Sunday, June 29, 2014

मोदी सरकार की बाधाओं को खत्म कर संघ को विस्तार देने के लिये जुटेंगे प्रचारक

जश्न के मूड में संघ के प्रचारको का नायाब अभियान

पहली बार संघ के प्रचारक जश्न के मूड में हैं। चूंकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सफर संघ के प्रचारक से ही शुरु हुआ तो पहली बार प्रचारकों में इस सच को लेकर उत्साह है कि प्रचारक अपने बूते ना सिर्फ संघ
को विस्तार दे सकता है बल्कि प्रचारक देश में राजनीतिक चेतना भी जगा सकता है । यानी खुद को सामाजिक-सांस्कृतिक संघठन कहने वाले आरएसएस के प्रचारक अब यह मान रहे हैं कि राजनीतिक रुप से उनकी सक्रियता सामाजिक शुद्दीकरण से आगे की सीढी है । वजह भी यही है कि पहली बार प्रचारकों का जमावडा राजनीतिक तौर पर सामाजिक मुद्दो का मंथन करेगा। यानी संघ के विस्तार के लिये पहले जहा जमीन सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर अलख जगाने की सच लिये हर बरस प्रचारक सालाना बैठक के बाद निकलते थे। वहीं इस बार जुलाई के पहले हफ्ते में इंदौर में अपनी सालाना बैठक में सभी प्रचारक जुडेंगे तो हर बरस की ही तरह लेकिन पहली बार राजनीतिक सफलता से आरएसएस की विचारधारा को कैसे बल मिल सकता है इस पर मंथन होगा । किसी मुद्दे पर कोई फैसला इस बार प्रचारकों की बैठक में नही होना है। बल्कि हर उस मुद्दे पर मंथन ही प्रचारकों को करना है जो राजनीतिक तौर पर देश में लागू किये जा सकते है । या फिर जिन्हे लागू कराने की दिशा में मोदी सरकार कदम उठाना चाहती है। उत्तर-पूर्व में संघ को लगातार ईसाई समाज से संघर्ष करना पड़ा है। जम्मू में कश्मीरी पंडितों का दर्द बार बार राहत कैंपों से निकल कर संघ को परेशान करता रहा है। देश भर में शिक्षा का आधुनिकीकरण सरस्वती शिशु मंदिर से लेकर संघ के शिक्षा संस्थानो को चेताते रहा है तो उसका कायाकल्प कैसे हो इस पर प्रचारकों को मंथन करना जरुरी लगने लगा है। यानी धीरे धीरे जो मुद्दे विवाद के दायरे में काग्रेस के दौर में फंसते रहे उसे सुलझाने के लिये सरकार काम करे और जमीन पर उसके अनुकुल माहौल बनाने में संघ के स्वयसेवक काम करे तो रास्ता निकल सकता है। कुछ इसी इरादे से प्रचारकों की सालाना बैठक इस बार  २-३ जुलाई से शुरु होगी। और चूंकि पहली बार राजनीतिक तौर पर प्रचारक सक्रिय भूमिका निभाने की स्थिति में है तो राजनीतिक तौर पर भाजपा को कैसे लाभ मिले या चुनावो में भाजपा की पैठ कैसे बढे इसके लिये संघ चार राज्यो में नयी शक्ति लगाने की तैयारी भी कर रही है ।

संघ का विस्तार हो और भाजपा को राजनीतिक सफलता मिले इसके लिये प्रचारकों की बैटक में तमिलनाडु, उडिसा , केरल और पश्चिम बंगाल को लेकर खास मंथन होना तय है । और पहली बार उस लकीर को भी मिटाया जा रहा है जो एनडीए के शासनकाल में नजर आती थी । हालाकि उस वक्त भी संघ के प्रचारक रहे वाजपेयी ही पीएम थे । लेकिन वाजपेयी के दौर से मौदी का दौर कितना अलग है और आरएसएस किस उत्साह से मोदी के दौर को महसूस कर रहा है उसका नजारा धारा ३७० से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोर्स और सीमावर्ती इलाको में सेना की मजबूती के लिये निर्माण कार्य को हरी झंडी देने से लेकर सैन्य उत्पादन के
लिये एफडीआई तक को लेकर है । धारा ३७० को खत्म करने के लिये  देश सहमति कैसे बनाये यह प्रचारको के एजेंडे में है । दिल्ली यूनिवर्सिसटी के कोर्स बदलने के बाद अब संघ की निगाहें यूनिवर्सिटी में नियुक्ती को लेकर है । बीते दस बरस से नियुक्तियां रुकी हुई है और अब नियुक्ती ना हो पाने की सारी बाधाओं को खत्म किया जा रहा है जिससे करीब पांच सौ पदो पर नियुक्ती हो सके । हालांकि संघ के लिये यह अजीबोगरीब संयोग है कि मध्यप्रदेश में व्यापम भर्ती घोटाले ने संघ को भी दागदार कर दिया है और संघ के सबसे प्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दरवाजे तक घोटाले की दस्तक हो रही है और फिर प्रचारकों की बैठक भी मध्यप्रदेश में ही हो रही है। जहां संघ के तमाम वरिष्ठो के साथ सुरेश सोनी को भी प्रचारकों की बैठको में पहुंचना है। और चूंकि सुरेश सोनी का नाम भी व्यापम भर्ती घोटाले में आया है तो संघ ने अपने स्तर पर पहली बार अपने शिवराज सिंह चौहान को भी आदर्शवाद घेरे की लक्ष्मण रेखा लाघंने का आरोप लगाना शुरु किया है। दिल्ली से झंडेवालान से लेकर नागपुर के महाल तक में इस बात को लेकर आक्रोश है कि शिवराज सिंह चौहाण की नाक तले व्यापम भर्ती घोटाले होते रहे और चंद नामों की सिफारिशे संघ की तरफ से क्या कर दी गयी समूचा घोटाला ही संघ से जोडने की शुरुआत हो गयी ।

तो आरएसएस के भीतर पहली बार शिवराज सिंह चौहाण को लेकर भी दो सवाल हैं। पहला क्या जानबूझकर संघ के वरिष्ठों का नाम उठाया गया। जिससे संघ घोटालों में ढाल बन जाये । और दूसरा क्या शिवराज सिंह चौहाण ने अपनी खाल बचाने के लिये संघ के चंद सिफारिशी नामों को उजागर करवा दिया। जिससे लगे यही कि संघ का भी दबाब था तो चौहाण की शासन व्यवस्था क्या करें । हो जो भी असर यह हुआ है कि पहली बार आरएसएस के घेरे में मध्यप्रदेश के सीएम शिवराजसिंह चौहाण का आदर्श चेहरा भी दागदार हुआ है। और दूसरा सवाल संघ के भीतर पुराने किस्सो को लेकर सच की किस्सागोई में सुनायी देने लगा है। देवरस के दौर के नागपुर के स्वयंसेवक की मानें तो संघ के भीतर सत्ता मिलने पर नियुक्तिया कैसे हो और किसकी हो यह सवाल खासा पुराना है । और पहली बार इसकी खुली गूंज १९९१ के शुरु में भाउराव देवरस की थी । उस वक्त नागपुर में स्वयसेवको की बैठक को संबोधित करते हुये आउराव ने अचानक मौजूद स्वयसेवको से पूछा कि आज अगर हमें नागपुर में वाइस चासंलर नियुक्त करना हो तो किसे करेंगे । इस पर तुरंत कुछ नाम जरुर आये लेकिन ,ही नाम कौन हो सकता है इसपर सहमति नहीं बनी । इसपर भाउराव देवरस ने कहा कि मान लो अगर हमारे बीच से कोई पंतप्रधान यानी प्रधानमंत्री  बन जाये तो फिर उसे कम से कम पांच हजार नियुक्ती तो करनी ही होगी । तो वह कैसे करेगा । जब आप सभी को एक वीसी का नाम सही नहीं मिल पा रहा है। उस वक्त भाउराव देवरस ने यही कहकर बात खत्म की थी कि हर क्षेत्र में सही लोगो का पता लगाना और उन्हे साथ जोडना या उनके साथ खुद जुड़ना जरुरी है। यानी धारा 370 को लेकर कौन कौन से चिंतक सरकार के सात खडे हो सकते है इसकी खोज संघ को करनी है। चीन को चुनौती देने के लिये कौन कौन से प्रशासक या नौकरशाह अतीत के पन्नों को पलट कर देश की नीति को बना सकते है कि कभी चीन में तिब्बत को लेकर भारत ने भी आवाज उठायी थी । तब सरदार पटेल थे अब तो वैसा कोई है नहीं। फिर धर्मातंरण के उलट धर्मातंरण यानी आदिवासी हिन्दुओ की घर वापसी वाले हालात को लेकर उत्तर-पूर्व के बार में कौन नीति बना सकता है या उससे पहले प्रचारकों को ही माहौल तैयार करना होगा अब मंथन इस पर होगा । यानी मोदी सरकार के
रास्ते की बाधाओ को दूर कर संघ के विस्तार का रास्ता बनाने के लिये प्रचारको का मंथन होगा। निकलेगा क्या इसका इंतजार करना होगा।

4 comments:

Anonymous said...

वास्तव मे देश का भला तभी हो सकता है जब प्रचारक जैसा संघर्ष किया हुआ व्यक्ति प्रधानमंत्री हो। देश का भला न तो परिवारवादी राजनेता कर सकते हैं और न ही विदेशी पैसे से पोषित तथाकथित क्रन्तिकारी राजनेता। याद रहे तो इतिहास में भी सर्वश्रेष्ठ राजाओ में या तो श्रीराम का नाम आता है या धर्मराज युधिशिटर का, जिन्होंने राजा बनने से पहले बरसों तक जंगलों और गाँव की खाक छानी, ठीक एक प्रचारक के जीवन की तरह।

Unknown said...

नागपुर में आपका व्यतीत समय और अर्जित ज्ञान पत्रकारिता में संघ की समझ को बेहतरीन व सटीक प्रस्तुत करता है।
उत्तराखंड आयें तो जरूर बताएं।
जोली ग्रांट एअरपोर्ट के समीप।

रजनीश सैनी +91-97-19-827-006
टीवी एंकर

Anonymous said...

जनाब गडकरी ने आपकी उतार दी आज तो, और आपके पास कोई जवाब भी नहीं है उसके प्रश्नों का। जाओ नागपुर जा कर रिसर्च करो, सारा मुनाफा तुमको दान कर दूंगा....हाहाहा, बहुत क्रन्तिकारी।

Unknown said...

Ye sab to trailer hai abhi picture baki hai sir ji.