गुलाब की पंखुडियों से पटी पडी जमीन। गेंदा के फूलो से दीवार पर लिखा हुआ धन्यवाद । दरवाजे से लेकर छत तक लड्डु बांटते हाथ । सडक पर एसयूवी गाडियो की कतार । और पहली बार पांचवी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता भी खुला हुआ । ये नजारा कल दिल्ली के नये बीजेपी हेडक्वाटर का था । दीनदयाल मार्ग पर बने इस पांच सितारा हडक्वाटर को लेकर कई बार चर्चा यही रही कि दीनदयाल के आखरी व्यक्ति तक पहुंचने की सोच के उलट आखरी व्यक्ति तो दूर बीजेपी कार्यकत्ताओ के लिये हेडक्वाटर एक ऐसा किला है जिसमें कोई आसानी से दस्तक दे नही सकता । जबकि अशोक रोड के बीजेपी हेडक्वाटर में तो हर किसी की पहुंच हमेशा से होती रही । और 2014 की जीत का नजारा कैसे 2019 में कही ज्यादा बडी जीत के जश्न के साथ अशोका रोड से दीनदयाल मार्ग में इस तरह तब्दिल हो जायेगा कि बीजेपी को समाज का पहला और आखरी व्यकित एक साथ वोट देगें । ऐसा कभी पहले हुआ नहीं था और ऐसा हो सकता है ये कभी किसी ने सोचा ना होगा कि बहुमत की सरकार दूसरी बार अपने बूते करीब 50 फिसदी वोट के साथ सत्ता में बरकरार रहे । और सिर्फ चार राज्य छोड कर [ तमिलनाडु , आध्रप्रदेश,केरल और पंजाब ] हर जगह बीजेपी ऐसी घमक के साथ सत्ता की डर अपने साथ रखगी कि ना सिर्फ क्षत्रप बल्कि राष्ट्रीय पार्टी काग्रेस को भी अपनी राजनीति को बदलने या फिर नये सिरे से सोचने की जरुरत पडेगी । जबकि देश के सामने सारे मुद्दे बरकरार है । बेरोजगारी , किसान , मजदूर , उत्पादन कुछ इस तरह गहरया हुआ कि आर्थिक हालात बिगडे हुये है । उसपर घृणा , पाकिस्तान से युद्द , हिन्दु राष्ट्र की सोच और गोडसे को जिन्दा भी किया गया लेकिन फिर भी जनादेश के सामने मुद्दे-उम्मीदवार मायने रखे ही नहीं । जातिया टूटती नजर आयी । उम्मीद और आस हिन्दुत्व का जोगा उडकर देशभक्ति व राष्ट्रवाद में इस तरह खोया कि ना सिर्फ पारंपरिक राजनीतक सोच बल्कि अतित की समूची राजनीतिक थ्योरी ही काफूर हो गई । पश्चिम बंगाल में धर्म को अफिम कहने मानने वाले वामपंथी वोटर खिसक कर धर्म का जाप करने वाली बीजेपी क साथ आ खडे हुये । और जिस तरह 22 फिसदी वामपंथी वोट एकमुश्त बीजेपी के साथ जुडे गया उसने तीन संदेश साफ दे दिये । पहला , वामपंथी जमीन पर जब वर्ग संघर्ष के नारे तले काली पूजा मनायी जाती है तो फिर वही काली पूजा , दशहर और राम की पूजा तले धर्मिक होकर मानने में क्या मुश्किल है । दूसरा , वाम जमीन पर सत्ता विरोध का स्वर हमेशा रहा है तो वाम के तेवर-संगठन-पावर खत्म हुआ तो फिर विरोध के लिये बीजेपी के साथ ममता विरोध में जाने से कोई परेशनी है नहीं । तीसरा , मुस्लिम के साथ किसी जाति का कोई साथ ना हो तो फिर मुस्लिम तुष्टिकरण या मुस्लिम के हक के सवाल भी मुस्लिमो के एक मुश्त वोट के साथ सत्ता दिला नहीं सकते या फिर सत्ता को चुनौती देने की स्थिति में आ सकते है ।
दरअसल , जनादेश तले कुछ सच उभर कर आ गये और कुछ सच छुप भी गये । क्योकि 2019 का जनादेश इतना स्थूल नहीं है कि उसे सिर्फ मोदी सत्ता की एतिहासिक जीत कर खामोशी बरती जा जाये । क्योकि बंगाल से सटे बिहार में एमवाय जोड टूट गया । लालू यादव की गैर मौजूदगी में लालू परिवार के भीतर का झगडे और महागंढबंधन के तौर तरीके ने उस मिथ को तोड दिया जिसमें यादव सिर्फ आरजेडी से बंधा हुआ है और मुसलिमो को ठौर महागंठबंधन में ही मिेलेगी ये मान लिया गया था । चूकि तेजस्वी, राहुल , मांझी , कुशवाहा , साहनी के एक साथ होने क बावजूद अगर महागंठबंधन की हथेली खाली रह गयी तो ये सिर्फ नीतिश-मोदी-पासवान की जीत भर नहीं है बल्कि सामाजिक समीकरण के बदलने के संकेत भी है । और जिस तरह बिहार से सटे यूपी में अखिलेश - मायावती के साथ आने के बावजूद यादव - जाटव तक के वोट ट्रासफर नहीं हुये उसमें भविष्य के संकेत तो दे ही दिये कि अखिलेश यादव ओबीसी के नेता हो नहीं सकते और मायावती का सामाजिक विस्तार अब सिर्फ जाटव भर है और उसमें भी बिखराव हो रहा है । फिर बीजेपी ने जिस तरह हिन्दु राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर वोट का ध्रुवीकरण किया उसने भी संकेत उभार दिये कि काग्रेस जिस तरह सपा-बसपा से अलग होकर उंची जातियो के वोट बैक को बजेपी से छिन कर अपने अनुकुल करने की सोच रही थी जिससे 2022 [ यूपी विधानसभा चुनाव ] तक उसके लिये जमीन तैयार हो जाये और संगठन खडा हो जाये उसे भारी धक्का लगा है ।
जाहिर है बीजेपी और काग्रेस के लिये भी बडा संदेश इस जनादश में छुपा है । एक तरफ बीजेपी का संकट ये हो कि अब वह संगठन वाली पार्टी कम कद्दावर नेता की पहचान के साथ चलने वाली सफल पार्टी के तौर र ज्यादा है । यानी यहा पर बीजेपी कार्यकत्ता और संघ के स्वयसेवक की भूमिका भी मोदी के सामने लुप्त सी हो गई । जो कि वाजपेयी-आडवाणी युग से आगे और बहुत ज्यादा बदली हुई सी पार्टी है । क्योकि वाजपेयी काल तक नैतिकता का महत्व था । मौरल राजनीति के मायने थे । तभी तो मोदी को भी राजधर्म बताया गया और भ्र्ष्ट्र यदुरप्पा को भी बाहर का रास्ता दिखाया गया । लेकिन मोदी काल महत्वपूर्ण सिर्फ जीत है । इसलिये महात्मा गांधी का हत्यारा गोडसे भी देशभक्त है और सबसे ज्यादा कालाधन खर्च कर चुनाव जीतने का शाह मंत्र भी मंजूर है । पर इसके सामानांतर काग्रेस के लिये सभवत ये सबसे मुश्किल दौर है । क्योकि बीजेपी तो मोदी सरीखे लारजर दैन लाइफ वाले नेता को साथ लेकर भी पार्टी के तौर पर लडती दिखायी दी । लेकिन काग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी होकर भी सिर्फ अपने नेता राहुल गांधी को ही देखकर मंद मंद खुश होती रही । लड सिर्फ राहुल रहे थे । प्रिंयका गांधी का जादुई स्पर्श अच्छा लग रहा था । लेकिन काग्रेस कही थी ही नहीं । और शायद 2019 के जनादेश में जिस तरह की सफलता जगन रेड्डी को आध्रे प्रदेश में मिली उसने काग्रेस की सबसे बडी कमजोरी को भी उभार दिया कि उसने ना तो अपनो को सहेजना आता है ना ही काग्रेस को एक राजनीतिक दल के तौर पर संभालना आता है । क्योकि एक वक्त ममता भी काग्रेस से निकली और जगन रेड्डी भी काग्रेस से निकले । दोनो वक्त गांधी परिवार में सिमटी काग्रेस ने दिल बडा नहीं किया उल्टे अपने ही पुराने नेताओ के सामने काग्रेस के एतिहासिक सफर के अंहकार में खुद को डुबो लिया । और जिस मोड पर राहुल गांधी ने काग्रेस संभाली तो वह पार्टी को कम नेताओ को ही ज्यादा तरजीह दे मान बैठे कि नेताओ से काग्रेस चलेगी । असर इसी का है कि काग्रेस शासित किसी भी राज्य में नेता को इतना पावर नहीं कि वह बाकियो को हाक सके । तो मध्यप्रदेश में कमलनाथ के सामानातंर दिग्विजय हो या सिधिया या फिर राजस्थान में गहलोत हो या पायलट या फिर छत्तिसगढ में भूपेश बघेल हो या ताम्रध्वज साहू व टीएस सिंह देव । सभी अपने अपने तरीके से अपने ही राज्य में काग्रेस को हाकते रहे । तो कार्यकत्ता भी इसे ही देखता रहा कि कौन सा नेता कितना पावरफुल है और किसके साथ खडा हुआ जा सकता है या फिर अपनी अपनी कोटरी में सिमटे काग्रेसी नेताओ को संघर्ष की जरुरत क्या है ये सवाल ना तो किसी ने जानना चाहा और ना किसी ने पूछा । तो तीन महीने पहले अपने ही जीते राज्य में काग्रेस की 2014 से भी बुरी गत क्यो हो गई इसका जवाब काग्रेसी होने में ही छिपा है जो मान कर चलते है कि वे सत्ता के लिये ही बने है ।
आखरी सवाल है , इस जनादेश के बाद होगा क्या ? क्योकि देश ना तो विज्ञान को मान रहा है । ना ही विकास को समझ सका । ना ही सच जानना चाहा है । ना ही प्रेम या सोहार्द उसकी रगो में दौड रहा है । वह तो हिन्दु होकर देशभक्त बनकर कुछ ऐसा करने पर आमादा है जहा शिक्षा-स्वास्थय-पानी-प्रर्यावरण बेमानी से लगे । और देश का प्रधानमंत्री उस राजा की तरह नजर आये जिसे जनता की फिक्र इतनी है कि वह दुश्मनके घर में घुस कर वार करने की ताकत रखता हो । और राजा किसी देवता सरीखा नजर आये । जहा संविधान , सुप्रीम कोर्ट , चुनाव आयोग भी बेमानी हो जाये । क्योकि तीन महीने पहले "इस बार 300 पार " का ऐलान करते हुये तीन महीने बाद तीन सौ पर कर देना किसी पीएम के लिये चाहे मुश्किल हो लेकिन किसी राजा या देवता के लिये कतई मुश्किल नही है ।
Friday, May 24, 2019
ना मुद्दे ना उम्मीदवार सिर्फ मोदी सरकार
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:38 AM
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29 comments:
अच्छा आकलन है
ryt sir...
I am agree eith u sir... Aajkal desh ki janta khud ka bhala bhool kr desh k politicians ka soch rhi h.. Abhi isme b ek positive point h ki ab log b dekhenge ki 5 years me gov. Kya krti h..jb negativity peak pr pahuchti h to uska ending hoti h...
अच्छा विश्लेषण है पढ़कर अच्छा लगा इसमें कांग्रेस की सच्चाई भी है और भाजपा की चतुराई भी है तो सपा बसपा के भीतर का कन्फ्यूजन भी साफ झलक रहा है (जय समाजवाद)
Dekhte aaghe Kya hota
Waqt batayega sahi ho raha h ya galat.
What was gone wrong to your election analysis. Why your forecast gone too much wrong. When did you analysis it.
बहुत अच्छा लेख है ये प्रसून जी आपको टीवी पर बहुत मिस करते है अब तो शायद इंतज़ार और लम्बा हो क्यूकि आपको काम ही करने नहीं दिया जायेगा विपरीत परिस्थियों में भी आपके अपनी बात रखने के जज़्बे को सलाम l
Maine ek sawaal apne Aaspass k logo se pucha ki agar Hamare m.p me koi kaam nhi kiya to tension maat Lena n use gali Dena kiyu ap logo ko us se sawaal karne koi haak nhi Kiyuki apne vote Modi ko diya Hai. M. P ko nhi. Humne p. M chuna Hai m. P nhi
i m 100% Agree wd u Sir.. Ab desh ko koi nahi bacha sakta hai.. desh sirf Dharam jati k beech me phas kar rah gya hai.. hamara jo hindustan hai ab wo Dharam me bant k tukde tukde kar diya gya..
नतीजे यह बताते हैं कि जनता ने पिछले पांच सालों मे जो हिन्दू मुस्लिम का ज़हर पिया हैं इसको मतदान के दिन उगला है और सिर्फ और धर्म के आधार पर वोट दिया है नतीजे देख कर मैं अपने आप को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूं जितना की रोजा रखने से भी कमजोरी नहीं आती हैं सोच रहा हूँ भारत किस और जा रहा है लेकिन आप अपनी लड़ाई लड़िए और इंतज़ार किजिए अगले पांच साल में भारत और कितना बर्बाद होता है
Jan bjp moral party thi to satta Nahi pa saki aur Congress anatik ho Kar satta ki malai khati rahi. Ab bjp anatik hokar satta ki malai khati rahi hair to pareshani kaisi.
We miss you on screen sir ...ye blog aap screen pe bolte hue jyada ache lgte..
सच कही दूर खड़ा देख रहा है,झूठ तमाशा करने मैं लगा है
हम गांधी के विचारों को लेकर फिर आगे बड़ेगे।।।।
सिद्धू
कांग्रेस में छुपा हुआ भयंकर गद्दार जिस ने पूरे कैंपेन में कांग्रेस को आग लगाई अपनी घटिया स्पीच से
याद करो
मोदी को ऐसा सिक्स मारो के देश के बाहर जा के गिरे
काले अंग्रेज़
मोदी ऐसी बहु जो रोटी ककाम बेल्टी है चुड़िया ज्यादा खंकती है
सारे मुस्लिम एक हो जाओ मोदी सूलत जाएगा
ये सब उस के बयान वो जानबूझ कर इस लिए दे रहा था के वोटर बीजेपी की तरफ इमोशनली भागे हैं वो दिखा ऐसा रहा था कि तैश में बोल रहा हो 😠😠😠
फिर आया शाम
८४ का दंगा हुआ तो हुआ
तेरी तो 😠😠😠
ये तो कैप्शन साहब पर लोगो का भरोसा कि पंजाब में कांग्रेस शानदार कर पाई
कभी किसी ने सोचा ? की बिना कोई वजह चुनाव से ठीक एक दिन पहले मानी शंकर आया बोला मेरा नीच वाला बयान सही था
और इतने सब के बावजूद रागा ने कोई एक्शन अध्यक्स होते हुए भी ंनहीं लिया
फिर क्या था मोदी और मीडिया ने ये बयान को खतरनाक तरीके से भुनाया
मेरा मानना है सिद्धू को उठाकर बाहर फेक देना चाहिए ये कांग्रेस को बर्बाद करने आया है
राहुल का कैपैं शानदार था मेनिफेस्टो भी शानदार लेकिन कांग्रेस के अपने ही भस्मासुर उस पर भारी पद गए
जयहिंद
प्रसूनजी जहा तक मेरी समज है तो मैं इतना जरूर समज पा रहा हूँ की देश की राजनीती को सालो पहले कॉंग्रेस ने जिस जातिबाद के रंग मे भिगोया था उसीका परिणाम आज वो भुगत रही है।
समय के साथ यदि खुद की सोच नहीं बदल पाएंगे तो नतीजा यही होगा। किसीका विरोध और समर्थन क्यों कर रहे है उस बात को समझे बिना जब केवल अनुसरण किया जायेगा तो अंत तय है।
मेरे नजरिए से एक बात साफ है कि यदि कॉंग्रेस खुद का अस्तित्व बचाना चाहती है तो उसे सबसे पहले गांधी परिवार से खुद को अलग करना ही होगा। क्योंकि मोदी ने जो कोंग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है उसे मे खुद राहुल गांधी और गांधी परिवार के इर्दगिर्द घुमने वाली मानसिकता का प्रमुख योगदान मुझे दिखाई दे रहा है।
क्यूंकि राजनीति इसलिए बदली हुई नजर आ रही है कि नए युग का युवा मतदाता चीजो को भलीभांति देखता भी है और समजता भी है।
https://twitter.com/MaheshLC
सर आपका विश्लेषण हमेशा सही दिशा दिखाने वाला होता है, लेकिन मुझे एक बात अभी तक समझ नही आरही है सावरकर के हिंदुत्व का अजेंडा लेके भाजपा लेके तो चल रही क्या इसके भीतर से वोटों मैं तो मोदी जीत गए लेकिन यही भावना उनकी समाज मैं फहली जातिवाद को रोकने मैं कामयाब होती दिख नही रही !! इसके काउंटर दूसरा की मुद्दा हो सकता है जो हिंदुत्व के सार कर सके !! सर मुझे आपसे मिलने की बड़ी तमन्ना है अभी मिलने का सौभाग्य दीजिए !!
अब की बार,
5 साल फिर फेंकू की सरकार।
Kya kroge miss krke. .. koi job hi nhi dera PPB ji ko . . Ab aap hi koi news channel khol kiziye fir usmaim aap de sakin to baat hi kya hai
बिके हुए पत्रकारों और पट्टलचट्टों को कुछ भी दिखाई नही देगा, पीपीबी तुम भी उसी में से एक हो
भाई गांधी जी मर गए अब वो नही आएंगे। और न अब कांग्रेश गांधी की पार्टी रही ।
जो हुआ सो हुआ लेकिन अब क्या
Please be optimistic
I still believe
Some thing good will come out of this dark era of modi.
Fear & interest
Modi ne line keech de hai....
Modi kaam karta aur ghar mai ghus ke marta hai
Kuch berojgar patrkaro ki kalam se
आप का यह आकलन बहुत ही सही है आप ने जो कांग्रेस की की कमजोरी को उजागर किया है वह सही है और सपा बसपा का वोट का आकलन आप का सही।
Good
पैसा पप्पू देगा ??
मुझे तो 23 मई से अब तक ये समझ नहीं आया की इस देश में खुश कौन है ।विकास की तरह खुशी भी कहीं दिखाई नहीं देती ।
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