Monday, December 3, 2018

जरा सोचिये ! जब मेनस्ट्रीम मीडिया को कोई देखने - सुनने पढने वाला नहीं होगा



क्या पत्रकारिता की धार भोथरी हो चली है । क्या मीडिया - सत्ता गठजोड ने पत्रकारिता को कुंद कर दिया है । क्या मेनस्ट्रीम मीडिया की चमक खत्म हो चली है । क्या तकनालाजी की धार ने मेनस्ट्रीम मीडिया में पत्रकारो की जरुरतो को सीमित कर दिया है । क्या राजनीतिक सत्ता ने पूर्ण शक्ति पाने या वचर्स्व के लिये मीडिया को ही खत्म करना शुरु कर दिया है । जाहिर है ये ऐसे सवाल है जो बीते चार बरस में धीऱे धीरे ही सही लेकिन कहीं तेजी से उभरे है । खासकर जिस अंदाज में न्यूज चैनलो के स्क्रिन पर रेगते मुद्दे का कोई सरोकार ना होना ।  मुद्दो पर बहस असल मुद्दो से भटकाव हो ।  और चुनाव के वक्त में भी रिपोर्टिंग या कोई राजनीतिक कार्यक्रम भी इवेंट से आगे निकल नहीं पाये । या कहे सत्ता के अनुकुल लगने की जद्दोजहद में जिस तरह मीडिया खोया जा रहा है उसमें मीडिया के भविष्य को लेकर भी कई आंशकाये उभर रही है । आंशाकाये इसलिये क्योकि मेनस्ट्रीम मीडिया के सामानातांर डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया अपने आप ही खबरो को लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया को चुनौति देने लगा है । और ये चुनौती भी दो तरफा है । एक तरफ मीडिया-सत्ता गठजोड ने काबिल पत्रकारो को मेनस्ट्रीम से  अलग किया तो उन्होने अपनी उपयोगिता डिजिटल या सोशल मीडिया में बनायी । तो दूसरी तरफ मेनस्ट्रीम मीडिया में जिन खबरो को देखने की इच्छा दर्शको में थी अगर वही गायब होने लगी तो बडी तादाद में गैर पत्रकार भी सोशल मीडिया या डिजिटल माध्यम से अलग अलग मुद्दो को उठाते हुये पत्रकार लगने लगे । मसलन ध्रूव राठी कोई पत्रकार नहीं है । आईआईटी से निकले 26 बरस के युवा है । लेकिन उनकी क्षमता है कि किसी भी मुद्दे या घटना को लेकर आलोचनात्मक तरीके से टकनीकी जानराकी के जरीये डीजिटल मीडिया पर हफ्ते में दो 10 -10 मिनट के दो कैपसूल बना दें । तो उन्हे देखने वालो की तादाद इतनी ज्यादा हो गई कि मेनस्ट्रीम अग्रेजी मीडिया का न्यूज चैनल  रिपबल्कि या टाइम्स नाउ या इंडिया टुडे भी उससे पिछड गया । लेकिन यहा सवाल देखने वालो की तादाद का नहीं बल्कि मेनस्ट्रीम मीडिया की कुंद पडती धार का है ,और जिस तरह मीडिया का विस्तार सत्ता के कब्जे के दायरे में करने के लिये मीडिया संस्थानो का नतमस्तक होना है , उसका भी है । और ये सवाल सिर्फ कन्टेट को लेकर ही नहीं है बल्कि  यही सवाल डिस्ट्रीब्यूशन से भी जुड जाता है । ध्यान दें तो मोदी सत्ता के विस्तार या उसकी ताकत के पीछे उसके मित्र कारपोरेट की पूंजी की बडी भूमिका रही है । मीडिया संस्थानो की फेरहिस्त में बार बार ये सवाल उठता है कि मुकेश अंबानी ने मुध्यधारा के 70 फिसदी मिडियाहाउस पर लगभग कब्जा कर लिया है । हिन्दी में सिर्फ आजतक और एबीपी न्यूज चैनल को छोड दें तो कमोवेश हर चैनल में दाये-बाये या सीधे पूंजी अंबानी की ही लगी हुई है । यानी शेयर उसी के है । पर ये भी महत्वपूर्ण है कि अंबानी का मीडिया प्रेम यू नहीं जागा है । और मोदी सत्ता नहीं चाहती तो जागता भी नहीं ये भी सच है । क्योकि धीरुभाई अंबानी के दौर में मीडिया में आबजर्वर ग्रूप के जरीये सीधी पहल जरुर हुई थी । लेकिन तब कोई सफलता नही मिली । और तब सत्ता की जरुरत भी अंबानी के मीडिया की जरुरत से कोई लाभ लेने वाली नहीं थी । तो मीडिया कोई लाभ का धंधा तो है नहीं । लेकिन सत्ता जब मीडिया पर अपने लिये नकेल कस लें तो मीडिया से लाभ किसी भी धंधे से ज्यादा लाभ देने लगती है । सच ये भी है । क्योकि सिर्फ विज्ञापनो से न्यूज चैनलो का पेट कितना भरता होगा ये दो हजार करोड के विज्ञापन से समझा जा सकता है जो टीआरपी के आधार पर चैनलो में बंटते - खपते है । लेकिन राजनीतिक विज्ञापनो का आंकडा जब बीते चार बरस में बढते बढते 22 से 30 हजार करोड तक जा पहुंचा है तो फिर मीडिया अगर सिर्फ धंधा है तो कोई भी मुनाफा कमाने में ही जुटा हुआ नजर आयेगा । जो सत्ता से लडेगा उसकी साख जरुर मजबूत होगी लेकिन मुनाफा सिर्फ चौनल चलाने तक ही सीमित रह जायेगा । और कैसे सत्ता कारपोरेट का खेल मीडिया को हडपता है इसकी मिसाल  एनडीटीवी पर कब्जे की कहानी है । जो मोदी सत्ता के दौर में राजनीतिक तौर पर उभरी और मोदी सत्ता ही उन तमाम कारपोरेट प्लेयर को तलाशती रही कि वह एनडीटीवी पर कब्जा करें उसने एक तरफ अगर सत्ता की मीडिया को अपने कब्जे में लेने की मानसिकता को उभार दिया तो उसका दूसरा सच यह भी है कि मीडिया चलाते हुये चाहे जितना धाटा हो जाये लेकिन मीडिया पर कब्जा कर अगर उसे मोदी सत्ता के अनुकुल बना दिया जाये तो मोदी सत्ता ही दूसरे माध्यमो से मीडिया पर कब्जा जमाये कारपोरेट को ज्यादा लाभ दिला सकती है । और यहा ये भी महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले सहानपुर के गुप्ता बंधुओ जिनका वर्चस्व दक्षिण अफ्रिका में राबर्ट मोगाबे के राष्ट्रपति होने के दौर  में रहा उनको एनडीटीवी पर कब्जे का आफर मोदी सत्ता की तरफ से दिया गया । लेकिन एनडीटीवी की बुक घाटे वाली लगी तो  गुप्ता बंधु ने एनडीटीवी पर कब्जे से इंकार कर दिया । चुकि  गुप्ता बंधुओ का कोई बिजनेस भारत में नहीं है तो उन्हे धाटे का मीडिया सौदा करने के बावजूद भी राजनीतिक सत्ता से मिलने वाले ज्यादा लाभ की जानकारी नहीं रही । लेकिन भारत में काम कर रहे कारपोरेट के लिये ये सौदा आसान रहा । तो अंबानी ग्रूप इसमें शामिल हो गया । और माना जाता है कि आज नहीं तो कल एनडीटीवी के शेयर भी ट्रांसफर हो ही जायेगें । और इसी कडी में अगर जी ग्रूप को बेचने और खरीदने की खबरो पर ध्यान दें तो ये बात भी खुल कर उभरी कि आने वाले वक्त में जी ग्रूप को भी अंबानी खरीद रहे है । और मीडिया पर कारपोरेट के कब्जे के सामानातांर ये भी सवाल उभरा कि कही मीडिया कारपोरेशन बनाने की स्थिति तो नहीं बन रही है । यानी कारपोरेट का कब्जा हर मीडिया हाउस पर हो और कारपोरेट सीधे सीधे सत्ता से समझौता कर लें । यानी कई मीडिया हाउस को मिलाकर बना कारपोरेशन सत्तानुकुल हो जाये और सत्ता इसकीा एवज में कारपोरेट को तमाम लाभ दूसरे धंधो में देने लगे । तो फिर कमोवेश किसी तरह का कंपीटिशन भी चैनलो में नहीं रहेगा । और खर्चे भी सीमित होगें । जो सामन्य स्थिति में खबरो को जमा करने और डिस्ट्रीब्यूशन के खर्चे से बढ जाते है । वह भी सीमित हो जायेगें । क्योकि कारपोरेट अगर मीडिया हाउस पर कब्जा कर रहा है तो फिर जनता तक जिस माध्यम से खबरे पहुंचते है वह केबल सिस्टम हो या डीटीएच , दोनो पर ही वही कारोपरेट कब्जा करने की दिशा में बढेगी ही जिसने मीडिया हाउस को खरीदा । और ध्यान दें तो यही हो रहा है यानी न्यूज चौनलो में क्या दिखाया जाये और किन माध्यमो से जनता तक पहुंचाया जाये जब इस पूरे बिजनेस को ही सत्ता के लिये चलाने की स्थिति बन जायेगी तो फिर मुनाफा के तौर तरीके भी बदल जायेगे । और तब ये सवाल भी होगा कि सत्ता लोकतांत्रिक देश को चलाने के लिये सीमित प्लेयर बना रही है । और सीमीच प्लेयर उसकी हथेली पर रहे तो उसे कोई परेशानी भी नहीं होगी । यानी एक ही क्षेत्र में अलग अलग प्लेयर से सौदेबाजी करनी नहीं होगी । दरअसल भारत का मीडिया इस दिशा में चला जाये इसके प्रयास तो खूब हो रहे है लेकिन क्या ये संभव है या फिर जिस तर्ज पर रशिया हुआ करता था या अभी  कुछ हद तक  चीन में सत्ता व्यवस्था है उसमें तो ये संभव है लेकिन भारत में कैसे संभव है ये मुश्किल सवाल जरुर है । क्योकि राजनीतिक तौर पर एकाधिकार की स्थिति में राजनीतिक सत्ता हमेशा आना चाहती रही है । ये अलग बात है कि मोदी सत्ता इसके चरम पर है । लेकिन ऐसे हालात होगें तो खतरा तो ये भी होगा कि मेनस्ट्रीम मीडिया अपनी उपयोगिता या आवश्यकता को ही खो देगा । क्योकि जनता से जुडे मुद्दे अगर सत्ता के लिये दरकिनार होते है तो फिर हालात ये भी बन सकते है कि मेनस्ट्रीम मीडिया तो होगा लेकिन उसे देखने वाला कोई नहीं होगा । और तब सवाल सिर्फ सत्ता का नहीं बल्कि कारोपरेट के मुनाफे का भी होगा । क्योकि आज के हालात में ही जब मेनस्ट्रीम मीडिया अपनी उपयोगिता सत्ता के दबाब में धीरे धीरे खो रहा है तो फिर धीरे धीरे ये बिजनेस माडल भी धरधरा कर गिरेगा । क्योकि सत्ता भी तभी तक मीडिया हाउस पर कब्जा जमाये कारपोरेट को लाभ दे सकता है जबतक वह जनता में प्रभाव डालने की स्थिति में हो । और कडी का सबसे बडा सच तो ये भी है जब मेनस्ट्रीम मीडिया ही सत्ता को अपने सवालो या रिपोर्ट से पालिश करने की स्थिति में नहीं होगी तो फिर सत्ता की चमक भी धीरे धीरे लुप्त होगी । उसकी समझ भी खुद की असफलता की कहानियो को सफल बताने वालो के ही इर्द-गिर्द घुमडेगी । और उस परिस्थिति में मेनस्ट्रीम मीडिया की परिभाषा भी बदल जायेगी और उसके तौर तरीके भी बदल जायेगें । क्योकि तब एक सुर में सत्ता के लिये गीत गाने वाले मीडिया काकरपोरेशन में ढहाने के लिये ऐसे कोई भी पत्रकारिय बोल मायने रखेगें जो जनता के शब्दो को जुबा दे सके । और तब सत्ता भी ढहेगी और मीडिया पर कब्जा जमाये कारपोरेट भी ढहेगें । क्योकि  तब घाटा सिर्फ पूंजी का नहीं होगा बल्कि साख का होगा । और अंबानी समूह चाहे अभी सचेत ना हो लेकिन जिस दिशा में देश को सियासत ले जा रही है और पहली बार ग्रामिण भारत के मुद्दे राष्ट्रीय फलक पर चुनावी जीत हार की दिशा में ले जा रहे है ... और पहली बार संकेत यही उभर रहे है कि सत्ता के बदलने पर देश का इकनामिक माडल भी बदलना होगा । यानी सिर्फ सत्ता का बदलना भर अब लोकतंत्र का खेल नहीं होगा बल्कि बदली हुई सत्ता को कामकोज के तरीके भी बदलने होगें । यानी जो कारपोरेट आज मीडिया हाउस के दरीये मोदी सत्ता के अनुकुल ये सोच कर बने है कि कल सत्ता बदलने पर वह दूसरी सत्ता के साथ भी सौदेबाजी कर सकते है तो उनके लिये ये  खतरे की घंटी है ।   

24 comments:

Mrityunjay Kumar said...

Sir ji aap YouTube channel start karro d wire jaisa aapko Jaan k hairat hogi ki gaon gaon tak dhruv rathi aur the wire pahunch gya hai aur media ko khtam Karna chahte hai .(Modi ambani ) unhi k diye hue free internet aur wo bhot bada medium hai u plzz start alternative model I would like to share a few if u wish to regards
Mrityunjay tripathi

Mrityunjay Kumar said...

Publish articles on social ,foreign issues which the Hindu does and slowly usse Aapke upsc waale reader cover hi jayenge publish kariye Aapne channel and charge minimum amount for it

Mrityunjay Kumar said...

Group of dedicated ias aspirants follow u sir

Unknown said...

How to share it sir plz add link to share it in whatsapp and other plateform..

Unknown said...

sir please video blog banaye na

Unknown said...

Till awareness people need your help once they awaken all Right left center and all ultra media will go down as now media is Business not NGO. Even NGO have a hidden agenda so don't try to save media.try to bring ethics morality in citizens without any hidden agenda.

Unknown said...

Sir apka blog YouTube par use kar sakte hai

Shubham Rokade said...

सर जी please आप जो लिखते हो उसी का व्हिडिओ बनाकर किसी सोशल मीडिया पर upload kiya कीजिए प्लीज

Unknown said...

Very true pandit (media ke)g.

Sandeep Kumar said...

Sir aap YouTube channel start kar do ya dusre channel se jud jao please

Unknown said...

पत्रकारिता के खरीद-बिक्री की खबर बड़ी बात नही है। हर दौर मे, चीजों की खरीद-बिक्री के तरीके और कीमत, कमोबेश उसके हालात के साथ बनते और बदलते रहते हैं। आज के दौर मे पत्रकारिता का क्षरण मीडिया के हर क्षेत्र (कुछेक अपवादों को छोड़) मे दृष्टिगोचर है। पत्रकारिता द्वारा प्रस्तुत सामग्रियां उपभोक्ताओं के बड़े हिस्से मे लगातार विश्वसनीयता खोती

ATUL RANJAN said...

ekdum sir! Dheere dheere hi sahi logo ka tv channels aur akhbaro se bharosa uth raha hai..for exa my family- we neither buy newspapers nor watch tv news instead completely depend on online services like the wire

Dhiraj jha said...

Sir i realy want to meet you

Unknown said...

Sahi Hy we are waiting

Unknown said...

लाजबाब
बेहतरीन
जारी रखिए
परिणाम की परवाह किए बिना सटीक विश्लेषण आप के बिना दूर की कौड़ी बन गयी है,शायद इसिलिए समचार चैनल अब बेकार बक-बक करते दिखते है!
अपका इन्तज़ार सभी को है!
सादर प्रणाम

Sandeep Gupta said...

ऐसी धारदार पत्रकारिता के लिए धन्यवाद आप जैसे लोगों ही इस देश को बचा सकते हैं, इस ईमानदारी को बनाए रखने के लिए ईश्वर आपकी मदद करें।

Pravin Damodar said...

सर आपने तो पुरे राज खोल दिये corporate media के और ये पुरा सच हैजो कभी भी जादातर बाहर आता ही नही .

Unknown said...

Very sad affair. Media is terribly under the control of power. People are confused. Whom to be believed. Opposition is not formidable. Unless it assure, things will not clear. Journalists like punya prasoon , Ravish, Venu are clearly writing on walls but their msg is not reaching masses.Country may pay heavy price for this situation.

Unknown said...

No one is daring to go against the government nowadays because they don't have any conscience

Unknown said...

oh i see

IamSurendrakumar said...

Best your thinking sir

Sachin kalel said...

सर आप ध्रुव राठी अभिसार शर्मा आकाश बैनर्जी सब मिलकर एक ही यूट्यूब मंच पर क्यों नहीं काम करते ऐसा करने से मेनस्ट्रिम मीडिया पर बहुत बड़ा असर करेगा आप चारो की लोकप्रियता बहुत है
मै महाराष्ट्र के सातारा से हूं और हमारे सारे के सारे दोस्त आप लोगोंको देखते है हमारे इधर आपकी लोकप्रियता बहुत है

Unknown said...

बहुत सुंदर विश्लेषण।

bhoodev said...

अगर ऐसा ही रहा तो अगले Andolan मीडिया के खिलाफ होगा...