Saturday, November 10, 2018

स्वयंसेवक की किस्सागोई पार्ट-3 , सबकुछ गंवा कर भी होश नहीं आ रहा है तो क्या किजियेगा.....

स्वयसेवक की किस्सागोई पार्ट-3
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लिजिये झाल-मुडी । ये बिहार-झारखंड में कच्चे सरसो तेल में बनाया जाता है । वाजपेयी जी आपने तो खाया है । प्रोफेसर साहेब आपने खाया है । जी खाये तो हम भी है लेकिन आप जिस तरह बनाये है ...उसकी खुशबी अभी से नाको में बसी जा रही है ।
जी ये चाय के साथ खाने में चाय के जायके को भी शानदार बना देता है ।
हा हां स्वयसेवक ठहाका लगाते हुये बोले और चायवाले का भी मिजाज तो इससे नहीं बदलता ?
ये आप पूछ रहे है या बता रहे हैा
जो भी समझे । लेकिन बदलते हालातो के बीच जरा समझने की कोशिश करें कि भारत की निकटता जिस जापान से है और जापान के राष्ट्रपति आबे को बनारस के गंगा घाट पर आरती कराने तक देश के प्रधानमंत्री ले गये .... उस राष्ट्रपति की टीम ही 15 दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा से ऐेन पहले मोदी के ही करीबी रहे एक शख्स से जानकारी हासिल करना चाहती है कि उनकी राय में जापान जिन प्रोजेक्ट पर भारत में काम कर रहा है उसपर उनकी क्या क्या राय है । और ये शख्स और कोई नहीं बल्कि जिस वक्त बतौर गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से इंकार किया हुआ था उस वक्त और कोई बल्कि यही शख्स नरेन्द्र मोदी जापान यात्रा पर ले कर जाता है । क्योकि ये शख्स जापान की सत्ता के बेहद करीब था और लगातार बीस बरस से जापान में रहते हुये भारत के अनकुल इस तरह काम कर रहा था जहा जापान की पूंजी और वहा के युवाओ को भारत से जोडा जाये । अलग अलग परियोजनाओ के जरीये जापान भारत में निवेश भी करें और भारतीय युवाओ के साथ साथ जापान के युवा भी भारत में जापान के साथ साझा परियजनाओ पर काम करें । इसी कडी में दिल्ली - मुबई इक्नामिक कारीडोर जापान के साथ मिलकर बनाने की सोची गई । लेकिन नौकरशाही को लेगा इसमें कमाई नहीं है तो ये ठंडे बस्ते में डाल दिया गया । बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट भी नार्थ इस्ट से मुबंई तक जाल बिछाने का था । लेकिन उसे अहमदाबाद से मंबई तक सिमटा दिया गया । और असल तो काशी को क्वेटो बनाने का प्रोजेक्ट था । जिसमें बकायदा सामाजिक-आर्थिक परिपेक्षेय में अध्ययन कर लोगो की जिन्दगी से जुडकर कासी को क्वेटो बनाने की योजना कागज पर बनी । लेकिन इसे भी सत्ता की चुनावी तिकडमों में इस तरह फंसा दिया गया कि काशी के लोगो की आंखो में खून के आंसू  है । पुलिस प्रशासन बिना योजना को समझे भौगौलिक तौर पर साफ सफाई कराने में लगे । राजनीतिक बिचौलिये किवेटो क्वेटो कहते हुये वसूली में लगे है ।
पर एक बात बताइये ....आप खुद ही कह रहे है कि जिस शख्स पर जापान को भरोसा है और प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले उससे ही जानकारी हासिल की जा रही है तो फिर उसकी निकटता तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी रही है । तो परेशानी क्या है ।
प्रोफेसर के इस तरह झटके में सवाल पूछने पर स्वयसेवक महोदय ने बिना लाग लपेट कहा , परेसानी ये है कि अब उस शख्स को प्रधानमंत्री बनने के बाद खुद से दूर कर दिया ।
हां तो ठीक है । जब सीएम थे तो जरुरत थी । अब पीएम है तो अपने करीब क्यों रखे ।
ये क्या मतलब हुआ । क्यो रखे । जनाब उस शख्स की पहचान सिर्फ जापान ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशो के साथ है ।
मुझसे रहा नहीं गया तो मैने पूछ ही लिया ... आप ना बताने चाहे तो ना बताइये लेकिन कौन है ये शख्स ।
मै सोच ही रहा था कि प्रसून वाजपेयी नाम क्यो नहीं पूछ रहे हैा आप कभी ना कभी जरुर मिलेगें । विभवकांत उपाध्याय जी से ।
मेरे मुहं से बरबस निकल पडा ....अरे उनको जिक्र को सीबीआई और इनकम टैकस के एक अधिकारी कर रहे थे ।
जी अब समझे ...मै क्यो अभी के हालात का जिक्र ये कहते हुये कर रहा हूं कि अतित में जिस तरह तमाम स्वयत्त या संवैधानिक एंजेसियो या संस्धानो का उपयोग सरकारो ने किया वह मौजूदा वक्त में परिणाम के तौर पर इस तरह सामने है कि राजनीतिक सत्ता खुद ही तमाम स्वयत्त संस्था के तौर पर है । यानी हर संस्थान को सत्ता के लिये काम ही नहीं करना है बल्कि सत्ता ही सबकुछ है ।
मतलब ?
  मतलब यही कि अभी रिजर्व बैक को ही देख लिजिये । 19 नवंबर को बैठक किसलिये बुलाई गई है ये सवाल तो आपके जहन में होना चाहिये । क्या वाकई उस दिन बोर्ड आफ डायरेक्टर सरकार को मिलने वाले सेकशन-7 के पावर के तहत तीन लाख करोड रुपये डिविडेंट के साथ सरकार को दे देदगें ।
तो इसे देने से क्या होगा । और अगर दे ही देगें तो फिर सरकार को तो जनता ने ही चुना है इसमें गलती क्या है ।
गलती यही है कि सत्ता खुद के लिये काम कर रही है । जनता-नागरिको की फिक्र किसे है ।
क्यो रिजर्व बैक में जमा रिजर्व मनी किस काम की जब उसका उपयोग सरकार ही ना कर सके ।
ठीक कह रहे है वाजपेयी जी । यही तो आर्थिक नीतिया है । जो डावाडोल है । मुझे नहीं पता आप मजाक में ये सब कह रहे है या गंभीर है । क्योकि रिजर्व बैक का तीन लाख करोड अगर रनिंग में आ जायेगा तो क्या होगा ....समझ रहे है आप ।
आप ही बताइये...
जी, डालर और मंहगा होगा । पेट्रोल-डिजल की किमते और बढेगी । मंहगाई और बढेगी । और इन्ही सवालो को तो अब रिजर्व बैक के गवर्नर कह रहे है ।
हां, सही कहा आपने पर ये समझ नहीं आया कि उर्जित पटेल को तो रिजर्व बैक का गवर्नर सत्ता ने ही बनाया । और रधुरामराजन भी अब उर्जित पटेल को सही बता रहे है । लेकिन नोटबंदी के वक्त तो उर्जित पटेल का रुख सरकार के साथ था ।
तब तो आपको ये भी समझना होगा कि आलोक वर्मा को सीबीाई डायरेक्टर भी सत्ता ने ही बनवाया और तब काग्रेस विरोध कर रही थी । लेकिन अब काग्रेस ही आलोक वर्मा के साथ है और आस्थाना को सत्ता सही बता रही है ।
मै समझ तो रहा हूं ..लेकिन आप क्या कहना चाहते है । साफ बताये । क्योकि अगर हालात इतने उबाल पर है तो क्या सरकार इसे नहीं समझ रही और संघ इसे नहीं समझ रहा है ।
एक बात तो जान लिजिये...डूबते जहाज में सबसे पहले चूहे ही जहाज छोड भागना चाहते है । ये अलग बात है कि चूहे भागते जरुर है लेकिन समुद्र में फंसे जहाज में चूहे भी भाग कर कहा जायेगे । अब नीतिया डगमगा रही है तो सरकार का परिक्षण तो जनता को करना है । लेकिन नौकरशाह को तो अगली सरकार के साथ भी काम करना है ।
यानी मोदी सरकार जा रही है .... आप ये कह रहे है ।
मै कुछ कह नहीं रहा हूं सिर्फ हालात समझते हुये समझा रहा हूं ।...आप देखिये पहली बार गोविन्दाचार्य ने भी प्रदानमंत्री मोदी के नाम खत लिखा ना । पहली बार मुरली मनोहर जोशी की रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गई । लेकिन किसी मिडिया में ना आये ये हुआ ना । खंडूरी जी ने अपनी रिपोर्ट में डिफेन्स को लेकर सवाल उटाये ना । तो इसे आप क्या कहेगे ।
यही की सत्ता की उम्र पूरी हो रही है तो वह उम्र बरकारर रखने के लिये हर कदम उठा रही है...और जिन्हे सरकार की नीतियो पर भरोसा नहीं वह विरोध कर रहे है । क्योकि उन्हे भी समझ आ रहा है कि सत्ता चुनावी मोड में है तो सारी नीतिया चुनावी जीत सुनिशचित करने के लिये ही बन रही है ।
आपने एक शब्द का इस्तेमाल किया " हर कदम " । इसका मतलब क्या है । क्योकि ये हाल तो हर सत्ता के दौर में चुनाव के वक्त रहा है ...... प्रोफेसर साहेब ने इस बार मुझसे ही सवाल कर दिया ।
हर सरकार और इस सरकार में थोडा सा अंतर है । पहले सरकार का मतलब कैबिनेट होता था .....अब सरकार का मतलब एक दो या तीन शख्स है । पहले सरकार देश के अलग अलग क्षेत्रो के लिहाज से हालात अपने अनुकुल बनाती थी । अब अलग अलग क्षेत्रो या कहे विधानसभा या लोकतसभा क्षेत्रो को ही सत्ता अपने अनुकुल करना चाहती है । यानी सारे हालातो के केन्द्र में अगर एक व्यक्ति रहेगा तो फिर या तो वही पार्टी होगा या फिर पार्टी से बडा हो जायेगा ।
अरे वाह प्रसून वाजपेयी तो पैलेटिकल नैरेटिव बनाने में आ गये....
बंधुवर आप मेरे नैरेटिव को छोडिये ये बताइये कि जापान वाला वह शख्स कौन है । जिसका नाम आप बता रहे थे...
ओह , हा बात विभवकांत उपाध्यय...जिक्र तो मैने किया लेकिन समझना होगा कि इंडिया जारपपान ग्लोबल पार्टनरशीप के ये पाउंडर ही नहीं रहे । बल्कि इन्होने इंडिया सेंटर फाउंडेशन बनाया । और ये भी बता दू कि मोदी सत्ता के वैदेशिक विस्तार में इस शख्स ने खासा काम किया । कभी मौका मिले तो किसी भी बीजेपी के बडे नेताओ से पूछ लिजियेगा कि विभवकांत ने क्या क्या किया तो आप समझ जायेगें ।
पर हुआ क्या ....
हुआ कुछ नहीं कोई गुजरात से दिल्ली आ जाये और उसे लगने लगे कि गुजरात के मेरे साथी मेरे दिल्ली आने पर मेरे पद का लाभ उठायेगें तो आप क्या किजियेगा.... बस उसी की मार विभव पर पडी । और जो आप सीबीआई या इनकम टैक्स अदिकारियो की बात कह रहे थे...उसी का प्रतिफल है । और ध्यान दिजिये जो काम विभव कांत कर रहे थे उसी काम को नये सिरे से शोर्य डोभाल और राम माधव इंडिया फाउंडेशन बना कर करने लगे । जिसमें पारिकर भी जुडे और कई मंत्री भी जुडे । यानी इंडिया सेंटर फाउंडेशन को नये सिरे से दुनिया के साथ संबध बनाने के लिये इंडिया फाउंडेशन बना लिया गया ।
तो फिर इसमें मुस्किल क्या है ...
प्रसून जी सत्ता खुद का विस्तार करती है ना कि सिमटती है । सबकुछ आप अपनी हथेली में सिमटा कर कैसे सत्ता , सरकार पार्टी और देश को भी आगे बढा सकते है । ध्यान दिजिये हो क्या रहा है .....आज आपसे कोई पूछे सत्ता का मतलब ...आप दो नाम ले लोगे । फिर कोई पूछे सरकार का मतलब , तो आप तीन नाम लोगे । फिर कोई पूछे बीजेपी का मतलब , फिर दो से तीन नाम लेने से आगे बात जायेगी नहीं । और देश चला कौन रहा है तो आपको दस नाम लेने में सांसे फूलने लगेगी ।
तो क्या कहे...2014 के जनादेश को ये गंवा बैठे ..
कह सकते है ..क्योकि जनादेश तो ऐसा मिला ..कि चाहते तो देश की सूरत सीरत सब बदल सकते थे......
मतलब ...
मतलब यही कि ....गीत सुना है न आपने सबकुछ गंवा कर होश में आये तो क्या मिला...यहा तो उल्टा है सबकुछ गंवाकर भी होश में आना नहीं चाहते....

जारी.....
 


5 comments:

Unknown said...

Thanks sir.

Unknown said...

सर आप ने अभी तक चैनल जॉइन नही किया

anuj said...

महोदय काफी अच्छा लेख है , पर मेरा एक निवेदन है , अगर हर वाक्य के आगे वक्ता का नाम लिखा जाता तो पढ़ने-समझने में थोड़ा आसानी होती वरना पता ही नहीं चलता की कब कौन व्यक्ति बोल रहा हैं |
उदाहरण के तौर पर
स्वयसेवक : लिजिये झाल-मुडी । ये बिहार-झारखंड में कच्चे सरसो तेल में बनाया जाता है । वाजपेयी जी आपने तो खाया है ।
प्रोफेसर साहेब आपने खाया है ।
प्रोफेसर साहेब : जी खाये तो हम भी है लेकिन आप जिस तरह बनाये है ...उसकी खुशबी अभी से नाको में बसी जा रही है ।
पुण्य प्रसून : जी ये चाय के साथ खाने में चाय के जायके को भी शानदार बना देता है ।
स्वयसेवक : हा हां स्वयसेवक ठहाका लगाते हुये बोले और चायवाले का भी मिजाज तो इससे नहीं बदलता ?
पुण्य प्रसून : ये आप पूछ रहे है या बता रहे हैा

Unknown said...

अति सुन्दर सर जी

Unknown said...

सनकी का क्या होश मे आना और क्या मदहोशी !!
मोदी एक प्यादा थे और अब किस्सा खत्म
श्री मोदी की लोकप्रियता गई तेल लेने....