Saturday, October 6, 2018

द ग्रेट बनाना रिपब्लिक ऑफ इंडिया

दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है, ये आवाज 2011 से 2014 के बीच जितनी तेज थी, 2014 के बाद उतनी ही मंद है या कहें अब कोई नहीं कहता कि भारत बनाना रिपब्लिक की दिशा में है। 2011 में देश के सर्वप्रमुख व्यवसायी रतन टाटा ने कहा भारत भी बनाना रिपब्लिक बनने की दिशा में अग्रसर है। साल भर बाद अप्रैल 2012 में भारत के वित्त सचिव आर. एस. गुजराल ने वोडाफोन को कर चुकाने के केन्द्र सरकार के आदेश के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि भारत अभी बनाना रिपब्लिक नहीं है कि कोई विदेशी कम्पनी अपने आर्थिक लाभ को भुनाने भारत की ओर रुख कर ले और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। तीन महीने बाद ही 2012 में राबर्ट वाड्रा ने तंज कसा मैंगो पीपुल इन बनाना रिपब्लिक । अगले ही बरस कश्मीर को लेकर मुफ्ती मोहम्मद इतने गुस्से में आ गये कि 2013 में उन्होंने भारत की नीतियों के मद्देनजर देश को बनाना रिपब्लिक कहने में गुरेज नहीं की ।

और याद कीजिये 2014 लोकसभा चुनाव के परिणामो से ऐन पहले 8 मई को नरेन्द्र मोदी को एक खास जगह सिर्फ प्रेस कान्फ्रेंस करने से रोका गया तो अरुण जेटली को भारत बनाना रिपब्लिक नजर आने लगा । तो क्या वाकई मनमोहन सिंह के दौर में भारत बनाना रिपब्लिक हो चला था और सत्ता बदली तो बनाना रिपब्लिक की सोच थम गई , क्योंकि एक न्यायपूर्ण सत्ता चलने लगी । या फिर मनमोहन सिंह के दौर में भारत को बनाना रिपब्लिक कहा जा रहा था और नरेन्द्र मोदी के दौर में भारत बनाना रिपब्लिक हो गया तो फिर कहे कौन की भारत बनाना रिपब्लिक है। तो जरा पहले समझ लें कि बनाना रिपबल्कि शब्द निकला कहां से और इसका मतलब होता क्या है । दरअसल बनाना रिपब्लिक शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम प्रसिद्ध अमेरिकी कथाकार ओ. हेनरी द्वारा किया गया था। वर्तमान संदर्भ में उस देश के लिए बनाना रिपब्लिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है जिसे एक व्यावसायिक इकाई की तरह से अधिकाधिक निजी लाभ के लिए कुछ अत्यंत धनी एकाधिकारी व्यक्तियों तथा कम्पनियों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा हो।

राजनीतिक रूप से बनाना रिपब्लिक देशों की एक मुख्य विशेषता होती है बहुत व्यापक राजनीतिक अस्थिरता। ओ. हेनरी ने बनाना रिपब्लिक शब्दावली का प्रयोग उस विशेष स्थिति के लिए किया था, जहाँ कुछ अमेरिकी व्यवसायियों ने कैरीबियन द्वीपों, मध्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका में अपनी चतुराई से भारी मात्रा में केला उत्पादक क्षेत्रों पर अपना एकाधिकार कर लिया। यहाँ स्थानीय मजदूरों को कौड़ियों के भाव पर काम करवा कर केलों के उत्पादन को अमेरिका में निर्यातित कर इससे भारी लाभ उठाया जाता था। इसलिए बनाना रिपब्लिक की व्याख्या में प्राय: इस गुण को भी राजनीतिक पण्डित शामिल करते हैं कि ऐसा देश प्राय: कुछ सीमित संसाधनों के प्रयोग पर ही काफी हद तक निर्भर होता है। आप कह सकते है कि भारत में कहां ऐसा है । या फिर ये भी कह सकते है कि भारत में तो ये आम है । असल में बनाना रिपब्लिक में एक स्पष्ट वर्ग की दीवार दिखाई देती है, जहाँ काफी बड़ी जनसंख्या कामगार वर्ग की होती है, जो प्राय: काफ़ी खराब स्थितियों में जीवन यापन करती है। इस गरीब कामगार वर्ग पर मुट्ठी-भर प्रभावशाली धनी वर्ग का नियंत्रण होता है। यह धनी वर्ग देश का इस्तेमाल सिर्फ अपने अधिकाधिक लाभ के लिए करता है। अब आप सोचेंगे ये तो भारत का सच है । तो क्या भारत वाकई बनाना रिपब्लिक है । तो भारत के बार में कोई राय बनाइये, उससे पहले ये समझ लीजिये कि बनाना रिपब्लिक शब्दावली का प्रयोग अधिकांशत: मध्य अमेरिकी तथा लैटिन अमेरिकी देशों के लिए किया जाता है जैसे हाण्डूरास तथा ग्वाटेमाला। लेकिन यहा ये समझना होगा कि इन देशों में ऐसी कौन सी मुख्य विशेषताएं है जो इन्हें भारत से अलग करती है । या फिर इन देशों की हर विशेषता ही भारत की विशेषता है । तो जरा सिलसिलेवार तरीके से समझे। बनाना रिपब्लिक में सबसे पहले तो भूमि का अत्यंत असमान वितरण होता है । और असमान आर्थिक विकास होता है । यानी दुनिया के किसी भी देश की तुलना में भारत में ये सबसे ज्यादा और तीखा है । यानी जमीन और आर्थिक असमानता का आलम भारत में ये है कि एक फीसदी बनाम 67 फीसदी का खेल खुले तौर पर है । एक फीसदी के पास संपत्ति । एक फीसदी के पास संसाधन । एक फीसदी के पास जमीन । और दूसरी तरफ 67 फीसदी के बराबर । फिर भारत में असमानता सा इंडेक्स तो अंग्रेजों की सत्ता के दौर में 1921 वाले हालात को छू रहा है ।

पर भारत को कोई बनाना रिपब्लिक कैसे कहेगा । जबकि बीते चार बरस के दौर में देश के सिर्फ 5 कारपोरेट/औघोगिक समूह की संपत्ति में जितना इजाफा सिर्फ मुनाफे से हुआ है , मुनाफे की उतनी रकम भर ही अगर देश के करीब 30 करोड़ बीपीएल में बांट दी जाती तो झटके में गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन बसर करने वाले 30 करोड लोग इनकम टैक्स रिटर्न भरने की हैसियत पा जाते । फिर भी भारत जब बनाना रिपब्लिक है ही नहीं तो बनाना रिपब्लिक के दूसरे मापदंडों को परखें । बनाना रिपब्लिक वाले देश में बहुत छोटे लेकिन बहुत प्रभावशाली सामंतशाही वर्ग की मौजूदगी होती है । इस सामंतशाही वर्ग का देश के व्यावसायिक हितों पर व्यापक एकाधिकार होता है । सामंतशाही वर्ग के कुछ धनी देशों के व्यावसायियों से घनिष्ठ सम्बन्ध होते है । इन घनिष्ठ सम्बन्धों का देश के निर्यात व्यापार पर स्पष्ट पकड़ होना माना जाता है । तो इन मापदंडों पर भारत कितना खरा उतरता है, ये क्रोनी कैपटलिज्म के हर चेहरे तले भारतीय राजनीतिक सत्ता को देखकर समझा जा सकता है । मसला सिर्फ राफेल डील में देश का हजारों करोड रुपया एक खास आधुनिक सत्ता के करीबी सामंत को देना भर नहीं है । बल्कि हर क्षेत्र में चीनी से लेकर आलू तक और इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर हथियार तक में मुनाफा बनाने के लिये सत्ता के करीबी चंद सामंतों की मौजूदगी हर दायरे में नजर आयेगी । बिजली पैदा करनी हो । खदानों से कोयला निकालना हो । सूचना तकनीक विकसित करनी हो । फ्लाई ओवर से लेकर सीमेंट रोड बनानी है । मेट्रो लाइन बिछानी हो । सब के लिये देश के खनिज संसाधनों से लेकर सस्ते मजदूरो की लूट अगर सत्ता ही मुहैया कराने लगे । या फिर सत्ता की उपयोगिता ही नागरिको की सेवा के नाम पर आधुनिक सामंतों को लाभ पहुंचाते हुये खुद को सत्ता में बरकरार रखने की इक्नामी हो तो फिर बनाना रिपब्लिक कहा मायने रखेगा । दरअसल भारत बनाना रिपब्लिक हो ही नहीं सकता क्योंकि बनाना रिपब्लिक के लिये जरुरी है उस एहसास को बनाये रखना कि लोकतंत्र ऐसा होगा । इसीलिये बनाना रिपब्लिक के मापदंडों में सबसे महत्वपूर्ण होता है कि ऐसे देशों में सेना द्वारा सत्ता का तख्ता पलटने की संभावनाएं प्राय: हमेशा बनी रहती हैं। अब कल्पना कीजिये क्या ये भारत में संभव है । यकीनन नहीं । लेकिन अब इसके सामानांतर सोचना शुरु कीजिये लोकतंत्र तो तब होगा जब संविधान होगा । जब संविधान का मतलब सत्ता हो जाये । और लोकतंत्र सत्ता के चुने जाने के सत्तानुकूल तरीके पर जा टिका हो तब बनाना रिपब्लिक का मतलब होगा क्या । दरअसल मोदी दौर की सबसे बडी खासियत यही है कि बनाना रिपबल्कि होने की जो जो परिभाषाएं अंतरराष्ट्रीय तौर पर गढी गई है उन परिभाषाओ को भी लोकतंत्र के नाम पर संविधान दफन करते हुये इस तरह हड़प ली गई है कि आप भारत को बनाना रिपब्लिक कभी कहें ही नहीं । सिर्फ अघोषित आपातकाल कहकर अपने भीतर उस रौशनी को जलाये रखेंगे कि देश में एक संविधान है । दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश भारत है । तो यहां चंद दिनों के लिये एक तानाशाह है, जिसे जनता 2019 में बदल देगी । पर बनाना रिपबल्कि की माहौल बताता है कि आप बनाना रिपब्लिक में जीने के आदी हो चुके हैं और अब आप संविधान की दुहाई देते हुये संघर्ष करते नजर आयेंगे । और इस संघर्ष का दोहन भी सत्ता कर लेगी।

39 comments:

Unknown said...

Can you do a story about atrocities on Innocents of Haryana khattar government???
Please reply
It is a big issue but main streem media always ignore it cause of BJP


Unknown said...

Election commission भी आज संविधान की दुहाई देकर 5 राज्यो मे चुनावी अभियान का सफ़र शुरू कर दिया

Unknown said...

आदमीयत भर गया है जिंदगी सब की मजेदार बात यह है कि सरकार किसी की सुनती नहीं है

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

This is amazing again.. courageous step taken by you dear Prasun ji ..die heart fan ..long live
Apko kisi channel ki zarurat nahi ..god bless you ..koi portal /channel apna banaye

Susheel said...

Great !!!

sanjay said...

Sahi baat @bahutere sabal hai Bhai

Unknown said...

Republic to ab sun ne jaisa rah gaya
Hamare desh me

Unknown said...

प्रसून जी,
विनोद दुआ की तरह यूट्यूब पर एपीसोड लेकर आइए ना।

Unknown said...

Desh barbadi ki rah pe

Unknown said...

सटीक विश्लेषण

Unknown said...

जबर्दस्त विष्लेषण।पर निराश न हों। अंत में लोकतंत्र की जीत होगी

Unknown said...

Aapki Explain krne ki andaaj bohot hi pyaari hai sir
Huge Respect to the true Journalist.

Unknown said...

Yes sir....come to youtube with your own channel

Unknown said...

Best analysis

आम आदमी said...

लोकतंत्र , संविधान ये सिर्फ नाम की बाते हैं । भारत कल भी गुलाम था और आज भी गुलाम हैं । सिर्फ शासक बदल गए ।पहले अंग्रेजों की , राजाओं की गुलामी की आज चंद राजनेता , राजकीय दलो की गुलामी कर रहे हैं। राजनेता आम चुनावो के वक्त जनता के हाथों में आशा आकांक्षाओं के लॉलीपॉप थमा देते हैं । जबकि सत्ता मैं आने के जनता की सेवा करने के बजाय धनिकों की सेवा मैं लगे रहते हैं । आप जैसे बुद्धिजीवी , पत्रकार हैं तो महसूस होता हैं कि भारत मे लोकतंत्र है ।

रिपोर्टर्स मिरर said...

लेख बहुत सुंदर है सर। पढ़ने के बाद कई चीजें साफ हुईं, तो कई जानकारियां भी मिलीं। हमारे लिए विषय-वस्तु की स्पष्टता और नयी जानकारी अधिक मायने रखती है। आपका लिखने-पढ़ने का अंदाज ही हम जैसे छात्रों को आपके करीब से और करीब लाता है। उम्मीद है सर, हमारा इसी तरह ज्ञानवर्धन करते रहेंगे।
सादर धन्यवाद सर

Unknown said...

बातें तो सारी सच ही लग रही हैं।
एक विनम्र सुझाव,
थोड़ा और सरल हो सकते हैं ?
ज़्यादा लोगों तक पहुँचेंगे।
जो इस वक़्त बेहद ज़रूरी है।

Unknown said...

वास्तव में मैं इस शब्द के बारे में कम जानता था। हां केले की सियासत की कहानी जरूर सुनता था।
स्थति भारत में उसी तरह बन रही, बहुत चिन्ता होती है, कहां ले जाकर पटकेंगे और फिर जनआक्रोश क्या रंग दिखाये, राम ही जानते हैं ।
ये चार पांच भस्मासुरों को अन्तहीन पोषण जन जन के धन को साइफन कर के किया जा रहा, परिणाम समय बतायेगा ।

Unknown said...

Good job

Unknown said...

Its amazing article.
Thankyou.

Unknown said...

Bilkul sahi sir.yaha ke log is trah ka jeevan jine ke adi ho chuke hai.sab ankh band ker ke bhage ja rahe hai bus.

Pravin Damodar said...

एकदम सच बात है सर आज लोकतंञ और संविधान समानता सुनने भर के लीये बचा है ऐसा हि लगता है क्या हम कभी इससे बाहर आ पायेंगे? या भीडतंञ और ऐकाधिकार शाहि कि जित होगी

Unknown said...

सटीक वर्णन

Unknown said...

sir salute to u r work.......itni imandari thoda bhi darr nahi god bless you sir ummid hai ke sachhai ki jeet hogi

Vinusoni said...

Excellent comment on present scenario I salute to u sir

Unknown said...

👍👍

Vvek said...

Homebuyers issues are never mentioned in your articles which is disappointing for lakhs of families of homebuyers like me!

Unknown said...

आपका masterstroke चल रहा होता तो देश में बहुत बड़ा बदलाव अब तक आ चूका होता सर ,
हम सभी भाग्यशाली हैं कि देश में सविधान लागू हो गया और ये केवल इसलिए हो पाया क्योकि स्वतंत्रता संघर्ष के दीवाने
जिन-जिन मूल्यों की कमी महसूस करते गए हर वह मूल्य हमारे भविष्य के संविधान का अनुच्छेद बनता गया ,बिना व्यवस्थित और वैचारिक क्रांति के सुनहरे भविष्य का निर्माण संभव है

भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष भारत के भविष्य के लिए हर प्रकार का मार्गदर्शन उपलब्ध कराता है क्योकि एक वह व्यवस्थित और वैचारिक क्रांति है ,अब भी वैसे ही क्रांति की जरुरत है क्योकि बिना इसके परिवर्तन होने का
अंजाम हमने 2014 के चुनाव में देखा है ,
क्योंकी वर्तमान सरकार(NDA) पहले की सरकार(UPA) के केवल विरोध में आई थी न की भारत को बदलने के अपने किसी विजन के साथ , इसलिए मोदी जी और BJP को घमंड रहा पूरा शासन वर्ष तक जो अब भी जारी है ,
अब भारतियों को अगला सरकार मोदी के विरोध में चुनने की बजाए ,उसके खुद के विजन के आधार पर चुना जाना चाहिए

भारत BJP और कांग्रेस के बापों की संपत्ति नहीं है कि एक नहीं तो दूसरा उस पर राज करेगा ही , जनता को समझना होगा और इसके लिए युवाओं को ही आगे आना होगा
की राजनितिक दल अपना अपना विजन रखें - जैसे
1) शिक्षा का बजट GDP का 8%
2)100% संविधानवाद जमीन पर लागु हो - अमेरिका में राष्ट्रपति भी ट्रेफिक नियम तोड़ने पर फ़ाईन भरता है ,और हमारे भारत में मोदी जी को लगता है ओ देश के प्रधानमंत्री नहीं राजा हैं ,और योगी तो गणेश गायतोंडे का चेला लगता है
3)साम्प्रदायिकता या जातिवाद फ़ैलाने वाले के लिए IPC कानून बने
4)भूमि सुधार को सही तरीके से पुरे भारत में लागु हो
5)देश का प्रधानमंत्री BSNL को मजबूत करे न की JIO को - आपने सोचा है अगर मोदी जी भारत में 4G और 5G क्रांति का कर्णधार BSNL को बनाते तो क्या होता ??? BJP का आलिशान मुख्यालय कैसे बनता ?
6) PSU को बेचने की बजाए मजबूत बनाए - जानबूझकर सभी PSU में संबित पात्रा जैसे लोगो को डायरेक्टर बनाते हैं और बर्बाद करते हैं फिर HAL के नाकामी दिखाने के लिए IAF(भारतीय वायु सेना ) प्रमुख सामने आते हैं अपना इमान बेचकर उनको शर्म तक नहीं आती
,वे भारतीय वायु सेना को किसी राजनितिक दल के सामने झुकाकर उन्हें अपमानित किये हैं ,क्योकि भारतीय सेना सविधान का रक्षक होता है न की राजनेता का ,और राफेल घोटाला में अनिल अम्बानी का बचाव ही करना था तो नवसेना प्रमुख को भी सामने आना चाहिए
क्योकि अनिल अम्बानी की कंपनी सैन्य जलपोत बनाकर देने में असफल रही तथा उनकी सारी कपनी या तो डूब चुकी हैं या कर्ज के बोझ में दबकर मोदी मोदी शाह शाह चिल्ला रही हैं .
शुक्र है भाई कि इसरो के डायरेक्टर में भी BJP और कांग्रेस अपने चापलूस कुत्तों को नहीं घुसाते नहीं तो क्या होता इसका कल्पना आप करें ???
7) कृषक के लिए विजन प्रस्तुत करें ,स्वास्थ्य के लिए ,युवा के लिए ,रोजगार के लिए ,अर्थव्यवस्था के लिए , हर मंत्रालय के हिसाब से विस्तृत विजन प्रस्तुत करें और 2019 का मतदान इन्ही आधारों पर हो ,जैसे ही ये झूठ बोलना शुरू करे CVC केस दर्ज कर कार्यवाही आरम्भ करदे
हाँ जो बड़ा जिम्मेदारी लेता है उससे कभी कभी गलती होती है लेकिन उसमे सुधार के लिए जरुरी है की उसको स्वीकार किया जाए , और जिम्मेदारी बड़ा है तो बड़ा कदम उठाने से पहला उतना ही ऊँचे दर्जे के शोध की जरुरत पड़ती है ,

ऐसा नहीं की नागपुर से फरमान आया और एकाएक सब ATM के लाइन में ............मानलो फेकू जी इसरो के प्रमुख हो जाते तो ,राकेट में भी दीनदयाल उपाध्याय का स्टीकर लगवा देते और रंग को भगवा करवा देते नाम भी PSLV ,GSLV की जगह राम ,कृष्ण ,अर्जुन और गोलवलकर रख देते

8) वैसे तो भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है - फिर भी "ब्राह्मणराष्ट्र" बनाना ही है तो ,राममंदिर के लिए देश जला दिए जाते हैं ,राम के नाम पर सविधान को चुनौती दी जाती है क्या वे राम भगवान् ऐसे थे ?
"रघुकुल रित सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए " और आप देश का ही नहीं शायद विश्व का भी सबसे झूठा फेकू इंसान का नाम बताओं जिसका जबान ही झूठ बोलने के लिए खुलता है ,जो वचन ही तोड़ने के लिए देता है
-किसी भी चौराहे पर बुलाना(नोटबंदी ),जब तक जिन्दा हूँ (आरक्षण ),GST(विरोध ),आधार (विरोध ) ,रुपया गिरता है देश की शान गिरती है और यह सरकार के भ्रष्टाचार का परिणाम है ,महंगाई ,CBI गंगवार अनगिनत हैं

Unknown said...

We miss ur show prasun ji

Unknown said...

Thank you sir,,,for such a valuable information

I_m_UTKARSHupadhyay said...

It is crucial to make a distinction between Hinduism and Hindutva politics. It is ridiculous in itself to ridicule someone for observing Navratra fasts. This idiotic stance of equating all religiosity with social and political reaction has in fact helped the pernicious politics of communalism ( of all hues) a lot.

I_m_UTKARSHupadhyay said...

पूर्ण बहुमत की ‘सरकार’ ..

ऊपर से नीचे तक सारे ‘‘ पदाधिकारी “ ज़्यादातर राज्यों में सरकार ....

फिर भी आम जनजीवन वैसा ही ... बहुत क़ीमती साडे चार साल गुज़ार दिये .. बहुत कुछ बदला जा सकता था ..
प्राथमिकता के मुद्दे पीछे रह गये ...

अब तो कोई करिश्मा ही भारत की सूरत बदलेगा.... ऐसा लगता है ..

Abhishek singh @aps543215 said...

bahut achhe

Through the Looking Glass! said...

Sir, I am a college student and my grandfather is 84 and is a great fan of yours. He just loves your work and cannot stop talking about you.He has expressed his wish to get an opportunity to talk to you once in his life. He never missed a single episode of your show and highly admires you for your courage. I tried explaining to him tbat a person of your calibre and status is too busy to just respond to texts like ours but he is insistent and therefore I am writing you this letter. I don't know whether you will have the time to reply to this or not. But my grandfather has been missing you and your show very badly and wanted me to write you a letter or email you. I couldn't find your email so I am writing it here. Dadaji shares a lot many views with you on so many things and he literally cannot stop talking about you once you quit and the show went off air. Again, I don't know whether you will have the time to reply to this or not. But I sincerely hope that my grandfather's wish comes true. He has seen so much of politics since India got independence that he could go on and on about the political changes in this country. We put up in South Delhi and hope that my grandfather's wish in the twilight of his life will come true. All that aside, obviously our family thinks that you are the face of the fearless and courageous journalism in India.

Best Wishes
Kirti Gaur

Unknown said...

Kirti gaur..pl write ur mobile no ! Prasun

Through the Looking Glass! said...

8130625152

Through the Looking Glass! said...

Our address :

H.No 81-B, Basant Gaon
PO. Vasant Vihar
New Delhi - 110057

Regards
Kirti Gaur

Unknown said...

आज वाकई जरूरत है देश की सही मायने मैं स्वतन्त्रता के लिये एक बड़ी वैचारिक क्रांति की....जिस प्रकार काले अंग्रेज देश का शोषण कर चन्द उद्योगपतियों को फायदा पहुँचा खुद सत्ता पर टिके रहते है और असमानता की खाई को अत्यधिक चौड़ा किये जा रहे है वह देश के लिये अत्यधिक घातक है....पिछले 5 साल मैं जिस प्रकार जनता को जूठे वायदे कर शोषण किया गया है वो भी जनता के पूर्ण बहुमत के बाद वो दयनीय है।