Sunday, November 4, 2018

सत्ता की फिक्र में सारे काम ताक पर

सत्ता होगी तो ही काम करेगे । सत्ता जा रही होगी तो फिर सत्ता बचाने के लिये काम करेगें । और सत्ता जब नहीं होगी तो जो सत्ता में है वह समझे यानी जिम्मेदारी ले । मानिये या ना मानिये देश कुछ इसी मिजाज से चलता है । और इसका ताजा उदाहरण है पर्यावरण या कहे प्रदूषण को लेकर मोदी सरकार की समझ । संयोग ऐसा हुआ कि जिस दिन गुजरात में सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बडी प्रतिमा का अनावरण प्रधनमंत्री को " स्टेच्यू आफ यूनिटी " के नाम से करना था । उसी दिन जेनेवा में ग्लोबल एयर पोल्यूशन बैठक थी । और अगला संयोग यही था कि इसी दौर में दिल्ली गैस चैंबर में बदल रही थी और है भी । और उससे भी बडा संयोग ये था कि मोदी सरकार और सत्ताधारी बीजेपी ने देश भर में इसी दिन " यूनीटी रन " रखा यानी एकता दौड । तो हुआ क्या ? एक तरफ जब पूरी दुनिया हवा में बढते प्रदूषण से परेशान है तो दुनिय़ा के कमोवेश ह देश के प्रतिनिधी जेनेवा पहुंचे । वहा विश्व स्वास्थ्य संगठन के हेडक्वाटर में बैठक में शिरकत की । अपनी अपने विचार रखे । तो दूसरी तरफ भारत का कोई भी प्रतिनिधित्व इस सम्मेलन में शामिल होने जेनेवा में ब्ल्युएचओ के हेडक्वाटर पहुंच नहीं पाया । क्योकि सभी देश में ' यूनिटी रन ' को सफल बनाने में लगे थे । चूकि डब्ल्यूएचओ पहली बार वायु प्रदूषण को लेकर इस तरह का सम्मेलन कर रहा था । और दुनिया भर की  रिपोर्ट में जब ये आया कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरो में से 14 शहर भारत के है । तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन केन्र्दीय मंत्री , पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन  ,स्वास्थय मंत्री जेपी नड्डा और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को निमंत्रण भेजा । खासकर भारत की मुस्किलो को लेकर भारत के प्रतिनिधित्व क्या कहते है इसपर डब्ल्यूएच ओ ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशो की नजर थी । क्योकि विकासशील देश भारत बिजनेस के लिये एक बाजार के तौर पर उभर रहा है और आईएमएफ तथा विश्व बैक भी चाहते है कि भारत पर्यावरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र और पेरिस समझतौते में जो चिंता जता रहा है वह पहली बार वायु प्रदूषण को लेकर होने वाले सम्मेलन में भी उभरे । लेकिन सरदार के लिये सत्ता की एकता दौड यानी  ' यूनिटी रन ' ही इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि कोई भी सम्मेलन में सामिल होने गया ही नहीं । यानी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिये ग्लोबल एयर पाल्युशन के सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने कोई नहीं पहुंचा । देश के पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन दिल्ली में " रन फार यूनिटी " में व्यल्त हो गये । तो स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा गुवाहटी में यूनिटी रन कराने लगे तो प्ट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भुवनेशवर में यूनिटी रन को झंडा दिखाने पहुंच गये । यानी एक तरफ प्रदूषण से लेकर भारत का हाल कितना बुरा है ये इससे भी समझा जा सकता है कि 2016 में पांच बरस से कम के एक लाख बच्चो की मौत प्रदूषण की वजह से हो गई ।  और आंकडे बताते है कि हर मिनट 5 लोगो की मौत देश में सिर्फ प्रदूषण से हो जाती है । यानी साल भर में 25 लाख से ज्यादा लोग देश में प्रदूषण से मर जाते है । और इससे निजात कैसे मिले इसपर जब दुनियाभर के विशेषज्ञ और स्कालर वायु प्रदूषण पर चर्चा कर रहे थे । खास कर पहली बार वायु प्रदूषण के मद्देनजर प्रकृति के  मल्टी-डायमेशनल दोहन की वजह से होने वाले प्रदूषण पर चर्चा हो रही थी ।  उसके बाद दुनिया भर के देसो के प्रतिनिधी इसलिये जुटे की जो भी रिजल्ट निकले उसमें वह अपने अपने देश लौटने के बाद उन कदमो को उठाये जिसे जेनेवा में पास किया गया । पर भारत की तरफ से आखरी दिन दो नौकरशाहो की मौजूदगी रही जो कहते क्या या सुनते क्या ये भी हर कोई जानता है । क्योकि देश तो चुनावी मोड में चला गया है तो सत्ता को फिक्र सत्ता बरकरार रखने की ज्यादा है । तो सारे काम चुनावी जीत के मद्देनदर ही हो रहे है ।

और सच भी यही है कि पीएमओ से लेकर नीति आयोग तक में बैठे नौकरशाह सिर्फ रुटिन कार्य कर रहे है । और कई मंत्रालयो में तो सारे काम ठप पडे है । या कहे सारे सत्ता की चुनावी जीत बरकरार रखने में सिमट चुके है । खास बात तो ये भी है कि पर्यावरण प्रदूषण ही नहीं बल्कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिये भी भारत ने जितने कार्यक्रम बनाये है और दुनिया के तमाम देशो को जो सुभाव अपने प्रोग्राम के नाम के जरीये बारत देता है वह शानदार है । लेकिन भारत में ही कोई प्रोग्राम पूरा नहीं होता । मसलन , देश के सौ शहरो के लिये नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को निर्धारित वक्त में पूरा करना था । लेकिन ये पूरा तो दूर कई शहरो में शुरु ही नहीं हो पाया । यानी जैसे सत्ता को लगता है वह अनंतकाल तक रहे । वैसे ही हर पालेसी भी अनंतकाल तक चलती रही । सोच यही है । और असर इसी का है कि प्रदूषण के बोल बडे बडे है लेकिन उस लागू कोई करता नहीं तो फिर हालात ये भी है कि देश में प्रर्यावरण मंत्रालय का कुल बजट ही 2675 करोड 42 लाख रुपये है ।   यानी जिस देश में प्रदूषण की वजह से हर मिनट 5 यानी हर बरस 25 लाख से ज्यादा लोग मर जाते है उस देश में पर्यावरण को ठीक रखने के लिये बजट सिर्फ 2675.42 हजार करोड हैं । यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च हो गये 3870 करोड़। औसतन हर बरस बैंक से उधारी लेकर ना चुकाने वाले रईस 10 लाख करोड़ डकार रहे है । राजस्थान-मध्यप्रदेश-छतितसगढ के चुनाव प्रचार में ही तीन लाख करोड से ज्यादा प्रचार प्रसार में फूंकने की तैयारी हो चुकी है । लेकिन  देश के पर्यावरण के लिये सरकार का बजट है 2675.42 करोड़ । और उस पर भी मुश्किल ये है कि पर्यावरण मंत्रालय का बजट सिर्फ पर्यावरण संभालने भर के लिये नहीं है । बल्कि दफ्तरों को संभालने में 439.56 करोड खर्च होते हैं। राज्यों को देने में 962.01 करोड खर्च होते हैं।  तमाम प्रोजेक्ट के लिये 915.21 करोड़ का बजट है। तो नियामक संस्थाओं के लिये 358.64 करोड का बजट है। यानी इस पूरे बजट में से अगर सिर्फ पर्यावरण संभालने के बजट पर आप गौर करेगें तो जानकार हैरत होगी कि  सिर्फ 489.53 करोड ही सीधे प्रदूषण मुक्ति से जुडा है जिससे दिल्ली समेत समूचा उत्तर भारत हर बरस परेशान हो जाता है । और प्रदूषण को लेकर जब हर कोई सेन्ट्रल पौल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड से सवाल करता है तो सीपीसी का कुल बजट ही 74 करोड 30 लाख का है । तो पर्यावरण को लेकर जब देश के पर्यावरण मंत्रालय के कुल बजट का हाल ये है कि देश में  प्रति व्यक्ति 21 रुपये सरकार खर्च करती है । और इसके बाद इस सच को समझिये कि एक तरफ देश में पर्यावरण मंत्रालय का बजट 2675.42 करोड है । दूसरी तरफ पर्यावरण से बचने का उपाय करने वाली इंडस्ट्री का मुनाफा 3 हजार करोड से ज्यादा का है । तो पर्यावरण को लेकर इन हालातों के बीच ये सवाल कितना मायने रखता है कि देश के पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन पिछले बरस जब दिल्ली गैस चैबर बनी तब जर्मनी में थे और इस बार जब गैस चैबर से मुक्ति के उपाय के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जेनेवा आने को कहा तो इंडिगा गेट पर " रन फार यूनिटी" के लिये झंडा दिखाकर दौड रहे थे ।
ऐसे में आखरी  सवाल जीने के अधिकार का भी है क्योकि संविधान की धारा 21 में साफ साफ लिखा है जीने का अधिकार । और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वस्थ वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को पहली बार उस समय मान्यता दी गई थी, जब रूरल लिटिगेसन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम राज्य, AIR 1988 SC 2187 (देहरादून खदान केस के रूप में प्रसिद्ध) केस सामने आया था।   यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें सर्वोच्च  न्यायालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व पर्यावरण संतुलन संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में गैरकानूनी खनन रोकने के निर्देश दिए थे। वहीं एमसी मेहता बनाम भारतीय संघ, AIR 1987 SC 1086 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को भारतीय संविधान के अनु्छेद 21 के अंतर्गत जीवन जीने के मौलिक अधिकार के अंग के रूप में माना था। तो फिर दिल्ली के वातावरण में जब जहर धुल रहा है । देश में हर मिनट 5 लोगो की मौत पप्रदूषण से हो रही है । तो क्या सत्ता सरकार इस चिंता से वाकई दूर है । या फिर सत्ता गंवाने की चिंता ने कहीं ज्यादा जहर फैला दिया है ।

10 comments:

कुमार अभिषेक said...

अब आम जनता को भी समझना पड़ेगा सब कुछ सरकार पर डालना ठीक नहीं है हमे भी अपनी जिम्मेदारी ओर हम सभी को अपना सुधार करना होगा दूसरो को दोष देने की सोच बदलनी होगी खुद के लेवेल पर से शुरूवात करनी होगी.. आखिर सरकार हम ही चुनते है ..

Unknown said...

Modi hatao Desh bachao

Unknown said...

क्रांतिकारी पुण्य प्रसुन वाजपेयीजी,
दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली के आस पास के सभी राज्यों के मंत्रियों को बुलाया गया तो सिर्फ दिल्ली के मंत्री पहुंचे, उसी तरह डब्ल्यू एच ओ की बैठक में केन्द्र सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं शामिल हुआ और संयोग से समझे या संबेदनहिनता कि दोनों जगह बीजेपी की ही सरकार है। अब जनता खुद समझे कि बीजेपी आम जनता के लिए कितना संवेदनशील है ?

Vvek said...

Serious situation!

Unknown said...



सादर प्रणाम
दरवाजा खटखटाते रहियेगा तो कोई तो ऊबन में खोलेगा ही।काश कभी भारत की स्वपोषित मिडिया इन चीजों को आज से पहले आम जन को समझाती तो स्थितियाँ इतनी प्रतिकूल न हुई होती। आप जब मुख्य धारा में आइएगा तो इस पर विशेष नजर दीजिएगा । सादर प्रणाम

Unknown said...

सर आपके लेख कमाल के होते हैं, हर लेख पढता हूँ मैं,लिखते रहिये ऐसे ही। बस उम्मीद आप से यही है कि अगर सत्ता बदलती है तब भी आप ऐसे ही मुखर रहेंगे और ऐसे ही लिखते रहेंगे।।

Ek awaz ek kosish said...

सत्ता में बने रहने के लिए चौकीदार ने सभी संबैधानिक संस्था को कुचल रहा है l काश कोई जंजीर होती जिसे हिलाने से चौकीदार के कान तक आवाज़ जाती l

Shirish Thakare said...
This comment has been removed by the author.
Shirish Thakare said...

Day by day pollution in Navi Mumbai is getting worst. i do not kno how people do not raise their voice. Industries hav stopped burning pollute at top of chimneys as gas used for burning is costly. Feel they stock pollute at day time and release at night time when people r sleeping. There is heavy release of pollute in rainy Winds/Storms, like they r waiting for it.

Pollution control board uses figures which are old time to check when pollution is from Coal burning. As per their figures there is no or limited pollution. Presenting All is well. What about the industrial release of gases and particles which are hazardous and poisonous when there is long time exposure? Nobody cares, Not the Board, Not the Government, not the Netas.

Take a Vashi to Thane local train to experience pollution around 10.00 at night. People at Turbhe-Koper Khirane, Gowandi are suffering worst. Even some time at Evening there is low visibility on ROB at Vashi joining Palm-Beach Road to Thane-Belapur Highway.

I hav a question, where is my country which give me the fundamental right of Pure Air for breathing.

गजेन्द्र गुप्ता said...

सर प्रणाम।
मेरा नाम गजेन्द्र गुप्ता है। मै लोकवार्ता नाम से हिन्दी वेब न्यूज पोर्टल चलाता हूँ। आपका पहले शो आता था 10 तक मुझे बहुत पसंद था। अच्छा लगता था आप जिस तरह सरकार और सरकारी काम की निडरता से आलोचना करते थे। लेकिन अब आपका शो नही देख पा रहा हूँ।और आपके इसी आलोचना से प्रभावित होकर मैंने भी आलोचक बनने का ठाना है और आज भी आलोचना करता हूँ। बहुत दिनों बाद आपका यह पोस्ट देख रहा हूँ। जबरदस्त पोस्ट है। मैं आपके द्वारा किए जाने वाले पोस्ट को अपने वेब पोर्टल पर प्रकाशित करने इजाजत चाहता हूँ। अगर आपकी तरफ से हां है तो मुझे मैसेज बाक्स मे या ईमेल (lknews.in@gmail.com) पर ईमेल करें। (website-lknews.in) 9452083233