अगर कर्नाटक विधानसभा में सोमवार को भी स्पीकर बहुमत साबित करने की प्रक्रिया टाल देते है । यानी राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को कुमारस्वामी सरकार अनदेखा कर देती है तो होगा कया ? जाहिर है सामान्य स्थितिया रहती तो स्पीकर के कार्य संविधान के खिलाफ करार दे दिये जाते । लेकिन टकराव की बात कर हालात को टाला जा रहा है । लेकिन नया सवाल से है कि आखिर हफ्ते भर से कौन सी ताकत कुमारस्वामी सरकार को मिल गई है जिसमें उसका बहुमत खिसकने बाद भी वह सत्ता में है । असल में लोकतंत्र का संकट यही है कि राजनीतिक सत्ता ही जब खुद को सबकुछ मानने लगे और संवैधानिक तौर पर स्वयत्त संस्थाये भी जब राजनीतिक सत्ता के लिय काम करती हुई दिखायी देने लगे तो फिर लोकतंत्र की लिचिंग शुरु हो जाती है । और रोकने वाला कोई नहीं होता । यहा तक की लोकतंत्र की परिभाषा भी बदलने लगती है । और ये असर सडक पर सत्ता की कार्यप्रणली से उभरता है । यानी सडक पर भीडतंत्र को ही अगर न्यायतंत्र की मान्यता मिलने लगे । हत्यारो की भीड के सामने राज्य की कानून व्यवस्था नतमस्तक होने लगे । तो असर तो लोकतंत्र क मंदिर तक भी पहुंचगा । तो आईये जरा सिलसिलेवार तरीके से हालात को परखे । कर्नाटक में बागी विधायको [ काग्रेस और जेडीएस ] ने विधायिका के सामने अपने सवाल नहीं उठाये बल्कि न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाया । और सुप्रीम कोर्ट ने भी बिना देर किये ये निर्देश दे दिया कि कि बागी विधायको पर व्हिप लागू नहीं होता । तो झटके में पहला सवाल यही उठा कि , ' क्या सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका के विशेष क्षेत्र में हस्तक्षेप करके अपनी सीमा पार की है । ' क्योकि संविधान जानने वाला हर शख्स जानता है कि , ''संविधान में शक्तियों के विभाजन पर बहुत सावधानी बरती गई है. विधायिका और संसद अपने क्षेत्र में काम करते हैं और न्यायपालिका अपने क्षेत्र में. आमतौर पर दोनों के बीच टकराव नहीं होता. ब्रिटिश संसद के समय से बने क़ानून के मुताबिक़ अदालत विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती.'' तो फिर सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का मतलब क्या होगा जब वह कहता है कि ,स्पीकर को विधायकों के इस्तीफ़े स्वीकार करने या न करने या उन्हें अयोग्य क़रार देने का अधिकार है. लेकिन 15 बाग़ी विधायकों विधानसभा की प्रक्रिया से अनुपस्थित रहने की स्वतंत्रता दे दी। " यानी झटके में राजनीतिक पार्टी का कोई मतलब ही नहीं बचा । सवाल सिर्फ व्हिप भर का नहीं है बलकि राजनीतिक पार्टी के अधिकारों के हनन का भी है ।'' फिर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजो की बेंच का फैसला ढाई दशक पहले 1994 में पांच न्यायधीशो वाली पीठ के फैसले के भी उलट है । क्योकि तब राजनीतिक दलो के विधायको के बागी होने पर ये व्यवस्था करने की बात थी कि विधायक जब जनता के बीच अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ गया । लडा और जीत कर विधायक बन गया तो फिर जनता ने उम्मीदवार के साथ राजनीतिक दल को भी देखा । ऐसे में बागी विधायक कैसे पार्टी नियम ' व्हिप ' से अलग हो सकता है । यानी अगर ऐसा होने लगे तो फिर किसी भी राज्य भी बहुमत की सरकार में मंत्री पद ना पाने वाले विधायक या फिर अपने हाईकमान से नाराज विधायक या मंत्री भी झटके में विपक्ष के साथ मिलकर चुनी हुई सत्ता भी गिरा देगें । फिर कर्नाटक में खुले तौर पर जिस तरह विधायको की खरीद फरोख्त या लाभालाभ देने के हालात है उसमें कोई भी कह सकता है कि जिसकी सत्ता है उसी का संविधान है उसी का लोकतंत्र है । और जब ये सोच सर्वव्यापी हो चली है तो फिर आखरी सवाल य भी है कि अगर कुमारस्वामी सरकार विधानसभा में बहुमत साबित करने को टालते रहे तो होगा क्या । लोकतंत्र की धज्जियां पहले भी उडी और बाद भी उडेगी । यानी झटके में ये सवाल उठने लगेगा कि सरकार गिराना अगर सही है तो फिर सरकार बचाना भी सही है । चाहे कोई भी हथकंडा अपनाया जाये । फिर ध्यान दिजिये तो विधानसभा में लोकतंत्र की इस लिचिंग के पीछे सडक पर होने वाली लिचिग का असर भी कही ना कही नजर आयेगा ही । क्यकि बीते पांच बरस में 104 लिचिंग की घटनाय देश भर में हुई । 60 से ज्यादा हत्याये हो गई । दो दिन पहले ही बिहार के छपरा में भी लिचंग हुई और लिचिंग से जयादा विभत्स स्थिति उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में नजर आई । छपरा में तो चोर कहकर तीन लोगो की सरेराह हत्या कर दी गई । लेकिन सोनभद्र में सामूहिक तौर पर नंरसंहार की खूनी होली को अंजाम दिया गया । लेकिन इस कडी में कही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लिचिग करने वाले या हत्यारो को राजनीतिक संरक्षण खुलेतौर पर दिया गया । यानी हजारीबाग या नवादा में कैबिनट मंत्रियो के लिचिंग करने वालो की पीठ छोकना भर नहीं है बल्कि 2019 के चुनाव में लिचिंग के आरोपी चुनावी प्रचार में खुले तौर पर उभरे । जिला स्तर पर कई नेता भी बन गये । यानी 1994 में सुप्रीम कोर्ट जब राजनीतिक दल के साथ विधायक का जुडाव वैचारिक तौर पर देख रही थी और बागी विधायक को स्वतंत्र नहीं मान रही थी । 2019 में आते आते सुप्रीम कोर्ट विधायक को उसकी अपनी पार्टी से ही स्वतंत्र भी मान रही है और खुले तौर लिचिंग करने वाले भी अपनी वैचारिक समझ को सत्ता के साथ जोड कर कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाने से भी नही हिचक रहे है । और राजनीति भी सत्ता के लिये हर उस अपराधी को साथ लेने से हिचक नहीं रह है जो चुनाव जीत सकता है । जीता सकता है । या सत्ता का खेल बिगाड कर विपक्ष को सत्ता में बैठा सकता है । यानी मौजूदा लोकतंत्र का त्रासदीदायक सच यही है कि जनता सिर्फ लोकतंत्र के लिये टूल बना दी गयी है । विधानसभा में जनता ने जिसे हराया लोकतंत्र की लिचिंग का खेल उसे हारे हुये को मौका देता है कि जीते को खरीदकर खुद सत्ता में बैठ जाओ । और सडक पर लिचिंग करने वाले को मौका है कि हत्या के बाद वह अपनी धारदार पहचान बनाकर सत्ता में शामिल हो जायें ।
Monday, July 22, 2019
लोकतंत्र की लिंचिग मत किजिये......
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:05 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
13 comments:
Nice!!!!
Sir I want to meet you . Could you allow me to have a meeting with you?
बाजपेयी सर । मेरे कुछ सवाल थे मोदी जी से। कोई नया सवाल नही था। जब मैंने पूछा तो जवाब तो नही मिला। उल्टे उनके भक्त सब हमको ट्रॉल करने लगे है। मुझे मदरसा छाप बोलते है। कूट कूट कर मर देने की धमकी देते है। सर मैं इंजीनियरिंग के लास्ट ईयर में हु। मैं क्या करूँ। कुछ रास्ता बताइये ।
Sir agar aap mera comment padh rahe ho to mera ek message apne youtube video ke madhyam se logo ko pass kar dijiye pls.. maine koshish ki per koi sunta hi nhi... pls aapse vinamr nivedan hai....
"Are pehle khud ko dekho aur samjho ki tumne khudne jo jaane anjaane me nafrat failai hai use khud khatam karo.. bus aake comment likhdenge ki Sir aap bahut achcha bolte ho ye hai wo hai... sab ke sab apne khudke social profiles ko ek baar check karo.. jaane anjane kitne political pages/groups aur posts tum share karte ho ya comments karke promote karte ho usi ka sab fal hai ye... ab to sudhar jao yaar.. bhagwaan ke liye ye desh ko kyu barbaad karne me lage hue ho... 55 crore yuva ho.. world me 3-4 countries ki population ke barabar ho... ye saare pages/groups I.T cell wale chalate hai...ek sath decline karoge to political parties aur power ki aisi ki taisi ho jayegi sirf online hi kyuki inka base online promotion aur propoganda hai use pehle dismiss karo..
Yehi sab log apne apne mobiles me whatsapp me na jaane kitne political groups me add honge aur daily kitne hi propoganda posts bina soche samjhe share kar dete honge.. agar sach me serious ho desh ke liye to ek ek banda jo comment kar raha hai sab apne apne whatsapp se ye sab nautanki delete kardo.. aur phir aage steps karo.. mai bolta hu saare steps"
Hello sir! I am Yousuf Khan from West Bengal. I want your permission to dub your programs in English and Bengali. I want to preach the truth among the people of Bengali and English speakers.
If you consider me and give me your favour allowing for the dubbing I would be grateful.
Wish you all the best and energetic as usual as you are.
P.S: I am not a political person rather, as a human of conscience and an Indian I think that everyone of us has ethical responsibility to perticipate in such activities that will make public aware of the reality and
fact.
Thanks again
Sir, why do you oppose BJP.Article 370, 3 talaaq Sab Khatm kar diya bjp ne.
Sir, why do you oppose BJP.Article 370, 3 talaaq Sab Khatm kar diya bjp ne.
Sir, why do you oppose BJP.Article 370, 3 talaaq Sab Khatm kar diya bjp ne.
Sir jab aap jaise log hi saath nahi dege tab kaun help karega hum logo ki.
Sir plus comment about 370.Do you also think demolishing 370 is good.
Sir My mom has been a great fan to you. We seen you at "10 tak" before we seen you at presenting "Masterstroke".
Can I work with you ??
Post a Comment