Thursday, September 8, 2011

यह चूक नहीं सियासत के खेल में ठप होती व्यवस्था है

दिल्ली ब्लास्ट से पहले खुफिया जानकारी गृह मंत्रालय के पास थी। वहीं तीन महीने पहले मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बारे में कोई खुफिया जानकारी गृह मंत्रालय के पास नहीं थी। दिल्ली में पहले से अलर्ट था जबकि मुबंई में अलर्ट नहीं था। लेकिन दोनों परिस्थितियो में ब्लास्ट हुआ। तो क्या आंतक के तरीके इतने पुख्ता हो चुके है जिसमें पुलिस या खुफिया एजेंसी सेंध नहीं लगा सकती। या फिर खुफिया तंत्र का कामकाज और पुलिस की पहल महज खानापूर्ति के लिये हो चुकी है। दरअसल, आंतरिक सुरक्षा को लेकर सरकार की कौन सी नीति किस तरह काम करती है अगर इसे नौकरशाही के जरीये बीते तीन बरस के अक्स में ही टटोले तो व्यवस्था का खाका साफ होता है। तीन बरस का मतलब है 26/11 के बाद की पहल। मुंबई हमले के बाद गृह मंत्रालय में ही छह बार यह सवाल उठा कि आंतरिक सुरक्षा के लिये एक ऐसी विशेष टीम होनी चाहिये जिसमें किसी की ट्रांसफर-पोस्टिंग न हो। यानी जो नौकरशाह आंतरिक सुरक्षा से जुड़े, उनके सामने कामकाज की लकीर बेहद सीधी हो।

लेकिन बीते तीन बरस में आंतरिक सुरक्षा को लेकर विशेष टीम तो दूर आईएएस और आईपीएस स्तर के बीस से ज्यादा अधिकारियों के विभाग बदले गये। आंतरिक सुरक्षा को देख रहे आईएएस यू के बंसल के पास कोई स्थायी टीम नहीं है। और मंत्रालय के भीतर प्राथमिकता भी आंतरिक सुरक्षा नहीं है। क्योंकि इसी दौर में आंतरिक सुरक्षा की परिभाषा आर्थिक मुद्दो के इर्द-गिर्द गढ़ी गई। आतंकवादी संगठनों को लेकर यह तर्क ज्यादा मजबूत हुये कि हवाला और मनीलॉडरिंग के जरीये आंतकवादी संगठनों का पैसा भी भारत के बाजार में सेंध लगा रहा है और कारपोरेट जगत भी आतंक करने वाले संगठनो के अंतर्राष्ट्रीय धंधों के तार की अनदेखी कर रहा है। इसका असर यह भी हुआ कि आईबी, रॉ या एनआईए के अधिकारियो के आंतरिक सुरक्षा से जुडे सवाल पर गृह मंत्रालय के आईएएस यह कहकर कही ज्यादा हावी होते चले गये कि अगर आतंकवाद को खत्म करना है तो इनके आर्थिक तार की कमर तोड़नी होगी। यानी सीधे तौर पर जो भी खुफिया इनपुट गृह मंत्रालय के अधिकारियो के पास जिस स्तर पर भी पहुंचे उस पर पारंपरिक तौर पर अलर्ट की सूचना जारी करने के अलावे कोई पहल ना तो 26/11 के वक्त हुई और ना ही दिल्ली हाईकोर्ट के 7 सितबंर को ब्लास्ट से पहले।

लेकिन गृहमंत्रालय की बाबूगीरी का असर कैसे हर स्तर पर पड़ा, यह देखना भी कम त्रासदीदायक नहीं है। एनआईए की टीम भी डायरेक्टर एससी सिन्हा की अगुवाई में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची तो काम का जिम्मा संभालते ही अपने अधिकारियो की काबिलियत के गुण गाने लगे। लेकिन इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि जांच जब सामूहिक है तो एनआईए की भूमिका क्या होगी। क्यो जांच का कोई वक्त निर्धारित नहीं किया जा रहा है। वहीं उनके साथ खड़े दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच ने भी माना कि जांच सामूहिक तौर पर हो रही है। और सामूहिकता का मतलब है सीएफएसएल टीम से लेकर एनआईए, एनएसजी , दिल्ली पुलिस क्राईंमब्रांच और गृह मंत्रालय हैं। लेकिन जब से पी चिदबरंम गृहमंत्री बने हैं, तब से इन पांचों विभाग के अधिकारियो की बैठक आजतक नहीं हुई है। यानी जो रिपोर्ट जिस विभाग के जरीये बनेगी, वह आखिर में किसके पास जायेगी और सभी एक साथ अगर नहीं बैठेगे तो हर विभाग का इनपुट देखने का आखरी नजरिया किसका होगा। यह सवाल इसलिये भी उभरा है क्योंकि एनआईए की अगुवाई में मालेगांव और समझौता ब्लास्ट के सवाल आज भी अनसुलझे हैं। दिल्ली पुलिस के पास 13 सिंतबर 2008 के तीन दिल्ली ब्लास्ट की जांच का जो जिम्मा है, वहां भी सभी के हाथ खाली हैं। इसी तरह सीएफएसएल ने तीन महीने पहले मुबंई सीरियल ब्लास्ट को लेकर जो सवाल खड़े किये थे, उसमें उसने ब्लास्ट के तुरंत बाद बारिश से सबूत के घुलने पर अपनी एक रिपोर्ट यह भी बनाकर दी थी कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिस को तत्काल ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये जिससे सबूत नष्ट ना हों। लेकिन दिल्ली में हाईकोर्ट के सामने ब्लास्ट के बाद बारिश हुई तो फिर यही सवाल सीएफएसएल टीम के सामने आया।

दरअसल, हर खुफिया जांच एजेंसी या दिल्ली पुलिस कमिश्नर पर भी गृहमंत्रालय का एक बाबू तक इतना हावी होता है कि नार्थ ब्लाक के भीतर की गृहमंत्री सी सियासी समझ के मुताबिक ही हर कोई काम करने लगता है। और बीते तीन बरस का किस्सा गृह मंत्रालय के बाबुओं के सामने वित्तमंत्रालय से टक्कर लेने में ही कैसे खपना शुरु हुआ जो बढते बझते रामदेव और अन्ना हजारे को ठिकाने लगाने की सियासी समझ पर आ टिका यह कहीं ज्यादा त्रासदीदायक है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को सीधी टक्कर देने के खेल में चिदबरंम के बाबुओं ने सीबीडीटी से लेकर कंपनी अफेयर की जांच प्रक्रिया में भी अपने पांव फंसाये और ज्यादा रुचि आर्थिक अपराध पकड़ने में लगा दी। यह खेल देश के लिये कितना घातक रहा, यह गृहमंत्रालय के अधिकारी रविंदर सिंह की गिरफ्तारी के वक्त समझ में आया। जब पता यह चला कि गृहमंत्रालय ही नहीं वित्तमंत्रालय की भी जो सूचनाएं लीक की जा रही थी, वह उसी मनीलॉंडरिंग और हवाला रुट को मदद कर रही थी, जो कारपोरेट को आतंकी संगठनों के रुट से मदद पहुंचाती हैं। और इसका दूसरा चेहरा प्रधानमंत्री की कोठरी में कद बढाने बढ़ाने के लिये बाबा रामदेव से लेकर अन्ना हजारे को ठिकाने लगाने में गृह मंत्रालय के बाबुओं की अच्छी खासी फौज लगी रही। जो दिल्ली पुलिस को मिनट दर मिनट ऐसे ऐसे निर्देश देने के लिये मिलती-बुलाती रही जिसे कभी आंतरिक सुरक्षा के मसले पर अंजाम दिया गया होगा तो दिल्ली में कम से कम ब्लास्ट कभी नहीं होता।

8 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पुण्य प्रसून जी!
कहदी होकर दोनों हाथों से ताली बजा रहा हूँ आपके इस आलेख और कल की प्रस्तुति के लिए!!
सलिल वर्मा
चैतन्य आलोक

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी, सवा सौ करोड के देश में दरअसल जनजागरण्‍ा और आम लोगो की भागीदारी ज्‍यादा जरूरी हैं, बजाय व्‍यवस्‍था को कोसने के, आज जितना हम गली मौहल्‍लो से लेकर मुंबई के गणेश पंडालो पर खर्च कर रहे हैं उतने के ही स्‍ुरक्षा उपकरण खरीदे तो क्‍या ज्‍यादा बेहतर नही होगा होगा,या तो हम भगवान भरोसे जी ले या फिर बेबस सरकार के भरोसे ......

दीपक बाबा said...

पंडित जी, आज की ज्ञानचक्षु खोलने वाली पोस्ट के लिए बहुत बहुत साधुवाद...

यही पत्रकारिता है......

आम आदमी said...

जिस वक्त आतंकवादी दिल्ली में ब्लास्ट का प्लान तैयार कर रहे थे उस वक्त हमारी इंटेलिजेंस ऐजंसीस अन्ना, बाबा रामदेव और जगनमोहन रेड्डी के खाते चेक करने में लगी थीं! जब सरकार के लिए national interest से बड़ा political interest हो जाए, जब पुलिस से लेकर इंटेलिजेंस ऐजंसीस तक सभी को आतंकवादियों कि इंटेलिजेंस इकठी करने के बजाये विरोधी पार्टियों की information इकठी करने में लगा दिया जाये तब आतंकी हमले होना लाज़मी है!

sharad said...

prasun ji aapka network aur jaankari vakai behad aachi hoti hai. in siyasi rangoko aap jis tarah logoke samne blog aur badi khabar ke dwara pesh karte ho usse hum jese naye patrakaroko achi jankari milti hai.. me aapke har naye blog ka intazar karta rahta hu.. aaj tak kafhi kuch sikhne ko mila.. or aage bhi aapse bohot sikhenge.. aapka shishya....

sharad said...

prasun ji aapka network aur jaankari vakai behad aachi hoti hai. in siyasi rangoko aap jis tarah logoke samne blog aur badi khabar ke dwara pesh karte ho usse hum jese naye patrakaroko achi jankari milti hai.. me aapke har naye blog ka intazar karta rahta hu.. aaj tak kafhi kuch sikhne ko mila.. or aage bhi aapse bohot sikhenge.. aapka shishya....

pradeep said...
This comment has been removed by the author.
pradeep said...

i m best fan of youre badi khabar and blogs thanks
keep it up sir