलकर खंभे से टकरा कर रुक गयी। मैंने ट्रक ड्राईवर को रोकने की कोशिश की । बाद में गाडी पर गश्त लगा रहे पुलिस कर्मियों ने हमें देखा और उनसे सर को अस्पाताल ले जाने की गुजारिश की।' और उसके बाद जो हुआ वह बताने के लिये सना भी सामने ना आ सके इसकी व्यवस्था भी शुरुआती घंटों में पुलिस ने ही की। और जब सना को पुलिस ने इजाजत दे दी कि वह बता सकती है कि रात हुआ क्या तो झटके में योगी सिस्टम तार तार हो गया। उसके बाद लगा यही कि किस किस के घर में जाकर अब पूछा जाये कि कि उस रात क्या हुआ था जब किसी का बेटा, किसी का पति , किसी का बाप पुलिस इनकाउंटर में मारा जा रहा था। और खाकी वर्दी ये कहने से नहीं हिचक रही थी, अपराधी थे मारे गये। फेहरिस्त वाकई लंबी है जो एनकाउंटर में मारे गये। नामों के आसरे टटोलियागा तो यूपी के 21 नामो पर गौर करना होगा। मसलन गुरमित, नौशाद, सरवर, इकराम, नदीम , शमशाद, जान मोहम्मद, फुरकान , मंसूर, वसीम , विकास, सुमित , नूर मोहम्मद, शमीम, शब्बीर, बग्गा सिंह , मुकेश राजभर , अकबर, रेहान, विकास। ये वो नाम है तो बीते डेढ बरस के दौर में एनकाउंटर में मारे गये। तो जो एनकाउंटर में मारे गये और एनकाउंटर में मारे गये लोगो के कमोवेश हर घर के भीतर आज भी ऐसा सन्नाटा है कि कोई बोल नहीं पाता। 12 मामले अदालत की चौखट पर हैं। पर गवाह गायब हैं। चश्मदीद नदारद हैं। कौन सामने आये। कौन कहे। पर सना के तो अपनी बगल की सीट पर मौत देखी। कानून के रखवालों के उस अंदाज को देखा जो कानून में हाथ लेकर हत्या करने के लिये बेखौफ थे । खाकी वर्दी के उस मिजाज को समझा जो हत्या करने पर इस लिये आमादा थी क्योकि हत्या को एनकाउंटर कहकर छाती पर तमगा लगाना फितरत हो चुकी है। वैसे ये पहली बार हुआ हो ये भी नहीं है ।
लेकिन पहली बार हत्या करने का लाइसेंस जिस तरह सत्ता ने पुलिस महकमे को यूपी में दे दिया है उसमें एनकाउंटर हत्या हो नहीं सकती और हत्या को एनकाउंटर बताना बेहद आसान हो चला है । तो क्या बहस सिर्फ इसी कठघरे में आकर रुक जायेगी कि पुलिस से भी गलती हो डजाती है । क्योकि हत्या तो देहरादून में 3 जुलाई 2009 को भी हुई थी । जब लाडपुर के जंगलो में पुलिस ने रणवीर नाम के एक छात्र के साथ खूनी खेल खेला था । हत्या तो दिल्ली के कनाटप्लेस में भी हो चुकी है।
अदालत ने पुलिस को हत्यारा कहने में भी हिचक नहीं दिखायी । लेकिन तबतक अदालत में सुनवाई के दौरान किसी अधिकारी ने ये नहीं कहा था कि इनकाउंटर पुलिस का हुनर हो चुका है । लेकिन यूपी के योगी माडल में ही जब अनकाउंटर के बूते प्रमोशन का लालच सिपाही-हवलदार-दारोगा-कास्टेबल को दिया जा चूका है तो सिपाही के दिमाग में इनकाउंटर के अलावे और क्या जायेगा । और नतीजतन खुले तौर पर हत्या करते वक्त भी किसी सिपाही के हाथ क्यो कापंगे जबकि उसको पता है कि सत्ता में अपराधियो के भरमार है । पूरी राजनीति अपराधियों से पटा पड़ा है। तो ऐसे में सिपाही को अपराधी कहकर कैसे सियासत होगी और कौन राजनीति करेगा । यानी खुद अपने उपर से आपराधिक मामलों को कैबिनेट के जरीये जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खत्म करा लेते है। जबकि चुनावी हलफनामे में आईपीसी की सात धाराओ के साथ तीन मुदकमें दर्ज होने का जिक्र था। पर सीएम ही जब अदालती कार्रवाई के रास्ते न्याय को खारिज करते हुये अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करता हो तो फिर जिस कास्टेबल ने गोली चलायी , हत्या की उस खाकी वर्दी को बचाने का काम कौन सी सत्ता नहीं करेगी। क्योंकि सत्ता का एक सच तो ये भी है कि दस कैबिनेट मंत्री और 6 राज्य स्तर के मंत्रियों पर आईपीसी की धाराओ के तहत मामले दर्ज है । और ऐसा भी नहीं है कि दूसरी तरफ विपक्ष के सत्ता में रहने के दौर उसके कैबिनेट और राज्य स्तर के मंत्रियों के खिलाफ आईपीसी की आपराधिक धारायें नहीं थीं। डेढ दर्जन मंत्री तब भी खूनी दाग लिये सत्ता में थे। तो फिर हत्या करने वाले पुलिस का मामला अदालत में जाये या फिर पूरे मामले को सीबीआई को सौप दिया जाये। अपराधी होगा कौन। सजा मिलेगी किसे । और कौन गारटी लेगा कि अब इस तरह की हत्या नहीं होगी । दरअसल लकउन के मिजाज में अब मुस्कुराना शब्द ठहाके लेने में बदल चुका है । और कल तो मुसकुराते हुये आप अदब के शहर लखनऊ में होने का गुरु पाल सकते थे। लेकिन अब ठहाके लगाते हुये हत्या करना और हत्या कर और जोर से ठहाके लगाने वाला शहर लखनऊ हो चला है। बस जहन में ये बसा लीजिये कि लखनऊ की पहचान वाजिद अली शाह से नही योगी आदित्यनाथ से है।
Sunday, September 30, 2018
मुस्कुराना छोड़ ठहाका लगाइए आप खूनी लखनऊ में हैं
Posted by Punya Prasun Bajpai at 6:26 PM
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22 comments:
Great article sir
Best Speec
One of the best speech sir I am with you ...
Awesome article
Sir 10tak me miss kr rha hu apko
Aap ko Master stroke pr Miss kar raha hu
सिर्फ लखनऊ क्यू?? अब तो भारत का मतलब भाजपा है और भाजपा का मतलब संविधान। और ये संविधान सामाजिक नैतिकता के आसरे नहीं बल्कि धर्म की बिसात पर चल रहा है।
को नौकरी बचाने के विलोपित कर देना चाहिए
अंतिम और महत्वपूर्ण
जिस थाना क्षेत्र में यह घटना घटित हुई है वहां की कई रोड रात में कार में निर्लज्जों की ऐशगाह बन जाती है। जहां पर पुलिस कर्मी अपनी इज्जत बचाता है
कड़वा है सत्य है ।
वो ड्यूटी पर था और सुन सान रास्ते पर धारा 497 ख़त्म होने का जश्न मना रहे दुनिया के सर्वाधिक महंगे सेल फ़ोन के मैनेजर को इतनी रात में एकांत में गाड़ी रोकने का कारण पूछने पर आन डयूटी पुलिस कांस्टेबल पर 3 बार गाड़ी चढ़ा कर जान से मारने की कोशिश की मीडिया और पब्लिक के अनुसार 2 पुलिस वालों को आपस में किसी एक कि मृत्यु होने का इंतज़ार करना चाहिए था ।
मेरा प्रश्न ये है कि अगर 1:30 बजे रात में कोई 2 पुरुष या महिला की वाहन में सुन सान रास्ते में गाड़ी रोक कर बैठे हैं। और शक होने पर कोई पुलिस कर्मी उनको रोकता है तो क्या वाहन में बैठे लोगों को उन पुलिस कर्मियों पर अपनी गाड़ी चढ़ाने का अधिकार कौन देता है।
अब पुलिस वाले ने आत्मरक्षा की तो 302 झेल रहा है।
दूसरा तथ्य
अगर पुलिस कर्मी रोक टोक न करते और दूसरे दिन उसी गाड़ी या जगह पर कोई घटना घटित हुई होती तो क्या पुलिस कर्मी पर कार्यवाही न होती इस प्रकार पुलिस कर्मी को अपने कर्तव्यों को नौकरी बचाने के विलोपित कर देना चाहिए
अंतिम और महत्वपूर्ण
जिस थाना क्षेत्र में यह घटना घटित हुई है वहां की कई रोड रात में कार में निर्लज्जों की ऐशगाह बन जाती है। जहां पर पुलिस कर्मी अपनी इज्जत बचाता है
कड़वा है सत्य है ।
sahi hai
Missing master stroke... Left watching the news channel...
Very sad circumstance
Chaliye thodi der ke liye Maan lete h aapki sari baat Shi h par kya Goli marna si solutions tha wo ek police officer tha na ki ek aam Aadmi unhe bakayda training di jati hai porblpro Ko handle karne ke liye unke pass kai options the wo Goli unki tayar m bhi maar sakte the unke Baad already unki gari ruk jati ..ya control room call kar sakte the ..etc
..
Durbhgy hamari system ki h ek Baar aap police officer ban jao ya IAS officer hi q nhi phir job aapki h system aapki h sab kuch aapki h ki ye mansikta Hoti hai properly na koi training na koi infrastructure na hi koi monitoring sab raam bharose kabhi fursat mile to USA ya duniya ki police officer ke public ke saath ya criminal se deal karne ki training Janne ka pryaas kijiye ...karwa stya kya h ye important nhi h important h policeing system Ko Shi karne ki aaj aap India ke koi bhi State chale jaye dekh lijiye wo kitna samjhdaari or sensitive h hamari surksha ke liye.
खुन का रंग लाल है लेकिन धर्म के रंग सफ़ेद होता है ,और बुरे दिन आने वाले हैं
लिखते रहें इसी तरह। आपकी कलम सलामत रहे।
Sir,
Yesterday, I when I was reading CAG report of 2016, I saw something interesting abot petrolium companies annual profit. Am sure u will definitely like to know about that. please reply...
Miss u sir master Stoke always wirtting truth.i'm with you
सहमत 👍👍👍
lage raho himmat nahi harna sach Kehne ke liye
मारते रहिए मरवाते रहिए इससे कुछ काम करते रहने का एहसास भी होगा और टाइम पास भी होगा.
हिम्मत तो इस शख्श में है.
Great article sir, we all miss you on TV we very much miss #master_strok please start a your own channel on YouTube name of master stroke we all need your news. Thank you
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