Thursday, June 12, 2014

पीएम पद की ताकत से टकरा रहा है प्रचारक का आदर्शवाद

आजादी के बाद पहली बार प्रचारक का आदर्शवाद प्रधानमंत्री की ताकत से टकरा रहा है। देखना यही होगा कि प्रचारक का राष्ट्वाद प्रधानमंत्री की ताकत के सामने घुटने टेकता है या फिर प्रधानमंत्री की ताकत का इस्तेमाल प्रचारक के राष्ट्रवाद को ही लागू कराने की दिशा में बढता है । नेहरु के दौर से राजनीति को देकते आये संघ के एक सक्रिय बुजुर्ग स्वयंसेवक की यह राय यह समझने के लिये काफी है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसद में दिया गया पहला भाषण राजनीतिज्ञो को लफ्फाजी और आरएसएस को अच्छा लगा होगा। संघ के भीतर इस सच को लेकर उत्साह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचारक के संघर्ष और समझ के कवच को उतारा नहीं है । और यह भी गजब का संयोग है कि संघ का कोई भी प्रचारक जब किसी भी क्षेत्र में काम के लिये भेजा जाता है तो वह उस क्षेत्र में पहली और आखरी आवाज होता है । और मौजूदा सरकार की अगुवाई कर रहे नरेन्द्र मोदी को भी जनादेश ऐसा मिला है कि प्रधानमंत्री मोदी के शब्द पहले और आखरी होंगे ही। शायद इसीलिये राज्यों को भी राष्ट्रवाद का पाठ प्रधानमंत्री मोदी ने पढाया और संसद में बैठे दागी सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का रास्ता भी खोलने की खुला जिक्र किया । जाहिर है राजनीतिक विज्ञान का कोई छात्र हो या कोई छुटभैया नेता या फिर बड़ा राजनेता, हर किसी को लग सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी संसद में सियासत को नयी परिभाषा से गढ़ना चाह रहे हो या फिर राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीतिक मिजाज को ही बदलने पर उतारु हो।

लेकिन संघ के स्वयंसेवक मान रहे हैं कि पहली बार देश को समझने का सही नजरिया संसद भवन से प्रधानमंत्री रख रहे हैं। और इसमें कोई लाग लपेट नहीं है कि बीजेपी के दागी सांसदों के खिलाफ अगर कानूनी कार्रवाई हो जाये मौजूदा वक्त बीजेपी अल्पमत में आ जायेगी। क्योंकि 16 वीं लोकसभा में 186 सांसद दागी है जिसमें सिर्फ बीजेपी के 98 सांसद दागी हैं। और दूसरे नंबर पर बीजेपी की सहयोगी शिवसेना के 15 सांसद दागी हैं। बीजेपी की मुश्किल तो यह भी है कि 98 सांसदों में से 66 सासंदो के खिलाफ गंभीर किस्म के अपराध दर्ज है। बावजूद इसके राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने साल भर के भीतर दागियों के मामले निपटाने का जिक्र किया। तो हर जहन में यही सवाल उठा कि क्या मोदी सरकार यह कदम उठायेगी। वहीं संघ के बुजुर्ग स्वयंसेवकों की मानें तो असल में सवाल सिर्फ कदम उठाने का नहीं है। सवाल संसद की साख को लौटाने का भी है। क्योंकि सांसदों के खिलाफ जिस तरह के मामले दर्ज है उसमें हत्या का आरोप,हत्या के प्रयास का आरोप,अपहरण का अरोप,चोरी -डकैती का आरोप, सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप,महिलाओं के खिलाफ अपराध का आरोप यानी ऐसे आरोप सांसदों के खिलाफ है जो सिर्फ राजनीतिक तौर पर लगाये गये हो या राजनीतिक तौर पर सत्ताधारियो ने आरोप लगाकर राजनेताओ को फांसा हो ऐसा भी हर मामले में नही हो सकता। और जनादेश की ताकत जब नरेन्द्र मोदी को मिली है तो फिर इससे अच्छा मौका मिल नहीं सकता।

खास बात यह भी है कि आरएसएस इस नजरिये को भी सामाजिक शुद्दिकरण के दायरे में देखता है। मोहल्ले मोहल्ले एक बार फिर हर सुबह संघ की शाखा दिल्ली-एनसीआर ही नहीं देश के तमाम शहरों में लगनी शुरु हुई है और खास बात यह है कि पहली बार प्रधानमंत्री के आदर्श होने की परिस्थितियों को नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से जोड़कर ना सिर्फ देखा जा रहा है बल्कि शाखाओं में यह चर्चा भी आम है कि प्रचारक का संघर्ष कैसे देश की तकदीर बदल सकता है इसके लिये मोदी सरकार के कामकाज को देखे। राजनीतिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार के लिये यह पहला और शायद सबसे बडा एसिड टेस्ट होगा कि वह दागी सांसदों के मामले के लिये सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तुरंत कार्रवाई शुरु करें। सुप्रीम कोर्ट की पहल इसलिये क्योंकि दागी सांसदों को लेकर मामले निपटाने का पत्र कानून मंत्रालय को महीने भर पहले ही मिला था । लेकिन बड़ी बात यह है कि 1993 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा कमेटी की रिपोर्ट को ही जब तमाम प्रधानमंत्रियों ने कारपेट तले दबा दिया और मनमोहन सरकार के दौर में दागी सांसदों के जिक्र भर से ही मान लिया गया कि सरकार गिर जायेगी । तो फिर नरेन्द्र मोदी ने कार्रावाई का निर्णय बतौर प्रचारक लिया है या फिर जनादेश ने उन्हे निर्णय लेने की ताकत दी है। हो जो भी लेकिन संघ के स्वयंसेवकों में अब प्रचारको का रुतबा बढ़ा है। और अर्से बाद प्रचारक किस सादगी के साथ संघर्ष करते हुये देश के लिये जीता है, इसकी चर्चा शाखाओ में खुले तौर पर होने लगी है। यूं भी मौजूदा वक्त में संघ के करीब साढे चार हजार प्रचारक देश भर में हैं। सबसे ज्यादा वनवासी कल्याण क्षेत्र में लगे है क्योंकि वहां सवाल शिक्षा, धर्म सस्कृंति और घर वापसी यानी ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को वापस हिन्दु बनाने का है। ध्यान दें तो राष्ट्रपति के अभिभाषण में वनबंधु कार्यक्रम का जिक्र भी था। फिर संघ में प्रचारक ही होता है जिसका जीवन सामाजिक दान से चलता है। यानी गुरु पूर्णिमा के दिन स्वयंसेवकों के दान से जमा होने वाली पूंजी में से प्रचारकों को हर महीने व्यय पत्रक दिया जाता है। और चूंकि नरेन्द्र मोदी बतौर प्रचारक हर संघर्ष या कहे हर सादगी को जी चूके है तो तमाम राजनीतिक दल ही नहीं उनके अपने मंत्रियो को यह अजीबोगरीब लग सकता है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री ने संपत्ति का ब्यौरा देने को कहा है। क्यों परिजनो की नियुक्ति ना करने को कहा है।

सच यह भी है कि बीजेपी को सांगठनिक तौर पर अब भी आरएसएस ही चलाती है। करीब चालीस प्रचारक बीजेपी में हैं। एक वक्त नानजी देशमुख थे तो एक वक्त गोविन्दाचार्य रहे। लेकिन अभी रामलाल हों या
रामप्यारे पांडे। ह्रदयनाथ सिंह , सौदान सिंह, वी सतीश , कप्तान सिंह सोलंकी, राकेश जैन, अजय जमुआर,सुरेश भट्ट जैसे प्रचारकों के नाम को हर कोई जानता है लेकिन बीजेपी में दर्जनो प्रचारक ऐसे हैं, जिनका नाम कोई नहीं जानता लेकिन सांगठनिक मंत्री के तौर पर सभी काम कर रहे हैं। और आज भी चाय पीने तक के खर्चे को व्यय पत्रक के तौर पर जमा कराते हैं। और उन्हें पैसे मिलते हैं। और इसे नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री भी बाखूबी समझते हैं। इसलिये सैफुद्दीन सौज सरीखे कांग्रेस या तमाम विपक्षी दलो के नेता जब यह कहते हैं कि सत्ता में बीजेपी नहीं मोदी आये है और तो फिर समझना यह भी होगा कि आरएसएस ने गडकरी को बीजेपी अध्यक्ष बनाते वक्त ही मान लिया था कि बीजेपी का कांग्रेसीकरण हो रहा है, जिसे रोकना जरुरी है। और नरेन्द्र मोदी के पीछे खड़े होकर आरएसएस ने साफ संकेत दे दिये कि राजनीति को लेकर उसका नजरिया पारंपरिक राजनीति वाला तो कतई नहीं है। और प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले भाषण में ही नरेन्द्र मोदी ने भी संकेत दे दिये कि प्रधानमंत्री पद की ताकत ने उन्हें इतना मदहोश नहीं किया है कि वह संघ के सामाजिक शुद्दिकरण और राष्ट्रीयता के भाव को ही भूल जायें। इसीलिये बुजुर्ग स्वयंसेवक यह कहने से नहीं कतरा रहे हैं कि पहली बार प्रचारक का आदर्शवाद और प्रधानमंत्री पद की ताकत टकरा रही है।

12 comments:

Unknown said...

Adhbhut lekh bahut Kuch saaf karta hai aapka ye lekh.

Unknown said...

Salaam apko......kamaal ka vishleshan

Unknown said...

Pichle...panch baras m apne patrkaariy jeewan jitna aapko jana utna sayad kisi ko nhi ...sangh aur bjp ke riston kii aisi parakha apko nagpur me rhne aur prabhaas ji ke saath kam karne se hii mili..sayad...

Anonymous said...

जनाब बाजपेयी जी, देश संघ के मुताबिक नहीं बल्कि संविधान से चलता है। येही बात मोदी भी कई बार कह चुके हैं....लेकिन आप हो की बस संघ-संघ की रट लगा कर बैठे हो। प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय संघ का एजेंडा चला था क्या? और हाँ याद रखो की महाराजा पृथ्वीराज चौहान के लगभग 1000 साल बाद हिन्दू राष्ट्रवादियों की सत्ता दिल्ली में पूर्ण बहुमत से आई है...इसलिए थोडा तो उन स्वयंसेवकों को भी खुश हो लेने दो।

Awaaz said...

लोकसभा में मोदी का भाषण निस्चित तौर पर बेहद अलग था. विज्ञान ओर तकनीकी के समबेश से कसा भाषण में मोदी का एक नया रूप ही सामने आया है. पर सबसे बड़ा सवाल आरएसएस को लेकर जो बना हुआ है, उसे खारिज नही किया जा सकता, क्या आरएसएस
का ही एजेंडा मोदी सामने रख रहे है या मोदी अपनी एक नई पहचान कि और बढ़ रहे है. आरएसएस को लेकर सबसे बड़ा सवाल उस मॉडल का है जिसका अभी तक का एजेंडा हिन्दुत्व के ही इद्र- गिर्द ही रहा है. यह जरूरी है कि सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में एक मॉडल को लेकर चलना मुस्किल है, लेकिन ये भी देखना होगा कि, अन्य सभी मॉडल भी देश में कोई विसेस परिवर्तन नही ला पयेन है.

सतीश कुमार चौहान said...
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सतीश कुमार चौहान said...
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सतीश कुमार चौहान said...

पुरे एक साल तक समूचे देश में मोदी का वन मैन शो जिन लोकलूभावनी नारो और भाषण से चल र‍‍‍हा था उनका जिक्र नही हैं, काले धन का जिक्र, दागी सांसदो के तमाम अारोप साल भर में तय करना,इसी तरह जिन बातो का विरोध उनका समर्थन डीजल के दाम एफ डी अाई का समर्थन , ..क्‍या सत्‍ता झुट की बुनियाद पर नही ..जनता इतनी बेवकूफ नही जैसा कि मीडिया और सत्‍ता का गठजोड समझ रहा हैं ....ना उल्‍लू बनाव्रिंग

सतीश कुमार चौहान said...
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सतीश कुमार चौहान said...

पुरे एक साल तक समूचे देश में मोदी का वन मैन शो जिन लोकलूभावनी नारो और भाषण से चल र‍‍‍हा था उनका जिक्र नही हैं, काले धन का जिक्र, दागी सांसदो के तमाम अारोप साल भर में तय करना,इसी तरह जिन बातो का विरोध उनका समर्थन डीजल के दाम एफ डी अाई का समर्थन , ..क्‍या सत्‍ता झुट की बुनियाद पर नही ..जनता इतनी बेवकूफ नही जैसा कि मीडिया और सत्‍ता का गठजोड समझ रहा हैं ....ना उल्‍लू बनाव्रिंग

Anonymous said...

और हाँ, संघ की चुनाव और भाजपा सरकार में वोही भूमिका है जो कुरु रणभूमि में श्रीकृष्ण की थी। उन्होंने खुद तो कभी उस धर्मयुद्ध में हथियार नहीं उठाया लेकिन धर्म की रक्षा के लिए पांडवो को हर रणनीति सिखाते रहे। खुद बार-बार धर्मयुद्ध के नियमों का उल्लंघन किया, चाहे वो भीष्म वध हो या आचार्य द्रोण का, और अर्जुन के साथ मिलकर सब अधर्मियों का नाश करके धर्मं की स्थापना की। आज के कलियुग में संघ कृष्णा है, मोदी अर्जुन हैं, सोनिया गांधारी, राहुल दुशासन, केजरीवाल दुर्योधन हैं। और आप तो एक "क्रन्तिकारी" पत्रकार हो, अब देखना है की कलियुग में भी धर्म की ही पताका फेह्राएगी या अधर्मी विजयी होंगे। वैसे कलियुग का मतलब ही अधर्मियों की विजय है, लेकिन इस युग का अंत भी कल्कि के हाथों धर्म की स्थापना से होना तय है।

tapasvi bhardwaj said...

Jar baar brilliant likhta hn lekin kuch kam hi lagta h....kamal ka vislesan h sir aapka....padkar bahut aacha laga