Tuesday, June 2, 2009

क्या करे मनमोहन सरकार ?

जंबो मंत्रिमंडल ने रन-वे पर दौड़ना शुरु कर दिया है। इससे पहले की वह उड़ान भरे और आसमान से समूचा देश एक सरीखा ही लगे, उससे पहले देश के भीतर बन चुके दो देश और जमीनी हालत पर अपनी ताकत का एहसास पायलट को होना चाहिये। यह एहसास रेल और आम बजट को पेश करने से पहले होना जरुरी है। देश के जो हालात हैं, उसमें मनोहारी बजट से लुभाने के बदले एक ऐसा विजन होना जरुरी है, जो लागू करा सकने वाली नीतियो के आसरे असल ताकत का एहसास करा सके। चूंकि सरकार पर असल सरकार की भी नजर है, जो जनादेश को भरोसा दिला रही है कि इस बार आर्थिक-सामाजिक तौर पर बंट रहे देश को पाटा जायेगा इसलिए रन-वे पर दौड़ती सरकार को पहली बार शहरी नहीं गांव का चश्मा पहनना होगा। इस चश्मे से वो शेयर बाजार या कारपोरेट थ्योरी से इतर इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखेगा।

सरकार का टारगेट सीधा और साफ होना चाहिये और प्रयोग एकदम नया। देश की मिट्टी में अभी भी इतनी उर्जा है कि मंदी के भयानक दौर में भी वह सौ करोड़ लोगों का पेट भर सकती है। ऐसे में सवाल सरकार के नजरिये का है । काम के तरीको का है। और अपनी जमीन पर अपने संसाधनों के जरिए उस अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा, जो गांव और पिछड़े इलाकों से लोगो का पलायन रोके। हर को अपने घेरे में एहसास कराये कि वह देश की मुख्यधारा से जुड़ा है। यानी इलाको को लेकर सामाजिक-आर्थिक तौर पर असमानता न हो।

यहां से सरकार का टारगेट शुरु होता है। उसे सबसे पहले शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार को टारगेट करते हुये एक देश में बने दो देशो की दूरी को पाटने का नजरिया अपनाना होगा । जिन इलाको में न खेती है, न रोजगार, वहां विश्वविधालय खोलने की नीति सरकार को अपनानी होगी। यह क्षेत्र जमीन की खोजबीन और उस पर होने वाली बहस से सरकार को बचा देंगे। मसलन बुंदेलखंड सरीखे इलाके में अगर विश्वविधालय खोला जाता है, जो वह इलाका मुख्यधारा के इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ेगा ही। इसमें तीस फीसदी एडमिशन स्थानीय यानी अगल-बगल के चार पांच जिलो के बच्चों के लिये आरक्षित करना होगा, जिससे इन इलाको से दिल्ली-लखनऊ या भोपाल पलायन करने वाली युवा पीढी को भी रोका जा सके। इस दिशा में फायदे वाले मंत्रालयों को जोड़ना । मसलन रेलवे अपनी जमीन पर रेलवे कर्मचारियो के बच्चो के लिये यूनिवर्सिटी खोले। यह यूनिवर्सिटी विदर्भ में कलावती के जिले अमरावती में भी खुल सकती है या ऐसे ही किसी इलाके में। इसमें स्थानीय लोगों के लिये कुछ सीटों का आरक्षण हो। यह काम ओएनजीसी या फायदे और जरुरत वाले हर सेक्टर में भी किया जा सकता है । इनके शिक्षा संस्थान ट्रेनिग सेंटर सरीखे होगे । जिसमें से निकलने वाले छात्रों को टेक्निकल फील्ड में खापाया जा सकता है।

चूंकि देश की जरुरत के हिसाब से देखे तो टेक्निकल संस्थान न के बराबर हैं। जाहिर है इस क्षेत्र में मुनाफा भी इतना है कि निजी क्षेत्र इससे जुडने के लिये खदबदा रहा है । उन्हें जितनी सुविधा सरकार देती है, अगर उसका आधी सुविधा देते हुये भी फायदे वाले सार्वजिक उपक्रमो को इस क्षेत्र में लगाया जाये तो इसका दो-तरफा लाभ देश को मिल सकता है । एक तरफ कर्मचारियो का जुड़ाव अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर सार्वजिक उपक्रम से जुड़ेगा तो दूसरी तरफ ट्रेड युवाओं की मौजूदगी सेक्टर को पैर पसारने में मदद करेगा। यह प्रयोग बैकिंग सेक्टर में कहीं ज्यादा व्यापक हो सकता है । चूंकि बैकिंग सेवा को सिर्फ कम्प्यूटर से ही समूचे देश को जोड़ने के लिये और हर क्षेत्र में इसकी सेवा की व्यापक जरुरत के मद्देनजर इतनी बडी तादाद में लोगो की जरुरत होगी, जिसे सार्वजनिक उपक्रम के बैक खुद के ही तकनीकी शिक्षा संस्थान के जरीये पूरा कर सकते है। फिर बैकिंग ट्रेनिग संस्थान से निकले छात्रों को नेशनल सेक्यूरिटी एजेंसी से जोड़ा जा सकता है । जो आंतकवाद पर नकेल कसने में मददगार बने । क्योंकि इकनॉमिक ऑफेन्स को पकड़ने का तकनीकी ज्ञान अभी भी खासा कम है । बैंकिग की जानकारी वाला शख्स नाजायज ट्रांजेक्शन को पकड़ेगा तो आंतकी खुद पकड़ में आ जायेगा । जबकि अभी तक सरकार आतंकवादी के पीछे भागती है। ऐसे में आंतकवादी के मरने के बावजूद उसका स्ट्रक्चर बरकरार रहता है । सरहदों को लांघते आतंक को पकड़ने में बैकिंग तकनीक खासी सहायक होगी।

दूसरा क्षेत्र टेलीकॉम का है। टेलीकॉम का उपयोग देश के भीतर करने की स्थितियों को पैदा करना होगा। इनकी जरुरत इतनी ज्यादा है कि हर क्षेत्र अछूता है। सिर्फ देशी कंपनी विप्रो-इनफोसिस-टीसीएस-टेक महेन्द्रा को हर सेक्टर से जोडकर तकनीकी तौर पर मजबूत बनाने की पहल करनी होगी। जैसे---लॉ रिफार्म के लिये जरुरी है निचली अदालतो से लेकर हाईकोर्ट तक का कम्प्यूटरीकरण । इसकी बिडिंग कराके तत्काल देशी कंपनियो को काम सौंपने चाहिये। मुकदमों को लेकर जितने मामले हर दिन अदालतों में पहुंचते हैं और उसमें जितना पैसा एक स्टाम्प लगाने से लेकर दस्तावेज जमा करने में किसी भी गांव वाले से लेकर शहरी का होता है, अगर उसे अदालतों के सुधार से जोड़ दिया जाये तो धन की उगाही अदालतो के जरीये भी की जा सकती है ।

राज्यों को भी इससे जोड़ा जा सकता है । खासकर भूमि सुधार और निचली दीवानी अदालतो के कामकाज को लेकर । यह काम देशी कंपनियो से कराने की बात इसलिये क्योंकि पिछली सकार में ही देसी कंपनी को दरकिनार कर अमेरिका कंपनी आईबीएन को एक मामले में तरजीह दे गयी, जबकि अमेरिका में आईबीएन की जगह उसी भारतीय कंपनी को तरजीह दी गयी, जिसे मनमोहन सरकार के दौर में खारिज कर दिया गया। फिर विप्रो सरीखी कंपनियो के जरीये तो ग्रामीण इलाकों में नये विश्वविद्यालय के साथ ट्रेनिंग सेंटर भी खुल सकते है। और नारायणमूर्ति तो खुद इसके हिमायती हैं।

तीसरा सवाल कॉरपोरेट सेक्टर को देश से जोड़ना जरुरी है। बड़े कॉरपोरेट सेक्टर की पूंजी देश के भीतर के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिये निकलवाना जरुरी है। जब कॉरपोरेट घराने क्रिकेट टीम खरीद कर मुनाफा कमा सकते है तो देश के भीतर उन इलाको में स्टेडियम क्यो नही बनाये जा सकते जहां कोई दूसरा काम नहीं होता । उन्हे चमक-दमक की मुख्यधारा से जोड़ना होगा। जैसे----महाराष्ट्र में इन्टरनल पर्यटन जबरदस्त है। रेलवे को निजी हाथो के जरिए पर्यटन से जोड़ना चाहिये। सड़क और हवाई यात्रा के बाद देश के भीतर रेलवे में यह प्रयोग अभी तक हुआ ही नहीं है।

चौथा सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो जंबो मंत्रिमंडल को उडान भरने के बाद आसमान से दिखायी देगी ही नहीं, वह खेती का है । कृषि अर्थव्यवस्था को सरकार बोझ माने हुये है।

वजह सरकार का नजरिया है जो टारगेट ओरियेन्ट्ड है, जबकि मॉनेटिरिंग है ही नहीं । हर पैकेज और राहत के साथ पंचायती स्तर को मॉनेटरिंग के साथ जोड़ना होगा । ब्लाक डेवलपमेंट आफिसर से लेकर मुख्यमंत्री तक की जिम्मेदारी तय करनी होगी । जिसे इंदिरा गांधी ने अपने दौर में बखूबी किया। राहत और पैकेज को नाबार्ड और बैंक से इस निर्देश के सहारे जोड़ना होगा कि किसान की जमीन की जरुरत पूरी हो सके। फिलहाल बैक चुटकी भर मदद करते है तो किसान को असल मदद के लिये सूदखोरो और बनियो पर ही आश्रित रहना पडता है। इस चक्र को तोड़ना होगा। खेती को उघोग सरीखा तो मनमोहन सरकार ने बनाया नहीं उल्टे उसे उस बाजार से जोड़ दिया जहां एक ही शब्द की तूती बोलती है वह है मुनाफा। इस चक्कर में कैश क्रॉप में किसान हाथ जलाने निकल पड़े है। सरकार को सादी खेती या कहें अन्न उपजाने वाले किसानों को इन्सेन्टिव देना होगा। जिससे उनका मनोबल न टूटे और देश का पेट भरने की उनकी क्षमता भी बरकरार रहे। इस घेरे में एसआईजेड को भी लाना होगा। ग्रामीण इलाको में एसईजेड बने तो रोजगार के साथ साथ गरीब-ग्रामीण-पिछड़ों के रहने की व्यवस्था भी करे। पांच फीसदी जमीन पर इस तबके के लिये घरों को बनाना जरुरी करना होगा । जिसमें लगने वाला लोहा-सीमेंट-स्टील सरकार टैक्स फ्री दे, जिससे इस तरह की योजना शुरु होने पर गांव के गांव खाली ना होने लगे और शहर दर शहर की संख्या में इजाफा कर सरकार मनोहारी व्यवस्था का खाका खडा कर खुश ना होने लगे ।

और पांचवा सवाल स्वास्थ्य सेवा का है। हेल्थ सेक्टर को सीधे पिछड़े और ग्रामीण इलाको से जोड़ना जरुरी है । प्राइवेट हेल्थ सेंटरो को भी इसमें शरीक करना होगा । शुरुआत तुरंत हो इसके लिये रेलवे को भी भागीदार बनाया जा सकता है। क्योंकि रेलवे की जमीन और रेलवे की व्सवस्था ऐसी है, जहा लोग आसानी से पहुंच भी सकते हैं। हालांकि अस्पताल देश के किसी भी सुदुर इलाके में भी खुले तो भी वहां मरीज पहुंचेगा ही। लेकिन वह बेहतर होगा क्योकि मरने से पहले व्यक्ति शहर या गांव नहीं बल्कि बेहतर इलाज चाहता है और उसके लिये कहीं भी जाने को तैयार होता है । इसलिये सवाल सिर्फ अस्पताल का नहीं है कि वह शहर से दूर ग्रामीण इलाको में खोलने चाहिये। बल्कि हर सेक्टर को ग्रामीण इलाकों से जोड़ना इसलिये जरुरी है क्योकि यह स्थानीय इकनामी का पूरा केन्द्र बन जाते हैं। और पलायन भी रुकता है और युवा तबका मुख्यधारा के प्रयोग अपने इलाको में करने से नहीं चूकता । तो रन-वे पर दौडते जंबो मंत्रिमंडल के उडान से पहले पायलट मनमोहन सिंह जमीन की हकीकत समझ ले तो बेहतर है अन्यथा आसमान से तो देश एर सरीखा लगेगा लेकिन जब दोबारा जमीन पर जंबो को उतरना होगा तो रन-वे बचा भी नहीं होगा ।

4 comments:

गुफरान सिद्दीकी said...

गुरु जी,
अब तो सरकार बन चुकी है और सत्ता की बंदरबांट जारी है जिसके अभी कुछ महीने चलने के आसार हैं और जब तक सभी सेट होंगे अपने चुनाव खर्च निकालने शुरू करेंगे उसके बाद आने वाले विधान सभा चुनाव हैं जिसमे ३ साल हैं उसकी तैयारी शुरू होगी और जहाँ तक जनता की परेशानियों की बात है तो सभी दल जानते हैं वोट तो करना ही होगा हाँ वक़्त आने पर कौन सा दल कितने सुहाने सपने दिखाता है ये उसकी काबिलियत है क्योंकि हम सपनो पर ही तो वोट करते हैं.अब जब अपने वोट के हिसाब से विकास किया जायेगा तो माफ़ कीजिये गुरु जी आपकी राय काम नहीं आने वाली हाँ ये ज़रूर है की जब प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं देश का बनेगा तो ज़रूर आपकी राय का महत्व होगा जो की वास्तव में जनकल्याण के लिए मील का पत्थर साबित होगा.


हाँ एक बात और मुझे काफी कुछ सीखने को मिला पहली बार आपको पढ़ा........सधन्यवाद

आपका हमवतन भाई ...गुफरान...अवध पीपुल्स फोरम ...फैजाबाद (ghufran.j@gmail.com)

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

आपके पांचो प्रश्न से तो देश की जनता इत्तेफाक रखती है लेकिन देश के अगुआ शायद इन प्रश्नों से बगले झांकते दिखे.......
मुझे मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित उपन्यास "महाभोज" का कथानक याद आ रहा है..... जब वो लिखा गया था, भारतीय राजनीत के लिए तब भी उतना ही यथार्थपूर्ण था जितना की आज है.....
ये तो सभी के बारे में रहा है की अच्छी सरकार इसलिए है क्योकि उन्हें देश की जनता से सौदे बाजी करने का मौका कम मिला......
आपने पॉँच प्रश्न शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से उठाये हैं मै इसमे इक प्रश्न और जोड़ना चाहूँगा जो आज उस समाज का प्रश्न बन गया है जिनके जनाधार को शायद अब ये बुर्जुआ वर्ग अपनी जरूरत नहीं मानते हैं........ वो है आरक्षण का प्रश्न.......?
उसमे संशोधन कर मनमोहन सरकार भारत के श्रेष्ठ प्रतिभागीयों के साथ न्याय कर भारत की प्रगति में सहायक बन सकती है...... साथ ही आरक्षण का लाभ उन प्रतिभागीयों को मिले जो इसके पूर्ण और न्यायपूर्ण रूप से हकदार हो......

SURESH said...

सरकार ने जो १०० दिनों का एजेंडा तैयार किया है, आगाज तो अच्छा है पर डर लगता है कही सारी उर्जा इसी में खत्म न हो जाये . संशय है मनमोहन सरकार इसी रफ्तार से पूरे पॉँच साल तक काम कर सकेगी. फिर भी उम्मीद करे कि सरकार लोगो का जीवन स्तर उपर उठाने,भारत को विश्व शक्ति बनाने, देश में अमन और शांति बनाये रखने, विकट मंदी से निपटने में सफल हो .एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

Sarita Chaturvedi said...

SARKAR GAAW KA CHASMA PAHNANE SE RAHI AUR YAHA KE BASINDE IS DES KO APNA MANANE SE RAHE. ABHI TO SHURUAAT HAI, SIRF AIK SARKARI FARMAAN SE LOG IS DES KI SAMPATTI KO BARBAD KARNE ME VYST HO GAYE....IS RAWAIYE SE TO YAHI LAGTA HAI KI AISI KAUN SI NITI LAGOO KI JAY JISASE HAR BHARTIY IS DES KO APNA MANANE LAGE. JAMBO MANTRIMANDAL BAN TO GAI, LEKIN PURE PRIDRISY PAR GAUR FARMAYE TO SANTULAN KAHI NAHI HAI, KAM SE KAM DES KE BHAUGOLIK ADHAR KO DEKHTE HUYE. SHURUAAT ME HI JAHA RUTHNA MANANA SHURU HO GAYA HO, KYA WAHA VIKAS NAM KI CHIJ TARGET ME RAKHI JA SAKTI HAI?BESAK SARKAR KI APNI ADCHNE HAI PAR ISME KOI DO MAT NAHI KI AGAR SAMBANDHIT LEKH KE MUTABIK SARKAR KHUD KO DHALE TO SHAYAD BAHUT KUCH BADAL BHI SAKTA HAI. PAR SAWAL TAB BHI APNI JAGAH RAHEGA, MSLAN DURASTH ILAKO ME YA JAHA KUCHH BHI N HONE KI ISTHTI ME YADI VISWVIDYALAY YA ANY SIKCHA SANSTHAYE KHOLE JAAYE TO KYA GUDATMAK SIKCHA DENA AASAN HOGA? FOR EXAMPLE: JAUNPUR KI SIMA PAR SARKAR KI OR SE SCHOOL KHOLA GAYA HAI AUR PICHHLE 7 SAL SE ANWRAT CHAL BHI RAHA HAI , JAHA N BAZAR HAI N ANY MULBHUT SUBHIDHAYE HAI, JO LOG KISI PRAKAR PAHUCHE HAI WO WAHA SE NIKLANA CHAHTE HAI. JITNE BHI SENIOR TEACHER HAI WO BMUSKILAN CLASS LETE HAI, PURI JIMMEDARI JUNIORS PAR AA JATI HAI. WAHA KI AIK TEACHER NE YE TAK KAH DALA KI BACHHE PADHNE KE LIYE KAHTE RAHTE HAI AUR TEACHER JHIDAK KE KAHTE HAI KI BHAAG JAWO. AB SAWAL YAHI HAI KI AISI SANSTHAWO SE KYA HOGA? JAHA INSPECTION TAK NAHI POSSIBLE. WAQUI, IS TARH KE KADAM PALAYAN KO ROKTE HAI PAR AADHE ADHURE SE PURA SYSTEM FAIL HO JAYEGA, KYOKI AISE JAGAH QUALITY PAHUCHTI NAHI YADI PAHUCH BHI GAYA TO BAHUT MUSKIL HAI KI WO YTHAWAT BANI RAHE. JAHA TAK TECHNICAL INSTITUTIONS KI BAAT HAI TO SIRF AAKARO SE KAM NAHI HOGA, YAHA BHI QUALITY MAAT KHA JAATI HAI. JAROOT HAI KI JIN CHIJO KA SADAK AUR HAWAI YATRA ME PRYOG HUAA HAI WAHI CHIJE RAILWAY KE MAMLE ME BHI AMAL KI JAY? VIKALP BAHUT HAI, AAKHIR AIK KI OR HI KYO JAAY? KISANO KO LEKAR LEKHAK NE JO BHI SUJHAAW DIYE HAI WO BEHTARIN HAI PAR KYA SARKAR AISA NAJRIYA RAKHTI HAI? KYA MATLAB METRO CITIES ME KITNI SUBIDHAYE HAI? JITNE BHI SARKARI HOSPITALS HAI WAHA INTJAAM KIS ROOP ME HAI ? MARIJ BHIKHARI NAJAR AATE HAI...MANWATA SHYAD YAHI DAM TODTI HAI...KUCHH SHURU KARNE SE PAHLE JO HAI USE ACHHA SA KAR DIJIYE.....