Monday, November 10, 2008

साधु,सिपाही और मुस्लिम आतंकवाद में कहां है देश

आतंकवाद के घेरे में साधु और सिपाही के आने से झटके में मुस्लिम आतंकवाद पर विराम लग गया है । वह बहस जो हर आतंकवादी हिंसा के बाद "सॉफ्ट स्टेट" को लेकर शुरु होती थी और इस्लामिक आतंकवाद के साथ कभी सीमा पार तो कभी बांग्लादेश तो कभी अलकायदा सरीखे संगठन को छूते हुये पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इर्द गिर्द ताना बाना बुनती थी, अचानक वह बहस थम गयी है ।

साध्वी प्रज्ञा से लेकर लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के आतंकवादी ब्लास्ट में शामिल होने ने संकेतों ने अचानक उस मानसिकता को बैचेन कर दिया है जो यह कहने से नहीं कतराती थी कि हर मुसलमान चाहे आतंकवादी न हो लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान जरुर है। इसमे दो मत नही कि मुस्लिम समुदाय को लेकर आतंकवाद की जो बहस समाज के भीतर चली और बीजेपी-कांग्रेस सरीखे राष्ट्रीय राजनीतिक दलो ने उसे जिस तरह देखा, उसमें देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जुड़ती चली गयी। इसे खुफिया एजेंसियों ने भी माना कि बाजार अर्थव्यवस्था का जो चेहरा विलासिता के नाम पर भारतीय समाज से जुड़ा है, उसमे बहुसंख्यक तबके के सामने यह संकट भी पैदा हो गया है कि वह पाने की होड़ में अपना क्या क्या गंवा दे। खासकर समाज के भीतर जब समूचे मूल्य पूंजी के आधार पर तय होने लगे हैं और सरकार की नीतियां भी नागरिकों को साथ लेकर चलने के बजाय एक तबके विशेष के मुनाफे को साथ लेकर चल रही है तो आक्रोष बहुसंख्य तबके के भीतर लगातार बढ रहा है। जो अलग अलग तरीके से अलग अलग जगहो पर निकल भी रही है।

इस घेरे में मुस्लिम संप्रदाय सबसे पहले नजर आ रहा है तो पहली वजह तो उसकी बदहाली है। उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियां हैं, जिसका जिक्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में उभरा भी है। लेकिन दूसरी बडी वजह वह राजनीतिक परिस्थितियां हैं, जो सत्ताधारियों के लिये मुनाफे की चाशनी बन चुकी है। जिसे बिना किसी लाग-लपेट कर हर तरह का सत्ताधारी चाट सकता है।

मामला सिर्फ वोट बैंक का नहीं है। जहां कांग्रेस को पुचकारना है और बीजेपी को मुस्लिम के नाम पर हिन्दुओं को डराना है। बल्कि विकास की लकीर का अधूरापन और पूरा करने की सोच भी मुस्लिम समुदाय से जोड़ी जा सकती है। यह मानव संसाधन मंत्रालय से लेकर भारतीय परिप्रेष्य में संयुक्त राष्ट्र भी बखूबी समझता है।

संयोग से बीते डेढ़ दशक में जब आर्थिक व्यवस्था परवान चढ़ी, उसी दौर में व्यवस्था सबसे ज्यादा कमजोर होती भी दिखी। ऐसा नहीं है कि आहत सिर्फ धर्म के नाम पर एक समुदाय विशेष हुआ। आहत समूचा समाज हुआ तो साधू और सिपाही भी पहली बार संदेह के घेरे में आये है। सेना के भीतर कोई बहस होती है या नही, इसे देखने और उजागर करने की समझ और हिम्मत देश के किसी राजनीतिक सिपाही में नहीं है । वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में कारगिल के दौर में सेना के भीतर से आवाज निकल कर देश के पटल पर छा जाने को बैचेन थी। लेकिन सेना का कोई चेहरा नहीं होता। यह चेहरा तो वेतन आयोग की सिफारिशों के विरोध में भी उभर नहीं सका। अर्थव्यवस्था ने सिर्फ पूंजी की सीमा ही रुपये और डॉलर की नहीं मिटायी बल्कि सरकारें यह भी नही समझ सकी देश के भीतर जब देशप्रेम का जुनून ही खत्म हो चला है तो सीमा पर खड़े रहने वाला सिपाही किस अंतर्द्दन्द से गुजर रहा होगा। जब उसके सामने तो सीमा की पहरेदारी होगी लेकिन आम नागरिको के बीच जाकर उसे यह एहसास होता होगा कि देश तो बिकने को तैयार है या फिर वह रक्षा एफडीआई या विदेशी निवेश की कर रहा है, जिस पर देश टिकता जा रहा है।

सैनिको को लेकर जिस भोसले स्कूल का नाम आ रहा है, वह देश के उन पहले स्कूलों में शुमार है जो आजादी से पहले पब्लिक स्कुल की सोच को लेकर आगे बढ़े। नासिक का भोसले सैनिक स्कूल 1937 में स्थापित हुआ। और देश के सात टॉप पब्लिक स्कूलों की पहली कान्फ्रेंस 16 जून 1939 में शिमला के गोर्टन कैस्टल कमेटी रुम में हुई । इसमें भोसले सैनिक स्कूल नासिक के अलावा सिधिया स्कूल ग्वालियर, डाले कालेज इंदौर, ऐटीचीसन कालेज इंदौर, दून स्कूल देहरादून ,राजकूमार कालेज रायपुर और राजकोट के राजकुमार कालेज के अध्यक्ष या सचिव शामिल हुये थे । जिसमें देश की संसकृति के अनुरुप पव्लिक स्कूलो को आगे बढाने का खाका रखा गया था।

अब तक इन स्कूलो के 68 बैठकें हो चुकी हैं। यानी हर साल सभी जुटते जरुर हैं तो यह सवाल भी उठेगा कि जिन स्कूलों की नींव आजादी से पहले पड़ी, उसमें आजादी के बाद पव्लिक स्कूलों की भूमिका को लेकर भी क्या सवाल उठते होंगे। भोसले सैनिक स्कूल पांचवी कक्षा से बारहवी कक्षा तक हैं। यहा के कोर्स में हिन्दुत्व को लेकर महाराष्ट्र बोर्ड का ही सिलेबस पढाया जाता है । लेकिन तरीका 1935 में बनाया गया सेन्ट्रल हिन्दु मिलेट्री एजुकेशन सोसायटी वाला ही है। जाहिर है देश को लेकर जो नींव इस तरह के स्कूलो में पड़ेगी, वैसा देश नहीं है तो सवाल कहीं भी उठेंगे। नागपुर के भोसले स्कूल के वाद विवाद प्रतियोगिता में पिछले दो-तीन साल से यह सवाल छात्र उठा रहे हैं कि जिन परिस्थितयो से देश गुजर रहा है, उसमे समाधान क्या है। जाहिर है यहा राष्ट्रीय स्वंससेवक संघ के हिन्दु राष्ट्र की परिकल्पना उभरती होगी। जो राजनीतिक नजरीये से खतरनार मानी जा सकती है। लेकिन संघ के भीतर के संघठनों में भी जब यह सवाल उठने लगा कि वाजपेयी सरकार में भी देशवाद और हिन्दुत्व खारिज हुआ तो समाधान क्या हो। अगर मुस्लिम समुदाय को बिलकुल अलग कर भी दिया जाये तो हिन्दुत्व कट्टरवाद के आक्रोष की इतनी परते है कि पहली बार समाज के उन खेमो में अपनी ही नींव से भरोसा टूटने लगा जो मानकर चल रहे थे कि उनकी समझ समाधान दे सकती है।

साधु समाज को तो सालों साल या कहे अभी तक भरोसा ही नहीं है कि जिन्ना के लोकतंत्र की हिमायत करने वाले लालकृषण आडवाणी को आरएसएस ने माफ कर दिया। साधु-संतो के बीच हिन्दुत्व को लेकर यह बहस है कि आरएसएस जिस हिन्दु राष्ट्र की परिकल्पना को समेटे हुये हौ उससे लाख दर्जे बेहतर तो सावरकर थे । जो सीधे संघर्ष की बात तो करते थे। सावरकर की सोच अचानक उन संगठनो में पैठ बनाने लगी है जो आरएसएस के जरिए बीजेपी को राजनीतिक मान्यता देते रहे हैं। जाहिर है सावरकर की थ्योरी तले पहले जनसंघ खारिज था तो अब बीजेपी खारिज हो रही है। इसलिये साध्वी प्रज्ञा को साधु-संतो के बीच अचानक एक प्रतीक भी बनाया जा रहा जो बिगडती व्यवस्था में हिन्दुत्व की नयी थ्योरी को पैदा कर सके । इसलिये बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिह हो या आरएसएस के सरकार्यवाहक मोहनराव भागवत दोनों यही कह रहे है कि भारतीय संस्कृति से जुड़ा व्यक्ति आतंकवादी नहीं हो सकता । वहीं कांग्रेस मुस्लिमो को रिझाने के लिये संकेत की भाषा अपना रही है कि संघी हिन्दुत्व भी आतंकवाद की राह पर है। लेकिन हर कोई फिर उन परिस्थितयो से आंख मूंद रहा है जो समाज के भीतर तनाव पैदा कर राज्य के प्रति अविश्वास को जन्म दे रही हैं। इसलिये जयपुर-अहमदाबाद-दिल्ली के आतंकवादी घमाको में मुस्लिम और मालेगांव में हिन्दु आतंकवादी नजर आ रहा है। जबकि हर कोई भूल रहा है दोनो भारतीय नागरिक हैं।

19 comments:

Unknown said...

यह सब मीडिया की मेहरबानी है, उस मीडिया की जिस के आप सिपाही हैं. बंगलौर, अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, यहाँ तक कि गुवाहाटी भी, अब तो लगता है जैसे वह सब एक सपना था. ब्लास्ट तो बस मालेगांव में हुए थे, जिसकी सरकारी सिपाही अच्छी तरह जांच कर रहे हैं, और मीडिया के सिपाही साथ-साथ मुकदमा चला रहे हैं.

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

विश्लेषण अच्छा है .प्रश्न भी वाजिब है .लेकिन साध्वी व सिपाही के आधार पर जो इस्लामिक आतंकवाद के साथ तुलनात्मक अध्यन किया गया है ,वो सटीक नही लगा .

Ghost Buster said...

शीर्षक अपूर्ण है. होना चाहिए था साधू, सिपाही, मुस्लिम आतंकवाद और सस्ती पत्रकारिता में कहाँ है देश.

Unknown said...

आतंकवाद के खिलाफ़ बन रहे माहौल को दबाने और हल्का करने के लिये जो चाल मीडिया और कांग्रेस ने मिलकर खेली है उसमें वे कामयाब हुए… हिन्दुत्व को बदनाम करके, "हिन्दू आतंकवादी" शब्द गढ़कर छद्म सेकुलर अपना उल्लू सीधा कर लेंगे, सबसे खराब भूमिका भाजपा की रही, जो खामखा "बैकफ़ुट" पर हो गई है… और यही इस घटिया मीडिया के सेना-साध्वी के झूठे प्रोपेगण्डा की सफ़लता है…

युग-विमर्श said...

आपका आलेख भी पढ़ा और प्रतिक्रियाएँ भी देखीं. इतने गंभीर आलेख को इतने हल्केपन से लिया जायेगा, सोच भी नहीं सकता था. आपके अनेक बिन्दु ऐसे हैं जिनपर गंभीर विचार-विमर्श अपेक्षित है. भावुकता से प्रेरित टिप्पणियाँ अर्थ-हीन होती हैं और सोच को ग़लत दिशा में ले जाती हैं.

sarita argarey said...

आतंकवाद पर मज़हबी सियासत ही गलत है । बारत में हिन्दू - मुस्लिम आपस में इस तरह रहते आए हैं कि दहशतगर्दी का खमियाज़ा दोनों ही संप्रदाय के लोगो को बराबरी से झेलना पडता है । आतंक का एक ही मज़हब है असलहा । सियासती चालों को भारतीयों को समझना चाहिए । मीडिया भी राजनेताओं की तरह हिन्दू - मुसलमान के आधार पर खबरें देने लगे , तो फ़िर विकल्प क्या है । मीडिया का दायित्व है हकीकत बयान करना ,केवल न्यूज़ देना व्यूज़ देना नहीं । आर्थिक तूफ़ान ने मीडिया की जडें भी उखाड फ़ेंकीं हैं । इसी का नतीजा है खांचों में बंटा देश की अवाम । आपकी मार्मिक हकीकत सिर्फ़ ब्लाग तक ही सीमित है । बैनल पर ईमानदार प्त्रकार होने का दायित्व निभाएं तब तो कोई बात है ।

Sanjeev said...

क्या आप यह कहना चाहते हैं कि इस्लाम के नाम पर फैलाया जा रहा आतंक जायज है? प्रिय मित्र आज नहीं पिछले 1400 वर्षों से इस्लाम को इसी प्रकार से पनपाया गया है। दूसरे धर्म के अनुयायियों को इसी तरह भ्रमित किया गया है कि वे अपनी वाज़िब प्रतिक्रिया भी नहीं दे पाते हैं। यदि यह सही नहीं होता तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान(सिंध, बलूचिस्तान, पश्चिमी पंजाब, सरहदी सूबे आदि), काश्मीर, पूर्वी बंगाल(बांगलादेश) में से सनातन धर्म, बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के अनुयायी कहां चले गये? आप मालेगांव को हव्वा बनाने को तुले हैं काश्मीर से लाखों हिंदूओं को निकाल दिया गया लेकिन आपने उनके बारे में कितना लिखा है?

adil farsi said...

बाजपेयी जी आप ने सच्चाई बयान की है सत्ता के लोलुपों को देश की समाज की हिंदुऔ व मुसलमानों की नहीं अपनी राजनीति की पडी है किसी भी धर्म में आस्था होने से देश के प्रति हमारी जि्म्मेदारी कम नही होती..प्रसून जी आप जैसे लोग बधाई के पात्र हैं

Sarita Chaturvedi said...

SIRF CHAND NAM UBHAR KAR SAMNE AAYE HAI..JIS PAR KAPHI DHUNDH HAI.. WAISE ME SABHI KO KADKARE ME KHARA KARNA KAHA TAK NAYAYOCHIT HAI? BHAROSA KYA CHAND LOGO SE HI JURA HOTA HAI ..JO HALKI SE THES PAR DAH JAYE..? PRAGYA HAI HI KYA..KYA YOO HI KOI PRATIK BAN JATA HA..? AGAR BJP YA RS BACHAW KAR RAHE HAI TO KYA JAROORI HAI USE NAKARATAMK RUP ME DEKHA JAYE..JABKI PRAMAR ABHI BHI THOSH NAHI HAI. AUR AAKHE MUDANE KA TO PRASN HI NAHI KYOKI AAKHE TO KABHI KISI NE KHOLI HI NAHI...! RAHA SAWAL BHARATIY KA....TO KHUD KO BHARTIYA KAHTA KAUN HAI..? PAHLE DHARM, JATI, NAM, PAD....KAHI BAD ME MUSKIL SE YAD KIAA JATA HAI KI...(BHARTIYA)..!BAHUT CHOTI SE CHIJ KO ITANA NA KHANGALIYE.........

Unknown said...

हलके आलेख को गंभीर कहना और गंभीर प्रतिक्रियायों को हल्का कहना न्यायसंगत नहीं है. जिन्हें लगता है कि इस आलेख में अनेक बिन्दु ऐसे हैं जिनपर गंभीर विचार-विमर्श अपेक्षित है तो उन्हें विचार-विमर्श करना चाहिए. हम भी तो देखें कि भावुकता से प्रेरित हमारी टिप्पणियाँ किस तरह अर्थ-हीन हैं और कैसे सोच को ग़लत दिशा में ले जाती हैं?

अनुराग तिवारी said...
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अनुराग तिवारी said...

साध्वी और सैन्य अफसर आतंकवादी हैं या नही यह सच तो देश ज़रूर देखेगा और कई अनसुलझे सत्यों की तरह इस सत्य को जानने का अनंत इंतज़ार भी रहेगा. शायद यह वही जांच एजेन्सी है जिसने तेलगी द्वारा किए गए नाम के खुलासों को नज़रंदाज़ कर दिया, क्योंकि वे नाम इस राष्ट्र के अन्दर के "महा" राष्ट्र के राष्ट्रभक्त, राजनीति के मराठा सेनापतियों के थे. क्या मीडिया भी भूल गया तेलगी के नार्को टेस्ट की फुटेज... या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लाइब्रेरी सांप्रदायिक सद्भाव की आग में जलकर ख़ाक हो गई है?

यदि श्रीकांत पुरोहित के ख़िलाफ़ कोई आरोप प्रमाणित नही होता, तब इस देश के सैन्यबल और खुफिया जांच अधिकारियों के मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इस प्रश्न का आशय यह बिल्कुल नही कि संदिग्ध सैन्य अधिकारियों कि कोई जांच ना हो. सैन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ जांच पहले भी होती रही है, लेकिन राजनितिक आकाओं को संतुष्ट करने का यह तरीका विध्वंशकारी है...

यह उसी प्रदेश कि पुलिस है जो अपने सीमा क्षेत्र में तो अंडरवर्ल्ड के अघोषित पे- रोल पर काम करती हैं और राष्ट्रीय राजधानी में जाकर अपने आका के ख़िलाफ़ चलने वाली मुहीम को नाकाम करने के लिए राव तुलाराम बाग़ में "विक्की मल्होत्रा" को गिरफ्तार करती है... आप भी समझ गए होंगे कि किसके साथ था "विक्की"? यह उसी "महा" राष्ट्र कि पुलिस है जो अपने आका के दुबई से आए फ़ोन पर "शूटआउट एट लोखंडवाला" को अंजाम देती है.

अगर इस टिपण्णी को हल्का करना हो तो एक गंभीर बात भी कह सकता हूँ कि यह वही जांच एजेंसियाँ हैं जो "बेगुनाह" लोगों का एनकाउंटर कर रही थीं और छाती ठोंककर प्रेस कांफ्रेंस कर रहीं थीं... मालेगांव मामले में सिर्फ़ "जांच" चलने और बार- बार ब्रेन मैपिंग की ही बात हो रही है... यदि "हिंदूवादी" लोगों का दोहरा मापदंड सामने आया है तो निहित स्वार्थों के चलते पूर्वाग्रह से ग्रसित "मानवाधिकारवादियों" का दोहरा चरित्र भी सामने उजागर है...

साधु,सिपाही और मुस्लिम आतंकवाद में कहां है पुलिस, राजनेता मीडिया... और….. कहाँ है राष्ट्र?

vipin dev tyagi said...

हिंदू आतंकवादी हाल ही में...सर्वसम्मानित,छद्म सेक्यूलरवादी ,विद्धानों.बुद्धिजीवियों का जागृत शब्द है...दो दशक से ज्यादा समय से वादियों में खून की होली खेली जा रही है..सीपी से लेकर अहमदाबाद के बाजारों में दहशतगर्द मौत का खूनी खेल चुके हैं..और खेलने की तैयारी भी कर रहे होंगे..लेकिन क्या किसी ने इसे कभी ,कहीं मुस्लिम आतंकवाद से संबोधित किया..क्या किसी अखबार,चैनल ने MUSLIM TERRORIST शब्द को हेडलाइंस में मोटे अक्षरों में लिखा... खुद को पढ़ा-लिखा...धर्मनिरपेक्ष,ज्ञानी.,देश की तमाम समस्याओं का दर्द सीने में लिये चिंतक साबित करने के लिये ... हिंदू आतंकवादी..जैसे शब्दों का चयन जरूरी है...क्या अमन और देश के दुश्मनों को धर्म,जाित,क्षेत्र,अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के चश्में से देखना सही है..अगर सवाल और शक मालेगांव धमाके में आरोपी साध्वी प्रज्ञा के हिंदूवादी संगठनों से संबंधों को लेकर उठ रहे हैं..तो क्यों नहीं इतने सालों में जब मुिस्लम युवक आतंकी होने के आरोप में पकड़े गये..या मारे गये..तो क्यों मौलवी और मस्जिद- मदरसों के सरमायेदारों पर इस तरह प्रचंड तरीक से आरोप नहीं लगाये गये, सवाल नहीं पूछे गये...क्यों अपनी ईमानदारी,धर्मनिरपेक्षता,देशभक्ति साबित करने के लिये तुष्टिकरण की नाव पर सवार होना लाजमी है...या फिर अपने आप को सच्चा राष्ट्र भक्त साबित करने के लिये खुद को स्वर्णिम भारत..अभिनव भारत...अतुल्य भारत का हितैषी..बताना क्यों जरूरी है..क्यों बीमारी की जड़ में जाने की बजाय..थर्मामीटर से बाहरी बुखार नापने का सिलसिला बदस्तूर,सरकार दर सरकार जारी है...क्यों अधिकार और जिम्मेदारी..राइटस एंड ड्यूटी.. सब पर एक समान..एक साथ..एक जैसे तरीके..नियम-कानून के साथ लागू नहीं होते..क्यों सब खुद को इसी मिट््टी का नहीं मानते.क्यों कुछ सियासी अंधों को बिहार और महाराष्ट्र की मिट्टी के रंग में फर्क दिखता है....

ashok dubey said...

MAJAHAB NAHI SIKHATA AAPAS ME BAIR KARNA.............................
ATANKWADI NA TO HINDU HOTA HAI NA MUSLIM AUR NA HI SIKH..
KUCH LOGON KI WAJAH SE KISI BHI COMMUNITY KO ATANKI KAHNA GHALAT HOGA

S C Mudgal said...

Dear Mr. Prasun,
You are not clear in your views, you want to show that we are considering the hindu view but your innersoul never accept against your mindset which you received in VIRASAT in mass media training Where the just thing is only to be presented if it is not against your income Genrating mission. If the things is true and just but is a hurdle in the way of earning, you suddenly start avoiding the just and true which should be the only aim to establish for a mediaman.
S.C.Mudgal

EVOCATION said...

sir aap ne sahi baat kahi ha ki dhamake karne wala hindu ha ya musalman lekin dono hain to isi desh k nagrik lekin mein ek baat kehna chaha ta hun ki media bhi dhamakon k samey apna sayam kho deti ha kuch hi dinho pehle mehroli mein hue dhamake ke chand second baad zee news ki screen par ye news flash hone lagi ki kya ye hi islaam ha kya media ya aap ke chanel ko pata tha ki dhamaka kisne kiya ha aur kya unka koi dharm hota ha jo dhamake ko anjaam dekar begunha logon ki jaan lete hain isliye ese mudde par likhne aur bolne se pehle hamen apne andar se dharm ko nikaal na hoga

vikas mehta said...

male gav jha pakistan ke jhande lahraye jate hai aap media wle unki bat karte hai asam jha bangladeshi ghuspathiye 300 logo ka visfote dawara rakt bhate hai aap unka jikr tak nhi karte desh janana chahta hai goa me visfote hota hai to news chanlle ki headline ban jata hai or jab kashmir me hindu brahmano ko balat bhagaya jata hai media me koi jikr tak nhi hota kha hai bari khabar

sandeep mishra said...

ab tak sadhvi k khilaf koi saboot sarkar pesh nhi kar pai.muslimo ko rijhane ki koshish me lagi congress,hindu atankvaad ka naam uchaal rahi hai.pure sant samaj per ungli uth rhi hai

Apunka Naya Andaz said...

are madarchoddd..
aagar me tere ko har din tappad marega... aur toh bachao ke liye.. ek tappad wapas marega ..
toh dono same hi hue kya?
Toda toh dimag use kar..
kahan woh 9/11 Twin tower girana..
aur kahan Sanghwiji ka palat kar war karana...
Nirlaajjjm sadha Sukhi...
pahale tere jaise Ganddu ko marana chahaiye...
tabhi India ka kuch ho sakata ahi