Wednesday, October 6, 2010

कॉमनवेल्‍थ की चकाचौंध की अंधेरी तलछट

जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम में एक हजार रूपये का टिकट लेकर कॉमनवेल्‍थ गेम्स को देखते हुये जो 15 से 18 हजार लोग देश का तिरंगा लहरा कर चकाचौंध से सराबोर थे...अगर उनसे यह कहा जाये कि हो सकता है दस बरस बाद उन्हें ऐसे ही किसी आयोजन से पहले दिल्ली छोड़ने को कहा जाये या फिर गाडियों में ठूंस कर उन्हे भी आयोजन से दूर कर दिया जायेगा तो बहुत हैरत करने की जरुरत नहीं । देश की अर्थव्यवस्था जिस चकाचौंध को बढ़ाकर अपना घेरा सिमटाती जा रही है, उसमें यह सवाल जायज है कि भविष्य में आपकी या हमारी कितनी जरुरत इस चकाचौंध को होगी । चाहे पैंसठ हजार दर्शकों ने नंगी आंखो से कॉमनवेल्‍थ के उद्घाटन को देखा लेकिन किसी ने सवाल किया किया कि दिल्ली के बारह लाख से ज्यादा भिखारी कहां गये।

दिल्ली के प्रगति मैदान की पहचान 1982 के इंडिया इन्टरनेशनल ट्रेड फेयर से जुडी है और प्रगति मैदान के ठीक सामने भैरव मंदिर की पहचान मुगलिया दौर से है । इस भैरव मंदिर से जुड़े हैं तीन हजार भिखारी। जिनके परिवारों को समेट लें तो दस हजार से ज्यादा लोगों की परवरिश यह मंदिर करता है। भैरव मंदिर में साठ से ज्यादा ऐसे अपंग भिखारी भी हैं जिन्हें सोनिया गांधी ने राजीव गांधी या इंदिरा गांधी के जन्मदिन के मौके पर कभी ना कभी विकलांग चेयर भेंट की है। कुछ दूसरे नेता भी हैं जो जननेता बनने की धुन में अपंग भिखारियों को राहत दे कर अपना मान बढाते हैं। चूंकि हर व्हील चेयर पर राजीव गांधी के जन्मदिन या सोनिया गांधी की भेंट का नाम खुदा हुआ है.... तो उनका मान सम्मान कौन नहीं करेगा।

ऐसे में कॉमनवेल्‍थ के शुरू होने के दस दिन पहले से कई खेप में मंदिर के भिखारियों को दिल्ली के बाहर पहुंचाने की पहल शुरु हुई। लेकिन व्हील चेयर को भैरव मंदिर के एक ऐसे हिस्से में रखा गया जहां भक्तों की आवाजाही नहीं होती। भिखारियों को कहा गया कि लौटकर आने पर उनकी संपत्ति उन्हें ज्यों की त्यों दे दी जायेगी। और भिखारियों को ट्रकों में लाद कर भैरव मंदिर की जगह गढ़ मुक्तेश्वर के राम मंदिर के पास यह कहकर छोड़ा गया कि 15 दिन बाद उन्हें वापस दिल्ली के भैरव मंदिर में ले जाया जायेगा। तब तक भगवान बदल लो। मंदिर बदल लो। जगह बदल लो। और भक्तों का रेला तो गढमुक्तेश्वर में हमेशा लगा ही रहता है तो उनकी आमदनी में कोई कमी नही होगी। और वह भूखों इसलिये भी नहीं मरेंगे क्योकि मंदिर की तरफ से लगातार हर दिन खाना बांटा जायेगा।

यूं हर दोपहर और शाम में गढमुक्तेश्ववर में राममंदिर और जैन समाज की तरफ से वैसे भी खाना बंटता ही है। लेकिन अचानक भिखारियों की तादाद में तीन गुना वृद्धि से गढमुक्ततेश्वर भरा-भरा सा लगने ला है। जगह, भगवान और मंदिर बदला है तो गोरखपुर को 17 साल पहले छोड़कर दिल्ली के भैरव मंदिर पहुंचे रामानुज अब इसे भी भगवान की ही लीला मानते हैं। क्योंकि गढमुक्तेश्‍वर पहुंच कर उन्हे 17 साल बाद गंगा स्नान का मौका मिला। लेकिन बुदेलखंड के कृष्णानंद महाराज का मानना है कि गांव में जमीन परती हुई है। वहां सरकारी बाबू ने कागजी कार्रवाई कर प्रभावशाली लोगों का साथ देकर उनकी जमीन हड़पी तो 9 साल पहले कमाई के लिये दिल्ली पहुंचे। लेकिन, पिछले पांच साल से भैरव मंदिर ही ठिकाना है। लेकिन, पहली बार है कि कोई जगह चमक रही है तो उन्हें वहां से भगाया जा रहा है।

क्योंकि इससे पहले उन्होने सिर्फ गरीबी और भूखों मरने के हालात आने पर ही लोगों को गांव छोड़ते देखा। असल में कृष्णानंद महाराज का असली नाम कृष्णा है और समूचे परिवार के साथ भैरव मंदिर के किनारे की सडक पर रहते हुये ही अपनी बीबी और बच्चों को भी जिस तरह पुरानी दिल्ली में ठेला खींचने से लेकर पटरी दुकान में मदद के लिये लगाया और खुद भैरव मंदिर की परिसर की दीवार से सटी झोपड़ी बनायी उसी वजह से उनके नाम के आगे महाराज जुड गया। लेकिन 27 सितंबर की रात उन्हें ट्रक पर लाद कर गढमुक्तेश्वर यह कह कर लाया गया कि 15 अक्तूबर के बाद उन्हें वापस उसी जगह छोड़ दिया जायेगा। बच्चे-बीबी छोड़कर कृष्णा इसीलिये गढमुक्तेश्वर आ गया कि क्योंकि भैरव मंदिर उससे ना छिने। और ट्रक पर लादकर लाने वालों ने वचन भी दिया है कि जो जहां रह रहा था उसे वहीं छोड़ेंगे और कोई दूसरा इस बीच कब्जा नहीं करेगा।

गढमुक्तेश्वर में गंगा किनारे सीढियों पर पांव से अपंग अधलेटे मालवीय के मुताबिक भैरव मंदिर के बाहर कोई भी रुपया कम देता नहीं और यहां कोई भी रुपया से ज्यादा देता नहीं। यहां चवन्नी -अठन्नी तो ठीक दस पैसे भी दान देने वाले देते हैं और भिखारी लेते हैं। जबकि दिल्ली में रूपये से कम की कोई वेल्यू नहीं है। मालवीय मध्यप्रदेश के अपने गांव से चार साल पहले ही आये। पुरानी दिल्ली में रेलवे लाइन पर गिरने से पांव कटा। उसके बाद पहचान वालो ने लोधी रोड के सांईं मंदिर के बाहर छोड़ा। दो साल पहले जब राजीव गांधी के जन्मदिन के मौके पर एक नेता ने व्हील चेयर बांटी तो उसका नंबर भी आ गया। और पिछले डेढ़ साल से वह भैरव मंदिर में ही टिका है।

बारहवीं पास मालवीय रोजगार की तलाश में दिल्ली पहुंचा और अब अपना असली नाम-घर कुछ भी बताने में इसलिये हिचकिचाता है कि बूढे मां-बाप का वही श्रवण कुमार था और अंतिम वक्त में जब मां-बाप को यह जानकारी मिलेगी तो उन पर क्या बीतेगी।
डबडबायी आंखो से मालवीय को डर यही है कि कहीं वह लोग धोखा ना दे दें जो यह कहकर छोड़ गये हैं कि 15 दिन बाद वापस ले जायेंगे, क्‍योंकि उसकी व्हील चेयर तो भैरव मंदिर में ही पड़ी है, जिस पर उसका नाम भी लिखा है। कॉमनवेल्‍थ की चकाचौंध की एवज में कमोवेश दिल्ली के हर मंदिर के बाहर हाथ फैलाये लोग अगले 15 दिन दिखायी नहीं देंगे। जाहिर है दिल्ली पहली बार खूबसूरत,हसीन और व्यवस्थित लग रही है। लेकिन इसकी एवज में सवाल सिर्फ भिखारियों का नहीं है। स्कूल, कॉलेज से लेकर हर वह संस्‍थान बंद है जहां से कमाई नहीं होती। यानी दुकान, माल-प्रतिष्ठान को छोड़ दें तो दिल्ली में किसी की जरूरत नहीं। लाखों की तादाद में मिडिल क्लास परिवार समेत दिल्ली छोड़ घूमने-फिरने निकल चुका है।

बड़ी तादाद में छात्र शिक्षा-दीक्षा छोड़ कॉमनवेल्‍थ की छतरी तले लगायी दुकानो में कमाई करने में जुटे हैं। दिहाड़ी से लेकर एकमुश्त रकम पढ़ाई के बीच राहत देगी। और इसी दौर में कॉमनवेल्‍थ को सफल बनाने के लिये पुल से लेकर स्टेडियम तक बनाने में जुटे सवा लाख से ज्यादा कस्ट्रक्शन मजदूरों को पेंमट कर दिल्ली छुड़वायी जा चुकी है। कोई हरियाणा, तो कोई यूपी, तो कोई राजस्थान और पंजाब का रास्ता नाप रहा है। जो दिल्ली में हैं और उनकी जुबान पर अगर कॉमनवेल्‍थ की चकाचौंध नहीं है, तो फिर मखमल में टाट के पैंबद सरीखे ही है। क्योंकि पुलिस से लेकर सेना और प्रधानमंत्री से लेकर मुखयमंत्री तक मान चुके है कि कॉमनवेल्‍थ ही देश की नाक है जो कटनी नहीं चाहिये । और इसीलिये पहली बार दिल्ली में सिर्फ चकाचौंध भरे बाजार और रोशनी से नहायी इमारतें ही बची हैं। ऐसे में अगर आप गा नहीं सकते कि खेलो....बढो...जीतो तो फिर दिल्ली में क्या कर रहे हैं। इस बार भिखारी निकाले गये हैं अगली बार घेरा बड़ा होगा इसलिये एक हजार का टिकट खरीदने वाले या तो हैसियत 25 से 50 हजार की करें अन्यथा दस बरस बाद निकाले जाने के लिये वह भी तैयार रहें।

14 comments:

Tausif Hindustani said...

अगर कोई भी व्यक्ति आपका लेख पढ़ ले तो सब कुछ उसके समझ में आ जायेगा
आपके इस लेख को सलाम
एक बार यहाँ भी पधारें
dabirnews.blogspot.com

सम्वेदना के स्वर said...

प्रसून भाई! बहुत भारी लगा यह सब पढना!

कम्बख्त चैनल वालों ने इसे लेकर कोई शोर नही मचाया..यह खबर कितने पैसे में खा गये होंगे वो, बड़े भिखारी??

यही कसर रह गयी थी सो वो भी पूरी हुई, भला खेल हुआ इन बड़े लोगों का।

bharat said...

Bilkul man se banai hui kahani "lagti" hai aptki report.

Aashu said...

टीवी पत्रकारिता के लिए आज का काल कतई स्वर्ण काल नहीं है. आज सब के सब टीवी के इन पत्रकारों को गरियाने में लगे हैं. मैं भी उनमे से एक हूँ. ऐसे समय में भी कुछ टीवी पत्रकार हैं जिनके लिए मन में इज्ज़त है. आपका यह लेख पढ़कर उस लिस्ट में से भारी मन से आपका नाम काटना पड़ रहा है. मन से कुछ अपशब्द भी निकल रहे हैं आपके लिए मगर संयम बरत रहा हूँ. वाजपेयी जी, अगर सरकार ने इन भिखारियों को दिल्ली से बाहर न किया होता तो मुझे कोई शक नहीं कि आपके ही चैनल पर आप खुद ये रिपोर्ट पेश कर रहे होते कि ये भिखमंगे करेंगे सैलानियों का स्वागत. आप कुछ ऐसे लोगों में है जो हर बात पर सरकार की आलोचना करने से नहीं कतराते. अरे कभी सकारात्मक पहलुओं पर भी ध्यान दीजिये हुज़ूर!!!

दीपक बाबा said...

दद्दा, एक बात आपने रिपोर्ट में उल्लेखित नहीं की, या तो आपको मालूम नहीं या फिर इतनी बड़ी बात नहीं थी.

पिछले ५ महीनो से दिल्ली के उद्योगिक क्षेत्रों में अफवाह थी कि १ से १५ तारिख तक सभी फैक्ट्री बंद रहेंगी. थ्री फेस कि पावर नहीं मिलेगी .... वगैरा वगैरा...... कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिला. कई भले मानसों ने तो लेबर का हिसाब कर के घर भेज दिया. कई जगह लेबर ने पहले ही घर जाने का प्रोग्राम बना लिया........ यानि कि १ तरीक से सरकार के तरफ से ना होते हुवे भी फैक्ट्री का चक्का जाम है.
रोड सुनी है ..... काम नहीं है.

अगर किसी के पास आर्डर है भी तो ट्रांसपोर्ट नहीं है कागज कि दुलाई के लिए.

ये मायूसी का वातावरण सरकार ने तैयार किया है अपनी "नाक" बचाने के लिए. देश की तो कटवा दी.

बेहतर होता .... यदि भिखारिओं कि जगह दिल्ली के एक एक उद्योगिक कलस्टर को ट्रकों में भर कर कहीं दिल्ली से दूर भेज देते.

दीपक बाबा said...

फक्टोर्यों में एक मजाक होता था

"भाई १५ दिन कहाँ जायेंगे"

अरे घबराने कि कोई बात नहीं, सरकार सभी कारीगरों को गोवा भेज रही है. खाना-रहना और दारू मुफ्त.

और मालिक लोग क्या करेंगे....

अरे भाई उनका स्तर थोडा ऊँचा है अत: उनको बेंगकोक भेजा जाएगा.

prabhatdixit said...

bahut achcha evam umda lekh.mein apke blog ko niyamit roop se nahi pad pata hoo,lekin ye post achchi lagi.aajkal khabro aur blogs mein bhi manoranjan dhondha jata hai,isliye sayad mein bhi ravish kumar ka blog padta rehta hoo,wo bhi achcha likhate hai leki nispaksha hone ke fitur mein aksar ek-paksiy ho jate hai.

aapka anklan bahut hi sookshm evam tarkik hota hai,jai ho.achcha hai....

falsafa said...

aashu g bilkul sahi kah rahe hain. agar bhikhariyon ko nahi hataya jata to tv pe yahi dikhaya jata ki ye videshi sailaniyon ka swagat karenge. are bhai, sarkar ne unhe kuch dino k liye hataya he to hai, khadede to nahe hai na. 15 din bad vapas usi jagah pahuchane ke b to aswasan diya hai.

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी बाते जायज हैं, पर भावना से व्‍यवस्‍‍थाऐ नही चलती, अगर इस सोच से जीया जाऐ तो उत्‍साह तो मर ही जाऐगा, और न ही देश में कोई त्‍योहार मनाया जा सकेगा,लगता हैं आपकी शीला जी से सेटिग नही जम सा रही हैं .....सतीश कुमार चौहान भिलाई

Shishir singh said...

क्या भारत उस सुपरनोवा तारे के समान हो गया है। जो धीरे-धीरे ब्लैकहोल बनने की तरफ बढ़ रहा है।

Meghana said...

Bahut Badiyaa!

Meghana
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निर्मला कपिला said...

प्रसून जी आपकी बातों मे दम है मगर सतीश जी और आशू जी की बात भी सही है। धन्यवाद। मैं ये तो नही कहती कि शीला जी से जम नही रही लेकिन आपकी सोच एक तरफा है। धन्यवाद।

Sarita Chaturvedi said...

AASHU JI , YE TO KAHANA MUSKIL HAI KI AAPKI NAJAR ME ACHHE PATRKAR KE MAYNE KYA HAI..KISI NE KAB KAHA KI KISI KO AAP ACHHA KAHE AUR KISNE SALAH DI KI AAP NAM KAT DE. MAF KIJIYEGA, AISA KUCHH BHI NAHI LIKHA GAYA HAI, JISKI WAJAH SE AAPNE YE TIPADI KI HAI. KAHNA NAHI CHAHIYE PAR AAP UNHI LOGO ME SHAMIL HAI JINHE SACH SE NAFRAT HAI. WAQT KI KAMI HAI, ISI WAJAH SE JYADA KAH NAHI SAKTE PAR AIK BAAT JAROOR KAHEGE KI AAPKE JITNE BHI APSHABD HAI UNHE KISI ACHHI JAGAH PRYOG KARIYE. SHABDO KI DUNIA ME AACHARNHINTA KE LIYE KOI JAGAH NAHI HAI.

prakashmehta said...

to bihar chale jayenge apne desh kya darna