Friday, November 2, 2012

गडकरी हटे तो कौन और मोदी आये तो कौन?


बीजेपी को लेकर चारों दिशाओं को टटोलते दस स्वयंसेवक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहली बार अपनों को लेकर ही उलझा है। सरसंघचालक मोहन भागवत समेत दस टॉप स्वयंसेवकों की राय ना तो बीजेपी अध्यक्ष को लेकर एक है और ना ही 2014 के लिये अगुवाई करने वाले चेहरे को लेकर। गडकरी को दूसरा मौका ना दिया जाये तो दूसरा गडकरी कहां से लायें। और गडकरी के बदले अगर अरुण जेटली या मुरली मनोहर जोशी को अध्यक्ष बना दिया जाये तो फिर बीजेपी के भीतर सहमति कैसे बनायी जाये। क्या बुजुर्ग लाल कृष्ण आडवाणी के भरोसे बीजेपी को चलाया जाये। या फिर नरेन्द्र मोदी के अनुकूल ही बीजेपी के भीतर सबकुछ तय कर दिया जाये। इन्हीं सवालों के लेकर चेन्नई में हुई संघ की बैठक में जिस तरह स्वयंसेवकों की अलग अलग दिशाओ में जाती राय उभरी, उसने इसके संकेत तो दे ही दिये की बीजेपी से कम फसाद आरएसएस में भी नहीं है।

हालांकि यह संयोग भी हो सकता है। लेकिन जिस तरह बीजेपी अध्यक्ष और 2014 के लिये अगुवाई करने वाले चेहरे को लेकर संघ में घमासान है, उसके पीछे विचार से ज्यादा प्रांतवाद ही उभर रहा है। यानी पहली बार प्रांतवाद भी संघ में विचार के तौर पर उभर रहा है और बीजेपी नेताओं के नामों की फेरहिस्त में पुराने विचार ही खारिज हो रहे हैं। सरसंघचालक और सरकार्यवाह यानी मोहन भागवत और भैयाजी जोशी दोनों नागपुर से आते हैं तो दोनो ही गडकरी को हटाने के पक्ष में नहीं हैं। गडकरी भी नागपुर के हैं। इनके सुर में सुर मनमोहन वैघ का भी है। जो खुद भी नागपुर से आते हैं। वहीं आरएसएस और बीजेपी में पुल का काम कर रहे सुरेश सोनी का मानना है कि 2014 के लिये नरेन्द्र मोदी के नाम पर तो ठप्पा अब लगा ही देना चाहिये। और मोदी के साथ जिस नेता का तालमेल बैठे उसे अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहिये। सुरेश सोनी को नीतिन गडकरी को अध्यक्ष पद से हटाने या उनकी जगह किसी दूसरे को बैठाने में कोई परेशानी नहीं है।

सुरेश सोनी की रुचि सिर्फ नरेन्द्र मोदी को लेकर है। महत्वपूर्ण है कि सुरेश सोनी खुद गुजरात से ही आते हैं। और उन्हें लगता है कि मोदी के अनुकूल अध्यक्ष पद पर गडकरी के हटने के बाद अरुण जेटली फिट बैठ सकते हैं। यानी फ्रंट रनर के तौर पर अरुण जेटली का नाम है। लेकिन जेटली के नाम पर सुषमा स्वराज से लेकर राजनाथ और मुरली मनमोहर जोशी से लेकर वैकेया नायडू तक को एतराज है, जिसकी जानकारी इन सभी नेताओं ने पिछले दिनो दिल्ली के झंडेवालान जा कर भैयाजी जोशी और सुरेश सोनी को दे दी थी। सुरेश सोनी के बाद संघ में चौथे नंबर पर डा कृष्ण गोपाल आते हैं। डॉ गोपाल का मानना है कि अब वैचारिक तौर पर बीजेपी को खड़ा करने का वक्त आ गया है। यानी सियासी जोड़-तोड़ से इतर संघ की विचारधारा के अनुरुप बीजेपी का अध्यक्ष भी होना चाहिये। इस पद के लिये मुरली मनोहर जोशी सबसे फिट बैठेंगे। महत्वपूर्ण है कि डॉ गोपाल यूपी के ही हैं। संघ में पांचवा महत्वपूर्ण नाम दत्तात्रेय होसबोले का है। जिनके पीछे मदनदास देवी का हाथ है। स्वयंसेवक मदनदास देवी की राजनीतिक पहचान वाजपेयी सरकार के दौर में बीजेपी और संघ के बीच तालमेल बैठाने वाले स्वयंसेवक की है। और उस दौर में मदनदास देवी की करीबी लालकृष्णा आडवाणी से थी तो दत्तात्रेय होसबोले की राय लालकृष्ण आडवाणी पर जा टिकती है। होसबोले का तर्क है कि आडवाणी के अनुभव के आसरे बीजेपी को चलाना चाहिये। होसबोले कर्नाटक से आते हैं इसलिये गडकरी को हटाना चाहिये या नहीं इस पर इनकी राय फिफ्टी फिप्टी वाली है। लेकिन इन्हें लगता है कि आडवाणी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनकी छतरी तले बीजेपी में कोई हंगामा नहीं होगा। लेकिन आडवाणी के रास्ते बीजेपी को लेकर चले तो राजनीतिक तौर पर बीजेपी का बंटाधार ही होगा और संघ के युवा स्वयंसेवकों में निराशा ही छायेगी। यह सोच छठे स्तर पर संघ में कद्दावर स्वसेवक मधुभाई कुलकर्णी का है। जिनका मानना है कि मौदूदा वक्त में बीजेपी को संघ का वैचारिक आधार चाहिये और भ्रष्टाचार को कोई दाग साथ ले कर चलना ठीक नहीं होगा। और इसी राय को सातवे नंबर के स्वंयसेवक बंजरंग लाल गुप्ता भी मानते हैं। यानी अध्यक्ष पद पर नीतिन गडकरी के बदले भी किसी ऐसे स्वसंसेवक को लाना चाहिये जो राजनीतिक तौर पर परिस्थितियों को समझे जरुर लेकिन संघ की विचारधारा से इतर राजनीतिक जरुरतों को ना मान लें। बंजरग लाल गुप्ता का मानना है कि मुरली मनोहर जोशी अध्यक्ष पद के लिये सटीक हैं। यूं मुरली मनोहर जोशी के अध्यक्ष पद के पुराने अनुभव और संघ के दरबार में बार बार नतमस्तक होकर वैचारिक महत्व बनाये रखने के प्रयास भी उन्हें संघ के लगातार करीब बनाये हुये है। वहीं आठवे और नौवे नंबर पर स्वयंसेवक श्रीकांत जोशी और अरुण कुमार हैं, जो बीजेपी से ज्यादा छेड़छाड़ करने के बदले सहमति बनाने की दिशा में ही कदम उठाना चाहते हैं। यानी बीजेपी के बदले संघ को ही लकीर खिंचनी चाहिये और बीजेपी के अनुरुप संघ को कदम नहीं उठाना चाहिये क्योंकि इससे नेताओं और स्वयंसेवकों के टकराव ही सामने आयेंगे। और इसे सुलझाने में ही संघ का वक्त निकलेगा।

और दसवें स्वयंसेवक के तौर पर वीहिप के अशोक सिंघल का मानना है कि पहले बीजेपी में अयोध्या में राम मंदिर निर्णाण और पंचकोशी में मस्जिद ना बनने पर सहमति होनी चाहिये उसी के बाद बीजेपी के अध्यक्ष पद और 2014 की अगुवाई करने वाले नेता के नाम पर सहमति होनी चाहिये। लेकिन खास बात यह भी है कि सिंघल पहली बार नरेन्द्र मोदी का विरोध नहीं कर रहे हैं। और यह संकेत बताते है कि सुरेश सोनी की इस बात को महत्व दिया जा रहा है कि 2014 के लिये तो नरेन्द्र मोदी ही सबसे उपयुक्त हैं और बीजेपी में जो भी फेरबदल होना है वह मोदी को ही ध्यान में रखकर होना चाहिये। इसलिये पहली बार मोदी से रुठा विहिप भी अब मोदी को लेकर खामोश है। जाहिर है इन सभी दस स्वयंसेवकों का अपना अपना कद भी है और अनुभव भी है। ऐसे में सरसंघचालक और सरकार्यवाह का मानना है कि विचारों के आदान प्रदान से ही कोहरा छंटेगा। इसलिये तत्काल कोई निर्णय लेना सही नहीं होगा। लेकिन बीजेपी के भविष्य को लेकर मंथन में जुटे संघ को भी अब यह समझ में आ रहा है कि जिन मुद्दों के आसरे बीजेपी को राजनीतिक तौर पर अब तक खड़ा हो जाना चाहिये था वह ना तो उस पर खड़ी हो पायी बल्कि उसके उलट सियासी तामझाम में फंसी। लेकिन संघ के भीतर से यह साफ होने लगा है कि जिस दिल्ली की चौकड़ी को कभी मोहन भागवत ने खारिज किया था अब उसी पर उनकी निगाहे टिकी हैं । क्योंकि पहली बार ही उनकी पसंद यानी नीतिन गडकरी को लेकर सवाल उठने लगे हैं। और यह सवाल लगातार बड़ा होता जा रहा है कि राजनीतिक तौप पर संघ की भूमिका सिर्फ राय देने वाली रहे तो ठीक या फिर चलाने वाली हो तो ठीक। लेकिन गडकरी के सवाल ने सरसंघचालक के सामने भी यह सवाल खड़ा कर दिया है कि कि गडकरी को अगर दूसरा मौका नहीं मिला तो भी जवाब देना होगा और अगर दूसरा मौका दे दिया तो भी जवाब मांगा जायेगा। यानी दांव पर साख संघ की ही लगी है।

1 comment:

Pradeep said...

Very nice and true analysis