आतंक को लेकर सरकार से अलग है युवा मन की परिभाषा
जिस इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक आमिर रजा खान को लेकर गृह मंत्रालय पुणे धमाके में सीधा आरोप लगा रहा है, उसी आमिर के पिता रजा खान सीधे कहते है, “ मेरा बेटा वतन परस्त है, वह वतन से गद्दारी कर ही नहीं सकता। " पूर्वी कोलकत्ता के मफीदुल इस्लाम लेन पर रजा हसन की एकमंजिली इमारत में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे देखने के लिये कोई बैचेन हो, लेकिन चार साल पहले जब उत्तर प्रदेश के कई शहरों से घमाको का सिलसिला शुरु हुआ और देश के नौ शहरों में धमाकों के बाद 13 सितंबर 2007 को दिल्ली में घमाके के बाद इंडियन मुजाहिदीन का मोड्यूल सामने आया तो पहला नाम आमिर रजा खान का ही था।
लेकिन पूर्वी कोलकत्ता के बेनियापुपर इलाके के मफीदुल इस्लाम लेन में इंडियन मुजाहिद्दीन को बनाने वाले आमिर रजा खान से ज्यादा बड़ी बहस आमिर के भाई आसिफ खान को लेकर शुरु हुई। जिसकी मौत गुजरात में नकाउंटर में हुई। चूंकि मौत गुजरात पुलिस की कस्टडी में हुई थी, इसलिये एनकाउंटर की थ्योरी पर सवाल उठे और पहली बार रजा खान ने खुले तौर पर कहा कि जब उनके परिवार ने आजादी की लडाई लड़ी है, तो फिर उनके बेटा आसिफ वतन के खिलाफ कोई पहल कैसे कर सकता है।
यह अलग बात है कि आसिफ के एनकाउंटर पर गुजरात में अब भी सवाल उठे हुये हैं और इस बीच दूसरे बेटे आमिर के तार पुणे धमाकों से जोड़े गये हैं। असल में आसिफ या आमिर के इर्द-गिर्द दर्जनों मुस्लिमों लड़को की मौजूदगी भी कई सवाल खड़ा करती है। इंडियन मुजाहिदीन पर दिल्ली पुलिस की सप्लेमेंटरी चार्जशीट में 35 लड़कों का नाम है, जो फरार हैं। यह चार्जशीट आठ महीने पहले ही दाखिल की गयी है और पुणे ब्लास्ट के बाद अचानक यह सभी फरार मुस्लिम लड़के आतंक के पर्याय माने जा रहे हैं, जिनका ताल्लुक इंडियन मुजाहिद्दीन से कभी भी रहा है।
इस फेरहिस्त में आजमगढ़ से लेकर उड्डपी तक के पते हैं, जहां जहां से लड़के आमिर रजा खान के साथ जुड़े। कोलकत्ता के बेनियापुपर इलाके में मुस्लिमों को टटोलने पर किसी भी सवाल का जबाब आने से पहले सभी तल्खी के साथ एक ही सवाल करते है, "जब मां बच्चे को रोने से पहले दूध तक नहीं पिलाती तो हमारी कौन सुनेगा।" समझना होगा कि बेनियापुपर वहीं इलाका है, जहां सबसे पहले तस्लीमा नसरीन को लेकर आग भड़की थी और उसके बाद तस्लीमा को बंगाल छोड़ना पड़ा था। यहां उठने वाले सवालो का जबाब राजनीतिक तौर पर क्या हो सकता है, यह किसी से छुपा नहीं है। फिर इंडियन मुजाहिद्दीन से जुडे लड़कों का प्रोफाइल बताता है कि कमोवेश सभी उस उम्र में आतंक से जुड़े हैं, जब वह अपने सपनों को साकार करने को दौर में पहुंचे। यानी बेसिक शिक्षा सभी के पास है। कई प्रोफेशनल हैं। कुछ तो अपने क्षेत्र में इतने हुनरमंद है कि उनका प्रयोग जिस दिशा में बढ़ जाये कयामत ढा सकता है।
पुणे का पीर भोय अगर कम्पयूटर हैक कर सकता है तो उड्डपी का शाहरुख विस्फोटक में कैमिकल की थ्योरी को किसी माइनिंग इंजीनियर से ज्यादा जानता है। वहीं इंडियन मुजाहिद्दीन से जुडे यूपी के छह फरार लड़कों का प्रोफाइल देखने से साफ लगता है कि इनमें से कोई ऐसा नहीं है, जिसे रोजगार के जरिये जिन्दगी से जोड़ा न सकें । यही स्थिति ढाई साल पहले सूरत में ब्लास्ट फेल होने पर पकड़े गये लड़कों को देखकर समझी जा सकती है। धमाको की कड़ी में पहली बार अल-कायदा सरीखा धमाका करने का मंसूबा इंडियन मुजाहिद्दीन के लडकों ने बनाया था। लेकिन जिस गाड़ी में आरडीएक्स भरा गया, वह फटा ही नहीं। आतंक के मद्देनजर आल-कायदा का जुनून भी इसी दौर में उसी युवा पीढी में समाया है, जिसे आतंक का नया पाठ यह कह कर बताया जा रहा , "अगर तुम्हारे घर में खिड़की है, तुम्हे आजान की आवाज सुनायी जरुर देगी और अगर उस खिड़की से ताजी हवा भी आये तो वह बोनस होगा। "
यह बोनस पाकिस्तान में अगर इस्लाम के लिये है तो भारत में अपनी पहचान से जोड़ा जा रहा है। पाकिस्तान के सोहेल अब्बास की किताब , " प्रोबिंग द जेहादी माइंडसेट " में उन युवा लडकों का इंटरव्यू है, जो आतंकवादी हिंसा में शामिल होने के लिये घर छोड़ कर निकल गये । कुछ तालिबान के साथ जुडे तो कुछ अल-कायदा के साथ । लेकिन सभी के जेहन में इस्लाम की रक्षा के लिये आतंक का जुनून अमेरिका को लेकर है। यानी जेहाद शब्द यहां नहीं है। यहां आतंक के खिलाफ आतंक का सवाल भी खड़ा किया गया है। मसलन 27 साल के असलम के मुताबिक उसके पिता सेना में थे। जिनकी मौत बार्डर पर हुई। मां ने पढ़ाई-लिखाई जारी रखवायी और साफ-सुथरा रहना सिखाया । असलम के मुताबिक उसने तालिबान को भी समझा और 9/11 से पहले उसका कोई झुकाव अल-कायदा की तरफ नहीं रहा लेकिन जब उसने देखा कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश ने सबसे गरीब देश अफगानिस्तान पर हमला कर दिया से लगा कि मस्जिदों में जो कहा जा रहा है, वह सही है। उसके बाद उसने बंदूक उठा ली। लाल मस्जिद घटना के बाद असलम गिरफ्तार हुआ। असलम आज की तारीख में मानता है कि वह चाहे शहीद ना हो पाया लेकिन वह गाजी जरुर है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हाशिम के साथ भी हुईं। 30 साल के कारपेन्टर हाशिम की शादी कम उम्र में हो गयी। जी-तोड़ मेहनत के बाद भी परिवार के लिये दो-जून की रोटी कमानी मुश्किल होती। एक बार बेटी बीमार पडी तो दवाई खरीदना मुश्किल हो गया। मस्जिद में तकरीर यही सुनी की इस्लाम बचेगा तो ही बेहतर जिन्दगी होगी। बेटी की दवाई की जुगाड़ में जब मस्जिद से निकलते किसी बन्दे ने पांच सौ रुपये हाथ में रख दिये और वह शख्स बिना बोले चला गया, तो हाशिम को यही लगा कि खुदा ने मदद की अब उसे इस्लाम को बचाना है। अमेरिका के खिलाफ बंदूक उठानी है। बस घर में बेटी के लिये दवाई की व्यवस्था कर वह पेशावर से तालिबान के रास्ते चल पड़ा। अब भी उसका यही मानना है कि इस्लाम के लिये वह दुबारा बंदूक उठाने के लिये तैयार है।
किताब प्रेबिंग द जेहादी माइंटसेट में अल-कायदा या तालिबान को लेकर इन युवा आंतकवादियों का क्या मानना है, वह गौरतलब है। इनमें कोई नहीं मानता कि ओसामा बिन लादेन ने 9-11 किया । 65 फीसदी कहते हैं कि हम जानते नहीं। तो 35 फीसदी कहते है बिलकुल नहीं। लादेन के पीछे तालिबान को भी 65 फिसदी सही ठहराते है। और 79.3 फीसदी की राय तो यही है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला इस्लाम को खत्म करने के लिये किया । खास बात यह है कि सिर्फ 31.3 फीसदी ही ऐसे युवा आंतकवादी हैं, जो मानते हैं कि उनका जेहाद इस्लाम को लेकर है। बाकि 68.7 फीसदी सीधे अमेरिकी आतंक का जबाब आतंक से देना चाहते हैं। और इनमें से 10.3 फीसदी तो अब भी मानव बम बनने को तैयार हैं।
जाहिर है यह परिस्थितियां पाकिस्तान के संदर्भ में कह कर टालना कितना जायज होगा, यह समझना चाहिये क्योंकि जिन परिस्थितियों में इंडियन मुजाहिद्दीन के आंतक को लेकर युवा लड़कों का खाका खुद सरकार के पास है, और आमिर रजा खान को लेकर सरकार मान रही है कि उसके तार लश्कर से जुड़े हैं और लश्कर के साथ अल-कायदा खड़ा है। ऐसे में अगर आमिर के पिता रजा खान कहते है कि उनका बेटा वतन परस्त है और अब उन्हें डर है कि अब कहीं पाकिस्तान में उसे मरवा ना दिया जाये तो सवाल सिर्फ इंडियन मुजाहिद्दीन या पुणे घमाके का नहीं है। हकीकत कहीं ज्यादा कटु हो सकती है ।
7 comments:
पुण्य प्रसून बाजपेयी जी हकीकत वाकई कही ज्यादा कटु है ! भाई लोग पहले खुद बच्चो में गैर कौम के लिए नफरत का बीज बोते है और जब वो बीज दानव रूप ले कर उनके बच्चो को ग्रास बनाता है तब ,ऐसे ही बे सर पैर की दलील देते फिरते है !
कहते है मज़हब नहीं सिखाता ..... तो कौन सिखाता है ???
आपकी इस जानकारी से मुझे जो समझ में आता है कि गरीब जनता को धर्म के नाम पर बहलाना सबसे ज्यादा आसान है, और इसी के ज़रिए जिन्हे अपने मतलब साधने होते है वो कर लेते है
मेरा बापू भी कहता है कि उसका बेटा देश का प्रधानमंत्री है.
बहुत बढ़िया लेकिन लम्बी बात। लेकिन शायद आपके पास इस बात का कोई साबुत नहीं होगा की कौन क्या है . agar hai to vistar se de.
पुण्य जी,
असल हकीकत जो है उसे भी समझने की ज़रूरत है। मंथन उसपर भी होना चाहिए कि आखिर किसी एक समुदाय के कुछ लोगों में इतनी आक्रामकता कहां से आ गई। अगर लड़ाई अमेरिका के खिलाफ थी तो सीधे उससे करते। या फिर अमेरिका एक सिंबल भर है। पाकिस्तान में भी स्थितियां बेहद खतरनाक हैं।
दरअसल इस मजहब की सही तकरीरें करने वाले लोग या तो खत्म हो गए हैं या हैं भी तो मौजूदा हालातों को देखकर टूट चुके हैं लगता है। किसी भी धर्म का फैलाव दोस्ती या फिर दुश्मनी के दायरे के साथ हो तो वो खतरनाक हो सकता है। धर्म का प्रचार तो मिशनरीज़ भी करती हैं पर अपने कामों के ज़रिए लोगों की ज़रूरतों का ध्यान रखकर उसे पूरा करने के ज़रिए। हिंदू धर्म भी वसुधैव कुंटुबकम् के आदर्श वाक्य को लेकर चला। हां हिंदू कट्टपंथियों की बात छोड़ दें तो। जहां तक बात इस्लाम की है तो मुझे लगता है इसका इतना क्लोज्ड जेस्चर आज के हालात के लिए ज्य़ादा ज़िम्मेदार है। और दूसरा धर्म को लेकर अतिसंवेदनशील होना भी है। पैगंबर हजरत सलल्लाहु अल्हैवसल्लम ने पतन की ओर जा रहे अरब समाज को बेहतर ज़िंदगी देने के लिए इस धर्म को चलाया था। ईमान को सर्वोपरि बताया था लेकिन धर्म को संकुचित दायरे में समझने वाले लोगों ने सब सत्यानाश कर दिया है। वो चाहे हिंदू धर्म में हो या फिर मुस्लिम धर्म में।
हाँ भाई हम तो गद्दार लोग हैं....काहे की जाँच काहे का शक है......मुसलमान तो वतन परस्त हो ही नहीं सकता......चलो चदा सूली पर सबको.....बढ़िया है भाई
सेकुलर गिरोह के हिसाब से तो अफजल भी निर्दोष है तभी तो उसकी फांसी तीन वर्ष से रोकी हुई है । अबदुल रहमान अंतुले ने तो यहां तक कह दिया था कि मंबी हमला पाकिस्तानियों ने नहीं भारतीयों(उनके शब्दों में हिन्दूओं) ने किया था क्या क्या लिकों वास्तब में आतंकवादी तो वो शांतिप्रय भारतीय हैं जो हत्यारों का विरोध कर रहे हैं उन्हें उसी तरह स,हते रहना चाहिए जिस तरह सैंकड़ों बर्षों से सहते आये हैं।
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