Monday, December 24, 2018

जनवरी में बीजेपी का संविधान संशोधन होगा या अमित शाह अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड देगें ..




गुजरात में काग्रेस नाक के करीब पहुंच गई । कर्नाटक में बीजेपी जीत नहीं पाई । काग्रेस को देवेगौडा का साथ मिल गया । मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ में पन्द्रह बरस की सत्ता बीजेपी ने गंवा दी । राजस्थान में बीजेपी हार गई । तेलगाना में हिन्दुत्व की छतरी तले भी बीजेपी की कोई पहचान नहीं और नार्थ इस्ट में संघ की शाखाओ के विस्तार के बावजूद मिजोरम में बीजेपी की कोई राजनीतिक जमीन नहीं । तो फिर पन्ने पन्ने थमा कर पन्ना प्रमुख बनाना । या बूथ बूथ बांट कर रणनीति की सोचना । या मोटरसाईकिल थमा कर कार्यकत्ता में रफ्तार ला देना । या फिर संगठन के लिये अथाह पूंजी खर्च कर हर रैली को सफल बना देना । और बेरोजगारी के दौर में नारो के शोर को ही रोजगार में बदलने का खेल कर देना । फिर भी जीत ना मिले तो क्या बीजेपी के चाणक्य फेल हो गये है या जिस रणनीति को साध कर लोकतंत्र को ही अपनी हथेलियो पर नचाने का सपना अपनो में बांटा अब उसके दिन पूरे हो गये है । क्योकि अर्से बाद संघ के भीतर ही नहीं बीजेपी के अंदरखाने भी ये सवाल तेजी से पनप रहा है कि अमित शाह की अध्यक्ष के तौर पर नौकरी अब पूरी हो चली है और जनवरी में अमित साह को स्वत ही अद्यक्ष की कुर्सी खाली कर देनी चाहिये । यानी बीजेपी के संविधान में संशोधन कर अब जितने दिन अमित शाह अध्यक्ष बने रहे तो फिर बीजेपी में अनुशासन । संघ के राजनीतिक शुद्दिकरण की ही धज्जियां उडती चली जायेगी । यानी जो सवाल 2015 में बिहार के चुनाव में हार के बाद उठा था और तब अमित शाह ने तो हार पर ना बोलने की कसम खाकर खामोशी बरत ली थी । पर तब राजनाथ सिंह ने मोदी-शाह की उडान को देखते हुये कहा था कि अगले छह बरस तक शाह बीजेपी अध्यक्ष बने रहेगें । लेकिन संयोग से 2014 में 22 सीटे जीतने वाली बीजेपी के पर उसकी अपनी रणनीति के तहत अमित साह ने ही कतर कर 17 सीटो पर समझौता कर लिया । तो उससे संकेत साफ उभरे कि अमित शाह के ही वक्त रणनीति ही नहीं बिसात भी कमजोर हो चली है । जो रामविलास पासवान से कही ज्यादा बडा दांव खेल कर अमित शाह किसी तरह गंठबंधन के साथियो को साथ खडा रखना चाहते है । क्योकि हार की ठिकरा समूह के बीच फूटेगा तो दोष किसे दिया जाये इसपर तर्क गढे जा सकते है लेकिन अपने बूते चुनाव लडना । अपने बूते चुनाव ल़डकर जीतने का दावा करना । और हार होने पर खामोशी बरत कर अगली रणनीति में जुट जाना । ये सब 2014 की सबसे बडी मोदी जीत के साथ 2018 तक तो चलता रहा । लेकिन 2019 में बेडा पार कैसे लगेगा । इसपर अब संघ में चिंतन मनन तो बीजेपी के भीतरी कंकडो की आवाज सुनाई देने लगी है । और साथी सहयोगी तो खुल कर बीजेपी के ही एंजेडे की बोली लगाने लगे है । शिवसेना को लगने लगा है कि जब बीजेपी की धार ही कुंद हो चली है तो फिर बीजेपी हिन्दुत्व का बोझ भी नहीं उठा पायेगी और राम मंदिर तो कंघो को ही झुका देगा । तो शिवसेना खुद को अयोध्या का द्वारपाल बताने से चुक नहीं रही है । और खुद को ही राममंदिर का सबेस बडा हिमायती बताते वक्त ये ध्यान दे रही है कि बीजेपी का बंटाधार हिन्दुत्व तले ही हो जाये । जिससे एक वक्त शिवसेना को वसूली पार्टी कहने वाले गुजरातियो को वह दो तरफा मार दे सके । यानी एक तरफ मुबंई में रहने वाले गुजरातियो को बता सके कि अब मोदी-शाह की जोडी चलेगी नहीं तो शिवसेना की छांव तले सभी को आना होगा और दूसरा धारा-370 से लेकर अयोध्या तक के मुद्दे को जब शिवसेना ज्यादा तेवर के साथ उठा सकने में सक्षम है तो फिर सरसंघचालक मोहन भागवत सिर्फ प्रणव मुखर्जी पर प्रेम दिखाकर अपना विस्तार क्यो कर रहे है । उनसे तो बेहतर है कि शिवसेना के साथ संघ भी खडा हो जाये यानी अमित शाह का बोरिया बिस्तर बांध कर उनकी जगह नीतिन गडकरी को ले आये । जिनकी ना सिर्फ शिवसेना से बल्कि राजठाकरे से भी पटती है और भगोडे कारपोरेट को भी समेटने में गडकरी कही ज्यादा माहिर है । और गडकरी की चाल से फडनवीस को भी पटरी पर लाया जा सकता है जो अभी भी मोदी-शाह की शह पर गडकरी को टिकने नहीं देते और लडाई मुबंई से नागपुर तक खुले तौर पर नजर आती है ।
यू ये सवाल संघ के भीतर ही नहीं बीजेपी के अंदरखाने भी कुलाचे मारने लगा है कि मोदी-शाह की जोडी चेहरे और आईने वाली है । यानी कभी सामाजिक-आर्थिक या राडनीतिक तौर पर भी बैलेस करने की जरुरत आ पडी तो हालात संभलेगें नहीं । लेकिन अब अगर अमित साह की जगह गडकरी को अध्यक्ष की कुर्सी सौप दी जाती है तो उससे एनडीए के पुराने साथियो में भी अच्छा मैसेज जायेगा । क्योकि जिस तरह काग्रेस तीन राज्यो में जीत के बाद समूचे विपक्ष को समेट रही है और विपक्ष जो क्षत्रपो का समूह है वह भी हर हाल में मोदी-शाह की हराने के लिये काग्रेस से अपने अंतर्विरोधो का भी दरकिनार कर काग्रेस के पीछ खडा हो रहा है । उसे अगर साधा जा सकता है तो शाह की जगह गडकरी को लाने का वक्त यही है । क्योकि ममता बनर्जी हो या चन्द्रबाबू नायडू , डीएमके हो या टीआर एस या बीजू जनता दल । सभी वाजपेयी-आडवाानी -जोशी के दौर में बीजेपी के साथ इस लिये गये क्योकि बीजेपी ने इन्हे साथ लिया और इन्होने साथ इसलिये दिया क्योकि सभी को काग्रे से अपनी राजनीतिक जमीन के छिनने का खतरा था । लेकिन मोदी-शाह की राजनाीतिक सोच ने तो क्षत्रपो को ही खत्म करने की ठान ली । और पैसा, जांच एंजेसी , कानूनी कार्वराई के जरीये क्षत्रपो का हुक्का-पानी तक बंद कर दिया । पासवान भी अपने अंतर्विरोधो की गठरी उटाये बीजेपी के साथ खडे है । सत्ता से हटते ही कानूनी कार्वाई के खतरे उन्हे भी है । और सत्ता छोडने के बाद सत्ता में भागेदारी का हिस्सा सूई की नोंक से भी कम हो सकता है । लेकिन यहा सवाल सत्ता के लिये बिक कर राजनीति करने वाले क्षत्रपो की कतार भी कितनी पाररदर्शी हो चुकी है और वोटर भी कैसे इस हकीकत को समझ चुका है ये मायावती के सिमटते आधार तले मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तिसगढ में बाखूबी उभ गया । लेकिन आखरी सवाल यही है कि क्या नये बरस में बीजेपी और संघ अपनी ही बिसात जो मोदी-शाह पर टिकी है उसे बदल कर नई बिसात बिछाने की ताकत रखती है या नहीं । उहापोह इस बात को लेकर है कि शाह हटते तो नैतिक तौर पर बीजेपी कार्यकत्ता इसे बीजेपी की हार मान लेगा या रणनीति बदलने को जश्न के तौर पर लेगा ।  क्योकि इसे तो हर कोई जान रहा है कि 2019 में जीत के लिये बिसात बदलने की जरुरत आ चुकी है । अन्यथा मोदी की हार बीजेपी को बीस बरस पीछे ले जायेगी । 

30 comments:

Unknown said...

भाजपा का किला धीरे-धीरे ध्वस्त होने को चला है

Unknown said...

बहुत शानदार ,जानदार विश्लेषण,,सर जी

Unknown said...

Hawa gai bjp ki

Unknown said...

अद्वितीय🙏🙏🙏🙏🙏

Najeeb said...

बहुत अच्छा विश्लेषण, किन्तु रंगा बिल्ला इतनी आसानी से हार मानेंगे मुश्किल लगता है।

Unknown said...

Superb analysis thank you sir

Unknown said...

बहुत खूब सर

Unknown said...

बढिया विश्लेषण है सरजी ़़ परंतु मोदी शाह को नैतिकता की बातें.........?

वक्त का तकाजा said...

अमित शाह स्वाह:

Susheel said...

Superb analysis !!

Wahid said...

Bet Analysis

Unknown said...

Aap bhut hi jankari Bali baat btate ho

Unknown said...

हार जाए तो अच्छा है । सारे देश का दिमाग खराब कर के रखा है । सब लोगो को इन्होंने बिजी विद-आउट बिज़नेस कर रखा है । एक अच्छे ईमानदार शासन के अलावा जो हो सकता हैं ये दोनों कर रहे है ,चाहे हिंदू मुस्लिम हो या गाय या फिर पकोड़े वाला रोजगार । CBI SCI ITax सब का कबाड़ा कर के रखा है । लोग इन्हें प्यार से रंगा बिल्ला बोलने लगे हैं ।

Unknown said...

चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाएगा

arjunzee said...

क्या ये समझ लिया जाए कि ये जोड़ी अब कमाल नही दिखाएगी या फिर bjp उन लोगो को वापस चुनाब की कमान सौपेगी जिन्होंने 2014 मे अपने अपने प्रदेशो की कमान संभाली थी क्योंकि अमित शाह अब कॉरपोरेट का चहेरा है ये सभी जान चुके है और इलेक्शन नज़दीक आने पर bjp coprporate से पैसा तो ले सकती है पर वो उनकी सगी नही है इस बात का दिखावा जरूर करेगी जिसका एक उदाहरण हो सकता है बजट से पहले finance minister के बदलाब से हो ।
क्योंकि निजी कारण से इस्तीफे बहुत हो रहे है

Unknown said...

बहुत ही सानदार विश्लेषण प्रशून् जी

Unknown said...

अमित शाह का बोरियां बिस्तर गोल हो गया है।

Pravin Damodar said...

सटीक विश्लेषन

Rajeev kumar pandey said...

Paap parshunn bajpaayi ji Paisa mil rha hai ki nhi

Rajeev kumar pandey said...
This comment has been removed by the author.
manojgulnar said...

Good Analysis. Things are changing very fast on the political front. Even top government officials who were considering two months ago Modi will win 2019 elections easily as there is no strong leader in opposition, are raising doubts after recent election results.

jinendu said...

सटीक

Sandeep Gupta said...

गंभीर चिंतन और मनन के पश्चात निकला हुआ लेख है, अत्यंत प्रशंसनीय है मोदी जी या बीजेपी कांग्रेस से उपजी हुए असंतोष का परिणाम है, यह बात उन्होंने नहीं समझी, महंगाई गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को वह सपने दिखा दिए जो देखना चाहती चाहती थी वास्तविकता में,पर ढाक के तीन पात हालात बद से बदतर हो गए और सपने दिखाने का सफर जारी ही रहा, देश की स्थिति की गंभीरता को समझते कुछ बेहतर कर सकते, दिखावे, की राजनीति का पतन निश्चित होना ही चाहिए,जो व्यक्ति लंबे समय से सत्ता सुख भोग रहा हो वो सिर्फ गरीबी और दिखावे की बातें ही कर सकता है, संस्थाओ का इस तरह दुरुपयोग शायद ही भारत ने कभी देखा होगा, यकीन नहीं होता अंध भक्तों को कुछ नहीं दिखता, यह कौन सी मानसिकता है जो सत्य देखना नहीं चाहती। ऐसा नहीं है कि नेताओं ने झूठ नहीं बोला जनता को ठगा नहीं पर अब की बार अति हो गई, राजनीतिज्ञों को वास्तविकता समझनी होगी और आप जैसे पत्रकारों को उन्हें राह दिखानी होगी।

Unknown said...

रविवार को दिल्ली के आईजी स्टेडियम में बीजेपी बूथ सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 2019 का चुनाव आम चुनाव नहीं होने जा रहा है, ये चुनाव युग को बदलने वाला चुनाव है, जैसे 1977 का चुनाव हुआ था. 2019 का चुनाव वंशवाद, जातिवाद, तुष्टिकरण के कफन पर आखिरी कील ठोंकने वाला चुनाव होगा. दिल्ली में 7 की 7 सीट बीजेपी जीते ये कार्यकर्ता सुनिश्चित करें.

उन्होंने कहा कि दिल्ली में तीन पार्टियों बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला होगा. केजरीवाल, राहुल गांधी से ज्यादा झूठ किसी ने नहीं बोले हैं. अभी तक 1984 सिख दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिला.

मैं अमितशाह से सहमत हूँ कि 2019 का चुनाव आम चुनाव नहीं होगा । जनता को तय करना होगा कि गाय-गोबर, मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम खेलने वाली साम्प्रदायिक कूपमंडूकों की सरकार चाहिए उन्हें, या शिक्षा, स्वास्थ्य, सभी के लिए समान भाव रखकर साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने वाली सनातनी सिद्धांतों पर आधारित सरकार चाहिए ।

बाकी झूठ बोलने की बात है तो मोदी और भाजपाइयों से बड़े झूठे और जुमलेबाज और कोई नहीं ।

न्यायप्रियता इनकी इतनी है कि जस्टिस लोया की हत्या करवा दी और गुजरात कांड के सभी आरोपी बरी करवा दिए ।

~सूरज मिज़्ज़र्रा

Unknown said...

रविवार को दिल्ली के आईजी स्टेडियम में बीजेपी बूथ सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 2019 का चुनाव आम चुनाव नहीं होने जा रहा है, ये चुनाव युग को बदलने वाला चुनाव है, जैसे 1977 का चुनाव हुआ था. 2019 का चुनाव वंशवाद, जातिवाद, तुष्टिकरण के कफन पर आखिरी कील ठोंकने वाला चुनाव होगा. दिल्ली में 7 की 7 सीट बीजेपी जीते ये कार्यकर्ता सुनिश्चित करें.

उन्होंने कहा कि दिल्ली में तीन पार्टियों बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला होगा. केजरीवाल, राहुल गांधी से ज्यादा झूठ किसी ने नहीं बोले हैं. अभी तक 1984 सिख दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिला.

मैं अमितशाह से सहमत हूँ कि 2019 का चुनाव आम चुनाव नहीं होगा । जनता को तय करना होगा कि गाय-गोबर, मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम खेलने वाली साम्प्रदायिक कूपमंडूकों की सरकार चाहिए उन्हें, या शिक्षा, स्वास्थ्य, सभी के लिए समान भाव रखकर साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने वाली सनातनी सिद्धांतों पर आधारित सरकार चाहिए ।

बाकी झूठ बोलने की बात है तो मोदी और भाजपाइयों से बड़े झूठे और जुमलेबाज और कोई नहीं ।

न्यायप्रियता इनकी इतनी है कि जस्टिस लोया की हत्या करवा दी और गुजरात कांड के सभी आरोपी बरी करवा दिए ।

~सूरज मिज़्ज़र्रा

अहद said...

Sir,
We are eagerly missing to you, please come-on on any national TV channels. Might be that top rated channels are scared from Modifobia NO MATTER come with any channel which is not much popular and I'm sure you will make them #1 TRP rated channels.

Finally, if not at all possible to come back on National TV news channels then come on on YouTube with all the graphics and in same style as it was on Master strock.

You can name your program:
~ पर्दा फास
~ सपनों का सौदागर
~ क्लीन इंडिया
~ इंडिया का स्वयम्वर -2019
~ झूठ बड़ी चीज़ है
~ आनेवाल कल
~ 5 साल Vs 70 साल
~ राजनीतिक रिअलिटी

Unknown said...

आप राजनीति ज्वाईन करेगें भी तो कौन सी पार्टी को सबसे ज्यादा तवज्जो देगें।

Bipin N.Giri said...

आप को 1942 वाला अंग्रेजों के खिलाफ भारत आंदोलन तो याद हीं होगा उसमें आरएसएस और हिन्दू महासभा ने कितनी बड़ी देशभक्ति निभाई थी जो अंग्रेजो के साथ जाकर खड़े हो गए थे और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले लोगो की जासूसी कर रहे थे ऐसे वीर थे ये और उनकी ये वीरता का प्रमाण देखकर सारे वीर दंग मान जाते थे और जिसकी वजह से इन अंग्रेजी वीरों को आजाद देश में आज तक अपनी ए......... giribipinpolitical.blogspot.com

Unknown said...

Very good sir

ATUL RANJAN said...

मोदीजी जाने वाले हैं..