Thursday, July 24, 2014

हां, मैं हाफिज सईद से मिला हूं, और मै पत्रकार हूं

कितनी बेमानी है हाफिज सईद पर खामोशी बरत पाकिस्तान से बातचीत ?

अभी नरेन्द्र मोदी की बात कर रहा है, चौदह बरस पहले बालासाहेब ठाकरे की बात कर रहा था। अभी खुद को दहशतगर्दी से अलग बता रहा है, चौदह बरस पहले दहशतगर्दी को सही ठहरा रहा था। अभी भारत में किसी भी आतंकी हमले से अपना दामन पाक साफ बता रहा है, चौदह बरस पहले कश्मीर से लेकर लालकिले तक की हमले की जिम्मेदारी लेते हुये भारत के हर हिस्से में आतंकी हमले की धमकी दे रहा था। अभी मोदी के पाकिस्तान आने पर विरोध ना करने की बात कह रहा है, चौदह बरस पहले परवेज मुशर्रफ के आगरा सम्मिट में शामिल होने को भी पाकिस्तानी अवाम के खिलाफ उठाया गया कदम बता रहा था। चौदह बरस पहले भारत सरकार लश्कर चीफ हाफिज मोहम्मद सईद को लेकर पाकिस्तान से सवाल नहीं उठा पायी थी, और आज जमात-उल-दावा के चीफ हाफिज सईद को लेकर कोई सीधा सवाल सरकार नहीं उठा पा रही है। चौदह बरस पहले हाफिज सईद का चेहरा दुनिया ने नहीं देखा था। आज दुनिया के सामने हाफिज सईद का चेहरा है। चौदह बरस पहले लालकिले पर आतंकी दस्तक के बावजूद वाजपेयी सरकार पाकिस्तान से बातचीत करने को तैयार थी। और बीते चौदह बरस के दौर में लालकिले से आगे संसद तक पर हमले और मुंबई, दिल्ली , हैदराबाद समेत बारह राज्यों में लश्कर के आतंकी हमलो के बावजूद मोदी सरकार विदेश सचिव स्तर की बातचीत करने जा रही है। लेकिन यह सवाल बीते चौदह बरस से अनसुलझा है कि जिस हाफिज सईद ने चौदह बरस पहले रिकार्डेड इंटरव्यू में कश्मीर में मौजूद आठ लाख भारतीय सेना को दहशतगर्द से जोड़कर भारत पर लश्कर के आतंकी हमले को माना था और उस वक्त के प्रधानमंत्री वाजपेयी और गृहमंत्री आडवाणी को यह कहकर चेताने  कोताही नहीं बरती थी कि कश्मीर में किसी की जान जायेगी तो वह उन्हें भी नहीं छोडेगा तो फिर आज की तारिख में कैसे हाफिज सईद के ह्दय परिवर्तन वाले वेद प्रताप वैदिक की मुलाकात या कहें बातचीत को मान्यता दी जा सकती है। और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ प्रधानमंत्री मोदी कीगुफ्तगु संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा साडी-शाल डिप्लोमैसी के दायरे में समेटी जा सकती है। और जब २५ अगस्त को विदेश सचिव मिलेंगे तो हाफिज सईद के आंतक पर खामोशी बरत कैसे संबंध बेहतर बनाने की दिशा में कदम उठायेगें यह शायद सबसे बड़ा सवाल है।

दरअसल हाफिज सईद जो सच इंटरव्यू के जरीये चौदह बरस पहले बोल गया उसके मौजूदा सच को भी पत्रकार इंटरव्यू के जरीये आज भी ला सकता है। लेकिन मुंबई हमलों के बाद राष्ट्रीय न्यूज चैनलों के संपादक के संगठन बीईए यानी ब्रॉडकास्ट एडीटर एसोसिएशन ने तय कर लिया कि आतंकवादी हाफिज सईद का इंटरव्यू न्यूज चैनलों पर नहीं दिखायेंगे। यानी कोई पत्रकार चाहे कि वह पाकिस्तान जाकर हाफिज सईद के सच को ले आये तो भी उसे न्यूज चैनल नहीं दिखायेंगे। क्योंकि आतंकवादी को राष्ट्रीय न्यूज चैनल मंच देना नहीं चाहते। लेकिन बीईए से जुडे यही संपादक हाफिज सईद के साथ वेद प्रताप वैदिक के ह्दय परिवर्तन सरीखी बातचीत पर हंगामा खड़ा कर पत्रकारिता करना जरुर चाहते हैं। असल में हाफिज सईद से इंटरव्यू लेना कितना आसान है या मुश्किल यह तो मुझे चौदह बरस पहले ही समझ में आ गया था लेकिन यह सवाल कि भारत सरकार इन चौदह बरस में भी क्यों पाकिस्तान को आतंक के कटघरे में खड़ा नहीं कर पाती है जबकि उसकी जमीन से लश्कर आतंक का खुला खेल भारत के खिलाफ खेलता है। इसे समझने के लिये आइए पहले चौदह बरस पुराने पन्नों को पलट लें।

जनवरी 2000 । जगह रावलपिंडी का फ्लैशमैन होटल। पाकिस्तान टूरिज्म डेवल्पमेंट कारपोरेशन के इस होटल में दोपहर 3 बजे के करीब एक कद्दावर शख्स कमरे में घुसा। गर्दन से नीचे तक लटकती दाढी । हट्ट-कट्टा शरीऱ । सफेद पजामा और कुरता पहने शख्स ने कमरे में घुसते ही कहा कॉफी नहीं पिलाइयेगा । कुछ पूछने से पहले ही वह शख्स खुद ही कुर्सी पर बैठा। और हमारे कुछ भी पूछने से पहले खुद ही बोल पड़ा। इंडिया से आये हैं। जी । कई दिनों से हैं। जी । तो रुके हुये क्यों है। जी हम लश्कर के मुखिया मोहम्मद हाफिज सईद का इंटरव्यू लेने के लिये रुके हैं। क्यों आपकी बात हो गयी है । जी नहीं। तो फिर क्या फायदा । फायदा-नुकसान की बात नहीं है। दिल्ली में लालकिले पर हमला हुआ तो हम पाकिस्तान यही सोच कर आये हैं कि इंटरव्यू करेंगे तो भारत में भी लोग जान पायेंगे कि लश्कर के इरादे क्या हैं। आपने लश्कर के चीफ की कभी कोई तस्वीर देखी है। नहीं । तो फिर इंटरव्यू की कैसे सोच ली। पत्रकार के तौर पर पहली बार हमारे भीतर आस जगी कि हो ना हो यह शख्स लश्कर से जुड़ा है। तो तुरंत कॉफी का आर्डर दे दिया । दरअसल हाफिज सईद से मुलाकात का मतलब क्या हो सकता है और 14 बरस पहले कैसे यह संभव हुआ। यह इस हद तक डराने और रोमांचित करने वाला था कि लालकिले पर हमला हो चुका था । कश्मीर में कई आतंकी हमले हो चुके थे। देश में लोग आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तौयबा को जानने लगे थे । तालिबान के साथ लश्कर के संबंधों को लेकर दुनिया में बहस भी हो रही थी। लेकिन उस वक्त किसी ने लश्कर के मुखिया हाफिज सईद का चेहरा नहीं देखा था। कहीं किसी जगह हाफिज सईद की कोई तस्वीर छपी नहीं थी और सिर्फ नाम की ही दहशत उस वक्त कश्मीर से लेकर दिल्ली में था। और उसी दौर में हमने सोचा कि लश्कर के मुखिया हाफिज सईद का इंटरव्यू लेने पाकिस्तान जाना चाहिये। कोई सूत्र नहीं । किसी को जानते नहीं थे। सिर्फ कश्मीर के अलगाववादियों से पीओके यानी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के अलगाववादियों से संपर्क साध कर हम { मैं और मेरे सहयोगी अशरफ वानी } इस्लामाबाद रवाना हो गये। लेकिन पाकिस्तान में हिजबुल से लेकर जैश-ए मोहमम्द तक के दफ्तरों की हमने खाक छानी लेकिन किसी ने लश्कर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। पाकिस्तानी पत्रकारों से हम लगातार मिलते रहे। लेकिन किसी भी पत्रकार ने उस वक्त यह भरोसा नहीं दिया कि लश्कर के मुखिया हाफिज सईद से हमारी कोई मुलाकात हो भी सकती है । यहां तक की उस वक्त तालिबान में सक्रिय ओसामा बिन लादेन से संपर्क करने वाले पत्रकार हामिद मीर ने भी हमें यह कहकर निराशा दी कि हाफिज सईद से मिलना नामुमकिन है। हां, यह कहकर उन्होंने जरुर आस जगा दी कि अगर लश्कर कोपता चल जाये कि आप दिल्ली से लश्कर का इंटरव्यू लेने आये हैं तो वह संपर्क साध सकता है। तो हमें भी लगा हम हर दरवाजे पर तो जा चुके है । अब वीजा का वक्त भी खत्म होने जा रहा है तो आखिरी दिन तक रुकते हैं, उसके बाद वापस लौट जायेंगे। और वीजा का वक्त आखिरी दिन तक काटने के लिये ही पीटीडीसी के फ्लैशमैन होटल के कमरा नं ३२ में हमारा वक्त गुजर रहा था। सुबह से ही कबाब और रात में फ्लैशमैन होटल के खानसामे से आलू की भुजिया या कभी पीली दाल बनाने के तरीके बताकर बनवाकर खाना। चार दिन वीजा के बचे थे और तीसरे दिन दोपहर तीन बजे के वक्त कद्दावर शख्स फ्लैशमैन होटल के हमारे कमरे में बिना इजाजत घुसा था। बातचीत करते हुये दो घंटे बीते होंगे, जिसके बाद उसने खुद का नाम याह्या मुजाहिद बताया। तो हमारे दरवाजे पर लश्कर दस्तक दे चुका है। कि याह्या मुजाहिद का नाम बतौर लश्कर के प्रवक्ता के तौर पर लालकिले पर हमले के बाद भी आया था। जिसमें लश्कर ने लालकिले पर हमले की जिम्मेदारी ली थी। शाम हो चुकी थी और अब मैं और अशरफ वानी हर हाल में इंटरव्यू चाहते थे। जिसके लिये हमने होटल में ही भोजन करने का आग्रह कर तुरंत कटलेट का आर्डर दे दिया। हमें लगा कि किसी तरह यह शख्स ना कर यहा से निकल ना जाये। देश-दुनिया के हर मुद्दे पर बातचीत हो रही थी। भारत में जितने भी आंदोलन चल रहे थे। बाला साहेब ठाकरे और शिवसेना को लेकर याह्या मुजाहिद की खास रुचि थी । महाराष्ट्र में लंबी पत्रकारिता मैंने की थी तो खासी बातचीत हुई। फिलिस्तीन और यासर अराफात तक को लेकर बातचीत हुई। बहुत ही बारीक चीजो को जानने-समझने या फिर मुद्दों के जरीये हमारे नजरियो के समझने के मद्देनजर याह्या मुजाहिद भी लगातार सवाल कर रहा था। और बहस के बीच में उसने जानकारी दे दी कि इंडिया की तरफ से कई पत्रकारों ने इंटरव्यू की गुहार लगायी। बाकायदा न्यूज चैनलों के बडे चेहरों का उसने नाम लिया। उसमें एक नाम महिला पत्रकार का भी आया। लेकिन किसी महिला को हाफिज सऊद इंटरव्यू नहीं दे सकते हैं। क्यों। क्योंकि ख्वातिन को इंटरव्यू नहीं दिया जा सकता है। लेकिन हमें तो इंटरव्यू दिया ही जा सकता है। बातचीत का सिलसिला रात 10 बजे तक चलता रहा ।

लेकिन याह्या मुजाहिद इंटरव्यू की बात आते ही टाल जाता। करीब रात ग्यारह बजे उसने किसी से मोबाइल पर बात की और उसके बाद हमारे सामने इंटरव्यू के लिये कई शर्त रख दीं। जिसमें इंटरव्यू लेने के तुरंत बाद हमें पाकिस्तान छोड़ना होगा। जहा इंटरव्यू लेना होगा वहां ले जाने के लिये सुबह पांच बजे लश्कर की गाड़ी होटल में आ जायेगी। इंटरव्यू सिर्फ आडियो होगा। हम हर शर्त पर राजी हुये। क्योंकि लश्कर का मुखिया हाफिज सईद पहली बार किसी को इंटरव्यू दे रहा था। यानी भारत ही नहीं दुनिया के कई पत्रकारों ने इंटरव्यू के लिये लश्कर का दरवाजा खटखटाया। तो हर शर्त मान र रात में ही फ्लैशमैन होटल को सुबह कमरा खाली करने की जानकारी दे कर हमने सबकुछ निपटाया। सुबह साढे पांच बजे लश्कर की गाड़ी आयी। एक घंटे के ड्राइव के बाद अंधेरे में कहां ले गयी हम समझ नहीं पाये। इंटरव्यू लिया गया और इंटरव्यू खत्म होने के तुरंत बाद लश्कर की गाडी ने ही हमें हवाई अड्डे पहुंचा दिया। वह इंटरव्यू आजतक चैनल पर 14 बरस पहले दिखाया भी गया। लेकिन तब दुनिया के सामने हाफिज सईद का चेहरा नहीं आया था, तो इंटरव्यू भी हाफिज मोहम्मद सईद के पीठ पीछे कैमरा रख कर लिया गया। उसके बाद अमेरिका पर हुये हमले यानी 9/11 के बाद पहली बार हाफिज सईद का चेहरा अमेरिका सामने लेकर आया । क्योंकि लश्कर के ताल्लुकात ओसामा बिन लादेन से थे। और इस संबंध के सामने आने के बाद ही हाफिज सईद ने 2004 में लश्कर की जगह जमात-उल-दावा के सामाजिक कार्यो में लगा हुआ बताना ही हाफिज सईद ने शुरु किया । इसलिये 2004 से लेकर मुंबई हमला यानी 26/11 तक के दौर में भारत पर लश्कर के करीब दो दर्जन आतंकी हमले अलग अलग शहर में हुये। भारत ने लगातार लश्कर को निशाने पर लिया। आतंकी हमलों को लेकर पाकिस्तान को सबूत भी दिये। लेकिन पाकिस्तान में हाफिज सईद को छूने की हिम्मत किसी की नहीं थी। और ना ही आज है। क्योंकि लश्कर आईएसआई और सेना की कूटनीति चालों का सबसे बेहतरीन प्यादा भी है और पाकिस्तानी सत्ता के लिये कश्मीर के नाम पर वजीर भी। और यह सच वाजपेयी-मुशर्ऱफ के आगरा सम्मिट से एक महीने पहले जून 2001 में सामने आया। जून २००१ में मैंने दोबारा हाफिज मोहम्मद सईद का  इंटरव्यू लिया। इस बार पहली बार की तरह भटकना नहीं पड़ा। वह इंटरव्यू भी आजतक चैनल पर दिखाया गया और पहली बार जिस जनरल ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट उसके खिलाफ हाफिज सऊद ने खुले तौर पर इंटरव्यू में आग उगले। और यहकहकर उगले कि मुशर्रफ को आगरा सम्मिट में नहीं जाना चाहिये। यानी पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ का विरोध करने वाला अकेला शख्स हाफिज सईद ही था। और आगरा सम्मिट जब फेल हुआ तो लश्कर ने उस वक्त पाकिस्तान में अपनी राजनीतिक समझ को यही कहकर मजबूत किया कि एक भारतीय चैनल को दिये इंटरव्यू में पहले ही कह दिया था कि परवेज मुशर्रफ को भारत बातचीत के लिये नहीं जाना चाहिये था । ध्यान दें तो आगरा सम्मिट को कवर करने पहुंचे पत्रकारों के एक बड़े समूह को पहले से पता लगने लगा था कि बातचीत फेल हो रही है। यानी लश्कर-ए-तौयबा की भूमिका सम्मिट को लेकर उस वक्त भी आईएसआई के जरीये आंकी जा रही थी। यानी पाकिस्तान की तीन सत्ता के बीच ताम-मेल बैठाने के लिये या कहे किसी का पलड़ा कमजोर हो तो उसे मजबूत करने के लिये जमात-उल-दावा का छाया युद्द है। जो तालिबान से लेकर कश्मीर तक और अरब वर्ल्ड से लेकर अमेरिका तक को अपनी सौदेबाजी के दायरे में खड़ा करने से नहीं कतराता। चौदह बरस पहले लश्कर एक आतंकवादी की ट्रेनिंग पर 1500 डॉलर खर्ज करता था। और उस वक्त हर साल 50 लाख डॉलर ट्रेनिग पर ही खर्च करता था। अमेरिकी रिपोर्ट की मानें तो 9/11 के वक्त लश्कर को हर बरस सौ मिलियन डालर चंदे के तौर पर मिलते थे । जो मौजूदा वक्त में पांच हजार मिलियन डॉलर को पार चुका है । यानी पाकिस्तान जितना बजट 10 बरस में सामाजिक क्षेत्र में खर्च करता है उतना पैसा सामाजिक कार्य के नाम पर चंदे के तौर पर दुनिया से जमात-उल-दावा से उगाही कर लेता है। तो आखिरी सवाल २५ अगस्त को विदेश सचिवों की बैठक में भारत कैसे पाकिस्तान के साथ संबंध को बेहतर करने की दिशा में कदम बढ़ायेगा अगर हाफिज सईद पर दोनो देश खामोशी बरतेंगे य़ा पाकिस्तान कहेगा कि हाफिज सईद के खिलाफ कोई सबूत तो है नहीं।

7 comments:

Unknown said...

वो इंटरव्यू देखना है सर। …बताये कैसे ?

Ankit Sharma said...
This comment has been removed by the author.
Ankit Sharma said...

सर में आपके साथ intern में काम करना चाहता हु । बताई ये कैसे आपका contact करू ?

मेरा email : ankit.accurateseo@gmail.com

sharad said...

isiliye desh me punya prasunji ka naam ke anokhe patrakar pe jana jata he. patrakaritaki barikiya aur smaj shayad hi kisi aur patrakar ke pas hogi.

Anonymous said...

वो भी क्रन्तिकारी साक्षात्कार था क्या?

vinay tomar said...

ak patrkar ko nidar hona chie ye to apne dikha dia sir... pakistan jake hafis sahid ka interview lena ye apne ap m bout bada sahas hai.... sir m journalism ka student hu muje apke sath intrn krni hai bout kuch sikhna hai muje sir plzzz ap btaie sir ki agge kya krna pdega muje.......
meri mail id.... vinaytomar25@gmail.com
reply jrur kijiega sir

vinay tomar said...

ak patrkar ko nidar hona chie ye to apne dikha dia sir... pakistan jake hafis sahid ka interview lena ye apne ap m bout bada sahas hai.... sir m journalism ka student hu muje apke sath intrn krni hai bout kuch sikhna hai muje sir plzzz ap btaie sir ki agge kya krna pdega muje.......
meri mail id.... vinaytomar25@gmail.com
reply jrur kijiega sir