हंसते हंसते ही सही...लेकिन स्वयसेवक महोदय ने चाय की प्याली का इंतजाम बरात के शोर में करवा ही दिया और चाय की प्याली को गटकते हुये प्रोफेसर साहेब बोल पडें...
हैट्रिक का मतलब आप समझ गये है जो हंस रहे है
जी बिलकुल ....
क्या है हैट्रिक का मतलब ....अब तो स्वयसेवक भी मूड में आ चुके थे ....बोले साफ साफ नहीं कहूंगा लेकिन जो कहूगां वह इतना साफ होगा कि आप कोई सवाल पूछ नहीं पायेगें ...
जी कहिये....पर जल्दी कहे...क्योकि बारात आ जायेगी तो शोऱ हंगामा और बढ जायेगा ....
वाजपेयी जी आपकी मुश्किल यही है ... शांत वातावरण बहुत पंसद करते है । एक सच को जान लिजिये भारत में शोर और हंगामे के बीच ही लोग अकेले और खामोश होते है ।
फिलास्फी नहीं ...सीधे सीधे हैट्रिक समझाये ...
देखिये , अर्जेन्टिना रवाना होने से पहले राजस्थान में जो आथखरी भाषण प्रचारक मोदी दे रहे थे, वह क्या था ...
अरे ये आप प्रचारक मोदी कहा से ले आये ।
क्यों
प्रधानमंत्री मोदी को प्रचारक मोदी कहना कहा से ठीक है ....
अरे वाजपेयी जी आप कभी प्रचारको को सुना किजिये...खास कर जब किसी विषय पर बोलने का मौका मिलता है तो ...
तो
तो क्या बिना जमीन के कैसी जमीन बनायी जाती है ये प्रचारक बाखूबी जानता है । और मोदी जी पहले प्रचारत है और बाद में पीएम ।
अरे जनाब आप जो भी कहिये लेकिन हैट्रिक पर आप हंसे क्यो ये तो बताइये ...
वही तो कह रहा हूं .....राजस्थान के भाषण में प्रचारक मोदी बोले हम तो काग्रेसवाद को खत्म करना चाहते है । तो बाकि जो बी है वह साथ आ सकते है । और बकायदा अकिलेश यादव, मायावती समेत कई क्षत्रपो का नाम भी लिया...अब आप ही बताइये चार बरस आपने जिन्हे जूता मारा ...पांचवे बरस जब चुनाव नजदीक आ रहा है तो वह जूता चलायेगा या जूता मारने वालो के साथ खडा होगा । फिर जनता जब आपको खारिज कर रही होगी तो काग्रेस के अलावे विपक्ष का कोई दल अगर आपके साथ आ खडा होगा तो फिर उसका क्या होगा । वैसे आपलोगो ने रविवार को मन की बात तो सुनी होगी ।
मैने सुनी तो नहीं थी..लेकिन खुद पीएमओ और प्रधानमंत्री की तरफ से जो ट्रिवट कर जानकारी दी गई उसे जरुर पढा था । अब प्रोफेसर साहेब बोले ...
तो आपने क्या पढा कुछ याद है ।
नहीं ऐसा तो कुछ नहीं था...
यही तो मुस्किल है याद किजिये , ....देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 नवंबर 2018 को अपने "मन की बात" के 50 वें एपिसोड में जब ये कहा," मोदी आयेगा और चला जायेगा , लेकिन यह देश अटल रहेगा, हमारी संस्कृति अमर रहेगी ।" तो पहली बार लगा कि क्या मोदी सत्ता दांव पर है ? क्योकि 2014 के बाद पहले दिन बरसो बरस सत्ता में रहने की खुली मंशा ही नहीं बल्कि खुला दांव भी नरेन्द्र मोदी ने लगाया । और याद किजिये तो महीने भर पहले ही बीजेपी अध्यक्ष तो अगले 50 बरस तक सत्ता में बने रहने का दावा किये थे । तो फिर अचानक आने-जाने वाला मुक्ति भाव कैसे जाग गया । क्या वाकई सबकुछ दांव पर है । किसान का दर्द दांव पर है । युवाओ का रोजगार दांव पर है । रुपये कि कम होती किमते दांव पर । पेट्रोल - डीजल की किमत दांव पर । सीबीआई दांव पर । आरबीआई दांव पर । इक्नामी भी दांव पर और अब तो राम मंदिर निर्माण भी दांव पर । तो चुनाव के वक्त अगर नरेन्द्र मोदी , कहे कि देश अटल है वह तो निमित्त मात्र है । तो इसके मतलब मायने क्या है । खासकर तब अयोध्या में राम मंदिर की गूंज धीरे धीरे मोदी सत्ता पर ही दबाब बना रही है । किसानो की मुश्किलो में काग्रेसी राहत के एलान कर दे रही है और किसान मान रहा है कि काग्रेस के सत्ता में आने पर उसे राहत मिल जायेगी । यानी झटके में पांच बरस की मोदी सत्ता ने राजनीति इतनी तात्कालिक कर दी है कि शिवराज चौहाण और रमन सिंह भी जो बरसो बरस से अपनी सियासत से बीजेपी सत्ता बरकरार रखे हुये थे उन्हे उनके ही राज्य ही उनका ही वोटर अब त्तकाल की राहत तले देख रहा है और शिवराज या रमन सिंह की जीत-हार अब नहीं होगी बल्कि ये मोदी की साढे चार बरस की सत्ता की जीत हार है ।
तो क्या ये 2019 से पहले का सियासी बैरोमिटर है ...प्रोफेसर की इस टिप्पणी पर सव्यसेवक महोदय लगभग खिझते हुये बोले ...आप बहुत ही जटिल हालात को मत परखे । या हालात को उलझाये मत...ये समझे कि चुनाव अगर बिना मोदी होते तो क्या होता ।
यानी
यानी कि मध्यप्रदेश. छत्तिसगढ और राजस्थान दरअसल राज्यो के चुनाव भर होते तो काग्रेस की पसीने छूट जाते । लेकिन चुनाव मोदी के नाम पर हो रहा है तो उन्ही के नाम का सारा ठिकरा बीजेपी के इन क्षत्रपो पर भी फूटेगा ।
बात तो सही है ...यहा एक सवाल तो ये भी है कि 2014 के बाद यानी मोदी की बंपर जीत के बाद पहली बार बीजेपी की सत्ता का टेस्ट हो रहा है । क्योकि बीते चार बरस में तो काग्रेस या क्षत्रपो को बीजेपी ने पटखनी दी । और हर पटखनी के पीछे मोदी की ताकत को ही तौला गया ।
क्यों गुजरात में तो बीजेपी की ही सत्ता थी...
ठीक कह रहे है आप ...गुजरात में बीजेपी सत्ता गंवाते गंवाते बची ...लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ या राजस्थान में तो बीजेपी है और अब बीजेपी का नहीं मोदी का ही टेस्ट होना है । यानी चाहे अनचाहे राज्यो ने जो अच्छे काम भी किये होगें उनके सामने मोदी का इम्तिहान है । और बीते चार बरस में हुआ क्या क्या है ये किसी से छुपा नहीं है क्योकि केन्द्र सरकार के प्रचार ने बाकि सबकुछ छुपा लिया है । और मेरे ख्याल से आप इसे ही हैट्रिक मान रहे है । मेरे ये कहते ही स्वयसेवक महोदय ने फिर ठहाका लगाया.और बोले वाजपेयी जी आप सिर्फ पत्रकारिय मिजाज के जरीये समझा रहे है लेकिन मै संघ और बीजेपी के भीतर के हालात को देखकर बता रहा हूं कि खतरे की घंटी ये नहीं है कि कल तक काग्रेस हारी अब बीजेपी हारेगी । खतरा तो इस बात को लेकर है कि बीजेपी हारेगी नहीं बल्कि खत्म होने के संकट से गुजरेगी । और फिर भी प्रधानमंत्री मोदी की तरफ देखना उसकी मजबूरी होगी ।
क्यों ....
क्योकि इस दौर में जो दस करोड कार्यकत्ता का ढांचा अमित शाह ने खडा किया है और मोदी कैबिनेट में बिना जमीन के नेताओ को सिर पर बैठाया गया है ....उसके ढहढहाने से क्या होगा ये आप सिर्फ कल्पना भर कर सकते है । लेकिन मै उस हकीकत को देख रहा हूं ।
तो होना क्या चाहिये था ....
होना तो ये चाहिये था कि मोदी खुद को ही इन राज्यो के चुनाव से अलग रखते ।
पर ये कैसे संभव होता....
हां ठीक कह रहे है आप प्रोफेसर साहेब .... दरअसल मोदी सिर्फ प्रचारक या प्रधानमंत्री भर नहीं है बल्कि वही दिमाग है और वही खिलाडी है ।
ये क्या मतलब हुआ...मुझे स्वयसेवक महोदय से पूछना पडा...जरा साफ कहे
साफ तो यही है कि मोजदी अपने आप में पूरी पार्टी समूचे सरकार का परशेप्शन बनाते है और खुद ही प्लेयर भी है । यानी परशेप्शन भी खुद और प्लेयर भी खुद । ये गलती शुरु शुरु में राहुल गांधी ने भी की थी । लेकिन अब देखिये राहुल के साथ एक थिंक टैक काम कर रहा है जो राफेल सौदे से लेकर भूमि अधिग्रहण और किसानो के संकट या रोजगार के सवाल पर उभरने लगा है । लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ कौन सा थिंक टैक है । आप किसी भी कैबिनेट मंत्री को सुन लिजिये । किसी भी संस्थान के चैयरमैन या डायरेक्टर को सुन लिजिये या फिर किसी राज्यपाल या किसी बीएचयू या जेएनयू के वीसी को ही सुन लिजिये ...जैसे ही बात मोदी की आयेगी सभी कहेगें फंला मुद्दे परसारे सुभाव उन्हे के थे । साऱे आईडिया उन्ही की थे । और खुद भी प्रचारक मोदी ये कहने से कहा चुकते है कि वह छुट्टी लेते ही नहीं सिर्फ कार करते करते है । मध्यप्रदेश और राजस्थान की कई सभाओ में उन्होने कहा मै 18 घंटे काम करता हू..
आप बहुत निजी हो रहे है ...मेरे ख्याल से 11 दिसबंर के बाद की राजनीति काफ कुछ तय करेगी ।
ना ना सवाल 11 दिसबंर का नहीं है ...ध्यान रखिये एनडीए के सहयोगियो में भाग दौड मचेगी .... वह बिहार के कुशवाहा तो संकेत दे चुके है कि 6 दिसबंर को वह बीजेपी का साथ छोड देगें ...इसे दिमाग में रखिये जो सहयोगी है उनकी चाहे 30 से 40 सीट ही हो ..लेकिन गठबंधन से आपको राष्ट्रीय मान्यता मिलती है जिसमें जातियो पर टिके राजनीतिक दल बीजेपी के फीछे खडे होकर बीजेपी को मान्यता देते है । और जब मान्यता देने वाले ही खिसकने लगेंगे तो क्या होगा ।
ये तो कोई तर्क नहीं हुआ....गटबंधन करने वाला तो सत्ता ही देखता है ....
ठीक है ...प्रचारक तो अटल बिहारी वाजपेयी भी थे लेकिन 2004 में बीजेपी हारी लेकिन पीछे जाती कभी नहीं दिखी लेकिन इस दौर को समझे ...बीजेपी सिर्फ हारेगी नहीं ...बल्कि बीस बरस पीछे चली जायेगी
ऐसा क्यो ...
क्योकि वाजपेयी के दौर में बीजेपी पर आरोप लगा कि उसका काग्रेसीकरण हो रहा है .....और बीजेपी हारी और काग्रेस जीती तो गठबंधन के साथी एनडीए से निकलकर यूपीए में चले गये । लेकिन 2019 में हार का मैसेज सिर्फ इतना भर नहीं रहेगा क्योकि मोदी सत्ता ने बीजेपी का काग्रेसीकरण काग्रेस से भी कई कदम आगे बढकर किया । और इस प्रकिया में काग्रेस के भीतर पुरानी बीजेपी भी समा गई और वाम सोच भी समाहित हो गई । लेकिन दूसरी तरफ मोदी-शाह की बीजेपी ने बीजेपी की पुरानी पंरपरा को भी छोड दिया और बीजेपी को भी ऐसी धारा में मोड दिया जहा अब कोई भी दूसरी पार्टी खुद का बीजेपीकरण करने से बचेगी ।
क्या ये विजन की कमी रही....प्रोफेसर साहेब के इस सवाल पर स्वंयसेवक महोदय बरबस ही बोल पडे विजन की कमी तो नहीं कहेगें प्रोफेसर महोदय ....लेकिन ये जरुर कहेगें कि जिन नीतियो को जिस उम्मीद के साथ अपनाया गया उसके परिणाम उस तरह से सामने आये नहीं ....लेकिन एक के बाद दूसरी नीतियो का एलान जारी रहा क्योकि सफलता दिखाना ही सत्ता की जरुरत बन गई और प्रचारक मोदी ने माना भी यही कि सफलता का पैमाना चुनावी जीत में है । यानी एक के बाद एक चुनावी जीत ही नीतियो की सफलता मान ली गई तो फिर चुनावी हार का मतलब क्या हो सकता है ये इसी से समझ लिजिये कि... आने वाले वक्त में मोदी सरीखी सफलता किसी पार्टी या किसी नेता को मिलने वाली नहीं है । और मोदी सरीखा नेता भी अब कोई होने वाला नहीं है ...
मतलब....
मतलब कुछ नहीं सिर्फ इंतजार किजिये 2019 के बाद आपको पता चल जायेगा ...ओरिजनल पप्पू कौन है ?
जारी...
Thursday, November 29, 2018
स्वंयसेवक की चाय की प्याली का तूफान - पार्ट 2 ....... इंतजार किजिये आपको ओरिजनल पप्पू भी मिल जायेगा ?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 9:39 PM
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23 comments:
न हिंदू ख़तरे में हैं न मुसलमान ख़तरे में हैं।
देश के नौजवान, किसान और संविधान ख़तरे में हैं।
11 दिसंबर BJP out...
Amazing
मतलब साफ है बीजेपी गई।
2014 में " साहेब " ने अपने प्रवचनों (भाषण) में कांगेस मुक्त भारत का नारा दिया ! कांग्रेस मुक्त भारत का सीधा सीधा मतलब " विपक्ष " मुक्त भारत ~ और जिस लोकतंत्र में अगर विपक्ष ही नहीं है तो वह कैसा लोकतंत्र ~ विपक्ष नहीं है तो आप जो मनमर्जी करो कोई रोकने वाला , आवाज उठाने वाला ही नहीं होगा !
~~~ हुआ भी वही कांग्रेस चुनाव दर चुनाव कमजोर होती गयी ~ और " साहेब " की मनमर्जियाँ बढ़ती गयी ~ उल्टे सीधे निर्णय हुए ~ किसान , व्यापारी , युवा और आम आदमी परेशान होकर हाशिये पर चला गया और बड़े उद्योगपतियों की मौज हो गयी ~ मीडिया को दबा दिया गया ~ अच्छे पत्रकारों की छुट्ठी हो गयी !
अगर नीयत शुरू से ही सही होती तो " कांगेस मुक्त भारत " की जगह ...महंगाई मुक्त भारत, बेरोजगारी मुक्त भारत , गरीबी मुक्त भारत, आतंकवाद मुक्त भारत, कुपोषण मुक्त भारत आदि नारे दिए गए होते तो ज्यादा सार्थक होते ~ बात अगर नीयत की ही करो तो " साहेब " की साफ़ नीयत तो शुरू से ही खराब थी !
Really interesting... ��
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नीति/ नियत/ नियति का खेल तो कुछ और ही है कि 2019 मेँ काँग्रेस मुक्त भारत/ भाजपा मुक्त भारत ही नही भ्रष्ट्राचार मुक्त भारत बनाने के लिए "राजीवभाईदीक्षित" के सपनो का भारत! अपरिहार्य है जिसके फलस्वरुप देश दलोँ के दल-दल से मुक्त होगा जो अवश्यम्भावी है।-जयहिन्द!
वाजपेयी जी हनुमानजी पर भी कुछ लेख लिखिए
Bahoot Acha
भाजपा एक चतुर उल्लू की तरह है, जिसे दिन मे कुछ नही दिखाई देता ।पर देश वासियो को दिवास्वप्न दिखाने मे माहिर है ।इनका आदि और अंत यमराज जी हाथ मे लिए तैयार बैठे है ।बस इन्तजार है जनता के फरमान का । थोड़े दिन और गुजारिये अच्छे दिनो के देश मे ,फिर तो जनता भाजपा को रसातल मे दफन करने को कफन बुन ही रही है ।कफन बनारसी होगा, हरे बांस बरेली के होगे, शोभा यात्रा मे जनता होगी ।मुखाग्नि हनुमान जी (दलित) देगे । जिसकी पटकथा योगी जी लिख ही डाला ।भाजपा का कुर्सी प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म और जाति है ।स्वर्ग मे बैठे अटल जी भाजपा के स्वागत के लिए फूल माला लिए तैयार बैठे है ।बुरे दिनो मे मीडिया की वह धुलाई होगी कि पूरा चैनल लेकर ही विदेश मे नजर आऐगे ।मीडिया का राजधर्म तो सिर्फ NDTV के पास ही बचा है, बाकी तो वेश्या के दरबार मे बांधे खा रहे है ।
sambit patra to pagal ho jayega ish lekh ko dekh kar. then kahega "no comments"
Jabardast bilkul sahi waqt bahut nazdeek aagya hai ab acche din jarur ayenge😜😜
देखिए क्या होता है।
Great
Bht hi bdiya..
ना
तीनो ही राज्य पुन: बीजेपी जीत रही है।मिजोरम कांग्रेस हार रही है फिर जनपथिए पत्रकार कह रहे है कि बीजेपी 2019 मे हार जाएगी।
जनपथिए की एक बात सुनकर हंसी आ रही है कि कांग्रेस का थिंक टैंक जो मुद्दे उछालरहा है वो नीचे तक असर कर रहे है।मुझे लगता है कि पत्रकार महोदय अपने ड्राइंगरूम से बाहर नही जाते।म प्र चुनाव मे राफेल,मंदसोर कांड,दलित एक्ट सब गायब।
हां 2024 तक तो कांग्रेस पुर्नजीवन हो नही सकता।राहुल गांधी के अलावा किसी ओर को नेतृत्व नही मिलता तक कांग्रेस का हिन्दी प्रदेशों मे जीत एक सपना ही बनकर रह जाएगी
Professor:PPB $
RSS-MAHODAYA
#HATRICK
सर बहुत बढ़िया मैं तो यह पहले दिन से ही समझ गया था कि मोदी एक मार्केटिंग का आदमी है और वह अपनी राजनीति का मार्केटिंग कर रहा है जैसे कि आम प्रोडक्ट के एड्स हम टीवी पर देखते हैं जो कि वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं जैसे कि अभी देखा शायद वह इनरवियर का था जिसमें की क्लेम किया गया है कि इसमें बुट्टा डाल देने से भून जाता है हम सब जानते हैं कि ऐसा कभी नहीं होगा ठीक ऐसा ही मोदी भी करते हैं बावजूद इसके बहुत से पढ़े लिखे लोग मोदी की भक्ति में लगे हैं सच्चे झूठे तरीकों से मोदी की बढ़ाई करते हैं मोदी के व्हाट्सएप कार्यालय से भेजे गए व्हाट्सएप मैसेज को बड़े की जोरदार ढंग से अपने मित्रों पर ठोकते हैं या कहिए फॉरवर्ड करते हैं और अपने को बहुत देशभक्त समझते हैं ऐसे लोग किस प्रकार के हैं यह हम नहीं सोच पा रहे हैं किस प्रवृत्ति के लोग हैं जो मोदी को लाइक ही नहीं करते अपना आदर्श मानते हैं मेरे इस प्रश्न का उत्तर शायद आप ही दे सकते हैं
aur bhai sooji hai
aur bhai sooji hai
sapna toh sach ho gya mitra
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