विदर्भ की कलावती किसानों से कहेगी, “किसान को कोई मरने से बचा सकता है तो वह कांग्रेस है। राहुल गांधी हैं। किसान अगर आत्महत्या कर रहे हैं और उन्हे ज़हर के बदले कोई खाना दे सकता है तो वह कांग्रेस है। राहुल गांधी हैं। किसानों की स्थिति बद-से-बदतर हुई है तो उसके जिम्मेदार किसानों के मंत्री हो सकते हैं। प्रधानमंत्री हो सकते हैं। लेकिन कांग्रेस या राहुल गांधी नहीं हैं। किसानों के मंत्री प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। अभी के प्रधानमंत्री जी प्रधानमंत्री पद पर बरकरार रहना चाहते हैं। यानी शरद पवार किसानों को आत्महत्या के कुएं में ढकेल कर जोड़-तोड़ कर प्रधानमंत्री की कुर्सी चाहते हैं और मनमोहन सिंह के बैंक तो कर्ज से ज्यादा वसूली करते है लेकिन वह फिर से प्रधानमंत्री बनना चाहते है। अगर राहुल गांधी न होते तो कौन जानता अमरावती-यवतमाल-अकोला-बुलढाणा-चन्द्रपुर को। देश के नेता तो वर्धा को जानते हैं, वह भी महात्मा गांधी की वजह से। लेकिन राहुल गांधी के कारण तो देश के लोग हम लोगों को जान पाए। हमारे गांव-खेड़े को देख पाये। राहुल गांधी न आते तो कौन सा नेता यहां आता। अबकि कांग्रेस की अपनी सरकार होगी तो राहुल ही देश चलायेंगे और किसानों की जान बचायेंगे।”
यह मजमून उसी कलावती का है, जिसके घर जाकर उसके दर्द को राहुल गांधी ने जाना-समझा था। उस वक्त जब संसद में न्यूक्लियर डील को लेकर बहस हो रही थी तब राहुल ने कलावती के नाम का जिक्र कर एक ही झटके में विदर्भ की कलावती को चालीस हजार किसानो की कब्र पर खिला फूल सा बना दिया। और कलावती को भाषण की यह ट्रेनिंग लोकसभा चुनाव के लिये है। जिसमें कलावती को कांग्रेस और राहुल को लेकर ट्रेनिंग दी जा रही है। यह विदर्भ के ही कांग्रेसियों का कमाल है। उन्हें लगने लगा है कि किसानों के भीतर कांग्रेस को लेकर आक्रोष भरा पड़ा है। चुनाव में वोट डालते वक्त ये नाराजगी उनके खिलाफ जा सकती है। ऐसे में यूपीए सरकार से कांग्रेस की नीतियों को अलग करके प्रचार करने से लाभ हो सकता है, ऐसा छुटभैय्या नेता मान रहे हैं।
ऐसे में एनसीपी यानी शरद पवार भी निशाने पर हैं। किसानों को समझाया जा रहा है कि हर विभाग का एक मंत्री होता है। सिर्फ कांग्रेस की सरकार होती तो राहुल गांधी देख सकते थे कि किसानो का हित कौन सा मंत्री देखेगा लेकिन दिल्ली में तो कई दलों ने अपनी अपनी मर्जी का पद ले लिया है और उसमें किसानो का विभाग शरद पवार ने लिया। पवार ने राहुल गांधी से वायदा किया था कि वह किसानों का हित देखेंगे। लेकिन कांग्रेस को बदनाम करने के लिये शरद पवार ने किसानों के लिये कुछ नहीं किया।
वैसे,स्थानीय कांग्रेसियों ने एनसीपी के शरद पवार को ही निशाना नहीं बनाया है बल्कि प्रफुल्ल पटेल, जो खुद विदर्भ के हैं, उन्हें भी घेरे में लिया है। किसानों के खिलाफ किस तरह एनसीपी काम करती है, इसका हवाला भाषणों की तैयारी में प्रफुल्ल पटेल के जरिये दिया जा रहा है। अकोला के किसान नंदकिशोर किसानों को बतायेंगे कि प्रफुल्ल पटेल उन्हीं के जिले के हैं, लेकिन इन्होंने नागपुर में किसानों की जमीन पर रंदा चलवा दिया। मिहान परियोजना के नाम पर किसानों की जमीन को सरकार ने हथिया लिया और सीमेंट की इमारतें खड़ी करवाने के लिये दिल्ली से हरी झंडी ले ली। अंतर्राष्ट्रीय कारगो बनाने के लिये बीस हजार किसानों की रोजी रोटी छीन ली। पिछले पांच साल में बीस हजार किसानों ने अगर आत्महत्या कर ली तो उसकी वजह इन नेताओं को जमीन के बदले आसमान देखना था। प्रफुल्ल पटेल पांच साल पहले सड़क पानी की बात करते थे, अब वही नेता और मंत्री बनकर हवाई जहाज और कारगो की बात करते हैं। जो पटेल पहले सड़क पर कार दौड़ा कर नागपुर से अपना घंघा चमकाते थे, वही अब हवाई जहाज से अमेरिका और लंदन जा कर अपने नये नये धंधों को बढ़ा रहे हैं । नंदकिशोर किसानों को यह भी बतायेंगे कि शरद पवार के सबसे करीबी नेता प्रफुल्ल पटेल ही हैं। अब यह पटेल समाज को तय करना है कि उन्हें जमीन पर रोटी चाहिये या आसमान में उड़ान भर कर हवा से काम चलाना है।
विदर्भ के किसानों में आक्रोष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर भी है क्योंकि किसान राहत के लिये जिन दो पैकेज का ऐलान किया गया, उससे कौडी भर भी राहत किसानों तक नहीं पहुंची। बैकों से लिया गया लोन हो या साहुकारों से लिये गये उधार- दोनो की वसूली आज तक जारी है। जो निर्देश बैकों को दिये गये, उसमें भष्ट्राचार न हो इसके लिये इतने नियम-कायदे बैकों ने ही बना दिये लिहाजा किसान को राहत तो नहीं मिली बल्कि किसानों का पैसा भी घोटाले का शिकार होकर चंद हाथों में सिमट गया। इससे कोई मामला सामने भी नहीं आया। अमरावती और अकोला के सवा दो लाख किसानों के नाम बैकों के रजिस्टर में मौजूद है, जिन्हें एक ही गांव के बीस हजार से लेकर डेढ लाख तक की राशि 2008 तक मिल जानी थी । लेकिन इन दोनो जिलों के नब्बे फिसदी किसानों को फूटी कौड़ी नहीं मिली। रजिस्टर में अंगूठे के निशान के जरीये करीब आठ से दस करोड़ की राशि किसानों को दिये जाने की रिपोर्ट मुंबई भेजी जा चुकी है।
प्रधानमंत्री पैकेज के ऐलान के बाद से संयोग कहे या उम्मीद का टूटना, किसानों की आत्महत्या में बीस फिसदी का इजाफा हो गया । पहले जहां हर महीने आत्महत्या का आंकडा पचास से सत्तावन तक रहता था, वहीं पैकेज के बाद यह बढ़कर पैसठ से सत्तर तक जा पहुंचा है। 16 फरवरी 2009 को पेश किये गये आखिरी बजट के बाद के बीस दिनों में सत्ताइस किसानों ने सिर्फ विदर्भ में आत्महत्या की है। इसलिये प्रधानंमत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ किसानों के आक्रोष को देखते हुये कांग्रेसी ही मनमोहन सिंह को भी यह कहते हुये खारिज कर रहे हैं कि वह कांग्रेस के नहीं यूपीए के नेता हैं। जिस तरह शरद पवार हैं। इसलिये अब कांग्रेस को भी जिताना है।
वहीं किसानों के बीच काम कर रहे किशोर तिवारी की मानें तो नेताओं की आवाजाही ने किसानों की जीवटता को तोड़ दिया है क्योंकि हर नेता जिस सुख-सुविधा को दिलाने का भरोसा दिला देता है, उसके बाद किसान भी रोटी के लिये दिल्ली-मुंबई की ही दिशा देखता है। काम बंद हो जाता है । रोजगार गारंटी के अंतर्गत मिलने वाले काम तक को नहीं करता । अंत में आत्महत्या करता है तो नेताओं का तांता आंकड़ा बढ़ने के साथ लगने लगता है। 2004 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ऐन पहले पहली बार सोनिया गांधी वर्धा के एक किसान की विधवा से मिलने पहुंची थीं। उस यात्रा ने चुनावी असर दिखाया तो उसके बाद शिवसेना ने किसानों की राह पकड़ी। बालासाहेब ठाकरे के बेटे उद्दव ठाकरे ने कई यात्रायें विदर्भ के किसानों के बीच कीं। फिर प्रधानमंत्री बनने का इंतजार कर रहे लाल कृष्ण आडवाणी कभी संघ को तो कभी किसानों को यह भ्रम देते यात्रा करते रहे कि वह नागपुर संघ मुख्यालय में राजनीतिक काम निपटाने आये हैं या किसानों के दर्द को समझने। उन्होंने तीन यात्राये कीं। फिर बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने किसान यात्रा यहीं से शुरु की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी दो यात्रायें कीं और राहुल गांधी भी दो बार विदर्भ के किसानों से हाथ मिला और दिल लगाकर लौट गये । कृषि मंत्री शरद पवार पूरे कार्यकाल में दो बार आये । इसके अलावा अगर राज्य के सीएम से लेकर विधायक सांसद और नौकरशाहो के जायजा लेने की गिनती करे तो पांच साल में एक हजार यात्राओं का आंकडा पार कर जायेगा। इस तरह नेताओं और नौकरशाहों की गाडियां जब आत्महत्या करते किसानों के घरों को रौंदते हुये उन्हे जीने का सब्ज बाग दिखायेंगी तो किसान कब और कहां काम करेगा?
नरेगा के तहत विदर्भ में काम भी सबसे कम हुआ है । पैकेज और राहत दिलाने के इतने राजनीतिक वायदे हुये है कि कोई किसान सौ रुपये में एक दिन खेत को छोडकर कोई काम करना नहीं चाहता है और नरेगा के अधिकारी भी नहीं चाहते हि किसान किसानी छोड़ कर सड़क या गड्डे खोदने में लगे । क्योकि किसान की खेती छिनने की एक नयी कहानी यहां से शुरु होगी जो सत्ताधारियो को परेशानी में डाल देगी । कांग्रेसी नेताओ को भरोसा हो चला है कि किसान अगर साथ खडा हो गया तो कोई हवा-कोई मुद्दा जीतने से नही रोक सकता । क्योंकि 1977 की जनता लहर में जब कांग्रेस का सूपड़ा समूचे देश से साफ हो गया था तो विदर्भ ही एकमात्र जगह थी, जहां की सभी ग्यारह सीट पर कांग्रेस जीती थी। वहीं इस बार तो कोई हवा भी नहीं है। नेता से बड़ी जनता हो चुकी है और राहुल गांधी से बड़ी कलावती लगने लगी है । और राहुल की कलावती अगर हर क्षेत्र में मिल जाये तो राहुल ही असल गांधी हो सकते है...इसी मंत्र के आसरे कांग्रेसी अब महामृत्युंजय जाप करने लगी है।
Tuesday, March 10, 2009
राहुल की कलावती बचायेगी कांग्रेस को !
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:01 AM
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4 comments:
kalavati rahul ke liye ek prachar -bhar ka hathkanda hai jise yadi kuchh fayda milta hai to voh bhi iske badle me apna laabh dekh rahe hain,aur yeh sab rajneeti me galat nahin hai.
'chanchalbaiswari.blogspot.com'
congress rahul ko pm ke liye project kar rahi hai...theek hee hai.. aakhir jo neta itney saalo me nahi kar rhey hai wo rahul kar rha hai..chahey wo logo ke beech jaakey apni paith banana ya fir kalwati ke dard ko smjhna,,..aakhir iss desh ki arthvyavastha kisaan par hee tiki hai aur usey nzara andaaz kiya jayega bhi to kab tak aakhir wo hee vote batorney me madad kar rkta hai... jaha tak unka utthan ka sawal hai jo bhi policies banayi jaati hai wo sirf bimar ko theek karti hai bimari ko nahi...
abhi aur dukhad mauto ko dekhanaa baaki hai kyunki "mere desh ki dharti ab sona nahi..neta ugal rahi hai"
प्रसूनजी होली का हार्दिक शुभमानाएं
कलावती के घर जाकर खाना टाइप का खाना...खाकर राहुल गांधी देश की गरीब जनता को उम्मीद और सपनें दिखाने की भले ही कोशिश करें..लेकिन उनके ये नेक इरादतन कोशिशें..चार कदम चलकर हांफते हुए..दम तोड़ते हुए नेजर आती है...राहुल की नीयत साफ है..ईमानदार हैं...युवा हैं..इसमें कोई शक नहीं है..लेकिन वो राजनीति के जिस कॉलेज में पढ़ रहे हैं..वो कॉलेज भी उनका अपना है...पीढ़ियों से उस कॉलेज में प्रिंसिपल,हेडमास्टर,ट्रस्टी,प्रेसिडिंट चाहे जो कहें..उनकी ही फैमिली रही है...वो देश की सेवा करना चाहते हैं..सब को साथ लेकर चलना चाहते हैं..लेकिन पोस्टर में वो अतीत की नींव पर भविष्य निर्माण का नारा भी देते हैं...जब अतीत में झांक कर देखें..तो कांग्रेस ही कांग्रेस नजर आती है..आजादी के बाद से अब तक..सिर्फ अटल के छह साल,देवगौड़ा,गुजराल,वीपी सिंह,चंद्रशेखर,मोराजी,चरण सिंह की तू चल में आया..वाली पारी छोड़ दें..तो कांग्रेस ने ही राज किया है..उन्ही के परिवार के पास पीएम की कुर्सी रही है...नरसिंहरावा को सत्ता,राजीव गांधी की हत्या की वजह से मिली...तो डॉक्टर साहब की दुकान पर भी उन्हीं की मम्मी का बोर्ड लगा हुआ है...जब उनकी पार्टी पिछले साठ सालों के कामयाबी के तमाम तमगों,उपलब्धियों का ताज अपने सिर पर सजाने का कोई मौका नहीं छोड़ती तो,इतने सालों की कमियों,नाकामियों,गुरबत,मुश्किलों को वो अपनी गलत नीतियों की देन क्यों नहीं मानती..क्यों वो नहीं मानती कि उसने जिस दिन मंदिर का ताला खोला था उसी दिन सामंप्रदायिकता का जिन्न बोतल से बाहर निकल गया था...भिंडरवाला हो या कश्मीर की वादियों में राजनीति का काला रंग बिखरने की शुरूआत..सब कांग्रेस की देन है..अच्छा तो अपना..बुरा तो तुम्हारा..अगर इसी को कांग्रेस देशसेवा समझती है-मानती है..तो मानती रही..दिल को खुश रखने के लिये ये ख्याल अच्छा है...
sahb bas hamari yahi kami hai k hum in netaon pentre me aa jate hain. rahul or ne jane kitne neta kalawati k ghar raat to bita sakte hain lekin satta me rahte takdir nahi badal sakte. Mahatma Gandhi g ne garibi hatane ki baat suru ki thi ab 5 pidhiyon baaad congres ne gari ko sadak se bhi niche utar diya or hum hain k ak raat kalawati k ghar pr bitan pr khushi mana rahe hain.....
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