Saturday, June 1, 2019

रायसीना हिल्स पर बिछी रेड कारपेट पर सियासी जायका....


राष्ट्रपति भवन की चकाचौंध । भव्यता से सराबोर शपथग्रहण । 48 घंटे में बनी रायसीना दाल का जायका लेता ।  अमित शाह का गृहमंत्री बनना । निर्माला सीतारमण का वित्त मंत्री बनना । बरोजगारी दर शहरो में सात फिसदी पार कर जाना । देश में बोरजगारी दल का संकट आजादी के बाद से सबसे ज्यादा गहरा जाना । विकास दर छह फिसदी से भी नीचे आ जाना । बजट से पहले पहली ही कैबनेट में 60 हजार करोड रुपया किसान-मजदूरो को देने का एलान कर देना । उत्पादन है नहीं । रुपया कहा इन्वेस्ट करें कुछ पता नहीं । तो सत्ता जीती है , विचारधारानहीं । तो सत्ता दूबाराज्यादा मजबूती से पाई है , इक्नामी कहीं ज्यादा कमजोर हुई है । राजनीतिक दलो से गठबंधन मजबूत हुआ है लेकिन समाज के भीतर दरारें साफ दिखायी देने लगी है । लेकिन अब कुछ भी चौकाता नहीं है क्योकि जनादेश तले ही अब देश की व्याख्या की जा रही है । जनादेश कह रहा है मुस्लिम-दलित-ओबीसी को भी मोदी सरीखा नेता मिल गया है तो फिर मंडल टूट चुका है । जाति गंठबंधन टूट चुका है । धर्म की लकीरे मिट चुकी है और देश में सिर्फ अब अमीर-गरीब नामक दो प्रजातिया ही बची है । जिनकी दूरियां पाटने के लिये देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी जान लगा चुके है । वाकई अब कोई भी तथ्य नहीं चौकाता । समझना वाकई मुश्किल हो चुका है कि जनादेश की व्याख्या करने वाले जनादेश से 48 घंटे पहले तक भारत में जातियों-समुदायो क राजनीति तले जनादेश क्यो देख रहे थे । और जनादेश आने के 100  घंटे बाद मंत्रिमंडल की जो तस्वीर उभरी उसमें जातिय-सामाजिक समीकरण क्यो देख गये । यूपी में ब्राहमण की जरुरत तले महेन्द्र नाथ पांडेय । तो हरियाणा में गैर जाट सासंद कृष्णपाल गुर्जर का मंत्री बनना । तो झारखंड में गैर आदिवासी सीएम है तो आधिवासी सांसद अर्जुन मुंडा को मंत्री बना देना । उमा भारती चुनाव मैदान से बाहर हो गई तो उनी एवज में प्रहालद पटेल को मंत्री बनाकर लोध समाज से तालमेल बैठाये रखना । उत्तराखंड में राजपूत सीएम है तो पोरियाल को लाकर ब्राहणण को साधना । राज्थान में शेखावत के जरीये जातिय समीकरण साधना । तो फिर जनादेश के पैमाने या उसी की व्याख्या तले मंत्रीमंडल भी क्यों नहीं बनाया गया । अब कुछ भी नहीं चौकाता है क्योकि एक तरफ मेनका गांधी , जंयत सिन्हा और अनंत हेगडे के जरीये मुस्लिम पर निशाना साधने वालो को या फिर लिचिग करने वालो को माला पहना कर स्वागत करने वाले को  या संविधान पर अंगुली उठाने की बात कहने वाले को मंत्रिमंडल में ना लेकर अपनी सहिष्णुता और सादगी नरेन्द्र मोदी दिखाते है लेकिन गिरिराज सिंह , संजीव बालियान और ज्योति निरंजन साध्वी को मंत्रीमंडल मेंलेकर क्या संदेश देते है ये भी अब चौकाता नहीं है । अब तो ये भी नहीं चौकाता है कि बीते पांच बरस में कांल ड्राप के संकट से निजात ना दिला पाने वाले दुबारा उसी मंत्रालय को संभाल रहे है । ट्रेन की रफ्तार द्यादा तो नहीं लेकिन ट्रेन वक्त पर चला सके इसमेंअसफल रहने वाले वहीं विभाग संभालने जा रहे है । पांच बरस में देश को नई शिक्षा नीति तब नहीं मिल पायी जो 100 दिन में लाने के वादे क साथ 2014 में सत्ता में आयी थी । तो फिर शिक्षा मंत्रालय से निकले मंत्रियो को दूसरा विभाग सौप कर कौन सा तीर मारा गया । वाकई अब कुछ भी चौकाता । हां, य जरुर चौका गया कि किसानो की आय दुगुना करने का वादा करने वाले पीएम ने इस बार किसानो से कोई वायदा नहीं किया लेकिन पुराने कृर्षि मंत्री राधामोहन सिंह की जगह नरेन्द्र सिंह तोमर को कृर्षि मंत्री बना दिया । खेल मंत्रालय भी एक ओलपिंयन खिलाडी से लेकर पूर्वी भारत के रिजूजू के युवा होने को महत्वपूर्ण बना दिया । ये समझने की बात है कि मंत्रियो की फौज कितनी भी बडी हो चंद दिनो में ही आप भूल जायेगं कि कौन सा मंत्री किस विभाग को संभाले हुये है । ठीक वैसे ही जैसे आपको याद नहीं होगा कि 2014-19 के बीच देश का प्रयावरण मंत्री कौन था । और इस बार पार्यावरण मंत्री कौन है । ना तो हर्षवर्धन को तब काम था ना ही अब बाबुल सुप्रीयो को कोई काम होगा । जो कि नये पर्यावरण , जंगल ,क्लाइमेट चेंज वाले मंत्रालय को संभाल रह है । वैसे ये सवाल अमित शाह, निर्माला सीतारमण ,राजनाथ को लेकर भी हो सकता है कि आखिर इनकी मौजूदगी का मतलब होगा क्या । तो साफ है अमित शाह की दबंग छवि अब सिटिजन कानून से लेकर धारा 370 और 35 ए पर चोट करेगी तो कोई सवाल उठा तो अमित शाह के माथे पर । पर सफल हुये तो मोदी का प्रयोग लाजवाब है । निर्माला सीतारमण भी कैसे वित्त मंत्रालय संभालेगी । जबकि ये हर कोई जानता है कि वह फाइनेंस उतना ही समझती है जितनी समझ  बाबूल सुप्रियो  को पर्यावरण को लेकर है । तो डूबती इक्नामी को ना संभाल पाने का दाग निर्माला को खामोशी को ये जानते समझते हुये लेना होगा कि जैसे ही जनादेश आया था उसके तुरंत बाद रिजर्व बैक के गवर्नर ने तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली को इकनामी ही नही बैकिंग सर्विस का हाल भी बता दिया था । जिसके बाद जेटली को भी लगा अब बीमार इकानामी तले खुद को ज्यादा बीमार करने का कोई मतलब है नहीं । फिर जेटली के करीबी आर्थिक सलाहकार सुब्रहमण्यम भी जिस नोट पर सरकार का साथ छेड कर निकल गये थे , वह भी किसी से छुपा नहीं है । और राजनाथ सिंह के रक्षा मंत्रालय में आने का मतलब सिर्फ रफायल का सौदा भर नहीं है बल्कि आने वाले वक्त में तमाम डिफेन्स डील को लेकर जो बात राजनाथ कह पायेगें वह कोई दूसरा मंत्री कह नहीं पाता । यानी पीएम मोदी के लिये ये तीनो ढाल भी है । हथियार भी है । और कुछ भी नहीं के बाराबर भी है । क्योकि पीएमओ से तीनो मंत्रालय चलेगें ये किसी से छुपा नहीं है और तीनो खामोशी से पीएमओ के नौकरशाहो को देखेगे जिन्हें अब मंत्री स्तर की मान्यता सुविधा सबकुछ दिया जा चुका है । तो फिर चौकाता तो कुछ भी नहीं है । हां पहली बार रायसीना दाल ने जरुर चौकाया । 48 घंटे में धीमी आंच पर बनने वाली रायसीना दाल जब रायसीना हिल्स पर बने राष्ट्रपति भवन में शपथ समारोह के बाद परोसी गई तो जायका वाकई अद्भूत रहा होगा । कयोकि जिस तरह हिन्दुत्व की पोटली उठाकर देशभक्ति और राष्ट्रवाद के राग तले पीएम मोदी ने देश के हर जरुरी मुद्दे को ही चुनाव के वक्त दफ्त करा दिया और हर वोटर बोल पडा पहले देश बाद में गरीबी-मुफलिसी-बेरोजगारी-खुदकुशी-लिचिंग-अपराध संवैधानिक संस्था-सुप्रीम कोर्ट-सीबीआई-चुनाव आयोग तो लगा ऐसा कि देश वाकई बदल चुका है । और रौशनी से जगमग राष्ट्रपति भवन की लाल बदरी पर बीछे लाल कारपेट पर खडे -बैठे संघ के स्वयसेवको की कतार के सामानातार कारपोरेट के कतार । बालीवुड के चमकते चेहरो के बीच भगवा ओढे संतो का चमकदार मुख । मोदी-मोदी नारे और बीच बीच में सीटी बजाते राक्यत्ताओ की कतार के बीच आईएएस-आईपीएस का तमगा लिये नौकरशाहो के चेहरे की मुस्कान । पीएम के सामने झुके झके से राष्ट्रपति और सासंदो की करिष्माई मोदी से मिलने की होड । देश के आमंत्रित 8 हजार लोगो के इस समूह में शायद ही कोई ऐसा रहा होगा जो खुद में मोदी या मोदी के सबसे करीब होने का गुमान पाल कर वहा से ना निकला हो । इस दृश्य ने चाहे अनचाहे नागार्जुन की कविता की याद दिला दी जो इंदिरा पर लिखी गई थी । तब  रानी थी आज कोई राजा है । तब प्रजातंत्र पर सवाल थे अब लोकतंत्र पर सवाल है । पर कवि नागाजुर्न की प्किताया अद्बूत है चाह तो रायसीना हिन्स पर अब भी फिट बैठ सकती है....आओ रानी , हम ढोयेगें पालकी/ यही हुई है राय जवाहर लाल की / रफू करेगें फटे पुराने जाल की / भऊखी भारत-माता के सूखे हाथो को चूम लो / प्रेसिडेन्ट की लंच हिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो / पद्म-भूषणों, भारत-रत्नो से उनके उद्दार लो / पालियामेंट के प्रतिनिधियो से आदर लों, सत्कार लो / मिनिस्टरो से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लों / जांये-बांये खडे हजारी आफिसरो से प्यार लो / धनकुबेर उत्सुक दिखेंगे , उनको जरा दुलार लो / होठों को कंपित कर लो, रह रह कर कनखी मार लो / बिजली की यह दीपमलिका फिर-फिर इसे निहार लो / ये तो नयी -नयी दिल्ली है , दिल से इसे उतार लो / आओ रानी , हम ढोयेगे पालकी .......

41 comments:

Unknown said...

आपके लिए एक नेटवर्क है tv18news.live

Unknown said...

आपके लिए एक नेटवर्क है tv18news.live

Anurag said...

जोरदार विश्लेषण।

अब तो बेरोजगार और भूखे भी राष्ट्रवाद ही पहन ओढ़ और खा रहे है।

आपका लेख पढ़कर दुष्यंत याद आ गए...
" मत कहो अंधकार घाना है,
ये किसी की व्यग्तिगत आलोचना है"

Unknown said...

Nayi nayi Delhi hai,,naya naya Bharat hai!ham dhoyenge palki tumhari,tum to naye Bhagvan ho!!

"" लवली सरकार "" प्रत्याशी- 340 विधानसभाक्षेत्र भाटपार रानी- देवरिया (UP) said...

Nice sir

Unknown said...

शानदार लेख ह

Unknown said...

शायद राष्ट्रवाद से ही पांच साल सरकार चलें ये एक सफल प्रयोग हे जय हिंद

Unknown said...

Wah, bajpai ji kya likha hai...too good ,A perfect analysis of the Modi government, a well written and very true to each word,article...looking forward for more

Unknown said...

Jabrdast
पांच साल अब लोग राष्ट्रवाद से नाश्ता भोजन दवा करेंगे । राष्ट्रवाद से बेरोजगारी भ्रष्टाचार गरीबी सब कुछ मिट जायेगा। अब लोगों ने सिद्ध कर कर दिया कि अब बेरोजगारी भ्रष्टाचार किसानों की आय दोगुनी स्वास्थ्य शिक्षा सबका इलाज केवल राष्ट्रवाद है।
बेरोजगार युवाओं के लिए उनकी जीवन में 10 साल काले साए की तरह होगा जिसे वह कभी भुला नहीं पाएंगे।

Dinesh said...

बचकाना विश्लेषण, राष्ट्रवाद से बढ़िया विचारधारा हो ही नही सकती,मोदी से बाजपेयी की नाराजगी साफ झलकती है,

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
1- हर चैनल से लात मार के निकाला गया
2:- ndtv ने भी इन्हें रखने से साफ मना कर दिया
3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
1- हर चैनल से लात मार के निकाला गया
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3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
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2:- ndtv ने भी इन्हें रखने से साफ मना कर दिया
3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
1- हर चैनल से लात मार के निकाला गया
2:- ndtv ने भी इन्हें रखने से साफ मना कर दिया
3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
1- हर चैनल से लात मार के निकाला गया
2:- ndtv ने भी इन्हें रखने से साफ मना कर दिया
3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

अबे पागल कहीं के तेरे को रिपोर्टर किसने बना दिया बे पागल इंसान

Aghori Aashutosh said...

पुण्य प्रसून वाजपई तू एक नंबर का कांग्रेस का दलाल कुत्ता है

Aghori Aashutosh said...

थोड़ी तो शर्म कर 50 जगह से तेरे को निकाल दिया गया है सिर्फ कांग्रेस की वजह से अबे चुटिया कब अक्ल आएगी तेरे में

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
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2:- ndtv ने भी इन्हें रखने से साफ मना कर दिया
3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

बीते 5 सालों में बाजपेई जी की उपलब्धिया:-
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3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
4:- दिग्विजय को पूर्ण बहुमत दे के अपनी छिछालेदर करवाई
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Aghori Aashutosh said...

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Aghori Aashutosh said...

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3:- क्रांतिकारी इंटरव्यू लेने के कारण आजतक ने फटकारा
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5:- मोदी की जीत पर पागल होने की कगार पे पहुंच गए

Aghori Aashutosh said...

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Aghori Aashutosh said...

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Aghori Aashutosh said...

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Aghori Aashutosh said...

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Early grow money online said...

Sir plz Apni videos k Jariye hi Apna Margdarshan
Aapki Lagan or Mehanat ko hamari taraf se bhut bhut Aabhar
Bhahut Bhahut Shukriya

meenakshi said...

Very true sir

nitin sharma said...

Saale gaon me aaj smartphone par log live tv dekhte h ...jaha 300 rupey mein 1gb mahine bhar ke liye milta tha ...ab 3 mahine tak khulla milta h ...tere papa karke gaye hain...jara hamare comment ke reply to kar diya kar

Not Politician said...

Bht sahi Ye Bhai ne Mara nahle pe dahla... Bajpai G Kuch to sharam Karo apni vichar dhara pe...

EnergyExpedia.com said...

Good article, keep it up.

Sandeep dwivedi said...

Ese patrakar bhi hote h duniye me jinhe na likhne ka dhang na bolne ka

Unknown said...

आपके लेख को बिना पढ़े मैं सोता नहीं हूं।

Amit Arora said...

बहुत उम्दा👍

Unknown said...

Regular follower of your writing and videos, just pasting something that I read somewhere might be worth looking.
not everything right-wing populists have done in government is a reflection of what the people wanted. Liberals should stop moaning that democracy is dying because ‘the people’ don’t care for it any more; their critics on the left have to do more than argue that democracy was never really born in the first place because our existing political institutions were shaped by racism and sexism. Not everything that populists say about elites is necessarily wrong – the talk of rigged economies resonates for a reason. But as long as liberals and the left fixate on the idea that right-wing populism has a universal cause, they will remain fixated on their opponents. There has to be more to them than being ‘anti-populist’: they have to start to figure out what they actually stand for.

MBM said...

Good answer

Abhishek said...

एक मुद्दे के आगे बौने हुए सारे मुद्दे

Sardar ji said...

जो बिना सब्सिडी वाला रसोई गैस का सिलिंडर 16 मई 2014 को ₹414 में उपलब्ध होता था,उसके लिए आज ₹737.5 देने पड़ेंगे।

यानी मोदी सरकार द्वारा पिछले 5 सालों में ₹323.5 की भारी बढ़ौतरी की गई है

Shivendra Singh said...

Puny ji aapne baate poore tathyo me sath likhi hai, ab agli baat ye hai ki janadesh abhi naya hai aur prachand bahumat is baat ki tasdik hai ki janta pichhle 5 saal me pradarshan se santusht hai. Samsya ye hai ki hai aap economy me aankde dekh Mar chinta vyakt kar rahe ho ki kisano ko paisa Kyo diya ja raha hai is haal me, lekin jab economy me data achhee dikhate hai to patrkar use sirf sankhya batakar kisan ki jhopdi me pahuch jate hai ki zamin par kuchh go raha nahi. Ye atal saty hai ki bhartiy samaj jati vyavastha par adharit hai aur koi sarkar BJP CONGRESS koi bhi use achhoot nahi, sarkare is system ko thik bhi nahi kar payengi ye samajik chetna aur utthan ka vishay hai

Unknown said...

आप जैसे पत्रकारों की ज़रूरत है इस देश को, थोडा रुकिये आप ही का समय आयेगा । EVM की लाइफ बहुत छोटी है जी