बीजेपी या काग्रेस ही नहीं बल्कि देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां भी जानती है कि 11 दिसबंर के बाद देश की राजनीति बदल जायेगी । और संभवत पांच राज्यो से इतर देश में वोटरो का एक बडा तबका भी मान रहा है कि पांच राज्यो के जनादेश से 2019 की राह निकलेगी । जैसे जैसे तारिख नजदीक आ रही है वैसे वैसे काग्रेस और बीजेपी की राजनीति में भी परिवर्तन साफ दिखायी दे रहा है । और इस बदलते माहौल की सबसे बडी वजह यही है कि दांव पर बीजेपी या काग्रेस पार्टी नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी का होना है । क्योकि एक तरफ 2014 के जनादेश ने जिस तरह मोदी के लारजर दन लाइफ के औरे को बना दिया । वही नेहरु गांधी परिवार में 2014 का सबसे कमजोर राहुल गांधी का कद 2019 में उसी दिशा में ले जा रहा है जहा 11 दिसबंर के बाद या तो वह देश के प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रमुख दावेदार हो जायेगें या फिर क्षत्रपो की कतार में खडे नजर आयेगें । लेकिन कैसे 2014 के हालात 2019 की बिसात पर बीजेपी और काग्रेस की चाल को उलट दे रही है ये समझना कम दिसचस्प नहीं है ।
पहले काग्रेस की जीत तले बीजेपी की फितरत को समझे । गुजरात में बराबरी की टक्कर देते हुये जीत ना पाना । कर्नाटक में गठबंधन से मात दे देना । और राजस्थान में काग्रेस की जीत का मतलब है बीजेपी के भीतर जबरदस्त उथल-पुथल । जो वसुंधरा राजे सिंधिया को एक क्षेत्रिय पार्टी बनाने की दिशा में ले जा सकती है । क्योकि मोदी-शाह की जोडी वसुंधरा को बर्दाश्त करने की स्थिति में तब होगी नहीं । और इसके संकेत बीजेपी छोड काग्रेस में गये मानवेन्द्र सिंह [ बीजेपी नेता जसंवत सिंह के बेटे ] को जिताने के लिये अंदरुनी तौर पर बीजेपी का ही सक्रिय होना । यहा ये समझ जरुरी है कि बीजेपी की मतलब अमित शाह होता है । और मान्वेन्द्र की जीत का मतलब वसुंधरा की हार है । ये खेल पहले काग्रेस में खूब होता था । लेकिन काग्रेस बदल रही है तो सचिन पायलट की मोटरसाउकिल के पीछे अशोक गहलोत बैठ कर हवा खाने से नहीं कतराते । खैर मध्यप्रदेश में अगर काग्रेस जीतती है तो नया सवाल शिवराज सिंह चौहान के बाद कौन ये भी उभरेगा । ठीक उसी तरह जैसे दिल्ली में काग्रेस हारी तो 15 बरस सत्ता भोगने वाली शीला दीक्षित को लेकर हुआ क्या या कौन से सवाल उठे ये महत्वपूर्ण है । ये अलग बात है कि अब काग्रेस संभली है तो शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को काग्रेस का महासचिव पद दे दिया गया है । पर सवाल है कि क्या संघ के प्रिय और मोदी-शाह को खटकने वाले शिवराज का राज बीजेपी के भीतर भी बरकरार रह पायेगा । और इसी के सामानातंर छत्तिसगढ में भी क्या काग्रेस की जीत रमन सिंह के आस्तितव को भी बरकरार रख पायेगी । क्योकि रमन सिंह या कहे उनके बेटे का नाम जिस तरह राहुल गांधी ने पनामा पेपर के जरीये उठाया तो विपक्ष के तौर पर लडाकू बीजेपी की अगुवाई कैसे रमन सिंह कर पायेगें । खासकर तब जब रमन सिंह के खिलाफ बतौर काग्रेसी उम्मीदवार खडी अटलबिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को जिताने में बीजेपी का ही एक प्रभावी गुट लगा हुआ है । यानी रमन सिंह को हारा हुआ देखने वाले छत्तिसगढ बीजेपी में है । और बीजेपी का मतलब अमित शाह ही होता है ये बताने की जरुरत नहीं है । और इसी लकीर को अगर तेलगांना ले जाईये तो वहा बीजेपी खिलाडी के तौर पर तो है लेकिन बीजेपी जिन मुख्य खिलाडियो के आसरे खेल रही है उसमें काग्रेस के लिये तेलगांना में संगठन खडा करने और चन्द्रबाबू नायडू के साथ होने के हालात ने झटके में केसीआर, औवैसी और बीजेपी को एक ही मंच पर ला खडा किया । यानी काग्रेस के लिये जो धर्म की राजनीति में जो सवाल उलझा था उसका रास्ता तेलगंना में निकलता दिखायी देता है जहा काग्रेस का साफ्ट हिन्दुत्व बीजेपी-केसीआर के वोट बैक में सेंध लगाती है और खामोश मुस्लिम को अपने अनुकुल करती है । यानी बीजेपी की बिसात पर केसीआर का चलना और औवैसी का संभल संभल कर खुद को संभालना ही काग्रेस की जीत है । क्योकि ये 2014 की उसी आहट को 2019 में दोहराने की दिशा में ले जा रही है जब एक वक्त कोई काग्रेस के साथ चलना नहीं चाह रहा था तो अब ये संकट 11 दिसबंर के जनादेश के बाद बीजेपी के साथ हो सकता है । जब एनडीए में भगदड मच जाये ।
लेकिन इसके उलट बीजेपी की जीत सीधे राहुल गांधी की लीडरशीप पर सवाल खडा करती है । यानी बीजेपी अगर तीन राज्यो में जीतती है तो मोदी-अमित शाह का कद जितना नहीं बढेगा उससे राहुल गांधी का कद कही ज्यादा छोटा हो जायेगा । और संकेत तब यही निकलेगें कि 2019 में काग्रेस विपक्ष की अगुवाई करने की हैसियत में नहीं है । लेकिन बीजेपी की जीत बीजेपी के संगठन को मोदी-शाह तले जिस तरह केन्द्रीत करेगी उसमें बीजेपी का 2019 का चेहरा वहीं होगा जैसा इंदिरा गांधी के वक्त काग्रेस का था ।
और यही से सबसे महत्वपूर्ण सवाल खडा होता है कि 2019 की तरफ बढते कदम एक तरफ बीजेपी को केन्द्रियकृत करती जा रही है तो संकट से जुझती काग्रेस अपने पिरामिड वाले ढांचे को उलटने का प्रयास कर रही है । 11 दिसबंर को जीत के बाद 2019 के लिये बीजेपी में सारे फैसले मोदी-शाह करेगें । 11 दिसबंर को जीत के बाद काग्रेस में राहुल की मान्यता को सर्वोपरी जरुर होगी लेकिन संगठन का ढांचा नीचे से उपर आयेगा । यानी कार्यकत्ता की आवाज को महत्व दिया जायेगा । बीजेपी में जिस तरह 75 पार के नेताओ को मार्गदर्शक मंडल में बैठा कर रिटायर कर दिया गया । उसके उलट काग्रेस में ओल्ड गार्ड संगठन को मथने में लगेगे । और उसके लिये निर्देश राहुल गांधी नहीं देगें बल्कि बुजुर्ग नेता खुद ही कहेगें । यानी जो संकेत चिदबंरम ने ये कहकर दिया कि मनमोहन सिंह की दूसरी पारी में ही उन्हे मंत्री नही मनना चाहिये था बल्कि संगठन को संभालना चाहिये था । ये संकेत है कि काग्रेस धीरे धीरे युवाओ के हाथ में जायेगाी । तो बीजेपी की जीत मोदी-शाह की ताकत को संघ से भी ज्यादा बढाती है । और बीजेपी को सिर्फ कार्यकत्ताओ के आंकडो में विस्तार मिलता है । कार्यकत्ताओ की उपयोगिता मोदी-शाह की जोडी तले ना के बराबर हो जाती है । लेकिन काग्रेस की जीत राहुल गांधी को संगठन सुधारने से लेकर काग्रेस को युवा ब्रिग्रेड के जरीये मथने का मौका देगी । जिसमें युवा मंत्री होगा लेकिन बुजर्ग रिटायर ना होकर संगठन और सत्ता के बीच कडी के तौर पर रहेगी । यानी काग्रेस और बीजेपी दोनो ही बदल रही है या 11 दिसबंर के बाद बदलती हुई दिखायी देगी तो बधाई मोदी सत्ता को ही देनी होगी । जिसने चरम की राजनीति को अंजाम दिया । असर यही हुआ कि अब बीजेपी का काग्रेसीकरण हो नहीं सकता और काग्रेस सत्ता के मद में खो कर गांधी परिवार की भक्ति में लीन हो नहीं सकती । अब तो नये राजनीतिक प्रयोग । वैकल्पिक नीतियो की सोच । आर्थिक सुधार के आगे का इक्नामिक माडल और ग्रामिण भारत के मुद्दो को केन्द्र में रखने की मजबूरी ही 2019 की दिशा तय कर रही है ।
Thursday, December 6, 2018
महत्वपूर्ण क्यों और क्या होगा पांच राज्यो के जनादेश के बाद....?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 4:01 PM
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17 comments:
5 राज्यो के परिणाम से ही पता चलेगा की को कितने पानी मे है।।।।।
शर्त ये है कि किसी तरह की कोई गरबारी चुनाव या मशीन के साथ न हो।
5 राज्यों के चुनावी विश्लेषण के लिए शुक्रिया
हम केवल यही चाहते है कि लोकतंत्र मजबूत होना चा5
सिस्टम महत्वपूर्ण होना चाहिए ना कि व्यक्ति
बहुत ही बेहतरीन विश्लेषण किया है आपने ।
ये सही है कि 5 राज्यों का परिणाम ही आगे की दिशा तय करेगा।उम्मीद है कि परिणाम देश की बेहतरी का ही आये ।
सही बातहै सर
Sir which channel u should joined in near future we are waiting for u show .
आपका क्या विचार है पांचों राज्यों में किसकी सरकार बनेगी ?
Bahut accha sir bjp gyi
Bjp gyi 2019 me pak
Excellent reporting sir, may our channels can do half of it
जीत दोनों में से किसी की भी हो हारेगी जनता ही।
पांचो राज्य में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से जीतेगी
बहुत अच्छा विश्लेषण
To some extent this elections will also be revealed about the public status in curunt political status
Sahi h
Enter your comment... 5 राज्योँ के चुनाव परिणाम नही महोदयजी! देश मे एक महासँयोग 5 का सँयोग बना है जिसकी भविष्यवाणी 1555 मेँ फ्राँन्स देश के नास्त्रेदमस ने की थी शायद! वो सँयेग 2019 की ही नही देश की दिशा व दशा तय करेगी जो अभी सब भविष्य के गर्भ मेँ है।-जयहिन्द!
Wah sir you are great
ummeed yahi hai bhagwan se ki 5 rajyo me khaas kar mp cg aur rj me bjp na aaye nahi to desh ka bhavisya sankat me pad jaega we wants to see u in tv with new chanel maine aapki nagpur wali speech puri suni h tab pta chala ki desh tab kya tha ab kya h aur netao ki keemat ke sath biznes mans ki b kimat pta chali
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