सीबीआई, सीवीसी,सीआईसी, आरबीआई और सरकार । मोदी सत्ता के दौर में देश के इन चार प्रीमियर संस्थान और देश की सबसे ताकतवर सत्ता की नब्ज पर आज की तारिख में कोई अंगुली रख दें तो घडकने उसकी अंगुलियो को भी छलनी कर देगी । क्योकि ये सभी अपनी तरह के ऐसे हालातो को पहली बार जन्म दे चुके है जहा सत्ता का दखल , क्रोनी कैपटलिज्म , भ्रष्ट्रचार की इंतहा और जनता के साथ धोखाधडी का खुला खेल है । और इन सारे नजारो का सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक दायरे में देखना - परखना चाह रहा है लेकिन सत्ता का कटघरा का इतना व्यापक है कि संवैधानिक संस्थाये भी बेबस नजर आ रही है । एक एक कर परतो को उठाये तो रिजर्व बैक चाहे सरकार की रिजर्व मनी की मांग पर विरोध कर रहा है लेकिन बैको से कर्ज लेकर जो देश को चूना लगा रहे है उनके नाम सामने नहीं आने चाहिये इसपर रिजर्व बैक की सहमति है । यानी एक तरफ सीवीसी रिजर्व बैक को नोटिस देकर पूछ रहा है कि जो देश का पैसा लेकर देश छोड कर चले गये । और जो जा सकते है । या फिर खुले तौर पर बैको को ठेंगा दिखाकर कर्ज लिया पैसा ही लौटाने को तैयार नहीं है उनके नाम तो सामने आने ही चाहिये । लेकिन इसपर रिजर्व बैक की खामोशी और मोदी सत्ता की नाम सामने आने पर इक्नामी के ठगमगाने का खतरा बताकर खामोशी बरती जा रही है । यानी एक तरफ बीते चार बरस में देश के 109 किसानो ने खुदकुशी इसलिये कर दी क्योकि पचास हजार रुपये से नौ लाख रुपये तक का बैक से कर्ज लेकर ना लौटा पाने की स्थिति में बैको ने उनके नाम बैको के नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिये । तो सामाजिक तौर पर उनके लिये हालात ऐसे होल गये कि जीना मुस्किल हो गया और इसके सामानांतर बैको के बाउंसरो ने किसानो के मवेशी से लेकर घर के कपडे भांडे तक उठाने शुरु कर दिया । तो जिस किसान को सहन नहीं हुआ तो उसने खुदकुशी कर ली । लेकिन इसी सामानांतर देश के करीब सात सौ से ज्यादा रईसो ने कर्ज लेकर बैक को रुपया नहीं लौटाया और रिजर्व बैक के पूर्व गवर्नर ने जब इन कर्जदारो के नामो को सरकार को सौपा तो सरकार ने ही इसे दबा दिया । तो सीआईसी कुछ नहीं कर सकता सिवाय नोटिस देने के । तो उसने नोटिस दे दिया ।
यानी सीआईसी दंतहीन है । लेकिन सीवीसी दंतहीन नहीं है । ये बात सीबीआई के झगडे से उभर कर आ गई । खासकर जब सरकार सीवीसी के पीछे खडी हो गई । सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने सोमवार को जब सीवीसी की जांच को लेकर अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में सौपा तो तीन बातो साफ हो गई । पहला सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर आस्थाना के बीच सीवीसी खडी है । दूसरी सीवीसी बिना सरकार के निदर्श के बगैर सीबीआई के डायरेक्टर की जांच कर नहीं सकती है यानी सरकार का साथ मिले तो दंतहीन सीवीसी के दांत हाथी सरीखी नजर आने लगेगें । और तीसरा जब संवैधानिक संस्थानो से सत्ता खिलवाड करने लगे तो देश में आखरी रास्ता सुप्रीम कोर्ट का ही बचता है । और आखरी रास्ता का मतलब संसद इसलिये नहीं है क्योकि संसद में अगर विपक्ष कमजोर है तो फिर सत्ता हमेशा जनता की दुहाई देकर संविधान को भी दरकिनार करते हुये जनता के वोटो की दुहाई देगी । और यहा सरकार वाकई " सरकार " की भूमिका में होगी ना कि जन सेवक की भूमिका में । जो हो रहा है और दिखायी दे रहा है ।
लेकिन इस कडी में अगर सत्ता के साथ देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी जुड जाये तो देश किस मोड पर खडी है इसका एहसास भर ही हो सकता है । और इस बारिक लकीर को जब कोई पकडना या छूना तक नहीं चाहता है जब तब ये समझने की कोशिश करें कि सीबीआई सिर्फ नाम भर की संस्था नहीं है । या फिर जब किसी संस्था का नाम देश की साख से जुड जाता है और अपनी साख बचाने के लिये सत्ता संस्था की साख का इस्तेमाल करने लगती है तो क्या क्या हो सकता है । तो संयोग देखिये सोमवार को ही सीबीआई डायरेक्टर ने अपने उपर स्पेशल डायरेक्टर आस्थाना के लगाये गये करप्शन के आरोपो का जवाब जब सीवीसी की जांच रिपोर्ट के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में सौपा तो चंद घंटो में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा सीबीआई के डीआईजी रहे मनीष कुमार सिन्हा ने खटखटाया । और सबे महत्वपूर्ण तो ये है कि सिन्हा ही आलोक वर्मा के निर्देश पर आस्थाना के खिलाफ लगे करप्शन के आरोपो की जांच कर रहे थे । और जिस रात सीबीआई डायरेक्टर और स्पेसळ डायरेक्टर आस्थाना की लडाई के बाद सरकार सक्रिय हुई , और सीबीआई हेडक्वाटर में आधी रात को सत्ता का आपरेशन हुआ । उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने सबसे प्रमुख भूमिका निभायी । और तब देश को महसूस कुछ ऐसा कराया गया कि मसला तो वाकई देश की सुरक्षा से जुडा है । हालाकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कभी भी सीबीआई या सीवीसी सरीखे स्वयत्त संस्थानो में दखल दे नहीं सकते । लेकिन जब सत्ता की ही दखल हो जाये तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और क्या कर सकते है । या उनके सामने भी कौन सा विक्लप होगा । लेकिन यहा बात रात के आपरेशन की नहीं है बल्कि आस्थाना के खिलाफ जांच कर रहे सीबीआई डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा के उस वक्तव्य की हो जो उन्होने सुप्रीम कोर्ट को सौपी है । चूकि सिन्हा का तबादला रात के आपरेशन के अगले ही दिन नागपुर कर दिया गया । यानी आस्थाना के खिलाफ जांच से हटा दिया गया । तो उन्ही मनीष कुमार सिन्हा जब ये कहते है कि अस्थाना के खिलाफ जांच के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने दो मौकों पर तलाशी अभियान रोकने के निर्देश दिए थे। वहीं, एक बिचौलिए ने पूछताछ में बताया था कि गुजरात से सांसद और मौजूदा कोयला व खनन राज्यमंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी को कुछ करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई थी। तो इसके अर्थ क्या निकाले जाये । क्या सत्ता सिर्फ अपने अनुकुल हालातो को अपने ही लोगो के जरीये बनाने को देश चलाना मान रही है । और जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ही कटघरे में है तो फिर बचा कौन ? क्योकि सिन्हा ने सोमवार को अदालत से तुरंत सुनवाई की मांग करते हुए जब ये कहने की हिम्मत दिखा दी कि , "मेरे पास ऐसे दस्तावेज हैं, जो आपको चौंका देंगे। " तो इसके मतलब मायने दो है । पहला दस्तावेज सत्ता को कटघरे में खडा कर रहे है । दूसरा देश के हालात ऐसे है कि अधिकारी या नौकरशाह अब सत्ता के इशारे पर नाचने को तैयार नहीं है और इसके लिये नौकरशाही अब गोपनियता बरतने की शपथ को भी दरकिनार करने की स्थिति में आ गये है । क्योकि कोरडो की घूसखोरी में नाम जब सीबीाई के स्पेशल डायरेक्टर का आ रहा है । गुजरात के सांसद जो मोदी सरकार में कोयला खनन के राज्यमंत्री है उनका भी आ रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दागियो को बचाने की पहले करने के आरोपो के कटघरे में खडे किये जा रहे है ।
तो क्या सरकार ऐसे चलती है क्योकि रिजर्व बैक सरकार चलाना चाहती है । सीवीसी जांच को सरकार करना चाहती है । सीबीआई की हर जांच खुद सरकार करना चाहती है । सीआईसी के नोटिस को कागज का पुलिंदा भर सरकार ही मानती है । और जब कोई आईपीएस सुप्रीम कोर्ट में दिये दस्तावेजो में ये लिख दें कि ‘‘अस्थाना के खिलाफ शिकायत करने वाले सतीश सना से पूछताछ के दौरान कई प्रभावशाली लोगों की भूमिका के बारे में पता चला था।’’। और संकेत ये निकलने लगे कि प्रभावशाली का मतलब सत्ता से जुडे या सरकार चलाने वाले ही है तो फिर कोई क्या कहें । क्योकि सुप्रीम कोर्ट में दी गई सिन्हा की याचिकाके मुताबिक, ‘सना ने पूछताछ में दावा किया कि जून 2018 के पहले पखवाड़े में कोयला राज्य मंत्री हरिभाई चौधरी को कुछ करोड़ रुपए दिए गए। हरिभाई ने कार्मिक मंत्रालय के जरिए सीबीआई जांच में दखल दिया था।" और चूकि सीबीआई डायरेक्टर कार्मिक मंत्रालय को ही रिपोर्ट करते है तो फिर आखरी सवाल यही है कि सत्ता चलाने का तानाबाना ही क्या इस दौर में ऐसा बुना गया है जहा सत्ता की अंगुलियो पर नाचना ही हर संस्था से लेकर हर अधिकारी की मजबूरी है । नहीं तो आधी रात का आपरेशन जिसे अंजाम देने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सक्रिय हो जाते है ।
Monday, November 19, 2018
साहेब...देश ऐसे नहीं चलता है
Posted by Punya Prasun Bajpai at 7:17 PM
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26 comments:
you are absloulty right sir
Gujju duo sb barbaad kiye hue hai...thhuu
Guruji yeah sarkar nahi sabjbaag hai
Tez toofan may ek jalti huwi shama ho aap
The problem is v have given them this opportunity to finish our country and it's core. And I m ashamed that v have such a PM.
Barhal to stithi tharti kha hai
मीडिया बिक चुका हे।90%पत्रकार के पास जमीर नही।गुंडे सत्ता के सिंहासन पर हे और अधिकारी भरस्ट हो चुके हे और न्यायालय डरसे खामोस हे।आप और मुझे अपनी पीपुडि बजानी बन्ध कर देनी चाहिये।आराम से सो जाओ।टेंसन मत लो यहां ऐसे ही चलेगा।
Ab hm kahe to kahe kya..aur kare to kare kya!
Khair aap wapas kab aaoge, nov bola tha aapne..par ye bhi khatam hone ko hai aur aapki koi khabar nhi aayi
तो अब होगा क्या और हालात सुधारेगा कौन
Right
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महान स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मी बाई और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
Sir aap aur ravishji abhisaar sacche journalist ho..Godi media bhadawa aur shah Ka dalaal hai... Tadipaar & Feku ne Pura system KO barbad Kar Diya..
वाजपेयी जी.. धरातल पर ये कौन समजेगा?????
Now itsi upon the ppl of india that we design such a change in our attitude that these politicians should learn from it that they are not God but our servant
बेहतरीन लिखा है। सच को आईना दिखाया हाय है।
Aur isi desh me_n masoom bachpan sadkon pe bheek mang raha hai aaram kijiye desh badh raha hai
Good
रिज़र्व बैक के अधिकारी बँट गये..
सीबीआई को देश ने बँटते देखा..
सुप्रीम कोर्ट को भी देश ने बँटते देखा..
नागरिकों को जाति/धर्म के नाम पर तो पहले ही बाँटा जा चुका है...
तय कर ले मजबूत और लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं चाहिए या मजबूत सरकारे चाहिए??
Kitna bhi likhiye sarkar bt Jo kaminey hain unka kaminapan ni jayga... Ye naa sudharne waale
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
ब्लॉगस्पॉट पर ब्लॉग न बनाएं 11 कारण
आज देश एक बहुप्रतीक्षित क्रांति महाक्रांति युवक्रान्ति की दहलीज। पर पिछले एक दशक से उपेक्षित खड़ा है लेकिन आखिर कबतक?परंतु किसी भी कीमत में अवश्यम्भावी है।-जयहिन्द!
विकल्प क्या है?
अच्छी सरकार चाहिए। सवासो करोड आबादी का देश है। सबको चाहिए। कौन देगा? है कोई नेता? या है कोई निति, जो हमको नयी अच्छी सरकार देगी? सवाल है?
इसके जबाब भी है। निति तो राज्य घटना से मिल जाएगी, करीब करीब नक़ल कर सकते है। आसान काम है। लेकिन नेता? नेता कैसे पैदा होते है इसकी भी हिस्ट्री देखते है। जयप्रकाश नारायणजी के आंदोलन ने कुछ नेता पैदा किये। वही नेतागण आज के लिए आजकी हालत के भी जिम्मेदार है। तो बेकार की पैदाइश है। और पीछे चलते है, आजादी तक। यहाँ पे आपको सबसे अच्छे नेता कुछएक नहीं, उनकी कतारे मिलेंगी। लेकिन कीमत भी देनी पड़ी थी।
समय का हिसाब लगे तो १८५७ से १९४७ तक। ९० साल। अगर इतने साल लगते है तो सोचना बेकार है। आजकल हम पांच साल देते है सत्ता को बदल ने की अपेक्षा के लिए। काफी विरोधाभास है, कहा ५ साल और कहा ९० साल? मतलब साफ है, ५ साल में आपको अच्छे नेता नहीं मिलेंगे।
दूसरा हिसाब लगाइएगा। उन ९० सालो में कितनी जाने गयी, कितने लोंगो ने डंडे सहे, कितनी मालमत्ता का नुकसान हुआ, कितनी आफत कितने सारे लोगो ने उठाली, कितने लोगो ने भविष्य दाव पे लगाया। क्या यह सब दोहराना पड़ेगा? हमें तो एयर कंडीशनर में उठने-बैठने की आदत है। मैकडोनाल्ड और मोबाइल की दीवानगी है। क्या हम इतनी आफत उठाने के लिए और बादमे परिणाम भुगत ने के लिए तैयार है?
इतना समय भी नहीं देना है और काफी मुशक्कत भी नहीं चाहिए। आसान कुछ है क्या? जरा ताकझाँक करते है।
अन्ना हजारे जी के भाषा में बहोत सारे दाने चक्की में पिसे जाते है और कुछएक खेती के लिए बीज बनते है। जो बीज बनाते है वही सेकड़ो के रूप में पुनर्जन्म लेते है। अगर दानो के पास विकल्प है, चक्की में पीसके मरने के लिए जाये या बीज के लिए जाये जिसमे उनकी संख्या में वृद्धि भी होने वाली है। क्या सही रहेगा? दोस्तों उन ९० सालो में जिन लोगो ने स्वातंत्र संग्राम में हिस्सा लिया यह वही बीज वाले दाने थे।
महाराष्ट्र में श्री शरद जोशी काफी ताकतवर नेता हो गए, उनके पास दिशा थी। उन्होंने शेतकरी सन्गठना बनाई लेकिन उनके जीवनकाल में उनके काम की सम्पूर्णता नहीं बन पाई। मतलब जिंदगी भर का समय लगेगा और जिंदगी भी लगानी पड़े तो देनी पड़ेगी। मतलब साफ समझ में आ गया होगा। विकल्प नहीं बन रहा।
और ताकझाँक करते है। श्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और बाबा रामदेवजी का भारत स्वाभिमान ट्रस्ट। यह आसान है। सचमुच आसान है। आजादी के ९० सालो का संघर्ष के मुकाबले काफी आसान है।
आप भी सोचो-----
अति उत्तम लेख
We have stop viewing news channel ,now saheb ji chala rahe hai,,,india ke janta ko kya pasand hai saheb ko pasand hai jo unhe data de diya taki kiso ko berozgari ki taraf dhyan na bhatke....ab to india giyo....smartphone ka cancer pura india ko lag giya hai
लोकतंत्र की गला घोट तानाशाही की सरकार चला रहे है
Very nice sir g
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