Monday, September 26, 2011

आगरा का ताजमहल...जूता और कलेक्टर

ताजमहल ने अगर आगरा को पहचान दिलायी तो आगरा के जूतों ने आगरा के कलेक्टर को। और आगरा के कलेक्टर का एक मतलब है स्टाम्प ड्यूटी का ऐसा खेल, जिसके शिकंजे में जूतो का जो उघोगपति फंसा तो या तो उसका धंधा चौपट हुआ या फिर करोड़ों रुपये का हार कलेक्टर को पहनाया गया। करोड़ों का इसलिये क्योंकि आगरा के जूतों की पहचान समूचे यूरोप-अमेरिका में है। आगरा का कलेक्टर आगरा के जूते नहीं बल्कि आगरा के जूता मालिको के रुतबे को देखता है। और अपने मुताबिक नियमों का खेल कर सालाना पांच सौ करोड़ बनाना कोई बड़ी बात होती नहीं। सिर्फ फंसाने का अंदाज सरकारी होना चाहिये। इसमें नियम-कायदे सरकारी नहीं कलक्टर के चलें। और जांच से लेकर डराने-वसूलने तक जूता मालिक खुद के जूते पहनने तक झुके नहीं, तब तक खेल चलाना आना चाहिये।

जाहिर है इसमें जूता मालिक पर डीएम यानी जिलाअधिकारी का रौब और एसपी का खौफ रेंगना चाहिये। और कलेक्टर के इस खेल के नये शिकार हैं महाशय शाहरु मोहसिन। आगरा के बिचपुरी रोड पर मटगई गांव में जूता उघोग मै. यंगस्टाइल ओवरसीज के नाम से चलाते हैं। इनके जूते इटली, जर्मनी और फ्रांस में साल्ट एंड पीपर के नाम से बिकते हैं। विदेशी बाजार में धाक है। आगरा के जूतों को लेकर अंतर्र्राष्ट्रीय साख है तो कलेक्टर का खेल तो जम ही सकता है। बस, फांसने का खेल शुरु हुआ। शाहरु मोहसिन जिस किराये के घर-जमीन पर इंटस्ट्री चलाते थे, उस जगह के मालिक ने बैंक से करोड़ों का लोन लिया था। चुकता नहीं किया। तो कैनरा और ओवरसिज बैंक ने उस जगह को बेचने की निविदा अखबारों में निकाल दी। छह खरीदार पहुंचे। चूंकि शाहरु मोहसिन उसी जमीन पर इंडस्ट्री चला रहे थे तो बैंक ने उन्हें प्राथमिकता दी। और ढाई हजार वर्ग मीटर की इस जमीन की कीमत दो करोड़ दो लाख रुपए तय हुई। बैंक ने शहरु मोहसिन को नया मालिक बना दिया और अखबारों में विज्ञापन के जरीये जानकारी निकाल दी कि दो करोड दो लाख में मडगई ग्राम की गाटा संख्या 191-192 बेच दी गयी।

बस नजरें कलेक्टर की पड़ीं। सरकारी काम शुरु हुआ। जमीन को लेकर सरकारी दस्तावेजों के साथ नोटिस जूतों के मालिक के घर पहुंचा। इसमें लिखा गया कि सरकारी निरीक्षण में पाया गया कि जमीन लगभग चार हजार वर्ग मीटर की है। और जमीन निर्धारित बाजार रेट से बेहद कम पर खरीदी गई। लिहाजा जमीन की कीमत दो करोड़ दो लाख नहीं बल्कि 39 करोड़ 91 लाख 31 हजार 180 रुपया होना चाहिये। और कम कीमत में जमीन खरीद कर सरकारी स्टाम्प ड्यूटी की चोरी की गई है। ऐसे में दो करोड़ 65 लाख 24 हजार 940 रुपये स्टाम्प रुपये और अलग से दो लाख रु दंड के तौर पर चुकाये जाने चाहिये।

साफ है कि ऐसे में कोई भी उघोगपति दो ही काम कर सकता है। एक तो जमीन की माप की सरकारी जांच कराने की दरख्वास्त कर जमीन की कीमत, जो कलक्टर ने ही पहले से तय कर रखी होगी, उसकी कॉपी निकलवाकर दिखाये। या फिर कलक्टर के आगे नतमस्तक होकर पूछे-आपको क्या चाहिये। तो शाहरु मोहसिन ने पहला रास्ता चुना और यहीं से आगरा के बाबूओं के उस गुट को लगने लगा कि उनके ही जिले में कोई उनकी माफियागिरी को चुनौती दे रहा है। डीएम के नोटिस में जमीन की कीमत 19 हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर बताया गया। जबकि कलेक्टर के ही दस्तख्त से जमीन की कीमत 3500 रुपये वर्ग मीटर पहले से निर्धारित थी।

मामला यहां गड़बड़ाया तो झटके में कलेक्ट्रेट ऑफिस ने जमीन को व्यवसायिक करार दिया। लेकिन चूक यहां भी हो गई। क्योंकि यूपी सरकार के नियम तले व्यवसायिक जमीन की परिभाषा में उघोग आता नहीं है। लेकिन उसके बाद जमीन की माप को गलत बताया गया। लेकिन यहां भी बैंक के दस्तावेज ने बाबूओ की नींद उड़ा दी। फिर जमीन को मापने की बात कहकर जिस तरह सरकारी बाबू यानी तत्कालिन एडीएम अपर जिलाधिकारी उदईराम ने लगभग चार हजार वर्ग मीटर का जिक्र किया, उससे कलेक्टर का खेल और गड़बड़ाया। लेकिन कलेक्टर तो कलेक्टर है। उसने न आव देखा न ताव। तुरंत स्टाम्प ड्यूटी ना चुकाने पर जूता फैक्ट्री में ही ताला लगाने के आदेश दे दिये। शहरु मोहसिन ने तुरंत लखनऊ के दरवाजे पर दस्तक दी। लखनऊ तुरंत हरकत में आया। कमिश्नर को पत्र लिख कर पूछा कि यह स्टाम्प ड्यूटी का मामला क्या है। इस पर कमिश्नर ने अपर आयुक्त प्रमोद कुमार अग्रवाल को चिठ्टी लिखी। फिर प्रमोद अग्रवाल ने 19 जुलाई 2011 को आगरा के जिलाधिकारी अजय चौहान को चिठ्टी [पत्र संख्या 844] लिखकर 15 दिन के भीतर समूची जानकारी मांगी। लेकिन खेल तो पैसा वसूली का था और दांव पर आगरा के नौकरशाहों की दादागिरी लगी थी, जो आपस में चिठ्टी का खेल खेल रहे थे। तो नतीजा चिट्ठी को फाइल में ही दबा दिया गया। लेकिन लखनऊ से दुबारा 30 अगस्त को जब दुबारा पत्र आया कि जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी है, जिसे पन्द्रह दिनों में आना चाहिए था। अब हफ्ते भर में रिपोर्ट दें कि सच है क्या।

जाहिर है सच बताने के काम का मतलब सरकारी नियम-कायदो से लेकर बैंक द्वारा बेची गई फैक्ट्री की जमीन पर उठायी अंगुली को लेकर भी फंसना था। और स्टाम्प ड्यूटी की चिंता कर जूता फैक्ट्रियों के मालिक से अवैध वसूली के धंधे पर से भी पर्दा उठना था। ऐसे में जिलाधिकारी ने अपनी दादागिरी का आखिरी तुरुप का पत्ता फैक्ट्री के मालिक के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश देकर फैक्ट्री पर ताला लगवाकर फेंका। आनन फानन में एसडीएम ने नोटिस निकाला और 22 सितंबर को नेशनल बैंक में फैक्ट्री के बैंक अकाउंट को सीज कर लिया। चूंकि ज्यादातर ट्रांजेक्शन यूरोपीय देशों में होते हैं तो झटके में सबकुछ रुक गया। इस दौर में फैक्ट्री के मालिक शहरु मोहसिन इटली में आगरा के जूतों की मार्केटिंग में व्यस्त थे तो खबर मिलते ही उल्टे पांव दौड़े। दो दिन में दिल्ली पहुंचे। तो आगरा से पत्नी ने फोन कर बताया कि फैक्ट्री का अकाउंट भी सील कर दिया गया है। और पुलिस घर और फैक्ट्री के बाहर डीएम के आदेश का डंडा गाढ़ कर बैठी है कि शहरु मोहसिन आगरा में पहुंचे तो उन्हें गिरफ्तार कर ले। अब शहरु मोहसिन दिल्ली में बैठे हैं। हर दस्तावेज दिखाने और समूची कहानी कहने के बाद इतना ही कहते हैं- मैंने सिर्फ इतनी ही गलती की कि उनको पैसा नहीं दिया। यह उसी की सजा है। 50 लाख की मांग अधिकारी सौदेबाजी में अपने कमीशन के तौर पर कर रहे थे। लेकिन मैंने गलत क्या किया। अन्ना के बारह दिन के उपवास के बाद भरोसा हमारा भी जागा था। लेकिन यह तो अत्याचार है। आगरा में घुस नहीं सकता। बीबी, बच्चो से मिल नहीं सकता । बूढ़े अब्बा आगरा से बार बार फोन पर कहते हैं डीएम- कलेक्टर तो खुदा से बढ़कर हैं। अम्मी कहती हैं खुदा पर भरोसा रखूं। अब लखनऊ जा रहा हूं । देखूं वहा सेक्रेटिएट की पांचवीं मंजिल से न्याय मिलता है या नहीं । वहां से आगरा जाने का रास्ता बनता है या नहीं। जहां पूरा परिवार खौफ में है।

9 comments:

vijai Rajbali Mathur said...

यही तो है अन्ना आंदोलन का परिणाम ।

संतोष त्रिवेदी said...

ऐसे मुद्दे को गंभीरता से उठाने का आभार !

AMIT MISHRA said...

गंभीर मुद्दे उठाने के लिए धन्यवाद। फिलहाल आपके लेख को मैं अपने फेसबुक में शेयर करने के लिए ले रहा हूं।

Asha Lata Saxena said...

अन्ना हजारे ने जागृति तो अवश्य पैदा कर दी है आम आदमी में |आपका लेख बहुत अच्छा लगा बधाई |
आशा

Gyan Darpan said...

इस मुद्दे को भी मिडिया में हाई लाईट करने की सख्त जरुरत है|

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी, आगरा के तमाम नेता,पत्रकार, पुलिस और सरकारी महकमा धन्‍यवाद का पात्र हैं कि किसी ने टांग नही अडाई ....

योगेश कुमार 'शीतल' said...

आपकी इज्जत इसलिए है क्यूंकि आप जैसे खांटी पत्रकार विपरीत परिस्थिति में भी इस तरह के जमीनी मुद्दे उठाते रहते हैं, शाबाश.

sharad said...

kyo ki ye bharat hai... or yaha esahi hota hai... esa desh hai mera...

Davar Ali Zaidi said...

its really sad to see the system of our country harassing the "COMMON MAN"....but at the same time obliged by the work of media in bringing out the true story.....
Hoping the best for MR.SHAHROO MOHSIN, may he be given justice within no time...
inshallah