Wednesday, October 27, 2010

गांधी से गांधी परिवार का फर्क

करीब दस करोड़ रुपये की रैली में सवा लाख लोगो का जुगाड कोई सस्ता सौदा नहीं है। वह भी ऐसी जगह जिसकी पहचान लंगोटी और चरखा कात कर खादी बनाते हाथ हो। जहां सवा लाख से ज्यादा किसान सिर्फ दो जून की रोटी ना जुगाड़ पाने की जद्दोजहद में खुदकुशी करने पर आमादा हों। और बीते 10 साल में नौ हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर भी चुके हों। ऐसी जगह दो दर्जन से ज्यादा अरबपति और एक हजार से ज्यादा करोडपति अगर जुटे तो फिर रैली के लिये दस करोड रुपये का खर्चा कहने पर शर्म ही महसूस हो सकती है। और यह सब बातें अगर गांधी के वर्धाग्राम में गांधी परिवार की रैली को लेकर बात हो रही हों तो शर्म जरूर आ सकती है। कांग्रेस के सवा सौ बरस पूरे होने पर 15 अक्टूबर को वर्धा में जो नजारा नजर आया उसमें राहुल गांधी के उन सवालो का जवाब छिपा था जिसे वह लगातार यह कहकर देश नाप रहे है कि देश के भीतर बनते दो देश को कैसे पाटा जा सकता है और राजनीति में युवा आयें तो फिर राजनीति से बेहतर कोई माध्यम है नहीं कि इस विषमता को दूर करने का।

पहला भारत वर्धा में मौजूद है जहां की प्रति व्यक्ति आय सालाना 18 से 20 हजार रुपये है। यानी महीने का डेढ हजार। लेकिन, सरकारी आंकड़ा यह भी बताता है वर्धा में साठ फीसदी ग्रामीण गरीबी की रेखा से नीचे हैं। कुल 32 फीसदी लोग बीपीएल में हैं। और यहां नरेगा से भी बडा काम या कहें रोजगार अपनी जमीन को किसी बिल्डर या उद्योगपति के हवाले कर कंस्ट्रक्शन मजदूरी करना है। खेती के लिये बीज और खाद से सस्ता और सुलभ सीमेंट और लोहा है। वर्धा शहर में सिर्फ 18 दुकानें बीज खाद की हैं मगर सीमेंट-लोहे की छड़ या कंस्ट्रक्शन मैटेरियल की नब्बे से ज्यादा दुकानें यहां चल रही हैं। खासकर बीते तीन साल में यहां जब से थर्मल पावर प्रोजेक्ट का काम शुरु हुआ है तब से खेतीहर किसानों के मजदूर में बदलने की रफ्तार में 20 फीसदी की तेजी आ गयी है। पहले वर्धा के बारबडी गांव की जमीन को यूजीसीएल ने सौदेबाजी में हड़पा। फिर दुकान-मकान का खेल इसके अगल-बगल के छह गांव को निगल रहा है।

करीब साढ़े सात सौ किसानों ने अपनी जमीन सरकारी बाबूओं के कहने पर बेच डाली की अब यहां खेती हो नहीं सकती। यह अलग मसला है कि कभी राजीव गांधी ने वर्धा के ही भू-गांव में यह कह कर स्टील प्लांट लगने नहीं दिया था कि वर्धा बापू की पहचान है और यहां खेती नष्ट की नहीं जा सकती। इसलिये कंक्रीट की इजाजत नहीं दी जायेगी। उसी का असर है कि बापू कुटिया हैरिटेज साइट बन गया। और नरसिंह राव के दौर तक में किसी कंपनी की हिम्मत नहीं हुई कि वह वर्धा में उद्योग लगाने की सोचे जिससे खेती नष्ट हो या फिर वहां के पर्यावरण पर असर पड़े।

लेकिन दूसरे भारत का आधुनिक नजारा सोनिया गांधी की रैली में तब नजर आया जब बीस लाख से सवा करोड की गाडि़यां वर्धा में दौड़ती दिखीं और मंच से सोनिया गांधी ने ऐलान किया कि उनकी सरकार भूख से लडने के लिये तैयार है। लिवोजीन से लेकर उच्च कवालिटी वाली मर्सिडिज और स्पोर्ट्स कार से लेकर दुनिया की जो भी बेहतरीन गाड़ी कोई भी सोच सकता है वह सभी गाडियां 15 अक्टूबर को वर्धा पहुंचीं। दर्जनों अरबपति और हजारों करोडपति कांग्रेसी नेता-कार्यकर्ताओं की फौज जो विदर्भ की है वह सभी एकजूट हो जाये तो देश की चकाचौंध कितनी निखर सकती है इसका खुला नजारा नागपुर से वर्धा की सड़क पर नजर आ रहा है। लेकिन वर्धा का नाम सेवाग्राम भी है और रैली झंडा यात्रा थी तो अरबपति दत्ता मेधे हो या फिर करोडपति शैला पाटिल। और इन सब के बीच में हजारों कांग्रेसी करोडपति कार्यकर्ता।

करीब दो से चार किलोमीटर सभी पैदल चले। यह देश के लिये कुछ सेवा करने का कांग्रेसी जज्बा था। कुछ करोडपति कार्यकर्ता तो जनता के बीच भी बैठे। संयोग से यह भी खबर बनी और करोडपति कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के अखबारों में यह छपवाने में भी कोताही नहीं बरती कि वह दो किलोमीटर चरखा छपा तिंरगा लेकर चले। लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि नागपुर से वर्धा का 70 किलोमिटर का रास्ता चय करने के लिये उन्होने मुबंई, नासिक, पुणे,औरगाबंद से लेकर हर जिले से अपनी अपनी गाडि़यां पहले ही नागपुर हवाई अड्डे पर लगवा ली थी। और महाराष्ट्र सरकार का पूरा कांग्रेसी मंत्रिमंडल ही उस दिन नागपुर से वर्धा के बीच सोनिया गांधी को सलामी देने जुटा जिसमें राज्य सरकार का खजाना किताना खाली हुआ इसका ना कोई हिसाब है और नाही किसी ने कैमरे के सामने इसकी उस तरह गुफ्तगु की जैसी रैली के लिये दस करोड जुगाडने की गुफ्त-गु प्रदेश अध्यक्ष मणिकराव ठाकरे और नागपुर के कांग्रेसी नेता सतीश चतुर्वेदी ने हल्के अंदाज में कर ली।

लेकिन इस दो भारत से इतर भी एक तीसरे भारत की तस्वीर भी उभरी। जब देश के रक्षा राज्य मंत्री पल्लमराजू अचानक बिना कार्यक्रम नागपुर पहुंचे और नागपुर के सोनेगांव वायुसेना स्टेशन से लेकर अम्बाझरी के आयुध फैक्ट्री में इस बिना पर घुम आये कि जिस वायुसेना के जहाज को लेकर वह दिल्ली से नागपुर पहुंचे उसकी उपयोगिता कुछ दिखायी जा सके। यानी किसी सरकारी बाबू की तरह सरकारी वाहन का इस्तेमाल कर फाइल भरने सरीखा काम ही रक्षा राज्य मंत्री पल्लमराजू ने किया। असल में वायुसेना का विमान देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को लेकर दिल्ली से नागपुर पहुंचा था तो आरोपों से बचने के लिये रक्षा राज्य मंत्री भी नागपुर चल पडे। और नागपुर के रक्षा विभाग में जहां-जहां वह पहुंचे वहां अधिकारी कम और कुर्सियां ही ज्यादा थी। सोनिया ने पौने दो घंटे वर्धा में बिताये तो रक्षा राज्य मंत्री ने कुर्सियों के साथ बैठक और नागपुर शहर में कार से सफर में पौने दो घंटे बिताये। सोनिया वर्धा से नागपुर लौटीं और वापस वायुसेना के विमान में सवार होकर दिल्ली लौट आयीं।

यानी किसान-मजदूर पर भारी नेता-मंत्री और उसपर भारी केन्द्र सरकार -सोनिया गांधी। इस तीन भारत में किस से कौन सा सवाल ऐसा किया जा सकता है जिसमें यह लगे कि कोई तो है जो इन दूरियों को पाटने की हैसियत रखता है। या फिर तीन भारत की इमारत ही जब ऊपर से शुरू होती है तो फिर नीचे के किसान-मजदूर सेवाग्राम में जाकर बापू के सामने क्या कहते होगें। क्योकि वर्धा पहुंच कर सबसे पहले सोनिया गांधी भी बापू कुटिया ही गई थी, जहां उन्होंने चरखा कातते बापू भक्तों को देखा। बापू को याद किया। मिट्टी और घास-फूस से बने बापू कुटिया के दर्शन किये। उन तस्वीरों को देखा जो 1936 से 1943 तक सेवाग्राम में रहते हुये बापू काम किया करते थे। आत्याधुनिक हवाई गाडियों पर सवार कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने माना कि दस करोड रुपये में झंडा रैली सफल हुई क्योंकि बापू से कांग्रेस को जोडकर इससे बेहतर याद करने का कोई तरीका हो ही नहीं सकता है। सेवाग्राम के किसान मजदूर भी गांधी परिवार की शख्सियत सोनिया गांधी को देखकर तर गये क्योकि उन्होने माना कि बापू कुटिया में लिखी बापू की उस टिपप्णी को भी सोनिया गांधी ने जरुर पढा होगा जहां लिखा है , देश को असली आजादी तभी मिलेगी जब किसान का पेट भरा होगा और देश स्वाबलंबी होगा।

11 comments:

honesty project democracy said...

खेती के लिये बीज और खाद से सस्ता और सुलभ सीमेंट और लोहा है...

शर्म से डूब मरना चाहिए सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के कांग्रेस की सरकार को ...व्यवस्था सड़ चुकी है ऐसे बेशर्मों की वजह से ...ऐसे लोगों को अगर कोई सुरक्षा गार्ड गोली से भून देता है तो निश्चय ही वो सुरक्षा गार्ड हर घर में भगवान की जगह आरती उतारने के योग्य है .... अब तो देशभक्त सुरक्षा गार्डों का ही सहारा है गंदगी की सफाई और इस देश के गद्दारों की सफाई में ...न्यायपालिका तो ऐसे देश के लूटेरों और गद्दारों के सामने घुटने टेक चुकी है ...

ABHISHEK MISHRA said...

यथार्थ की वास्तविक प्रस्तुति ,

Hindi Me said...

"देश को असली आजादी तभी मिलेगी जब किसान का पेट भरा होगा और देश स्वाबलंबी होगा|"

बहुत अफ़सोस कि बात है कि आज हिंदुस्तान का हर नेता जो हिंदुस्तान को खुशहाल और समृद्ध बनाने का दावा करता है ,गरीबी को खत्म करने कि गारंटी देता है,वो गाँधी जी के इन दो लाईनों को भूल गया है|
और ये सच भी है कि अगर हमें अपने देश को खुशाल बनाना है तो सब से पहले किसानो का पेट भरना पड़ेगा उनकी जिंदगी को आसान बनाना होगा |अगर हमारे देश के किसान गरीबी और भुखमरी में अपनी जिंदगी गुजारेंगे तो हमारा देश कभी वो नहीं बन सकता है जिसका सपना इस देश को आज़ाद करने वालो ने देखि थी |

Tausif Hindustani said...

सबसे पहले इस भ्रष्ट नेताओं , और , सरकारी बाबुओं का विनाश करना चाहिए, सब कुछ अपने आप ठीक होने लगेगा , तभी हम एक स्वाभिमान और खुशहाल भारत का निर्माण कर सकते हैं
dabirnews.blogspot.com

अनुनाद सिंह said...

चलिये अच्छा हुआ कि आपने भी "नकली गांधी" को पहचान ही लिया। ये नकली परिवार भारत के भविष्य के लिये खतरा है। इसका महिमामंडन गुलामी की पूजा है।

अजित गुप्ता का कोना said...

गांधीजी की कुटिया देखकर भी इन नकली गांधियों को अक्‍ल आ जाए तो भारत का भाग्‍य ही बदल जाए। लेकिन नकली लोग जो सत्ता पर काबिज होने के लिए ही बने हैं, अक्‍ल से क्‍या काम? गाँधी ने मिट्टी से बनी कुटिया में रहकर एक क्रांन्ति का सूत्रपात कर दिया और ये करोड़ों डकार कर भी उस किसान को भूखा मार रहे हैं जो हम सबका पेट भरता हैं।

सम्वेदना के स्वर said...

"लोकतंत्र का अपहरण हो चुका है!"

इस खबर को और कितने दिन छिपा के रखेंगे आप मीडिया वाले?

amitesh said...

गांधी आज होते तो अपना उपनाम वापस लेने के लिए उपवास करते. क्या हम सबको ऐसा नहीं करना चाहिए?

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी अच्‍छा विवरण दिया आपने , पर ये कोई अनोखा तो है नही चलताउ राजनीति का ही हिस्‍सा हैं ,आपसे जैसी सयाने किस्‍म के लोग भी इसी के मजे लूट रहे है,ये बात अलग हैं कि सुनहरी कलम में काली स्‍याही की विचारधारा द्वारा उडेली जा रही हैं खैर हमारे राज्‍य की उत्‍सवधर्मी सरकार भी राजोत्‍सव मना रही हैं सलमान खान मुख्‍य अतिथि मुख्‍यमंत्री,राज्‍यपाल और तीन सायो के मुख्‍यमंत्री के सामने उदघाटन में मुन्‍नी बदनाम हुई के ठुमके लग रहे थे इस दौरान एक आदमी तो खुली पडी इलेक्ट्रिक वायरिंग में उलझ कर मर गया कार्यक्रम स्‍‍थल पर ही मर गया .......आपकी बात पर ब्‍लागिग की रम्‍मअदायगी के तहत् बधाई सतीश कुमार चौहान भिलाई

bajpai said...

सर बिल्कुल सत्य लिखा है आपने आजकल तो दिखाऊ राजनीति ही हो रही है नेता रैली कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। रैली में भीड़ इक्ठठा करने का बाकायदा ठेका दिया जाता है। नेताओं के लिए गरीब किस काम के उनका बस यही इस्तेमाल है भीड़ इक्ठठा करें और नेताओं के झूठी बातों की आस में वोट डाल दें। किसानों गरीबों की परेशानी से किसे मतलब है। वर्धा की असलियत बयां करने के लिए आपका धन्यवाद। विवेक वाजपेयी टीवी पत्रकार

बी. एन. शुक्ल said...

देश की यही तो विडम्बना है। ये लुच्चे नेता सिर्फ अपना पेट भरने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकते है। मनमोहन सिंह शर्म क्यों करे ये तो रबर स्टाम्प है असली प्रधान मंत्री तो सोनिया गाँधी है, जिन्हे इस देश से क्या लगाव, क्या इन्होने देश को देखा है? हम भारतीय भी कम नही है गोरी चमड़ी के आगे नतमस्तक होना हमारे खून में रच बस गया है।