Friday, September 23, 2011

रालेगण की हवा में घुमड़ने लगी है राजनीतिक बदलाव की बेचैनी

मैं पंजाब के कपूरथला से आया हूं। मैं रिटायर हो चुका हूं। सेना में था। दो बेटियां हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। मुझे पेंशन मिलती है। रिटायर होने के बाद जो पैसा मिला वह मेरे बैंक में है। अब मैं अपनी सारी पूंजी आपको देना चाहता हूं। मेरी पेंशन भी। बस मैं आपके कहने पर आपके साथ काम करना चाहता हूं। आप जहां कहेंगे वहां तैनात हो जाऊंगा। देखिये मैं लिखकर भी लाया हूं, समाज को कैसे भ्रष्टाचार से मुक्त कर दें। यह मेरी पत्नी है। जो जानती है कि समाजसेवा के काम के लिये मैं आधा पागल हूं। बस आप मुझे बता दो कहा काम करना है। कैसे काम करना है।

.....आधा पागल होने से काम नहीं चलेगा । इसमें पूरा पागल होना होगा। जो ठान लेना है, तो उसे पूरा करना है। लेकिन ईमानदारी से। सदाचार छोडना नहीं है । निष्कलंक जीवन रखना है।

...आप जो कहोगे वही करेंगे।

यह बातचीत रालेगण सिद्दि में अन्ना हजारे से मिलने आने वाले सैकडों लोगों में से एक की है। 15 गुना 15 फीट के कमरे के बीचोबीच लोहे के सिगल बेड पर एक मोटी सी बिछी तोसक के उपर सफेद चादर पर आलथी-पालथी मार कर बैठे अन्ना हजारे। सफेद धोती, सफेद कुर्ता और सर पर सफेद गांधी टोपी। और पलंग के नीचे जमीन पर घुटनों के बल पर बैठे पंजाब से आये इस शख्स के दोनों हाथ अन्ना हजारे के पांव के पास ही हाथ जोडे पड़े रहे। अपनी सारी बात कहते वक्त भी इस शख्स ने अपना सिर तक उठा कर अन्ना को नहीं देखा। रामलीला मैदान से हुकांर भर सरकार को घुटनो के बल लाने वाले अन्ना हजारे के सामने इस तरह संघर्ष में साथ खडे होने के इस दृश्य ने एक साथ कई सवाल खड़े किये। क्योंकि 12 सितंबर की दोपहर जब मैं दिल्ली से रालेगण सिद्दि के लिये रवाना हुआ तो दिमाग में जनलोकपाल के लागू हो पाने या ना हो पाने की उन परिस्थितियों के सवाल थे, जिन पर उन्हीं सांसदो की मुहर भी लगनी है, जिनके खिलाफ जांच की कार्रवाई जनलोकपाल बनते ही शुरु होंगे।

लेकिन शाम को जब रालेगण सिद्दि पहुंचकर अन्ना हजारे से मिलने कमरे में पहुंचा और दस-बारह लोगों से घिरे अन्ना हजारे के संघर्ष में शामिल लोगों की इस गुहार को सुना तो पहली बार लगा कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की जो परिभाषा जनलोकपाल के जरीये दिल्ली में गढ़ी जा रही है, दरअसल रालेगण सिद्दि में वही भ्रष्टाचार का सवाल लोगों के जीवन से जुड़कर समाज के तौर तरीके बदलने पर आमादा है। या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम ने हर उस सवाल को झटके में जगा दिया है, जिसने भागती-दौड़ती जिन्दगी में जीने की जद्दोजहद तले हर वस्तु की कीमत लगा दी है। और ज्यादा कीमत लगाकर ज्यादा पुख्ता मान्यता पाने की सोच में ज्यादा कमाने का चक्रव्यूह ही व्यवस्था बन चुकी है।

जीने की यह होड़ ही दिल्ली में विकसित होते समाज का मंत्र है। लेकिन रालेगण सिद्दि में इसी मंत्र के खिलाफ अन्ना हजारे एक ऐसे प्रतीक बन चुके हैं, जहां बनारस के गोपाल राय को होटल मैनेजमेंट करने के बाद भी अन्ना के साथ खड़ा होना ज्यादा बड़ा काम लग रहा है और आस्ट्रेलिया से उत्तराखंड के एनआरआई अपना सारा धंधा समेटकर अब उत्तराखंड के गांवों में जाकर अन्ना के सपनों को वहां की जमीन पर उतारने की बैचेनी लिये रालेगण सिद्दि में ही रालेगण सिद्दि की ही युवा टोली के साथ डेरा जमाये हुये हैं। अन्ना के कमरे में अपनी बारी आने पर एनआरआई अशोक भी अन्ना से नजर नहीं मिलाता बल्कि उनके पलंग के बगल में खडा होकर बाकि खड़े लोगों की तरफ देखकर जब यह कहना शुरु करता है कि अन्ना हजारे के संघर्ष में लहराते तिरंगे ने वह काम कर दिया जो उसके मां-बाप नहीं कर सके।

मां-बाप चाहते थे अशोक आस्ट्रेलिया छोड़ भारत लौट आये लेकिन कमाने की घुन ने उसे वही बांधे रखा। लेकिन अन्ना के आंदोलन ने देश को जगाया तो वह भी अपने देश लौट आया। अन्ना भावुक हो जाते हैं। लेकिन अशोक अपनी बात रहने से रुकता नहीं है। उसे पता है हर दिन सैकड़ों लोग अन्ना से मिलने पहुंच रहे हैं तो फिर मौका ना मिले। अशोक बताता है कि अन्ना के गांव रालेगण सिद्दि में ही उसने युवाओ की टोली बनायी है। कई दिनो से गांव में घूमकर हर चीज का बारीकी से अध्ययन किया है। और वह अन्ना से इस बात की इजाजत चाहता है कि रालेगण सिद्दि के युवाओं को साथ ले जाकर वह उत्तराखंड के गांवों का वातावरण भी बदले। गांव को स्वावलंबी बनाये । रालेगण सिद्दि की तरह ही कोई गांव ना छोड़े इस मंत्र को रालेगण के युवाओ के आसरे ही बिखेरे। पैसे की कोई चिंता अन्ना आपको नहीं करनी है। मेरे पास सबकुछ है । बस मैं भी आपकी खिंची लीक पर चलकर आदर्श गांव बनाना चाहता हूं। क्योंकि हर सरकार तो यही पाठ पढ़ा रही है कि जितने ज्यादा गांव शहर में बदलेंगे उतना ही देश का विकास होगा।

लेकिन शहरों का क्या हाल है यह तो रालेगण सिद्दि से बाहर जाते ही पता चल जाता है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा शहरी गरीब लोग है। अब अन्ना आप इजाजत दें तो गांव बनाने के लिये यहा के लड़कों के साथ निकलूं। कुछ दिन और रुक कर गांव देख लो। सिर्फ पैसे के आधार पर जो तुम्हारे साथ खड़ा हो उससे गांव का निर्माण नहीं होगा। बल्कि गांव की ताकत गांव में ही होती है। इसलिये पहले गांव को समझो फिर निकलना। यानी हर मिलने वाले के सामने देश को सहेजने के सवाल और उस पर अन्ना का गुरु मंत्र। तो क्या जंतर-मंतर से रामलीला मैदान ने संघर्ष को चाहे आंदोलन में बदला लेकिन रामलीला मैदान की आहट अब रालेगण सिद्दि में कोई नया इतिहास रचने की दिशा में बढ़ रहा है। या फिर जनलोकपाल का सवाल व्यवस्था सुधार का महज एक पेंच भर है। तो क्या दिल्ली में अन्ना के आंदोलन की आहट से सकपकायी सरकार के भीतर भ्रष्टाचार को लेकर जो सियासी सवाल खड़े हो रहे है और भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की दिशा में सरकार अब पहल करना चाह रही है उसके उलट रालेगण सिद्दि में अब यह सवाल खड़ा होने लगे है कि लड़ाई तो जीतने के लिये लड़नी होगी। और उन हाथों में आंदोलन की कमाई नहीं थमाई जा सकती जो चुनावी बिसात पर अपना धाटा-मुनाफा टटोल कर भ्रष्ट्राचार से भी दोस्ती-दुश्मनी दिखाते हैं।

यानी दिल्ली में चाहे अन्ना टीम जनलोकपाल को कानून की शक्ल में लाने की जद्दोजहद कर रही है और सरकारी मुलाकातों के दौर में बिसात यही बिछ रही हो कि जनलोकपाल लाने पर कांग्रेस को कितना फायदा होगा या सरकार की छवि कितनी सुधरेगी या फिर बीजेपी आडवाणी के रथयात्रा से कितना लाभ उठा पायेगी। लेकिन रालेगण सिद्दि का रास्ता जनलोकपाल को पीछे छोड राजनीतिक शुद्दिकरण की दिशा में आगे बढ़ चला है। जहां हर दिन अन्ना के दरवाजे पर दस्तक देते सैकड़ों लोग उन मुश्किलों से जुझने के लिये खुद को तैयार कर रहे हैं, जहां दिल्ली की समझ विकास मान बैठी है। किसान मुआवजे की कितनी रकम पर भी खेती की जमीन देना नहीं चाहता। उसे अन्ना से राहत मिलती है क्योंकि रालेगण सिद्दि में खेती और किसान ही जीवन है। अन्ना यह कहने से नहीं चूकते की भारत तो कृषि प्रधान देश है। नोट बांटकर जमीन हड़पने का वह विरोध करेंगे।

किसानों को लगता है कि अन्ना हजारे की अगली लड़ाई उन्हीं के लिये होगी। देश हाथों में तिरंगा लेकर वैसे ही शहर दर शहर जमा हो जायेगा जैसे जनलोकपाल को लेकर खड़ा हुआ। गरीब-मजदूर से लेकर छात्र और युवाओं की टोलियां भी रालेगण सिद्दि यह सोच कर पहुंच रही है कि उनके सवालों पर भी तिरंगा लहराया जा सकता है अगर अन्ना हजारे पहल करें। वह स्कूल, पीने का पानी, स्वस्थ्य सेवा से लेकर सरकार की नीतियों को लागू करने में भी अंडगा डालते नेता और बाबूओं की टोली के खिलाफ सीधे संघर्ष का ऐलान करें तो सरकार पटरी पर दौड़ने लगेगी। सैकडों हाथ तो अन्ना के सामने सिर्फ इसलिये जुड़े हैं कि अन्ना हजारे को संघर्ष से रुकना नहीं है।

रोटी-रोजगार कुछ भी नहीं चाहिये लेकिन देश की हालत जो सत्ताधारियों ने बना दी है और लूट-खसोट का राज जिस तरह चल रहा है, उसमें अन्ना अगुवाई करें तो सैकडों हाथ पीछे चल पडेंगे। असल में रालेगण सिद्दि का सबसे बडा एहसास यही है कि हर दिन सैकडो नये नये चेहरो के लिये अन्ना हजारे एक ऐसा प्रतीक बन गये हैं, जहां दिल्ली की सत्ता भी छोटी लगती है। भरोसा इस बात को लेकर है कि अन्ना का रास्ता सौदेबाजी में गुम नहीं होगा। अन्ना का साथ उस सियासी बिसात को डिगा देगा जहां लाखों लोगों को अलग अलग कर प्यादा बना दिया गया है। अन्ना का संघर्ष इस अहसास को जगा देगा कि देश का मतलब यहां के लोग। यहां की जमीन है। यहां की खनिज संपदा। यहां के सरोकार हैं। इसलिये पहली बार अन्ना के दरवाजे पर दस्तक देने वालो में छत्तीसगढ और उड़ीसा के वह किसान-आदिवासी भी हैं, जहां की जमीन खनन के लिये कॉरपोरेट हाथो को सरकार ने विकास का नाम लेकर बांट दी। छत्तीसगढ के जिस दल्ली-राजहरा के इलाके में शंकरगुहा नियागी ने अस्सी के दशक में लंबा संघर्ष किया और वामपंथी पार्टियो ने ट्रेड-यूनियनो के जरीये मजदूरो के सवाल उठाये, वहां के मजदूर और किसान भी रालेगण सिद्दि में अन्ना की चौखट पर यह कहते हुये दस्तक देते दिखे कि संघर्ष रुकना नहीं चाहिये। वहीं बिहार के उन पचास पार उम्र के लोगो की आवाजाही भी खूब है, जिन्होंने जेपी आंदोलन के लिये अपना सबकुछ छोड़ दिया अब वह अन्ना के सामने नतमस्तक होकर यह कहते हुये अपने अनुभव की पोटली खोल रहे है कि जेपी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेकिन जेपी के बाद सत्ता की होड में सभी भ्रष्ट हो गये। जो नेता निकले वह भी भ्रष्टाचार में ही अबतक गोते लगा रहे हैं। अन्ना उन्हें भी सीख देते हैं, हारना नहीं है। जो भ्रष्ट हैं, उनके खिलाफ तो देश अब जाग रहा है। युवा शक्ति समझ रही है। इसलिये अब संघर्ष थमेगा नहीं। और अन्ना जेपी के दौर के निराश लोगों से भी कहते हैं मै बेदाग हूं। निषकंलक होना ही इस आंदोलन की ताकत है। आप सब अपनी अपनी जगह खड़े हो जाईये। रास्ता जनसंसद से ही निकलेगा। और संसद में बैठे सांसद खुद को जिस तरह मालिक माने बैठे हैं इन्हें सेवक की तरह काम करना ही होगा। नही तो देश अब सोयेगा नहीं। अन्ना के साथ घंटों बैठने का एहसास और रालेगण सिद्दि में ही पूरा दिन पूरी रात गुजारने के बाद जब दिल्ली के लिये रवाना हुआ तो पहली बार लगा कि दिल्ली में जनलोकपाल को लागू कराने के लिये अन्ना टीम के सदस्य जिस तरह सरकार से बातचीत कर रहे है इससे इतर अन्ना की सोच एक नयी विजन के साथ अब देश में बदलाव के लिये आंदोलन की एक नयी जमीन बनाने की दिशा में बढ़ रही है। और आने वाले दौर में अन्ना का सफर रालेगण सिद्दि से निकलकर कहा जायेगा यह अन्ना टीम को भी शायद तबतक समझ में ना आये जबतक वह जनलोकपाल बिल के तकनीकी दायरे से बाहर ना निकले।

हालांकि अन्ना की रालेगण सिद्दि की समझ का असर दिल्ली में बैठी अन्ना टीम पर भी हो रहा है और प्रशांत भूषण सरीखे अल्ट्रा लेफ्ट भी संघ परिवार का सवाल उछालने पर यह कहने से नहीं चूकते कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में आरएसएस अगर पहल कर रहा है तो इसमें गलत क्या है। सही मायने में अन्ना हजारे की सामाजिक-आर्थिक समझ के कैनवास में जो राजनीतिक ककहरा अब अन्ना टीम के पढ़-लिखे लोग सीख रहे हैं, वह आने वाले वक्त में आंदोलन के मुद्दो को लेकर एक नयी दिशा में जा सरके हैं। और अगर अन्ना टीम का ट्रांसफॉरमोरशन हुआ तो समझना यह भी होगा कि जो सवाल रालेगण सिद्दि में आज उठ रहे हैं, उसके दायरे में दिल्ली भी आयेगी। क्योंकि अन्ना टीम का मतलब आधुनिक एनजीओ से जुड़े पढ़े-लिखे युवाओ की टोली भी है। बाबूगिरि छोड़ आंदोलन में कूदे केजरीवाल सरीखे पूर्व नौकरशाह भी है और पुलिसिया ठसक से व्यवस्था को अनुशासन में बांधने का पाठ पढ चुकी किरण बेदी हैं। यानी जिस दौर में शहर की चकाचौंध गांव को निगल लेने पर आमादा हैं, उस दौर में शहर ही अगर गांव की राजनीतिक पाठशाला तले संसदीय सत्ता को बदलने निकला तो यह रास्ता जायेगा कहा यह तो कोई नहीं कह सकता लेकिन रालेगण सिद्दि से उठते सवाल इसी रास्ते पर जाने की बैचेनी लिये हुये है, अब इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता।

4 comments:

anoop joshi said...

Sir,
Agar RSS desh bhakti ki baat karti hai to isme burayi kya hai.

haan agar kasab bharat ki desh bhakti ki baat kare to tajub hona chaiye..

DeepkeDeep said...

jis terha se appne ies sare andolan ko parbhashit kiya hai usse yuva varg ko ek sahi jankari mili hai ki andolan ki taqat kaya ho sakti hai.app ka vishleshan steek aur purvagarh se achhuta hai jiski ajj ki paterkarita ko jarurat hai . app ki baton main sabhi ko jayad bharosa hai.

Sorabh Chadha said...

Sir,
i am regular fan of your blog. I must admire your depth knowledge in Indian Politics.Please do write something on JP ...want to know abt another Anna ...

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी,पैजामे पर कच्‍छा पहन कर हर समस्‍या का हल निकालने की बात करने वाले स्‍पाईडरमैन और अन्‍ना के लोकपाल में कोई खास अन्‍तर नही लगता,दरअसल प्रशासनिक व्यवस्थाओं में तमाम कमियां होती हैं, उन्हें दूर करने के अनवरत प्रयास के बजाय व्यवस्था से ही मुहं मोड़ लें या कोसना केवल हवाबाजी या मीडियाई तर्क ही हैं,व्यवस्था हमसे कोई अलग चीज़ नहीं होती, जो हम हैं वही व्यवस्था है.क्‍योकी अन्‍ना के आन्‍दोलन मं भी टीवी पर लगातार बहसें होती रहीं, उन बहसों में मात्र एक पक्ष को प्रकट किया गया, दूसरे पक्ष या संतुलित बात कहने वालों को डपटा गया.या रिकार्डिग ही उडा दी गई, जिसने इस आंदोलन को बेमतलब या उद्देश्यहीन बताने की कोशिश की उसे स्वयं में भ्रष्ट, चोर और गलत किस्म का आदमी कहा गया. आदमी के पास सबसे बड़ी आवाज़ मीडिया ही होती है पर जब मीडिया खुद ही पार्टी या विपक्ष बन जाए,तो भगवान ही मालिक हैं ...