खांटी कांग्रेसी नटवर सिंह ने कांग्रेस का मतलब ही गांधी परिवार के उस मर्म पर हमला किया है, जहां से खड़ा होने के लिये गांधी परिवार को ही व्यूहरचना करनी होगी। छाती पर शहीदी तमगा और विचार के तौर पर त्याग का मुकुट लगाकर ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस को खडा किया। सत्ता तक पहुंचाया । लेकिन नटवर सिंह ने जिस तरह राजीव गांधी की हत्या के साथ श्रीलंका को लेकर राजीव गांधी की फेल डिप्लोमेसी और सोनिया गांधी के त्याग के पीछे बेटे राहुल गांधी को मा के मौत का खौफ के होने की बात कही है, उसने गांधी परिवार के उस औरे को भी खत्म किया है जिसके आसरे कांग्रेस हमेशा से खड़ी रही है और कांग्रेस की उस राजीनिति में भी सेंध लगा दी है जो बीते दस बरस से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं की तुलना में सोनिया गांधी को अलग खड़ा करती रही। ऐसे में तीन सवाल काग्रेस और गांधी परिवार के सामने है । पहला, कांग्रेस के सामने अब राजनीतिक रास्ता क्या है। गांधी परिवार का औरा कैसे लौटेगा। सोनिया की राजनीतिक साख कैसे खड़ी होगी। जाहिर है कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि कटघरे में खड़ा करने वाला शख्स मौजूदा कांग्रेसियों की तुलना में सबसे पुरानी कांग्रेसी भी है और गांधी परिवार से उसके ताल्लुकात सोनिया गांधी से भी पुराने हैं। यानी सोनिया ने जो आज जिक्र किया कि अब वह भी किताब लिखकर जबाब देगी तो उससे बात बनेगी नहीं और सोनिया गांधी जो भी किताब लिख लें कांग्रेस को उससे राजनीतिक आक्सीजन मिलेगा नहीं। तो बड़ा सवाल है कि क्या सोनिया की राजनीतिक साख यहा खत्म होती है और अब कांग्रेस को तुरुप का पत्ता प्रियंका गांधी को चलने का वक्त आ गया है। या फिर राहुल गांधी को अब कहीं ज्यादा परिपक्व तरीके से सामने आकर उस राजनीतिक लकीर को आगे बढ़ाना होगा, जहां उनके कहने पर सोनिया गांधी पीएम नहीं बनी और राहुल के खौफ को अपनी आत्मा की आवाज के आसरे सोनिया गांधी ने त्याग की परिभाषा गढ़ी।
ये हालात अगर राहुल गांधी को बदल दें तो फिर कांग्रेस के लिये नटवर का कटघरा संजीवनी साबित भी हो सकते हैं। क्योंकि गांधी परिवार ने अगर पहली बार सत्ता नहीं संभालने के खौफ को त्याग और बलिदान से जोड़ा तो उससे कही ज्यादा बडा दाग पर्दे के पीछे से सत्ता की ताकत अपने हाथ पर रखने की सामने आयी। यानी गांधी परिवार की चौथी पीढी को अब यह समझ में आ गया होगा कि किचन कैबिनेट इंदिरा गांधी की थी। निजी कोटरी राजीव गांधी की भी थी । जिसका जिक्र नटवर सिंह ने भी अरुण सिंह और अरुण नेहरु का नाम लेकर किया है कि कैसे वह बेफिक्र हर निर्णय ले लेते थे। और 1987 में डिफेन्स डील
की गडबड़ी सामने आने पर उन्हे राजीव गांधी को कहना पड़ा कि आप दून स्कूल केओल्ड ब्याज एसोसियशन के अध्यक्ष नहीं है। बल्कि पीएम हैं। और उसके बाद अरुण सिंह को रक्षा राज्य मंत्री के पद से हटाया जाता है। फिर जवाहर लाल नेहरु भी कश्मीर, चीन और सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पर निर्णय लेने के लिये कैबिनेट तक नहीं पहुंचे बल्कि अपने खास -भरोसे वालों पर ही भरोसा कर चले। और निर्णय भी लिया। लेकिन सभी ने पीएम की कुर्सी संभाली यानी जिम्मेदारी सीधी ली। तो फिर अब कांग्रेस को खड़ा करने के लिये सोनिया पर दागे गये नटवर के वार को ही हथियार बनाकर गांधी परिवार अपनी साख और
कांग्रेस को खड़ा क्यो नहीं कर सकते हैं।
असल में नटवर सिंह की किताब की मार इसलिये भी घातक है क्योकि मौजूदा वक्त में गांधी परिवार की राजनीतिक साख सबसे कमजोर है। इसलिये त्याग और खौफ के बीच की लकीर इतनी मोटी हो चली है कि वीपी सिंह से लेकर ज्योति बसु और कई अन्य राजनेताओं के साथ सोनिया गांधी का ही खौफ छुप गया है। एनसीपी सांसद डीपी त्रिपाठी की माने तो सोनिया गांधी ने ज्योति बसु से कहा था कि जो कांग्रेसी आज उन्हें पीएम बनाना चाहते हैं, तीन से छह महींने बाद वही उनकी जान के दुश्मन हो जायेंगे । वीपी सिंह ने तो सोनिया गांधी को पीएम ना बनने की सलाह दी थी। यानी सोनिया की साख नटवर की किताब के आगे कमजोर हो जाती है। तो असल में अब कांग्रेस को खड़ा करने के लिये राहुल गांधी को निर्णय इसलिये लेना होगा क्योंकि नटवर सिंह ने सोनिया गांधी के जीवन का समूचा कच्चा-चिट्टा अपनी किब में लिख डाला है। और वह इसलिये मजबूत आधार है क्योंकि नटवर सिंह आज की तारीख में सोनिया गांधी से जितने दूर हो चले हैं, कभी उतने ही पास थे। सच तो यह भी है इंदिरा गांधी ने सोनिया गांधी के साथ राजीव गांधी की शादी की सबसे पहले जानकारी नवंबर 1967 में जिन्हें सबसे पहले दी थी, उनमें नटवर सिंह परिवार के बाहर के पहले शख्स । ना सिर्फ इंदिरा बल्कि नेहरु और राजीव गांधी के साथ भी जो करीबी नटवर सिंह की रही उसका कच्चा-चिट्टा लिखते हुये नटवर सिंह ने जब सोनिया गांधी को अपनी किताब वन लाइफ इज नाट इनफ में परखा तो फिर उसी उस मुकाम पर ले गये जहा अब सोनिया गांधी खामोश रह नहीं सकती। क्योंकि सोनिया गांधी की समूची सियासी साख पर ही नटवर की कलम ने अंगुली रख दी है।
असल में सोनिया के जीवन को नटवर सिंह ने चार हिस्सों में बांटा। पहला फेज 25 परवरी 1968 को राजीव गांधी के साथ शादी से शुरु होता है। जो बेफ्रिकी का है । दुनिया में एक अलग और ताकतवर पहचान पाने का है। जिन्दगी में सारे सुकून का एहसास करने का है। लेकिन इसके बाद से सोनिया की जिन्दगी बदलती है। 31 अक्टूर 1984 के बाद से सोनिया के जिन्दगी एकदम बदल जाती है। जब गोलियों से छलनी इंदिरा गांधी को आर के धवन के साथ सोनिया गांधी कार से एम्स ले जाती हैं। खून से लथपथ इंदिरा गांधी के साथ एम्स पहुंचते पहुंचते सोनिया गांधी को भी सियासी खून का एहसास हो जाता है। इसीलिये जैसे ही राजीव गांधी के पीएम बनने की बात होती है, वैसे ही सोनिया यह कहने से नहीं चूकती कि अगर आप प्रधानमंत्री बने तो तो मारे जायेंगे और राजीव गांधी यह कहकर पीएम बनते है कि मैं तो वैसे भी मारा जाऊंगा। 1984 से 1991 तक सोनिया के इस जीवन में तीसरा बदलाव राजीव गांधी की हत्या के बाद शुरु होता है। मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी खूद को एकदम अकेले पाती हैं। लेकिन कांग्रेस के भीतर की कश्मकश में राजीव गांधी के बाद कौन वाली परिस्थितियों में सोनिया गांधी नटवर सिंह से ही सलाह लेती हैं। और नटवर सिंह इंदिरा के करीबी पीएन हक्सर से सलाह लेने का सुझाव देते हैं। हक्सर उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का नाम रखते हैं। और शंकरदयाल शर्मा जब पीएन हक्सर गोपी अरोड़ा को यह कहकर खाली लौटे देते हैं कि उनकी उम्र और तबियत पीएम पद संभालने की इजाजत नहीं देती तो फिर अगला नाम पीवी नरसिंह राव का सामने आता है। यानी सोनिया की खामोश राजनीति भी कांग्रेस के लिये मायने रखती है। और 1998 में यह खामोशी टूटती है तो नटवर सिंह की कलम सोनिया गांधी के लिये एक नये हालात को देखती हैं। 14 मार्च 1998 को दिल्ली के सीरीफोर्ट में सोनिया गांधी बेटी प्रियंका गांधी के साथ राजनीति में कूदने के लिये पहुंचती हैं और नटवर सिंह को बगल में बैठाती हैं तो सोनिया सानिया के नारे से कांग्रेस के भीतर यह सोच कर उल्लास भर जाता है कि कांग्रेस सत्ता में लौटेगी । कांग्रेस 2004 में सत्ता में लौटती भी है। लेकिन सत्ता में लौटने के बाद भी सोनिया गांधी पीएम बनने से इंकार करती तो इंकार गांधी परिवार की सियासी राजनीति को उड़ान दे देता है । ध्यान दें तो नटवर सिंह की कलम से निकली वन लाइफ इज नाट इनफ 2004 के बाद के बाद सोनिया गांधी के उस पांचवें शेड को राजनीतिक के ऐसे कटघरे में खड़ा कर देती है, जहां से गांधी परिवार की साख खत्म दिखायी दे। और आखिरी सवाल यही से खड़ा हो रहा है कि अब कांग्रेस का क्या होगा जिसके लिये गांधी परिवार ही सबकुछ है। और मौजूदा वक्त में सोनिया गांधी ना हो तो कांग्रेस किसी क्षेत्रीय पार्टी से भी कमजोर दिखायी देने लगती है।
Thursday, July 31, 2014
कांग्रेस यानी गांधी परिवार का रास्ता किधर जायेगा ?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 8:13 PM
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4 comments:
चाटुकार प्रथा के भरोसे चलने वाले गाँधी परिवार और कांग्रेस के साथ ऐसा तो होना ही था। वास्तव में गाँधी परिवार की ये पीढ़ी वैचारिक स्तर से इतनी कंगाल है की जब भी कोई मुश्किल सवाल खड़ा करता है तो इंदिरा-राजीव की हत्या का इमोशनल कार्ड खेल कर सवालों से भागते हैं। फिर चाहे सोनिया हों, शाहज़ादे या प्रियंका वाड्रा, सब का कठिन सवालों पर यही जवाब होता है। इमोशनल कार्ड खेलो और जनता को मूर्ख बनाओ, बस यही इनका धंधा है। असल में इंदिरा और राजीव के साथ जो हुआ वो उनके ही कुकर्मों का फल था, जहाँ इंदिरा ने भिंडरावाले को खड़ा किया जो खुद उसके लिए ही भस्मासुर साबित हुआ, वहीँ राजीव ने तमिल मुद्दे तो जिस तरह उलझाया, वही उसको मौत के मुँह में ले डूबा। कांग्रेस उतनी बुरी नहीं है जितना ये परिवार है, इस परिवार ने कभी क्षत्रपों का खड़ा नहीं होने दिया और सिर्फ चाटुकारों को प्राथमिकता देता रहा, और यही संस्कृति कांग्रेस को ले डूबेगा। 2019 में इनके 19 भी जीत के आ जाएँ तो बड़ी बात होगी।
अत्ंरअात्मा की अवाज या बेटे की आवाज में ज्यादा फर्क किया जाना दरअसल मनोबल गिराने का ही खेल हैं ,खैर नटवर सिंह की किताब मार्र्केटिग अच्छी हो रही हैं,बेटे को बी जे पी में सहूलियते इसी रास्ते ये मिलेगी यही तो राजनैतिक धागपन का नमूना हैं
Natwar singh ne ye book UPA sarkar ke samay mein kyu nahi likhi sir ji zara puchiyega.
सरजी बेहतरीन
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