Thursday, January 9, 2020

प्रधानमंत्री मोदी ने बटन दबाया लेकिन किसानो तक कुछ नहीं पहुंचा

68 महिने में 168 योजनाओं का एलान । यानी हर 12 दिन में एक योजना का एलान । तो क्या 12 दिन के भीतर एक योजना पूरी हो सकती है या फिर हर योजना की उम्र पांच बरस की होती है तो आखरी योजना जो अटल भू-जल के नाम पर 25 दिसंबर 2019 में एलान की गई उसकी उम्र 2024 में पूरी होगी । या फिर 2014 में लालकिले के प्राचीर से हर सासंद को एक एक गांव गोद लेने के लिये जिस सासंद आदर्श ग्राम योजना’ का एलान किया गया उसकी उम्र 2019 में पूरी हो गई और देश के 3120 [ लोकसभा के 543 व राज्य सभा 237 सासंद यानी कुल 780 सांसदो के जरीये चार वर्ष में लेने वाले गांव की कुल संख्या  ]गांव सासंद निधि की रकम से आदर्श गांव में तब्दिल हो गये । लेकिन ये सच नहीं है । सच ये है कि कुल 1753 गांव ही गोद लिये गये और बरस दर बरस सासंदो की रुची गांवो को गोल लेकर आदर्श ग्राम बनाने में कम होती गई । मसलन पहले बरस 703 गांव तो दूसरे बरस 497 गांव , तीसरे बरस 301 गांव और चौथे बरस 252 गांव सासंदो ने गोद लिये । पांचवे बरस यानी 2019 में किसी भी सांसद ने एक भी गांव को गोद नहीं लिया । लेकिन सच ये भी पूरा नही है । दरअसल जिन 1753 गांव को आदर्श ग्राम बनाने के लिये सांसदो ने गोद लिया उसमें से 40 फिसदी गांव यानी करीब 720 गांव के हालात और बदतर हो गये । ये कुछ वैसे ही है जैसे किसानो की आय दुगुनी करने के लिये 2013 में वादा और 2015 में एलान के बाद किसानो की आय देशभर में साढे सात फिसदी कम हो गई । लेकिन आंकडो के लिहाज से कृर्षि मंत्रालय ने और सरकार ने समझा दिया कि किसानो की आय डेढ गुनी बढ चुकी है जो कि 2022 तक दुनगुनी हो जायेगी । जाहिर है आकंडो की फेरहसित् ही अगर सरकार की सफलता हो जाये और जमीनी हालात ठीक उलट हो तो सच सामने कैसे आयेगा । यही से नौकरशाही , मीडिया , स्वायत्त व संवैधानिक संस्थानो की भूमिका उभरती है जो चैक एंड बैलेस का काम करते है । लेकिन सभी सत्तानुकुल हो जाये या फिर सत्ता ही सभी संस्थानो 
या कहे लोकतंत्र के हर पाये को खुद ही परिभाषित करने लगे तो फिर सत्ता या सरकार के शब्द ही अकाट्य सच होगें ।दरअसल इस हकीकत को परखने के लिये 2 जनवरी 2020 को कर्नाटक के तुमकर में प्रधानमंत्री मोदी के जरीये बटन दबाकर 6 करोड किसानो के बीच 12 हजार करोड की राशी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत बांटने के सच को भी जानना जरुरी है । चूकि ये सबसे ताजी घटना है तो इसे विस्तार से समझे क्योकिनये साल के पहले दो दिन यानी 1-2 जनवरी 2020 को लगातार ये खबरे न्यूज चैनलो के स्क्रिन पर रेगती रही और अखबारो के सोशल साइट पर भी नजर आई कि प्रदानमंत्री मोदी नये साल में किसानो को किसान सम्मान निधि का तोहफा देगें । और तुमकर में अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने बकायदा एलान भी किया उन्होने बटन दबाकर कैसे एक साथ 6 करोड किसानो के खाते में दो हजार रुपये पहुंचा दिये है । जाहिर है ऐसे में सरकार की सोशल साइट जो कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के ही नाम से चलची है उसमें ये आंकडा तुरंत आ जाना चाहिये । लेकिन वहा कुछ भी नहीं झलका । और आंकडो की बजीगरी में से साफ लगा कि जो बटन दबाया गया वो सिर्फ आंखो में घूल झौकने के लिये दबाया गया । क्योकि सरकार की सोशल साइट जो हर दिन ठिक की जाती है उसका सच ये है कि उसमें पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक जो भी योजना के बारे में कहा गया या योजना को लागू कराने के लिये जो हो रहा है उसे दर्ज किये जाता है । बकायदा दर्जन भर नौकशाह उसे ठीक करते रहते है । लेकिन किसान सम्मान निधि का सच ये है कि 1 दिसबर 2018 को पहली किस्त के साथ इसे लागू किया गया । हर चार महीने में दो हजार रुपये कि किस्त किसान के खाते में जानी चाहिये । तो दूसरी किस्त 1 अप्रैल 2019 को गई । तीसरी किस्ता 1 अगस्त 2019 को गई और चौथी किस्त 1 दिसबंर 2019 को गई जिसकी मियाद 31 मार्च 2020 तक है यानी अब बजट में अगर सम्मान निधि की रकम जारी रखने के लिये 75000 करोड का इंतजाम किया जायेगा तो ये जारी रहेगी अन्यथा बंद हो जायगी । लेकिन उस जानकारी के सामानातंर जरी सच समझ लिजिये । प्रधानमंत्री ने कौन सा बटन बदाया और किन 6 करोड किसानो को लाभ मिला इसका कोई जिक्र आपको किसी सरकारी साइट पर नहीं मिलेगा । अगर सरकारी आंकडो को ही सच मान ले तो कुल किसान लाभार्थियो की संख्या देश में करीब साढे आठ करोड [ 8,54,30,667 ] है । जिन्हे दिसबंर 2019 से मार्च 2020 की किसत मिली है उनकी संख्य़ा तीन करोड से  कम [ 2,90,02,545 ] है । यानी छह करोड तो दूर बल्कि जो बटन दबाया गया उसका कोई आंकडा इस किस्त में नहीं जुडा । क्योकि ये आंकडा सरकारी साइट पर 15 दिसंबर से ही रेंग रहा है । और हर दिन सुधान के बाद भी जनवरी में इसमें कोई बढतरी हुई ही नहीं है । असल में योजनाओ का लाभ भी कैसे कितनो को देना है ये भी उस राजनीति का हिस्सा है जिस राजनीति का शिकार भारत हर नीति और अब तो कानून के आसरे हो चला है । क्योकि झारखंड में 1 दिसंबर 2019 से 31 मार्च 2020 की किस्त किसी भी किसान को नहीं मिली । जबकि झरखंड में जिन किसानो का सम्मान निधि के लिये रजिस्ट्रशन है , उनकी संख्या 15 लाख से ज्यादा [ 15,09,387 ] है । और इसी तरह मध्यप्रदेश के 54,02,285 किसानो का रजिसट्रशन सम्मान निधि के लिये हुआ है लेकिन चौथी किस्त [ 1-12-2019 से 31-3-2020 ] सिर्फ 85 किसानो को मिली है । महाराष्ट्र में भी करीब 81 लाख [81,67,923 ] किसानो में से 15 लाख [ 15,28,971 ]  किसानो को ये किस्त मिली और यूपी में करीब दो करोड [1,97,80,350 ] किसानो में से करीब 77 लाख किसानो को ये किस्त मिली । दरअसल योजनाओ का एलान कैसे उम्मीद जगाता है और कैसे राजनीति का शिकर हो जाता है । ये खुला खेल अब भारत की राजनीति का अनूठा सच हो चला है । क्योकि ममता बनर्जी ने बंगाल के किसानो की सूची नहीं भेजी तो बगाल के किसी किसान को सम्मान निधि का कोई लाभ नहीं मिला । और बाकि राज्यो में जहा जहा बीजेपी चुनाव हारती गई वहा वहा किसानो को लाभ मिलना बंद होते गया ।
फिर योजनाओ के अक्स तले अगर सिर्फ ग्रामिण भारत या किसानो से जुडे दर्जन भर से ज्यादा योजनाओ को ही परख लें तो आपकी आंखे खुली की खुली रह जायेगी कि आखिर योजनाओ का एलान क्यो किया गया जब वह लागू हो पाने या करा पाने में ही सरकार सक्षम नहीं है । क्योकि 2014-19 के बीच एलान की गई योजनाओ के इस फेरहसित को पहले परख लें । किसान विकास पत्र, साइल हेल्थ कार्ड स्कीम,प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना , प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना , प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना , किसान विकास पत्र , प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना , प्रधानमंत्री ग्रामिण आवास योजना , ग्राम उदय से भारत उदय तक , प्रधानमंत्री ग्रामिण डिजिटल साक्षरता अभियान , प्रधानमंत्री ग्राम परिवहन योजना और इस कडी में अगर उज्जवला योजना और दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर शुरु की गई योजनाओ का जोड कर गांव क हालत को परखेगें तो सरकारी आंकडो का ही सच है कि मनरेगा में मजदूरो की तादाद बढ गई है । क्योकि भारत में पलायन उल्टा हो चला है । शहरो में काम नहीं मिल रही हा तो ग्रामिण भारत दो जून की रोटी के लिये दोबारा अपनी जमीन पर लौट रहा है । फिर खेती की किमत बढ गई है और बाजार में खेती की पुरानी किमत भी नहीं मिल पा रही है । किसान-मजदूर और ग्रामिण महिलाओं की खुदकुशी में बढोतरी हो गई है । यानी कौन सी स्कीम या योजना सफल है या फिर योजनाओ के आसरे कौन सा भारत सुखमय है इसके लिये दिन दयाल उपाध्याय के गांव को भी परख लेना चाहिये । क्योकि उनके नाम पर ग्राम ज्योती योजना , ग्रामिण कोशल्या योजना और श्रमेव जयते योजना का एलान हुआ है । जबकि दीन दयाल जी के गांव नगला चन्द्भान की स्थिति देखर कोई भी चौक पडेगा कि जिनके नाम पर देश के गांव को ठीक करने की योजनाये है उन्ही का गांल बदहाल क्यो है । मथुरा जिले में पडने वाले नंगला चन्द्भान गांव में पीने का साफ पानी नहीं है । हेल्थ सेंटर नहीं ह । स्कूली शिक्षा तक के लिये गांव से बाहर जाना पडता है । तो क्या योजनाओ का एलान सिर्फ उपलब्धियो को एक शक्ल देने के लिये किया जाता है जिससे भविष्य में कोई बडी लकीर खिंचनी ना पडे । और देश का सच योजनाओ के भार तले दब जाये । देश के हालात और योजनाओ की रफ्तार का आंकलन उज्जवला योजना से भी हो सकता है । उच्चवला योजना के तहत लकडी और कोयला  जला कर खाना बनाते गरीहो का शरीर कैसे बिमारियो से ग्रस्त हो जाता है इसकी चिंता जतायी गई । लेकिन सच कही ज्यादा डरावना है ।क्योकि मौजूदा वक्त में उड्डवला योजना के तहत आये 85 फिसदी गरीब दुबारा लकडी और कोयले के घुये में जीने को मजबूर है । और इसकी वजह है कि पहली बार मुफ्त में गैस सिलेंडर मिलने के बाद दुबारा गैस सिलिंडर भरवाने के लिये दो साल में भी रुपये की जुगाड 85 फिसदी गरीब कर नहीं पाये । सरकारी आंकडे यानी पेट्रोलियम व प्रकृतिक गैस मंत्रालय की ही रिपोर्ट बताती है कि देश में उज्जवला योजना के तहत 9 करोड से ज्यादा आये गरीबो ने हर चार महीने में गैस सिलेडर बदला । जबकि सच ये है कि 85 फिसदी ने सिर्लेंडर रिफिलिंग कराया ही नहीं और बाकि 15 फिसदी ने सिलेडर बदला । क्योकि 14 किलोग्राम का गेस सिलेडर पर अगर दो वक्त का खाना बने तो डेढ से दो महीने से ज्यादा वह चल ही नहीं सकता है । और राष्ट्रीय औसत साल भर में 3 सिलिंडर को भरवाने का है । जबकि ओडिसा मद्यप्रदेश और असम या जम्मू कश्मीर में औसत दो ही सिलेडर में साल खपा देने वाली स्थिति रही । यानी हर छह महीने में एक सिलेंडर ।
दरअसल सरकारी योजनाओ का एलान और देश की माली हालत कैसे दो दिशाओ में जा रही है या जा चुकी है उसे भी अब समझने की जरुरत है । क्योकि सवाल सिर्फ ग्रामिण भारत भर का नहीं है । शहर और महानगरो में भी जिस तरह एलान होते है उसे परखने की सोच मीडिया में खत्म हो चुकी है तो नौकरशाही सत्तानुकुल होकर ही बनी रह सकती है ये आवाज बुलंद है । मसलन नये साल के मौके पर बजट से ठीक महीने भर पहले वित्त मंत्री ने नयी योजनाओ के लिये 105 लाख करोड का ऐलान किया । लेकिन ये सवाल किसी ने नहीं पूछा कि इससे पहले जो योजनाये ठप पडी है उन्हे कब कैसे पूरा किया जायेगा । क्योकि दिंसबर 2019 के हालात को परखे तो 13 लाख तीस हजार करोड के पुराने प्रोजक्ट अधूरे पडे है । जिसेमें सरकार के प्रजोक्ट करीब तीन लाख करोड तो प्राइवेट प्रोजेक्ट 10 लाख करोड से ज्यादा के है । और योजनाओ के इस कडी में सबसे बडा सच तो स्वच्छ भारत मिशन का है । जो ये मान चुका है कि भारत पुरी तरह खुले में शौच से मुक्त हो चुका है । चूकि मिशन का अपना आंकडा तो उसने 90 फिसदी सफलता के साथ साथ महाराष्ट्र , आध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश , राजस्थान , तमिलनाडु, गुजरात , उत्तर प्रदेश और झारखंड में 100 फिसदी सफलता दिखा दी । लेकिन नेशनल सैपल सर्वे के मुताबिक महाष्ट्र में 78 फिसदी तो यूपी में 52 फिसदी , झारखंड में 58 फिसदी कतो राजस्थान में 65 और मद्यप्रदेश में 71 फिसदी ही सफलता मिल पायी है । यानी स्वच्छता मिशन भी सरकार की और नेशनल सैपल सर्वे भी सरकार की । लेकिन दोनो में करीब 20 फिसदी का अंतर । और मजेदार बात ये है कि यही बीत फिसदी सफलता बीते पांच बरस में पायी गई । यानी नेशनल सैपल सर्वे की माने तो सरकार ने सिर्फ 10 फिसदी काम पांच साल में किया और स्वच्छा मिशन चलाने वालो के मुताबिक हर बरस उन्हेनो दस फिसदी की सफलता पायी । यानी 40 फिसदी देश में शौचलय बना दिये जो कि 2014 से पहले 58 फिसदी थे । तो योजनाओ के इस खेल में सरकार अपनी उपल्ब्धिया अपने चश्में से देखने की आदि हो चली है और जनता भी वहीं चश्मा पहन लें इसके लिये सत्ताधारी पार्टी के साथ खडे पार्टी सदस्यो की कतार देश भर में सत्ता के शब्द ही चबाने की आदी है । इस कडी में अब स्वयसेवको का भी साथ है और हुकांर भरती मिडिया भी सत्ता के इसी ढोल को सफलता के साथ सुनाने में हिचकती नहीं तो ऐसे में स्वयसत्त या संवैधानिक संस्थानो को संभाले नौकरशाह भी सत्ता की भाषा को अपनाने में देर नहीं करते । तो ऐसे में इसकी त्रासदी कैसे उभरती है ये महाऱाष्ट्र में किसानो की खुदकुशी से समझा जा सकता है । जहा हर दो से तीन घंटे की बीच एक किसान खुदकुशी करता है और ये सिलसिला 2015 से लगातार है । 2015 में 3376 किसानो ने शुदकुशी की तो 2019 में 2815 किसानो ने खुदकुशी की । सिर्फ नवंबर के महीने में 312 किसानो ने खुदकुशी की । और खुदकुशी करने वाले ज्यादातर किसान सम्मान निधि से लेकर फसल बीमा और अन्य किसान योजनाओ से जुडे हुये थे । जिसमें सरकारी फाइलो में कईयो को कर्ज से भी मुक्त कर दिया गया था । लेकिन सच यही है कि जो सरकारी फाइलो में दर्ज है या फिर जो योजनाओ के एलान के साथ किसानो को राहत पहुंचा रहा है उनमें से कुछ भी किसानो तक पहुंच नहीं पाता है । चाहे प्रदानमंत्री कोई भी एलान करें या कोई भी बटन दबाये । 

2 comments:

clearvision said...

Hon'ble Mr. Chief Justice,

Let the Preamble to the Constitution of India start as:

"We the powers of India .........
..............
..............

".
The style of functioning of the Highest Seat of Justice in India prods me to advise the most powerful in judicial hierarchy to get an INTEREST LITIGATION filed. The conscience of the Seat amply litigates the gross irrelevance and highly objectionable start of the Preamble enshrined.

With regards,

Yours respectfully

A Citizen Who Proudly Stands by the Preamble

sabjanta said...

please publish english translations also