Sunday, December 16, 2018

डी-कोड बीजेपी ! पार्ट-2.... 25 दिसबंर को 25 करोड घरो में दीये जलाकर कहेगें हम तो सफल है !



होना तो ये चाहिये था कि चुनावी हार के बाद मोदी कहते कि शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा भी एक वजह थे कि 2014 में हमें जीत मिली । तीनो ने अपने अपने राज्य में विकास के लिये काफी कुछ किया । तीनो के गवर्नेंस का कोई सानी नहीं । हां , केन्द्र से कुछ भूल हुई । खासकर किसान-मजदूर और छोटे व्यापारियो को लेकर । गवर्नेंस के तौर तरीके भी केन्द्र की नीतियो को अमल में ला नहीं पाये । लेकिन हमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तिसगढ में चुनाी हार से सबक मिला है । हम जल्द ही खुद को दुरस्त कर लेंगे । लेकिन हो उल्टा रहा है । बताया जा रहा है कि मोदी-शाह ना होते तो हार का अंतर कहीं बडा होता । मोदी का चमत्कारी व्यक्तित्व और शाह की चाणक्य नीति ने ही मध्यप्रदेश और राजस्थान में पूरी तरह ढहने वाले किले को काफी हद तक बचा लिया । यानी हार के बाद मोदी-शाह से निकले तीन मैसेज साफ है । पहला, शिवराज, रमन सिंह, वसुधरा का अब कोई काम उनके अपने अपने राज्य में नहीं है । उन्हे केन्द्र में ला कर इस तरह सिमटा दिया जायेगा कि मोदी का लारजर दैन लाइफ वाला कद बरकरार रहे । दूसरा, संघ का जो विस्तार मोदी दौर में [पिछले साढे चार बरस ] हुआ उसमें भी वह काबिलियत बची नहीं है कि वह चुनावी जीत दिला सके । यानी संघ ये ना सोचे कि चुनाव जिताने में उसका कद मोदी से बडा हो गया है ।  तीसरा , मोदी-शाह के नेतृत्व को चुनौती देने के हालात भी बीजेपी में पैदा होने नहीं दिया जायेगें ।
लेकिन इस होने या बताने के सामानांतर हर किसी की नजर इसपर ही अब जा टिकी है कि आखिर 2019 के लिये मोदी-शाह की योजना है ? क्योकि 2014 में तो आंखो पर पट्टी बांध कर मोदी-शाह की बिछायी पटरी पर स्वयसेवक या बीजेपी कार्यकत्ता दौडने को तैयार था लेकिन 2018 बीतते बीतते हालात जब मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व और शाह की चाणक्य नीति ही फेल नजर आ रही है तो वाकई होगा क्या ? क्या अमित शाह कार्यकत्ताओ में और पैसा बांटेगें जिससे उनमें जीत के लिये उर्जा भर जाये । यानी रुपयो के बल पर मर-मिटने वाले कार्यकत्ता खडे होते है या नौकरी या कमाई के तर्ज पर पार्टी के हाईकमान की तरफ कार्यकत्ता देखने लगता है ।  या फिर चुनावी हार के बाद ये महसूस करेगें कि जिनके हाथ में पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ मैनेजमेंट और पंचायत से लेकर जिला प्रमुख के तौर पर नियुक्ति कर दी गई उन्हे ही बदलने का वक्त आ गया है । तो जो अभी तक काम कर रहे थे उनका क्या क्या होगा या अलग अलग राज्यो के जिन सिपहसलाहरो को मोदी ने कैबिनेट में  चुना और शाह ने संगठन चलाने के लिये अपना शागिर्द बनाया उनकी ठसक भी अपने अपने दायरे में कही मोदी तो कही शाह के तौर पर ही काम करते हुये उभरी । तो खुद को बदले बगैर बीजेपी की कार्यसंस्कृति को कैसे बदलेगें । क्योकि महाराष्ट्र की अगुवाई मोदी की चौखट पर पियूष गोयल करते है । तमिलनाडु की अगुवाई निर्माला सितारमण करती है । उडिसा की अगुलाई धर्मेन्द्र प्रधान करते है । जेटली राज्यसभा में जाने के लिये कभी गुजरात तो कभी किसी भी प्रांत के हो जाते है । गडकरी की महत्ता फडनवीस के जरीये नागपुर तक में सिमटाने की  कोशिश मोदी-शाह ही करते है । यूपी में राजनाथ के पर काट कर योगी को स्थापित भी किया जाता है । और योगी को मंदिर राग में लपेट कर गवर्नेंस को फेल कराने से चुकते भी नहीं ।
अब 2019 में सफल होने के लिये दूसरी कतार के नेताओ के ना होने की बात उठती है । और उसमें भी केन्द्र यानी मोदी-शाह की चौखट पर सवाल नहीं उठते बल्कि तीन राज्यो को गंवाने के बाद इन्ही तीन राज्यो में दूसरी कतार के ना होने की बात होती है । तो फिर कोई भी सवाल कर सकता है कि जब मोदी-शाह की सत्ता तले कोई लकीर खिंची ही नहीं गई तो दूसरी कतार कहां से बनेगी । यानी मैदान में ग्यारह खिलाडी खेलते हुये नजर तो आने चाहिये तभी तो बेंच पर बैठने वाले या जरुरत के वक्त खेलने के लिये तैयार रहने वाले खिलाडिया को ट्रंनिग दी जा सकती है । मुसीबत तो ये है कि मोदी खुद में सारी लकीर है और कोई दूसरी लकीर ही ना खिंचे तो इसके लिये अमित शाह है । क्योकि दूसरी कतार का सवाल होगा या जिस तरह राज्यो में शिवराज , रमन सिंह या वसुंधरा को केन्द्र में ला कर दूसरी कतार तैयार करने की बात हो रही है उसका सीधा मतलब यही है कि इन तेनाओ को जड से काट देना । और अगर वाकई दूसरी कतार की फिक्र है तो मोदी का विक्लप और बीजेपी अध्यक्ष के विकल्प के तौर पर कौन है और इनकी असफलता के बाद किस चेहरे को कमान दी जा सकती है ये सवाल भी उठेगा या उठना चाहिये । जाहिर है ये होगा नहीं क्योकि जिस ताने बाने को बीते चाढे चार बरस में बनाया गया वह खुद को सबसे सुरक्षित बनाने की दिशा में ही था तो अगले तीन महिनो में सुधार का कोई भी ऐसा तरीका कैसे मोदी-शाह अपना सकते है जो उन्हे ही बेदखल कर दें ।
तो असफलता को सफलता के तौर पर दिखाने की शुरुआत भी होनी है । मोदी मानते है कि उनकी नीतियो से देश के 25 करोड घरो में उजियारा आ गया है । यानी प्रधानमंत्री आवास योजना हो या उज्जवला योजना । शौचालय हो या बिजली । या फिर 106 योजनाओ का एलान । तो 25 करोड घरो में अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन यानी 25 दिसबंर को बीजेपी कार्यकत्ता उनके घर जाकर दिया जलाये तो उसकी रौशनी से दिल्ली की सत्ता जगमग होने लगेगी । यानी असफल होने के हालात को छुपाते हुये उसे सफल बताने के प्रोपगेंडा में ही अगर बीजेपी कार्यकत्ता लगेगा तो उसके भीतर क्या वाकई बीजेपी को सफल बनाने के लिये कार्य करने के एहसास पैदा होगें । या फिर मोदी-शाह को सफल बताने के लिये अपने ही इलाके में परेशान ग्रामिणो से दो चार होकर पहले खुद को फिर बीजेपी को ही खत्म करने की दिशा में कदम बढ जायेगें । ये सारे सवाल है जिसे वह बीजेपी मथ रही है जो वाकई चाल चरित्र चेहरा के अलग होने जीने पर भरोसा करती थी । लेकिन मोदी - शाह की सबसे बडी मुश्किल यही है कि उन्होने लोकतंत्र को चुनाव में जीत तले देखा है । चुनावी जीत के बाद ज्ञान-चिंतन का सारा भंडार उन्ही के पास है ये समझा है । कारपोरेट की पूंजी की महत्ता को सत्ता के लिये वरदान माना है ।  पूंजी के आसरे कल्याणरकारी योजनाओ को नीतियो से एलान भर करने की सोच को पाला है । और देश में व्यवस्था का मतलब चुनी हुई सत्ता के अनुकुल काम करने के हालात को ही बनाना या फिर मानना रहा है । इसीलिये राजनीतिक तौर पर चाहे अनचाहे ये सत्ता प्रप्त कर सत्ता ना गंवाने की नई सोच है । जिसमें लोकतंत्र या संविधान मायने नहीं रखता है बल्कि सत्ता के बोल ही संविधान है और सत्ता की हर पहल ही लोकतंत्र है ।


16 comments:

Unknown said...

Sir it is pasted twice,,,well written sir,,

Unknown said...

राजनाथ सिंह वाकई मोहरें है अब

Unknown said...

Sir, Good

कुमार अभिषेक said...

👌 ✔

Jinda Shaheed! said...

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मेरेप्रियआत्मन
पुण्यप्रसूनबाजपेईजी
प्रणाम!
सर! डबल इँजन की सरकार रास नही आई तो पोस्ट को क्यूँ डबल कर दिया? वैसे भी आपकी पोस्ट कम लम्बी नही होती है जो अमूमन ट्रिपल अर्थात तीन बार पढी जाती है तो फालोवर का ज्यादा समय न लेँ वो वैसे भी अधिक व्यस्त/पस्त है। नई सम्भावनाओँ की तलाश मेँ है कि आखिर क्या-क्या अवश्यम्भावी है?
"राजीव भाई दीक्षित" ने कहा था कि- हम आजादी के छ: दशकोँ मेँ लोकतन्त्र की गाडी के ड्राइवर बदल रहे हैँ गाडी बदलने का ख्याल किसी को भी नही आया कि सारी खामी गाडी मेँ हैँ ड्राइवर मेँ नहीं तो सवाल ये पैदा होता है कि देश का कोई भी राजनीतिक पँडित (पँडितनेहरुसेमोदीतक) इस यक्षप्रश्न पर सत्य की स्वीकारोक्ति के काबिल क्यूँ नही है?और जब-जब कोई पँडित (शास्त्री से राजीवभाईदीक्षित) तक समर्पण की पराकाष्ठा को पारकर देश के प्रति पूर्ण सच्चाई के साथ निष्ठावान होकर सार्वजनिक जीवन मे थोडा भी मुखर हुआ तो उसके विचारों का गला घोटकर षणयन्त्र का शिकार बनाकर पाखण्डियों ने सदैव आसामयिक विदाई कर दी है जिसकी फेहरिश्त बहुत लम्बी है जो अन्तहीन संवाद सिद्ध हो सकती है नरेन्द्र से नरेन्द्र तक कुछ प्रमुख नाम है स्वामी विवेकान्द/ मोहनदासकरमचन्द्रगाँधी/ नेताजीसुभाषचन्द्रबोस/ सरदारवल्लभभाईपटेल/ लालबहादुरशास्त्री/ श्यामाप्रसादमुखर्जी/ डा0होमीजहाँगीरशाहभाभा/ डा0आचार्यरजनीश(ओशो/पँ0दीनदयाल उपाध्याय/
राजीवभाईदीक्षित जो सबके सब षणयन्त्र का शिकार हैं जो देश/दुनिया में सर्वविदित ही है किन्तु आखिर असल हत्यारा कौन है? ये यक्षप्रश्न सर्वप्रथम 133 करोड लोगोँ के हृदय मेँ पूर्णप्रतीष्ठापित होना ही चाहिए और हिन्दू/हिन्दुत्व नही विविधता मेँ एकता वाली सँस्कृति के हिन्दुस्तान के लिए आज सबको एकसाथ फिक्रमन्द होना चाहिए कि एक हजार वर्ष से अधिक आखिर हम ही सबसे ज्यादा शिकार क्यूँ हैँ? अर्थात तब से अब तक शेष दुनिया के निशाने पर हैँ।-जयहिन्द!

Sandeep Gupta said...

Excellent sir.

Unknown said...

रंगे सियार की सत्ता ज्यादा देर नहीं चलती।

Learn with komal said...

Sir app apna youtube channel kyo nai khol laate

Unknown said...

Sir ap apna youtube channel banaye

Unknown said...

सही कहा सर. . .

विकास पाण्डेय said...

उम्दा

Unknown said...

ठीक है।।।

Unknown said...

ठीक है।।।

Jinda Shaheed! said...

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॥देर से आना और जल्दी से जाना ये साहब! ठीक नही॥
मेरा....
सँकल्प-भारतस्वाभिमान
विकल्प-भारतसमाधान
अखण्डभारत के परिप्रेक्ष्य आचार्य चाणक्य ने कहा था कि नियति जब कोई महापरिवर्तन करती है तो वो आवश्यक वातावरण स्वयम निर्मित कर लेती है किन्तु तब ये बात सुनी नही गयी और न सुनी जा सकती थी क्यूँकि उन्होनेँ(चाणक्य) ये बात शायद! तब के लिए नही अब के लिए कही होगी परन्तु वो बात आज "राजीवभाईदीक्षित" के सपनोँ का भारत! जो अबतक के सभी महापुरुषोँ/अमरशहीदोँ के सपनो का भारत! है से सन्दर्भित होकर सुनी भी जा सकती है/ देखी भी जा सकती है/ समझी भी जा सकती है जो अवश्यम्भावी है लेकिन दु:ख और दुर्भाग्य ये है कि 133करोड के हिन्दुस्तान मेँ नेत्रत्व/नेता/नीतिनियन्ता सभी मौन है आखिर क्यूँ? राजा हरिश्चन्द्र की कहानी से प्रेरित होकर कोई महात्मागाँधी बन सकता है तो उस देश मे सत्य की स्वीकारोक्ति आज असम्भव क्यूँ है? जबकि इतने अवतार/महापुरुष/आदर्श मौजूद हैँ।
पिछले एक दशक मेँ पतँजलियोगपीठ ने देश/दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया जिसमेँ सबसे दमदार/प्रभावी उपस्थिति भाजपा/सँघ परिवार की रही है जिसकी अप्रत्यासित सफलता का राज यही है कि भाजपा को वटवृक्ष की सँज्ञा से सुशोभित होने का अवसर मिला क्यृँकि पतँजलि मे मेरा सँकल्प वृक्ष (भारतस्वाभिमान) रोपित था जिसकी घनी छाँव मेँ बाबारामदेव/भाजपा/सँघ परिवार खूब फल/फूल रहे हैँ और मूल को भूल गए परन्तु नीति/नियत/नियति के चक्रव्यूह मेँ फँश गए क्यूँकि मैने इनको सिर्फ सँकल्प दिया है विकल्प तो मेरे पास है।
मेरी दृष्ट्रि में आज अगडा पिछडा दलित है और ये सारे के सारे नेत्रत्वधारी जातिगत तौर पर मात्र नही व्यक्तिगत तौर पिछडे और पिछडी सोँच के हैँ इनमे से आज कोई भी चाणक्य नही है और न हो सकता है यदि है तो मेरे यक्षप्रश्न का कोई जवाब दे दे कि जेड श्रेणी की सुरक्षा पतँजलियोगपीठाधीश्वर रामदेव को दिए जाने का क्या औचित्य था? और आज "राजीवभाईदीक्षित" के सपनो का भारत कहाँ है? उनका(राजीवभाईदीक्षित) एवम उनके सपनो का भारत! का हत्यारा कौन है? देश को बताना तो पडेगा।
नरेन्द्रजी! नरेन्द्र अर्थात विवेकानन्द ने अपने जीवन के आखरी पडाव मेँ कहा था कि "बडे वृक्ष के नीचे छोटे पौधे कभी भी पनप नही सकते हैँ" तो क्या आप इस बात से सहमत हैँ क्यूँकि आपका वटवृक्ष भी मेरे सँकल्प के नीचे ही रोपित हो गया है बेशक आप सँगमतट पर अक्षयवट की शरण मेँ है जो मेरे सँकल्प की जननी त्रिवेणी ही है क्यूँकि सँगमतट पर रामदेव से प्रथम/अन्तिम भेँट "श्रीपँचायती अखाडा बडा उदासीन निर्वाण" की धर्मध्वजा के तले 14जनवरी 2007 मे हुई थी शेष आप सब जानते/मानते/समझते हैँ कि आज गुरुसत्ता/राजसत्ता के समक्ष एकलव्य? सम्मुख है विमुख नही क्यूँकि निष्ठा मेँ कभी अँगूठा दिया था तो आज वजीर! और फकीर! की निष्ठा की रक्षा हेतु शीष भेँट कर दूँगा कृपया आदेश दे देँ।-जयहिन्द!

Unknown said...

अच्छा होता ABP.channel वाले अपनी भूल सूधार करके
फिर बाजपेई जी को आदर पूर्वक बुलाकर उनको पदस्थापित कर देते TRP ठीक हो जाती।

Vikash mishra said...

राजनैतिक विष्लेषण मीडिया में ८० फीसदी होने लगा।
शायद इससे बेहतर कोई विषय है नहीं भारत में चर्चा- वार्ता , अध्ययन , चिन्तन- मनन हेतु।