28 फरवरी 2002 को दोपहर में संघ के दिल्ली मुख्यालय झंडेवालान में यूं ही टहलते हुये यह सोच कर पहुंचा कि आज तो सिर्फ बजट ही छाया रहेगा और जरा आरएसएस के मूड को देखा जाये। क्योंकि एक दिन पहले ही गोधरा कांड से समूचा देश हिला हुआ था। हालांकि सुबह 8 बजे ही गुजरात से हिंसा की खबरे आने लगी थी और दोपहर साढ़े बारह बजे तक तीन लोगों की मौत की खबर आ चुकी थी। तब संघ हेडक्वार्टर का लोहे का दरवाजा खुला रहता था। कोई सुरक्षाकर्मी भी नहीं बैठता था। सीधे एम जी वैघ के कमरे में पहुंचा। गोधरा की क्या खबर है। मुझे देखते ही वैघ जी ने सवाल किया। बिना जवाब दिये मैंने सवाल किया- आपकी तरफ से गोधरा कांड पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। मेरे इस सवाल पर उन्होंने फिर पूछा लेकिन गुजरात की खबर क्या है। छिट-पुट हिंसा की खबर है। दो-तीन लोगो के मरने की भी खबरें आ रही हैं। अच्छा...कहते हुये अचानक वैघ जी खडे हुये और बोले आओ सरसंघचालक जी से मिलवाता हूं...यही हैं।
पहली मंजिल पर एकदम बायीं तरफ के कमरे के बाहर ही सरसंघचालक सुदर्शन जी मिल गये। वैघ जी ने मेरा परिचय कराते हुये कहा गोधरा से भी खबरें आ रही हैं। क्या खबर है....जी गुजरात के अलग-अलग हिस्सों से छिट-पुट हिंसा की खबरें आ रही हैं। और....। और कुछ नहीं बजट का दिन है तो गुजरात की खबरें भी काफी कम हैं। लेकिन और क्या खबर आयी है। गुजरात के अलग अलग हिस्सों से आगजनी की तस्वीरे ही आयी हैं। दो या तीन लोगों के मरने की भी खबरे हैं। तीन ही मरे हैं...अभी इंतजार कीजिये । कुछ देर बाद हमारी प्रेस रिलीज जारी होगी । बजट की खबर ज्यादा चलेंगी नहीं। क्यों? आज का दिन तो बजट समीक्षा में ही जाता है। फिर हर घर की रसोई भी तो बजट से जुडी होती हैं। लेकिन गोधरा से तो राम मंदिर और जिन्दगी दोनों जुड़ी थी। प्रतिक्रिया तो होगी ही । साइंस तो पढा है न आपने। बजट नहीं गुजरात दिखाने की जरुरत है। उसके बाद सुदर्शन जी अपने कमरे में चले गये।
मैं वैघ जी के साथ उनके कमरे में चला आया। जहां प्रेस रिलीज की हाथ से लिखी कॉपी पड़ी थी। वैघ जी ने यह कहते हे प्रेस रिलीज की कापी मुझे पढ़वा दी कि मै एक घंटे बाद खबर चलवाऊं। मैंने भी आफिस जाने की जगह सड़क पर ही एक घंटा गुजारा और उसके बाद आफिस फोन कर संघ की प्रतिक्रिया देने के लिये फोन-इन लेने को कहा। आफिस वालों ने भी तुरंत लाइन एंकर को जोड़ते हुये कहा कि गुजरात की हिंसा में दस लोगो की मौत हो चुकी है और रिपोर्टर बता रहा है कि बड़े बुरे हालात हैं। फोन-इन में मैंने जैसे ही कहा आरएसएस का रुख गोधरा पर खासा कड़ा है और उसने विभाजन के बाद गोधरा हत्याकांड को सबसे जघन्य बताते हुये लोगो से संयम बनाने को कहा है। जाहिर था उसके बाद न्यूज चैनल की हेडलाइन बदलनी थी...सो बदली । और कहा गया, " संघ ने गोधरा कांड को विभाजन के बाद का सबसे जघन्य हत्याकांड करार दिया। स्वयंसेवको से की संयम बरतने की अपील।" यूं भी संघ की उस प्रेस रिलीज में जितना गुस्सा गोधरा कांड को लेकर जताया गया था। उसकी हर अगली लाईन में ठीक उसी प्रकार विरोध करते हुये संयम बरतने की सलाह स्वयंसेवको को दी गयी थी जैसे 11 नवंबर 2010 को कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्दिेवेदी ने सुदर्शन के बयान पर काग्रेसी कार्यकर्त्ताओ को संयम में रहते हुये विरोध करने का ऐलान किया था।
2002 के संघ के संयम का असर यही हुआ कि गुजरात से एक ऐसा नरेन्द्र मोदी निकला, जिसके आगे प्रधानमंत्री का राजधर्म भी काफूर हो गया। और देश ने हिन्दुत्व की एक ऐसी प्रयोगशाला देखी, जिससे बाहर निकलने के लिये भाजपा आज भी कसमसा रही है। वहीं सुदर्शन के सोनिया गांधी पर चोट करने पर कांग्रेस के संयम भरे विरोध का असर भी यही हुआ कि कानून का राज काग्रेसियो के सोनिया प्रेम के आगे नतमस्तक हुआ। पंजाब से पोरबंदर तक और मुंबई से मणिपुर-अरुणाचल प्रदेश तक वही कानून राज अपाहिज लगा, जिसकी एक धारा उसी तरह सुदर्शन जेल पहुंचा सकती है जैसे 2002 में गोधरा कांड के दोषियों और उसके बाद "संयम" में रहे स्वयंसेवको को जेल में ठूंस कर गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनने से रोका जा सकता था।
असल में एमजी वैघ 28 फरवरी 2002 में भी संघ की प्रेस रिलिज जारी करते हुये समझ रहे थे कि संयम भरे विरोध का मतलब क्या होता है और 13 नबंबर 2010 को जब उन्होने नागपुर में कहा कि सुदर्शन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिये सोनिया गांधी को मानहानि का मामला दर्ज करना चाहिये। तो भी वह समझ रहे हैं कि सोनियामय कांग्रेसियों के संयम भरे विरोध-प्रदर्शन का असर संघ के सामाजिक शुद्दीकरण पर कितना विपरीत पड़ रहा है। लेकिन यहा सवाल एमजी वैघ या जनार्दन दिवेदी का नहीं है । बल्कि 2002 में अगर सुदर्शन को गोधरा के जरिये ध्वस्त होते संघ को समेटने या हिन्दुत्व की उस धारा का जगाने का फार्मूला मिलता हुआ नजर आ रहा था, जिसका जिक्र उन्होने संघ का सरसंघचालक बनने के बाद 2000 में अपने पहले भाषण में ही कहा था , "...जबतक हिन्दू संगठित नहीं होते , तबतक वे अपनी आत्मरक्षा करने में भी सक्षम नहीं होंगे। इसलिये पहले हिन्दुओ को संगठित, बल संपन्न और सामर्थ्य संपन्न होना चाहिये। तभी भारत हिन्दु राष्ट्र बन सकता है ।.....और इस्लाम के मूल में तो राष्ट्रीयता की अवधारणा भी नहीं है।" तो 2010 में सोनिया गांधी को भी चकाचौंध अर्थव्यवस्था से समाज में बढते फासले और गरीबी,महंगाई से आम आदमी के लिये कांग्रेस के टूटते हाथ के साथ साथ अयोध्या फैसले से मुस्लिमों में पैदा हुये काग्रेस के साफ्ट हिन्दुत्व के सवाल का जवाब भी सुदर्शन चक्र के विरोध के फार्मूले में ही नजर आ रहा है।
इसलिये बड़ा सवाल यह नहीं है कि काग्रेस का संघ पर हमला कबतक चलेगा या फिर संघ पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में सरकार आगे बढेगी या नहीं। बड़ा सवाल यह है कि क्या देश में मनमोहनइक्नामिक्स तले चकाचौंघ की अर्थव्यवस्था और उसकी छांव में विकास का खेल अब अपनी उम्र पूरी कर चुका है। जहां राजनीति को एक बार फिर ऐसी प्रयोगशालाएं चाहिये, जहां संघ मौतों की संख्या गिने और हिन्दु राष्ट्र का नारा लगाये और कांग्रेस देश भर में सांप्रदायिकता का सवाल खडा कर विरोध आगजनी में देश को झोंक कर सेक्यूलरइज्म का ऐसा झंडा बुंलद करे, जिसकी छांव में डरा हुआ मुस्लिम हिन्दुओं से गाढ़ी छांव पा ले।
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Tuesday, November 16, 2010
2002 और 2010 यानी सुदर्शन बनाम सोनिया
Posted by Punya Prasun Bajpai at 12:16 PM
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संघ बनाम सोनिया
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12 comments:
ANTIM LINE PAR AITRAZ HAI..
यनी की दोनों ओर से जनता की नहीं वोट की राजनीति की जा रही है पर संघ को ही कटघरे मे क्यों खरा किया जाता है.
जो आप कहना चाह रहें है प्रसून जी, वो आपकी जुमलाबाजी में खो गया।
जबर्दस्ती बैलैंस करके चलने वाली पत्रकारिता का यही हश्र होगा।
कभी खुल कर कहना भी चाहिये!कभी कोई स्टैंड भी लेना चाहिये!
आपकी संयमित भाषा का कायल हूँ कि आप अपनी लेखनी और वाणी में अन्य हुआँ-हुआँ टाइप पत्रकारों से बिल्कुल अलग हैं, लेकिन साथ ही "सम्वेदना के स्वर" की टिप्पणी से भी पूर्णतः सहमत हूँ ।
एक लेख अरुंधति और सोनिया पर भी लिखें।
काँग्रेस का चरित्र तो और खुल के सामने आ गया की वह व्यक्ति और परिवारवादी संगठन है। उन्हे देश और देशद्रोही बयानो के खिलाफ कुछ नहीं कहना ।
प्रसून जी ,बदजुबानी पर अपनी दो टूक राय देने के बजाय समस्या के केन्द्रियकरण से हट कर आप एंकर की जुबान में सन्तुलन बनाने की बाते कर रहे है,मेरा मानना हैं ब्लागिंग के लिऐ प्रायोजक तो केवल विचारधारा ही होती हैं,मनमोहन की इकानामिक्स को अलग से गरियाऐ तब ही आप सुर्दशन संघ का साथ ले लीजिऐगा किसे एतराज होगा और अगर आप ......
दरअसल मीडियापरस्ती के दौर में बदजुबानी राजनैतिक महत्वकांक्षा का ही नमूना है, जिसके लिऐ लगभग हर राजनैतिक दल ने पौव्वा ,पैसे और पुडी का पटटा गले में बांध कुछ ऐसे लागो को भी पाल कर रखा हैं जो सडको में उतर कर अपने स्वामीभक्त होने का परिचय देकर मिल रही सहूलियते को बढाने के लिऐ हमेशा तैयार रहते हैं,पर इन सबका खामियाजा भुगतना पडता हैं आम आदमी को,वह भी बेचारा क्या करे, अपने तमाम अधिकार को वोट नामक अस्त्र मानकर प्रजातंत्र अर्थात भीडतंत्र के लकवाग्रस्त शरीर से संभालने के चक्कर में खुद लडखडा रहा हैं
पर यहां ये भी समझ से परे हैं कि चाल ,चरित्र और चेहरे की बात कहकर हिन्दुतत्व की मलाई चाटने वाले यह संगठन को एक महिला से इतना भय क्यो लगता हैं ,और फिर इस संगठन का देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनाधार कितना हैं जो हम आप या मीडिया इनको इतना महत्व दे, अगर मीडिया इनसे कैमरा मोड दे तो सब दुबक हो जाऐगे तमाम गाल बजाने वालो को दाने के लाले पड जाऐगे पर मीडिया भी बेबस हैं समाचार बनायेगा नही तो खाऐगा क्या ..... ?
सतीश कुमार चौहान खुर्सीपार भिलाई
प्रसून जी, क्या सुदर्शन जी ने सोनिया गाँधी का मुद्दा पहली बार उठाया है?
उस से पहले किसी ने भी ये मुद्दा नहीं उठाया?
आज अंतर्जाल पर सोनिया गाँधी के कथित 'देशप्रेम'पर काफी सामग्री उपलब्ध है?
तो फिर सुदर्शन के ही ब्यान पर हाहाकार क्यों ?
कुछ नही कहूँगा कोई, टिप्पणी नही दूँगा, टिप्पणी देने से कोई फायदा होगा क्या?
संघ का चेहरा केवल उन्हीं से छुपा है जो अपने पूर्वाग्रहों के चलते और कुछ देखना नहीं चाहते ! आज़ादी से पहले और बाद कई ऐसे वाकये हुए हैं जिनसे साबित होता है कि 'देशभक्तों'का असली 'मिशन' क्या है ?
कल (20 नवम्बर को)एक खबर को छिपाने के चक्कर में भारतीय मीडिया की असमायिक मौत हो गयी। आप अंतेष्टी में जा रहे हैं क्या?
यहा पर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारेमे कुछ नही लिखा गया. आप लिखे.
सोरी सर, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में मेने आपकी वो बेशकिंमती पोस्ट http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2010/05/blog-post.html यहा पर पढी थी. आपका क्षमा प्रार्थी हुं.
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