Wednesday, November 19, 2008

आतंकवाद के राजनीतिक संकेत को अंजाम देने की सामाजिक फितरत

छह दिसबंर 1992 को दोपहर दो से तीन बजे के दौरान नागपुर के महाल स्थित मोहल्ले में आरएसएस मुख्यालय के ठीक बगल की खुली जगह पर पुलिस जुटने लगी थी। अयोध्या से बाबरी मसजिद ढहाने की खबर जैसे जैसे आ रही थी, आरएसएस मुख्यालय में सरगरमी बढ़ रही थी। संघ के स्वयंसेवकों से लेकर छिटपुट पदाधिकारियों की मौजूदगी में यह एहसास समूचे इलाके में था कि जो कहा, सो किया। यानी पहली बार उस जीत का एक एहसास संघ मुख्यालय या कहे महाल मोहल्ले की गलियों में महसूस किया जा सकता था, जिसे आजादी के ठीक बाद से कभी महसूस नहीं किया गया था।

महाल का जिक्र इसलिये क्योंकि इस मोहल्ले में कमोवेश हर परिवार संघ का स्वयंसेवक है। और पहला एहसास इसलिये क्योंकि आजादी से पहले और बाद की दो घटनाएं संघ के स्वयंसेवकों को टीस दिये हुये थीं। दरअसल, हिन्दुत्व को लेकर संघ की पहल को सावरकर ने कभी मान्यता नहीं दी। इसी वजह से सावरकर नागपुर आये तो भी संघ मुख्यालय नही गये। हालांकि संघ के मुखिया से मुलाकात में कोई गुरेज नहीं किया लेकिन महाल में संघ के स्वयंसेवकों को हमेशा यह एहसास रहा कि सावरकर के तेवर के आगे संघ हिन्दुत्व बौना है।

नागपुर के काटन मार्केट की एक सभा में सावरकर यह कहने से भी नहीं चूके कि सांस्कृतिक संगठनों से देश हिन्दुत्व की राह पर नहीं चल निकलेगा। खैर महाल के स्वयंसेवकों को दूसरी टीस गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध का लगना था। लेकिन
6 दिसंबर 92 की दोपहर जिस जगह पर पुलिस जमा हो रही थी, उसी खुली जगह पर संघ के सरसंघचालक देवरस की कुर्सी भी लगा दी गयी। देवरस करीब तीन-साढे तीन बजे संघ मुख्यालय के अपने घर के बगल की इस खुली जगह पर दो लोगों का सहारा लेकर आये और लकड़ी की उस कुर्सी पर बैठ गये । करीब तीन दर्जन पुलिसकर्मियों ने समूचे क्षेत्र को घेर रखा था। पत्रकारों की भीड़ मौजूद थी। सभी की बातों का जबाब भी देवरस दे रहे थे। पुलिस ने इसके संकेत दे दिये थे कि देवरस की गिरफ्तारी होगी। लेकिन उनकी बिगडी तबीयत की बजह से उन्हे संघ मुख्यालय में ही नजरबंद कर रखा जायेगा। जैसे ही इसकी पहल पुलिस ने शुरु की अचानक कुछ लडकियों और महिलाओ ने देवरस के इर्द-गिर्द घेरा बना लिया। जानकारी मिली की यह दुर्गावाहिनी से जुड़ी हुई हैं। पुलिस टीम में कोई महिला पुलिसकर्मी थी नहीं तो नजरबंदी की पहल रुक गयी क्योंकि पुलिस से दो-दो हाथ करने को दुर्गा वाहिनी की लड़कियां तैयार थीं।

बाबरी मस्जिद को लेकर और अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पत्रकारो के सवाल जबाब के बीच देवरस बार बार यह संकेत दे रहे थे कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना कोई आखिरी या पहली सफलता नहीं है बल्कि रणनीति का एक हिस्सा मात्र है । जिसे राजनीतिक तौर पर देखना और समझना चाहिये चाहे यह सास्कृतिक संघर्ष नजर आ रहा हो। ऐसे में डंडो से लैस दुर्गावाहिनी की लड़कियां जैसे ही पुलिस से दो-दो हाथ करने को नजर आयीं तो मैंने सरसंघचालक देवरस से पूछा, "दुर्गावाहिनी के इसतरह इस्तेमाल का मतलब क्या निकाला जाये..जब यह सहमति बन चुकी है कि आपको आप ही के निवास में नजरबंद रखा जायेगा।" इस पर देवरस का जबाब था कि दुर्गावाहिनी को भी समझना होगा कि कल को उनकी परिस्थतियां किन वातावरण के घेरे में आ सकती हैं। फिर यह एक तैयारी है जिसमे सभी को भागीदारी देनी होगी । इस पर मेरा सवाल था--क्या यह राजनीतिक समझ विकसित करने की तैयारी है । देवरस ने कहा-सास्कृतिक संघर्ष है । लेकिन राजनीति से तो अछूता कुछ भी नहीं । फिर हंसते हुये बोले, आपलोगों से ज्यादा से ज्यादा बात हो सके, इसके लिये दुर्गावाहिनी ने रास्ता बना दिया आप उन्हे बधायी दें। कुछ देर में ही महिला पुलिसर्मियों की टुकड़ी पहुंची और कुछ विरोध और नारों के बीच देवरस को नजरबंद कर लिया गया ।


वहीं अगले दिन नागपुर के मुस्लिम बहुल इलाके मोमिनपुरा के लोगों ने बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के विरोध में एक रैली निकालने का निर्णय लिया । रैली निकल रही है, उसकी जानकारी पुलिस के पास भी पहुंची । पुलिस और रैली निकालने वालों की तकरार के बाद तय हुआ की रैली शहर में नहीं घूमेगी । मोमिनपुरा से निकल कर आधे किलोमीटर का चक्कर लगा कर वापस मोमिनपुरा की गलियों में चली जायेगी और सभा भी वही करेगी । रैली दोपहर में जब निकली तो काले झंडे और बैनर के साथ नारे भी लग रहे थे। लेकिन जैसे ही मोमिनपुरा के मुहाने पर रैली पहुंची, पुलिस ने मुख्य सड़क पर रैली न लाने का निर्देश देकर वहीं सभा करने को कहा। नारे लगा रहे युवाओं में इससे आक्रोष भड़का। उनका कहना था कि वह बाबरी मस्जिद को ढहाये जाने के विरोध का सार्वजिक इजहार भी नहीं कर सकते। वे पुलिस बैरिकेट तोड़कर सड़क पर आने लगे । पुलिस ने लाठिया भांजी । लेकिन महज पांच मिनट के भीतर ही उस वक्त के नागपुर के पुलिस कमिश्नर ईनामदार ने गोली चलाने का निर्देश दे दिया। करीब 22 राउंड से ज्यादा गोलियां चलीं। 13 लडकों की मौत हो गयी। बीस से ज्यादा घायल हो गये। जो लड़के मरे वह सभी मोमिनपुरा के भीतर ही मरे। इतना ही नहीं मोमिनपुरा के एक छोर से दूसरे छोर तक लाशें गिरीं। पुलिस ने महज मुख्य सड़क रक रैली को आने से ही नहीं रोका बल्कि आक्रोष दबाने के लिये मोमिनपुरा के भीतर घरों में घुसकर युवाओ की डंडो से जमकर पिटाई की। जो बाहर निकला उसे गोली मार दी। किसी लड़के के शरीर में गोली कमर से नीचे नही लगी । नागपुर के लिये यह अपने तरह की पहली घटना थी, क्योकि इससे पहले कभी पुलिस की गोली चली और लोग मरे यह बुनकरो के आंदोलन में हुआ था या फिर दलित आंदोलन के उग्र रुप धारण करने पर।

लेकिन,यह पहला मौका था जब 6 दिसंबर की घटना के 48 घंटो के बाद ही समूचे शहर को लगने लगा कि मोमिनपुरा और महाल की पांच किलोमीटर की दूरी सीमा पार सरीखी दूरी हो गयी है। यह घटना उस वक्त तो कानून-व्यवस्था को बरकरार रखने के दायरे में सिमट कर थम गयी लेकिन उस दौर से लेकर आंतकवाद का दामन पकड कर अपने आक्रोष को ठंडा करने या समाधान की राह सोचने की जो समझ विकसित होती चली गयी वह आज मुंह बाएं सामने खड़ी है।

जाहिर है अयोध्या की घटना के बाद देश ने जो देखा समझा या कहे राजनीति ने सत्ता का दामन पकड़ कर अपनी सहुलियतों को जिस तरह सियासी रंग में रंग दिया इसमें दोनो ही तबकों के हाथ खाली रहे। इतना ही नहीं सियासी रंग इतना गाढ़ा हुआ कि देश के बहुसंख्यक तबके ने खुद को ठगा महसूस किया। समूचे देश में मुस्लिमो ने मोमिनपुरा सरीखे मोहल्लो से निकलना बंद किया और उनके इजहार का तरीका उन्हीं तक सिमटता गया, जिसे कभी कांग्रेस ने तो कभी मुस्लिम लिडरानों ने राजनीति का हथियार बनाया । कमोवेश आरएसएस का भी अपने घेरे में यही हाल हुआ। देवरस सरीखा कोई सरसंघचालक उनके बाद न हुआ जो खुले आसमान तले सवालो का जबाब देने आता। या फिर सांस्कृतिक आंदोलन को भी राजनीतिक तौर पर ढालने का मंत्र जानता। बंद कमरो में रणनीति बनने लगी और अपने अपने घेरे में लोकतंत्र के कई आधार स्तंभ ढहाये गये और उसे सफलता मान कर जीत का राजनीतिक आंतक पैदा किया गया।

ऐसे मे साधु-संतो के बीच हिन्दुत्व को लेकर यह नयी बहस है कि आरएसएस जिस हिन्दु राष्ट्र की परिकल्पना को समेटे हुये हो, उससे लाख दर्जे बेहतर तो सावरकर थे, जो सीधे संघर्ष की बात तो करते थे । सावरकर की सोच अचानक उन संगठनो में पैठ बनाने लगी है जो आरएसएस के जरिये बीजेपी को राजनीतिक मान्यता देते रहे हैं । जाहिर है सावरकर की थ्योरी तले पहले जनसंघ खारिज था तो अब बीजेपी खारिज हो रही है। इसलिये साध्वी प्रज्ञा को साधु-संतो के बीच अचानक एक प्रतीक भी बनाया जा रहा जो बिगड़ती व्यवस्था में हिन्दुत्व की नयी थ्योरी को पैदा कर सके। इसलिये बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिह हो या आरएसएस के सरकार्यवाहक मोहनराव भागवत दोनों यही कह रहे है कि भारतीय संस्कृति से जुड़ा व्यक्ति आतंकवादी नहीं हो सकता । वहीं कांग्रेस मुस्लिमो को रिझाने के लिये संकेत की भाषा अपना रही है कि संघी हिन्दुत्व भी आंतकवाद की राह पर है।


हालांकि साध्वी-साधु प्रकरण से यह ख्याल जरुर बढ़ाया जा रहा है कि आंतकवाद का धर्म से कुछ भी लेना देना नहीं है । लेकिन राजनीतिक तौर पर नया सच यह भी है कि अगर आंतकवाद का धर्म होता है तो धर्म के आसरे किया गया आंतकवाद, आंतकवाद नही कुछ और होता है। दरअसल, 6 दिसबंर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद सरसंघचालक देवरस ने इसी संकेत की बात की थी कि अयोध्या का मतलब महज मंदिर निर्माण नहीं हिन्दुत्व जागरण है और मोमिनपुरा में विरोध का इजहार रोक कर पुलिस की गोली ने इस संकेत को अंजाम दिया था। संयोग से देश इसी राजनीतिक संकेत और अंजाम के बीच झूल रहा है, बच सकते हैं तो बचें।

14 comments:

Anonymous said...

मायूसी छोड़ो

मेरे प्यारे देशभक्तों,
आज तक की अपनी जीवन यात्रा में मुझे अनुभव से ये सार मिला कि देश का हर आदमी डर यानि दहशत के साये में साँस ले रहा है! देश व समाज को तबाही से बचाने के लिए मायूस होकर सभी एक दूसरे को झूठी तसल्ली दिए जा रहे हैं. खौफनाक बन चुकी आज की राजनीति को कोई भी चुनौती देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा. सभी कुदरत के किसी करिश्मे के इंतजार में बैठे हैं. रिस्क कोई लेना नहीं चाहता. इसी कारण मैं अपने देश के सभी जागरूक, सच्चे, ईमानदार नौजवानों को हौसला देने के लिए पूरे यकीन के साथ यह दावा कर रहा हूँ कि वर्तमान समय में देश में हर क्षेत्र की बिगड़ी हुई हर तस्वीर को एक ही झटके में बदलने का कारगर फोर्मूला अथवा माकूल रास्ता इस वक्त सिर्फ़ मेरे पास ही है. मैंने अपनी 46 साल की उमर में आज तक कभी वादा नहीं किया है मैं सिर्फ़ दावा करता हूँ, जो विश्वास से पैदा होता है. इस विश्वास को हासिल करने के लिए मुझे 30 साल की बेहद दुःख भरी कठिन और बेहद खतरनाक यात्राओं से गुजरना पड़ा है. इस यात्रा में मुझे हर पल किसी अंजान देवीय शक्ति, जिसे लोग रूहानी ताकत भी कहते हैं, की भरपूर मदद मिलती रही है. इसी कारण मैंने इस अनुभव को भी प्राप्त कर लिया कि मैं सब कुछ बदल देने का दावा कर सकूँ. चूँकि ऐसे दावे करना किसी भी इन्सान के लिए असम्भव होता है, लेकिन ये भी कुदरत का सच्चा और पक्का सिधांत है की सच्चाई और मानवता के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर जो भी भगवान का सच्चा सहारा पकड़ लेता है वो कुछ भी और कैसा भी, असंभव भी सम्भव कर सकता है. ऐसी घटनाओं को ही लोग चमत्कार का नाम दे देते हैं. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, पहली और आखिरी एक ही शर्त होती है वो है 100% सच्चाई, 100% इंसानियत, 100% देशप्रेम व 100% बहादुरी यानि मौत का डर ख़त्म होना. यह सब भी बहुत आसान है . सिर्फ़ अपनी सोच से स्वार्थ को हटाकर परोपकार को बिठाना. बस इतने भर से ही कोई भी इन्सान जो चाहे कर सकता है. रोज नए चमत्कार भी गढ़ सकता है क्योंकि इंसान फ़िर केवल माध्यम ही रह जाता है, और करने वाला तो सिर्फ़ परमात्मा ही होता है. भगवान की कृपा से अब तक के प्राप्त अनुभव के बलबूते पर एक ऐसा अद्भुत प्रयोग जल्दी ही करने जा रहा हूँ, जो इतिहास के किसी पन्ने पर आज तक दर्ज नहीं हो पाया है. ऐसे ऐतिहासिक दावे पहले भी सिर्फ़ बेहतरीन लोगों द्वारा ही किए जाते रहे हैं. मैं भी बेहतरीन हूँ इसीलिए इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत रखता हूँ.
प्रभु कृपा से मैंने समाज के किसी भी क्षेत्र की हर बर्बाद व जर्जर तस्वीर को भलीभांति व्यवहारिक अनुभव द्वारा जान लिया है. व साथ- साथ उसमें नया रंग-रूप भरने का तरीका भी खोज लिया है. मैंने राजनीति के उस अध्याय को भी खोज लिया है जिस तक ख़ुद को राजनीति का भीष्म पितामह समझने वाले परिपक्व बहुत बड़े तजुर्बेकार नेताओं में पहुँचने की औकात तक नहीं है.
मैं दावा करता हूँ की सिर्फ़ एक बहस से सब कुछ बदल दूंगा. मेरा प्रश्न भी सब कुछ बदलने की क्षमता रखता है. और रही बात अन्य तरीकों की तो मेरा विचार जनता में वो तूफान पैदा कर सकता है जिसे रोकने का अब तक किसी विज्ञान ने भी कोई फार्मूला नही तलाश पाया है.
सन 1945 से आज तक किसी ने भी मेरे जैसे विचार को समाज में पेश करने की कोशिश तक नहीं की. इसकी वजह केवल एक ही खोज पाया हूँ
कि मौजूदा सत्ता तंत्र बहुत खौफनाक, अत्याचारी , अन्यायी और सभी प्रकार की ताकतों से लैस है. इतनी बड़ी ताकत को खदेड़ने के लिए मेरा विशेष खोजी फार्मूला ही कारगर होगा. क्योंकि परमात्मा की ऐसी ही मर्जी है. प्रभु कृपा से मेरे पास हर सवाल का माकूल जबाब तो है ही बल्कि उसे लागू कराने की क्षमता भी है.
{ सच्चे साधू, संत, पीर, फ़कीर, गुरु, जो कि देवता और फ़रिश्ते जैसे होते हैं को छोड़ कर}
देश व समाज, इंसानियत, धर्मं व इन्साफ से जुड़े किसी भी मुद्दे पर, किसी से भी, कहीं भी हल निकलने की हद तक निर्विवाद सभी उसूल और सिधांत व नीतियों के साथ कारगर बहस के लिए पूरी तरह तैयार हूँ. खास तौर पर उन लोगों के साथ जो पूरे समाज में बहरूपिये बनकर धर्म के बड़े-बड़े शोरूम चला रहे हैं.
अंत में अफ़सोस और दुःख के साथ ऐसे अति प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त विशेष हैसियत रखने वाले समाज के विभिन्न क्षेत्र के महान लोगों से व्यक्तिगत भेंट के बाद यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे अखबार, मैगजीन, टीवी, बड़ी-बड़ी सेमिनार और बड़े-बड़े जन समुदाय को मंचों से भाषण व नसीहत देते हुए नजर आ रहे हैं व धर्म की दुकानों से समाज सुधार व देश सेवा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियों की बात करने वाले धर्म के ठेकेदार, जो शेरों की तरह दहाड़ते हैं, लगभग 99% लोगों ने बात पूरी होने से पहले ही ख़ुद को चूहों की कौम में परिवर्तित कर लिया. समस्या के समाधान तक पहुँचने से पहले ही इन लोगों ने मज़बूरी में, स्वार्थ में या कायरपन से अथवा मूर्खतावश डर के कारण स्पष्ट समाधान सुझाने के बाद भी राजनैतिक दहशत के कारण पूरी तरह समर्पण कर दिया. यानि हाथी के खाने और दिखने वाले दांत की तरह.
मैं हिंदुस्तान की 125 करोड़ भीड़ में एक साधारण हैसियत का आम आदमी हूँ, जिसकी किसी भी क्षेत्र में कहीं भी आज तक कोई पहचान नहीं है, और आज तक मेरी यही कोशिश रही है की कोई मुझे न पहचाने. जैसा कि अक्सर होता है.
मैं आज भी शायद आपसे रूबरू नहीं होता, लेकिन कुदरत की मर्जी से ऐसा भी हुआ है. चूँकि मैं नीति व सिधांत के तहत अपने विचारों के पिटारे के साथ एक ही दिन में एक ही बार में 125 करोड़ लोगों से ख़ुद को बहुत जल्द परिचित कराऊँगा.
उसी दिन से इस देश का सब कुछ बदल जाएगा यानि सब कुछ ठीक हो जाएगा. चूँकि बात ज्यादा आगे बढ़ रही है इसलिए मैं अपना केवल इतना ही परिचय दे सकता हूँ
कि मेरा अन्तिम लक्ष्य देश के लिए ही जीना और मरना है.
फ़िर भी कोई भी , लेकिन सच्चा व्यक्ति मुझसे व्यक्तिगत मिलना चाहे तो मुझे खुशी ही होगी.. आपना फ़ोन नम्बर और अपना विचार व उद्देश्य mail पर जरुर बताये, मिलने से पहले ये जरुर सोच लें कि मेरे आदर्श , मार्गदर्शक अमर सपूत भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राए सरीखे सच्चे देश भक्त हैं. गाँधी दर्शन में मेरा 0% भी यकीन नहीं हैं.
एक बार फ़िर सभी को यकीन दिला रहा हूँ की हर ताले की मास्टर चाबी मेरे पास है, बस थोड़ा सा इंतजार और करें व भगवान पर विश्वास रखें. बहुत जल्द सब कुछ ठीक कर दूंगा. अगर हो सके तो आप मेरी केवल इतनी मदद करें कि परमात्मा से दुआ करें कि शैतानों की नजर से मेरे बच्चे महफूज रहें.
मुझे अपने अनुभवों पर फक्र है, मैं सब कुछ बदल दूंगा.

क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
आपका सच्चा हमदर्द
(बेनाम हिन्दुस्तानी)
e-mail- ajadhind.11@gmail.com

Unknown said...

जो ढांचा अयोध्या में ढहाया गया वह कोई मस्जिद नहीं था. आप तो एक पत्रकार हैं, आपने मुस्लिम स्कालर्स से यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की कि इस्लामिक कानून के अनुसार किसे मस्जिद कहा जा सकता है? क्या मुस्लिम कानून के अनुसार इस ढाँचे को एक मस्जिद कहा जा सकता है? जहाँ तक मुझे पता है, अगर किसी जगह पर काफ़ी समय तक नमाज न पढ़ी जाय तो वह जगह मस्जिद नहीं कही जा सकती. पता लगाइए और जनता को इसबारे में सही जानकारी दीजिये. मीडिया में होने के नाते आपका यह फ़र्ज़ बनता है.

Sarita Chaturvedi said...

AGAR IS SANKET AUR ANJAM KO ULAT DIAA JAYE TO KYA AAP KHULI SAHMATI DENGE.......WAISE PAHLI BAR AAP KE LEKH KE JARIYE HI MALOOM HO SAKA KI ...MOMINPURA ME HUA KYA THA..JINHE BHI YE SACHHAI MALOOM HOGI WO VICHAR KARNE PAR JAROOR VIWAS HO JAYEGE..PAR DEVRAS AUR SAVARKAR KO..IS KADAR BATANA..PRAYOJAN KYA HAI? KAHI SABKUCH JAYAJ TO NAHI THAHRA RAHE HAI..?

Sarita Chaturvedi said...

SURESH JI...AAP BHI BAT KO KAHA LE JA RAHE HAI...PAHLE LEKH PADHIYE..KISI PARTY KI TARAH BAT MAT KIJIYE

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पुण्यप्रसून जी
६ दिसम्बर ९२ का सच ,चश्मदीद के द्वारा मैं ६ दिसम्बर को बताऊंगा .ऐसा सच जो आप भी जानना चाहेंगे .उस समय आप शयद नागपुर मे थे और हम अयोध्या मे .

अखिलेश सिंह said...

prasun ji main aap se shat pratishat sahmat hoon.... aap ne sahi likha hai....

अखिलेश सिंह said...

prasun ji main aap se shat pratishat sahmat hoon.... aap ne sahi likha hai....

संतोष कुमार सिंह said...

(बाटला हाउस से साध्वी प्रज्ञा तक का सफर-- बाजपेयी जी चंद दिनों के अंदर आपने आतंकबाद के कई चेहरे पर काफी वारीकी से प्रकाश डाला हैं।लेकिन जितनी वारिकी आपने तथ्यों को परोसने में लगाया शायद आतंकवाद के कारणों पर उतनी वारीकी से प्रकाश डालने का प्रयास नही किया।ब्लागर पर लिख रहे हैं इसमें कही से भी टी0आर0पी0 का मामला नही बनता और ना ही किसी मैनेंजमेंट का दवाव आप को प्रभावित कर रहा हैं।जहां तक मुझे लगता हैं कि आप राजनीत में भी आना नही चाहते तो फिर आप अपनी बात कहने में अति सेकुलर चेंहरा क्यों परोङने का प्रयास कर रहे हैं।साध्वी प्रज्ञा के कारनामों के बारे में पुलिस जो कह रही हैं हो सकता हैं वह पूरी तरह सही हो लेकिन मेरा मानना हैं कि भाजपा अपनी राजनैतिक गणित को संभालने के लिए उसके बचाव में बयान दे रही हैं।आम हिन्दू साध्वी के इस कारनामों से कतई खुश नही हैं।लेकिन मालेगांव धमाके के मामले मैं जो भी तथ्य सामने आये हैं उससे भारतीय मुसलमानों को सबक लेनी चाहिए क्यों की अब भारत में कही भी धमाके हुए और आम लोग मारे गये तो प्रज्ञा के विचारों को बल मिलेगा ।ऐसे हलात में न तो भारतीय कानून में इतनी दम हैं और ना ही आज के राजनीतिज्ञों में गांधी जैसा कोई प्रभावी व्य़त्ति हैं जिसके कहने पर युद्ध विराम हो सके।बाजपेयी जी भागलपूर औऱ सीतामंढी(बिहार) के दंगे को आप ने भी काफी करीब से एहसास किया हैं इस घटना के बाद बिहार में मुस्लिम कट्ररबाद पर अंकुश लगा हैं। दुर्गा पूजा के दौरान मुर्ति विसरजन को रोकने और कलस यात्रा को रोकने जैसी घटनाओं में काफी कमी आयी हैं ।हिंसा का प्रतिवाद अवश्य होनी चाहिए लेकिन पत्रकार भी राजनीतिज्ञों की भाषा बोलने और लिखने लगे तो इस देश की जनता की आखरी उम्मीद भी तार तार हो जायेगी।भारतीय मुस्लमान को भारतीय मिजाज और शैली में जीने की आदत डालनी होगी और हिंसा के बजाय भारत के निर्माण में अपने योगदान की कङी को और मजबूत करने के लिए आगे आना होगा यही सच हैं।इस सच को अपने अपने तरीके लिखने और कहने की जरुरत हैं। संवाददाता--ई0टी0भी0(पटना)

prakharhindutva said...

हे द्विजश्रेष्ठ अग्रज!

आपकों यदि आपके व्यस्त कार्यक्रम से कुछ समय मिले तो कभी मेरे ब्लॉग की ओर भी ध्यान दीजिए और उसे टिप्पणी से अलंकृत कीजिए। लोग कहते हैं कि यह प्रोपेगैण्डा है मैं कहता हूँ सत्य है।

www.prakharhindu.blogspot.com

आलोक साहिल said...

aap agar BJP/congress/sp ya fir kisi parti ke spokesperson hote to main aapki bat se asahamati vyakt kar sakta tha,
par,aapse asahamat hone ka koi karan najar nahi ata.
bilkul sahi aur bilkul khari.
ALOK SINGH "SAHIL"

parth pratim said...

यदि हम इमानदारी से ढूंढें तो हमें हमारे ही मुल्क में सच्चे धर्म निर्पेक्छ लोग मिल जायेंगे. हमें उन लोगों पर चर्चा करनी चाहिए. हमने अभी कुछ दिन पहले एक न्यूज़ चैनल पर देखा की एक हिंदू दम्पत्ती ने एक बेसहारा मुस्लिम बच्ची को गोद लिया है. घटना प्रेरणा दायक है. दरअसल दोनों समुदायों में अतिवादी लोगों की एक बड़ी संख्या है. ये लोग विपरीत समुदाय के अतिवादियों से अपने समुदाय के लोगों की तथाकथित सुरक्छा के नाम पर अपने अपने संगठन बना रखे हैं, जिसका वास्तविक लाभ राजनितिक दल उठाते हैं. अब यदि मुंबई में राज ठाकरे के आतंक से बचने के लिए उत्तर भारतीय लोग अपना संगठन बना लें तो इसमे क्या आश्चर्य है ? हर समाज के बुद्धिजीवियों तथा समर्थ लोगों को आगे आकर हमारे सामाजिक सौहार्द्रता को दीमक की तरह खोखला कर रहे इन लोगों को हतोत्साहित करना होगा. इसमे मीडिया की निष्पक्छ भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होगी.

hamarijamin said...

Prasun! samkalin rajnitik itihas
likh rahe hain aap. bas itana hi.

vikas mehta said...

parsun jee aap ye bataiye har samay hinduo ko kyo kosa jata hai aap sabhi bare patrkar bhali bhanti jante hai bharat me simi jase sangthan hai jo islam ke nam par roz visfote kar rhe hai jab ki rss ne desh hit me bhut kam kiye hai parantu aap sabhi patrkar mano rss se kisi parkar ki dushmani hi kar bathe hai or shiree maN JEE SAWARKAR JEE SE HAME BHI PARICHIT KARWAIYE ME SAMJH NHI PA RHA HOO SAWARKAR KON HAI

Apunka Naya Andaz said...

Dimag par gira hai bechara...
yeh bhi hinduo ke piche pad gaya,,,
teri G me itana hi dum hai toh..
Muslimko kilaf ek word bhi likha...
Chtuiyaaaaa saaaalaaaaa
...
sharam kar ... narak me bhijagah nahi milegi...