Sunday, August 11, 2019

धारा 370 के हटने का पहला शिकार लोकतंत्र



"  डायल किये गये नंबर पर इस समय इन-कमिंग काल की सुविधा नहीं है....'' इधर लोकतंत्र के मंदिर संसद में धारा 370 खत्म करने का एलान हुआ और उधर कशमीर से सारे तार काट दिये गये । धाटी के हर मोबाइल पर संवाद की जगह यही रिकार्डड जवाब 5 अगस्त  की सुबह से जो शुरु हुआ वह 6 अगस्त को भी जारी रहा । यू भी जिस कश्मीरी जनता की जिन्दगी को संवारने का वादा लोकतंत्र के मंदिर में किया गया उसी जनता को घरों में कैद रहने का फरमान भी सुना दिया गया । तो लोकतंत्र का लाने के लिये लोकतंत्र का ही सबसे पहले गला जिस तरह दबाया गया उसके अक्स का सच तो ये भी है कि ना कशमीरी जनता से कोई संवाद या भरोसे में लेने की पहल । ना ही संसद के भीतर किसी तरह का संवाद । और सीधे जिस अंदाज में जम्मू कशमीर राज्य भी केन्द्र शासित राज्य में तब्दिल कर दिल्ली ने अपनी शासन व्यवस्था में ला खडा किया उसने पहली बार खुले तौर पर मैसेज दिया अब दिल्ली वह दिल्ली नहीं जो 1988 की तर्ज पर जम्मू कश्मीर चुनाव को चुरायेगी । दिल्ली 50 और 60 के दशक वाली भी नहीं जब संभल संभल कर लोकतंत्र को जिन्दा रखने का नाटक किया जाता था । अब तो खुले तौर पर संसद के भीतर बाहर कैसे सांसदो और राजनीतिक दलो को भी खरीद कर या डरा कर लोकतंत्र जिन्दा रखा जाता है , ये छुपाने की कोई जररत नहीं है । क्योकि लोकतंत्र की नाटकियता का पटाक्षेप किया जा चुका है । अब लोकतंत्र का मतलब खौफ में रहना है । अब लोकतंत्र का मतलब राष्ट्रवाद का ऐसा गान है जिसमें धर्म का भी ध्रुवीकरण होना है और किसी संकट को दबाने के लिये किसी बडे संकट को खडा कर लोकतंत्र का गान करना है । 
पर इसकी जररत अभी ही क्यों पडी या फिर बीते दस दिनो में ऐसा क्या हुआ जिसने मोदी सत्ता को भीतर से बैचेन कर दिया कि वह किसी से कोई संवाद बनाये बगैर ही ऐसे निर्णय ले लें जो भारत के भीतर और बाहर के हालातो के केन्द्र में देश को ला खडा करें । तो संकट आर्थिक है और उसे किस हद तक उभरने से रोका जा सकता है इस सवाल का जवाब मोदी सत्ता के पास नहीं है । क्योकि खस्ता इक्नामी के हालात पहली बार कारपोरेट को भी सरकार विरोधी जुबा दे चुके है । और कारपोरेट प्रेम भी जब सेलेक्टिव हो चुका है तो फिर संलेक्टिव को सत्ता लाभ तो दिला सकती है लेकिन सेलेक्टिव कारपोरेट के जरीये देश की इक्नामी पटरी पर ला नहीं सकती । और किसान-मजदूर-गरीबो को लेकर जो वादे लगातार किये है उससे हाथ पिछे भी नहीं खिंच सकते । यानी बीजेपी का पारंपरिक साथ जिस व्यापारी-कारपोरेट का रहा है उस पर टैक्स की मार मोदी सत्ता में सबसे भयावह तरीके से उभरी है । तो आर्थिक संकट से ध्यान कैसे भटकेगा । क्योकि अगर कोई ये सोचता है कि अब कश्मीर में पूंजीपति जमीन खरीदेगा तो ये भी भ्रम है । क्योकि पूंजी कभी वहा कोई नहीं लगाता जहा संकट हो । लेकिन कशमीर की नई स्थिति रेडिकल हिन्दुओ को घाटी जरर ले जायेगी । यानी लकीर बारिक है लेकिन समजना होगा कि नये हालात में हिन्दु समाज के भीतर उत्साह है और मुस्लिम समाज के भीतर डर है । यानी 1989-90 के दौर में जिस तरह कशमीरी पंडितो  का पलायन घाटी से हुआ अब उनके लिये घाटी लौटने से ज्यादा बडा रास्ता उन कट्टर हिन्दुओ के लिये बनाने काी तैयारी है जिससे घाटी में अभी तक बहुसंख्यक मुसलमान अल्संख्यक भी हो जाये । दूसरी तरफ आर्थिक विषमता भी बढ जाये । और सबसे बडी बात तो ये है कि अब कशमीर के मुद्दो या मश्किल हालात का समाधान भी राज्य के नेता करने की स्थिति में नहीं होगें । क्योकि सारी ताकत लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास होगी । जो सीएम की सुनेगा नहीं । यानी सेकेंड ग्रेड सीटीजन के तौर पर कश्मीर में भी मुस्लिमो को रहना होगा । अन्यथा कट्टर हिन्दओ की बहुतायत सिविल वार वाले हालात पैदा होगें  । दरअसल कश्मीरी की नई नीति ने आरएसएस को भी अब बीजेपी में तब्दिल होने के लिये मजबूर कर दिया । यानी अब मोदी सत्ता को कोई भय आर्थिक नीतियों को लेकर या गवर्नेंस को लेकर संघ से तो कतई नहीं होगा क्योकि संघ के एंजेडे को ही मोदी सत्ता ने आत्मसात कर लिया है । याद किजिये 1948 में महातामा गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध ने संघ की साख खत्म कर दी थी और जब संघ पर से  बैन खत्म हआ तो सामने मुद्दो का संकट था । ऐसे में 21 अक्टूबर 1951 में जब जंनसघ का पहला राष्टीय अधिवेशन हआ तब पहले घोषणापत्र में जिन चार मुद्दो पर जोर दिया गया उसमें धारा 370 का विरोध यानी जम्मूकश्मीर का भारतीय संघ में पूर्ण एकीकरण औऱ अल्संख्यको को किसी भी तरह के विशेषाधिकार का विरोध मुख्य था । औऱ ध्यान दें तो जून 2002 में कुरुक्षेत्र में हुई संघ के कार्यकारी मंडल की बैठक में जम्मू कश्मीर के समाधान के जिस रास्ते को बताया गया और बकायदा प्रस्ताव पास किया गया । संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने शब्दश उसी प्रस्ताव का पाठ किया । सिवाय जम्मू को राज्य का दर्जा देने की जगह केन्द्र शासित राज्य के दायरे में ला खडा किया ।
तो आखरी सवाल यही है कि क्या कश्मीर के भीतर अब भारत के किसी भी प्रांत से किसी भी जाति धर्म के लोग देश के किसी भी दूसरे राज्य की तरह जाकर रह सकते है । बस ससे है । तो क्या कश्मीरी मुसलमानो को भी देश के किसी भी हिस्से में जाने-बसने या सुकुन की जिन्दगी जीने का वातावरण मिल जायेगा । क्योकि कश्मीर में अब सत्ता हर दूरे राज्य के व्यक्तियो के लिये राह बनाने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल को भेज चुकी है । लेकिन कश्मीर के बाहर कश्मीरियो के लिये जब शिक्षा-रोजगार तक को लेकर संकट है तो फिर उसका रास्ता कौन बनायेगा । 

10 comments:

Arvind Pandey said...

Bahut badhiya sir
Jordar

Arvind Pandey said...

बार बार लोगों को पढ़ना चाहिए

Unknown said...

Nice sir....

Sanwar said...

Awesome sir ji

Prasad Katedeshmukh said...

very nice sir

peaceful warrior said...

V nice sir..u r real soldier of our country

Akash Padhi said...

Nice blog sir...you are one of the great journalist of the country.

Veenesh Vikram said...

Great Blog.

Unknown said...

प्रसूनजी आपसे विनती है एक बार राजीव दीक्षित जी पर vdo बनाइए
जिनकी मौत में बाबा रामदेव का हाथ है..

Unknown said...

Bhai saheb aapka contec no btaiye
Me m.p ke ujjain se hu aap aajkal
TV pr kyu nhi aate ham log godi mediya ko dekhkar bor ho rhe hen