Sunday, December 9, 2018

अर्थ्वयवस्था का चेहरा भी बदलेगा 11 दिसंबर के बाद




ये पहली बार होगा कि तीन राज्यो के चुनाव परिणाम देश की राजनीति पर ही नहीं बल्कि देश के इकनामिक माडल पर भी असर डालेगें । खास तौर से जिस तरह किसान-मजदूर के मुद्दे राजनीतिक प्रचार के केन्द्र में आये । और ग्रामिण भारत के मुद्दो को अभी तक वोट के लिये इस्तेमाल करने वाली राजनीति ने पहली बार अर्थव्यवस्था से किसानो के मुद्दो को जोडा वह बाजार अर्थव्यवस्था से अलग होगी , इसके लिये अब किसी राकेट साइंस की जरुरत नहीं है । ध्यान दें तो काग्रेस ने अपने घोषणापत्र मे जिन मुद्दो को उठाया उसे लागू करना उसकी मजबूरी भी है और देश की जरुरत भी । क्योकि मोदी सत्ता ने जिस तरह कारपोरेट की पूंजी पर सियासत की और सत्ता पाने के बाद कारपोरेट मित्रो के मुनाफे के लिये रास्ते खोले वह किसी से छुपा हुआ नहीं है । और 1991 में आर्थिक सुधार के रास्ते कारपोरेट के जरीये काग्रेस ने ही बनाये ये भी किसी से छुपा नहीं है । लेकिन ढाई दशक के आर्थिक सुधार के बाद देश की हथेली पर भूख-गरीबी और असमानता जिस तरह बढी और उसमें राजनीतिक सत्ता का ही जितना योगदान रहा उसमें अब राहुल गांधी के सामने ये चुनौती है कि वह अगर तीन राज्य जीतते है तो वैकल्पिक अर्थव्यवस्था की लकीर खिंचे । और शायद ये लकीर खिंचना उनकी जरुरत भी है जो भारतीय इक्नामिक माडल के चेहरे को खुद ब खुद बदल देगी । इसके लिये काग्रेस को अर्थशास्त्री नहीं बल्कि राजनीतिक क्षमता चाहिये । क्योकि चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक दस दिनो में किसानो की कर्ज माफी होगी । न्यूतम समर्थन मूल्य किसानो को मिलेगा । मनरेगा मजदूरो को काम-दाम दोनो मिलेगा । छोटे-मझौले उघोगो को राहत भी मिलेगी और उनके लिये इन्फ्रास्ट्क्चर भी खडा होगा । अब सवाल है जब ये सब होगा तो किसी भी राज्य का बजट तो उतना ही होगा , तब कौन सा रुपया किस मद से निकलेगा । जाहिर है कारपोरेट को मिलने वाली राहत राज्यो के बजट से बाहर होगी । और उसी मद का रुपया ग्रामिण इक्नामी को संभालेगा । क्योकि किसान मजदूर या छोटे-मझौले उघोगो के हालात में सुधार का एक मतलब ये भी है कि उनकी खरीद क्षमता में बढोतरी होगी । यानी कारपोरेट युग में जिस तरह की असमानता बढी उसमें ग्रामीण भारत की पहचान उपभोक्ता के तौर पर कभी हो ही नहीं पायी । फिर जब दुनिया भर में भारत का डंका पीटा जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवी सबसे बडी इक्नामी हो चुकी है तो अगला सवाल कोई भी कर सकता है कि जब इतनी बडी इक्नामी है तो फिर भारतीय कारपोरेट अपने पैरो पर क्यो नहीं खडा हो पा रहा है । और उसे सरकार से राहत क्यो चाहिये । फिर एनपीए की सूची बतलाती है कि कैसे दस लाख करोड से ज्यादा की रकम कारपोरेट ही डकार गये और उनसे वसूली की जगह मोदी सत्ता ने की खेप में राहत देनी शुरु कर दी । और इसी कतार में आम जनता का बैको में जमा रुपया भी कारपोरेट सत्ता से करीबी दिखा कर फरार हो गया । जिन्हे भगौडा कहकर वापस भारत लाने का शिगूफा राजनीतिक तौर पर मोदी सत्ता ने बार बार कही । लेकिन सवाल ये नहीं है कि जो भगौडे है उन्हे सत्ता वापस कब लायेगी बल्कि बडा सवाल ये है कि क्या वाकई मोदी सत्ता के पास कारपोरेट से इतर कोई आर्थिक ढांचा ही नहीं है । जाहिर है यही से भारतीय राजनीति के बदलते स्वरुप को समझा जा सकता है । क्योकि जनवरी में मोदी सरकार आर्थिक समिक्षा पेश करेगी और अपने पांच बरस की सत्ता के आखरी बरस में चुनाव से चार महीने पहले अंतरिम बजट पेश करेगी । और दूसरी तरफ काग्रेस अपने जीते हुये राज्यो में कारपोरेट से इतर ग्रामिण इक्नामी पर ध्यान देगी । यानी राज्य बनाम केन्द्र या कहे काग्रेस बनाम बीजेपी का आर्थिक माडल टकराते हुये नजर आयेगा । और अगर ऐसा होता है तो फिर पहली नजर में कोई भी कहेगा कि जिस आर्थिक माडल का जिक्र स्वदेशी के जरीये संघ करता रहा और एक वक्त बीजेपी भी आर्थिक सुधार को बाजार की हवा बताकर कहती रही उसमें बीजेपी सत्ता की कहीं ज्यादा कारपोरेट प्रेमी हो गई और काग्रेस भारत के जमीनी ढांचे को समझते हुये बदल गई ।
दरअसल पहली बार राजनीतिक हालात ही ऐसे बने है कि काग्रेस के लिये कोई भी राजनीतिक प्रयोग करना आसान है और बीजेपी समेत किसी भी क्षत्रप के लिये मुशिकल है । क्योकि राहुल गांधी के कंघे पर पुराना कोई बोझ नहीं है । काग्रेस को अपनी पुरानी जमीन को पकडने की चुनौती भी है और मोदी के कारपोरेटीकरण के सामानांतर नई राजनीति और वैक्लिपक इकनामी खडा करना मजबूरी है । मोदी सत्ता इस दिशा में बढ नहीं सकती क्योकि बीते चार बरस में उसने जो खुद के लिये जो जाल तैयार किया उस जाल को अगले दो महीने में तोडना उसके लिये संभव नहीं है । हालाकि तीन राज्यो के जनादेश का इंतजार करती बीजेपी ये कहने से नहीं चूक रही है कि मोदी वहा से सत्ता हो जहा से काग्रेस या विपक्ष की सोच खत्म हो जाती है । तो ऐसे में ये समझना भी जरुरी है कि चुनाव के जो आंकडे उभर रहे है उसमें बीजेपी से दस फिसदी तक एससी-एसटी वोट खिसके है । किसान-मजदूरो के वोट कम हुये है । बेरोजगार युवा और पहली बार वोट डालने वालो ने भी बीजेपी की तुलना में  काग्रेस को करीब दस फिसदी तक ज्यादा वोट दिये है । और अगर अगले दो तीन महीनो में मोदी उन्हे दोबारा अपने साथ लाने के लिये आर्थिक राहत देते है तो तीन सवाल तुरत उठेगें । पहला , राज्यो के जनादेश में हार की वजह से ये कदम उठाया गया । दूसरा , काग्रेस की नकल की जा रही है । तीसरा , चुनाव नजदीक आ गये तो राहत देने के कदम उठाये जा रहे है । फिर असल सच तो यह भी है सरकारी खजाना खाली हो चला है तभी रिजर्व बैक से एक लाख करोड रुपया बाजार में लाने के लिये रिजर्व बैक के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स पर दवाब बनाया जा रहा है । फिर चुनाव जब चंद फर्लाग की दूरी पर हो तो कारपोरेट मित्रो से पूंजी की जरुरत मोदी सत्ता को पडेगी ही । और कारपोरेट मित्रो को अगर ये एहसास होता है कि मोदी सत्ता जा रही है तो वह ज्यादा दांव मोदी पर ही लगायेगे । क्योकि काग्रेस तब मोदी के कारपोरेट मित्रो की पूंजी से बचना चाहेगी । पिर एक सच ये भी है कि पहली बार काग्रेस ने राजनीतिक तौर पर मोदी के कारपोरेट मित्रो का नाम खुले तौर पर अपने चुनावी प्रचार में ना सिर्फ लिया बल्कि भ्रष्ट्रचार के मुद्दो को उठाते हुये क्रोनी कैपटलिज्म का कच्चा-चिट्टा भी खोला ।
तो चुनावी दांव के बदलते हालात में आखरी सवाल ये भी होगा कि तीन राज्यो की जीत के बाद काग्रेस महज महागढबंधन में एक साझीदार के दौर पर दिखायी नहीं देगी बल्कि काग्रेस  के ही इर्द -गिर्द समूचे विपक्ष की एकजूटता दिखायी देगी । और इसका बडा असर यूपी में नजर आयेगा जहा काग्रेस अकेले चुनाव लडने की दिशा में बढेगी । क्योकि काग्रेस अब इस हकीकत को समझ रही है कि जब मायावती को तीन राज्यो के दलितो ने कांग्रेस की तुलना में कम वोट दिया तो यूपी में उसे गंठबंधन के साथ जाने पर कोई लाभ नहीं होगा । क्योकि काग्रेस के पारंपरिक वोट बैक सिर्फ किसान तक सीमित नहीं रहे है बल्कि दलित आदिवासी, ओबीसी और ब्रहमण भी यूपी में साथ रहे है । इसीलिये काग्रेस के लिये दिल्ली की सत्ता हमेशा यूपी के रास्ते निकली है । तो जिस परिवर्तन की राह पर काग्रेस खडी है उसमें तीन राज्यो के जनादेश पहली बार राजनीतिक तौर तरीके भी बदल रहे है और देश का इक्नामिक माडल भी ।

17 comments:

Unknown said...

बिल्कुल सत्य

Ronak Seth said...

Why don't you again come back to TV ? Not Goddy Media but any media . The way you present any issue is way beyond awesome

Unknown said...

Aap sir jaldi kisi news channel me aa jaiye ..mai aapka blog roj padta hu...par aap bataiye kitne log h jo ye blog padhte h...? Bahut kam..up me yogi ka aatank desh me modi ka...aasa karta hu aap jaldi kahi dikhenge...

Unknown said...

Sahi bat hai

Krishan Mohan said...

👌👌

कुमार अभिषेक said...

अब sir कांग्रेस galt logo ko cm ना बना दे Mp मे to ज्योतिरादित्य सिंधिया जी या कमल नाथ जी ही cm होना चाहिए न्ही तो voter के साथ अन्याय होगा .

Leaders Talk said...

itna accha visleshan sayad hi koi kar pae for country for us u should join new chanel we r egarly waiting

MOHAMMED SALIM said...

100% I AGREE WITH YOU.

Unknown said...

If result come in favour of congress then it's intrested to see how modi and shah Handel situation till may 2019

Unknown said...

Boss
Hats off to you

Smart said...

Me aap ke blog ki har story padta hu master stroke yaad aa jata hai...koi news channal join kijiye....abhishar ki tarah...

kanhaiya said...

हम सब भलीभाती ये जानते हे की आप पत्रकारित्व की परिभाषा बहोत अच्छी तरह जानते हे समझते हे और जीते भी हे। कहा जाता हे की पत्रकार, मीडिया समाज का आईना होता हे और उसे आपने सार्थक भी किया हे। आप जैसे सच्चे पत्रकार की इस देश को बहोत जरूरत हे जो सच्चाई को समाज के सामने रखे बिना किसीसे डरे जो भी रेपोर्टिंग हो समाज के हित मे हो ये आपकी सोच रही हे अतः आप से बिनती हे की आप कोई सच्चा न्यूज़ चैनल को join करे। हम जानते हे की ये कार्य आज के समय मे थोड़ा मुस्किल हे क्यूकी ऐसा कोई चैनल दिख नहीं रहा फिर भी आप come back करे।

Unknown said...

Miss you Sir

Unknown said...

Miss you Sir

Unknown said...

सच बात

Sandeep Gupta said...

Congress will come back but they are very Big chiter. see tomorrow what happens.

Unknown said...

You come back