95 मिनट का इंटरव्यू । प्रधानमंत्री का इंटरव्यू । नये साल के पहले दिन का इंटरव्यू । और टेलीविजन स्क्रिन पर इंटरव्यू की उम्र महज दो घंटे रही तो अखबार के पन्ने पर इंटरव्यू चार कालम की जगह लेकर भी खबर ना बन सकी । तो क्या ये इंटरव्यू लेने वाले की पत्रकारिय सक्षमता पर सवालिया निशान है या फिर प्रधानमंत्री की समझ या समझाने की सोच का खोखलापन है । जहा सवाल कोई से भी हो लेकिन हर सवाल पर सफाई के साथ अपनी सफलता दिखाने बताने की चाह इस तरह लबालब हो कि मन की बात हर मन में क्यो नहीं समा रही है इसमें ही 95 मिनट जायर कर दिये जाये । तो हालात जब प्रधानमंत्री जैसे पद से इस तरह बताये जा रहे हो जैसे सुनने वालो का दायरा प्रधानमंत्री के सफलता को इसलिये समझ नहीं पा रही है क्योकि कोई समझाने वाला नहीं है । औरआखिर में खुद प्रधानमंत्री को ही फैसला लेना पडा कि उनके दिल की बैचेनी , उनकी सफलता की अनकही कहानिया , उनके लोकप्रिय होने की उडान को वह वक्त के ढलान पर फिर से गढ दें तो दोष किसी का होगा नहीं । बल्कि दोष तो देश के बहुंसख्य नागरिको का होगा जो प्रधानमंत्री पद पर बैठे शख्स की तरफ टकटकी लगाये खुद को सफल होते देखना चाहता है और प्रधानमंत्री खुद को सफल बताकर बार बार देश को सफल करार देने से नहीं चूक रहे है । बहस की गुजाइंश होनी नहीं चाहे कि जो शख्स इंटरव्यू ले रहा था वह कमजोर था । डरा हुआ था । भक्ति रस में समाया हुआ था । देश के संकट को समझते हुये भी बेहद नरम क्यो था । दरअसल इंटरव्यू लेने वाले पर राहुल गांधी की टिप्पणी और उसके बाद राहुल गांधी की टिप्पणी पर एडिटर गिल्ड का बयान । और उसके बाद पत्रकारो की बंटना । पुराने टिका-टिप्पणी को लेकर सवाल जवाब करना । ये सारे हालात बहुत साफ लकीर खिंचते है कि देश मोदीमय हो चुका है । यानी देश के पास संस्थान नहीं बच रहे है । स्कालर बेमहत्व के हो चले है । शिक्षा या रिसर्च बेमानी हो चला है । लोकतंत्र का समूचा अर्थ ही राजनीतिक सत्ता की दौड में सिमट चुका है । और जो सार्वजनिक मंचो से सबसे ज्यादा हंगामा करेगा वह सबसे असरकारक होगा । इसलिये चरखा कातते प्रधानमंत्री खुद को महात्मा गांधी मानेगें । सरदार पटेल की प्रतिमा के नीचे चिंतन की मुद्दो में खडे होकर खुद में नेहरु की छवि को देखेगें । नेहरु को खानदान शब्द के जरीये चिढा कर खुद को लोकतंत्र का सबसे बडा प्रहरी बतायेगें । और चर्चा देश में इसी पर कराने में भी सफल हो जायेगें कि महात्मा गांधी काग्रेस के खिलाफ थे । पटेल-नेहरु में छत्तीस का आंकडा था । आंबेडकर और गांधी का नजरिया संघ को मान्यता देता था । ध्यान दिजिये तो अतित के सवाल और अतित के हिन्दुस्तान की पहचान को लेकर जो भी गलत पाठ बार बार सत्ता के जरीये दोहराया जा रहा है उसे लेकर विपक्ष का डर ये है कि जनता कही इसे सच ना मान लें । यानी भविष्य की पीढियां जिसके कंघे पर हिन्दुस्तान को सवार होना है उसे कौन सा पाठ पढना है , पढे हुये किस पाठ से हिन्दुस्तान को संवराना है सारे हालात उस राजनीति पर निर्भर किये जा रहे जो खुद अज्ञान के समंदर में गोते लगाकर भ्रष्ट्रचार और अपराध का तमगा लगाकर खुद को सफल माने हुये है ।
मुश्किल ये नहीं है कि 95 मिनट के इंटरव्यू में एक भी बात ऐसी नहीं कही गई जिसे गैर राजनीतिक हो । परेशानी ये भी नहीं है कि इंटरव्यू साफ झलका रहा था कि इंटरव्यू लेना वाला इसलिये खुश था कि सामने प्रधानमंत्री बैठे है और उन्होने उसे चुना कि आप सामने बैठेगें । मुसिबत ये भी नहीं थी प्रधानमंत्री जान चुके है कि लोकतंत्र की गर्दन जब उनकी मुठ्ठी में है तो चौथा स्तम्भ 95 मिनट उनकी सुनेगा ही ....सुनायेगा ही । विलाप करेगा ही । पर ये प्रधानमंत्री को कहने बताने वाला कोई नहीं था कि ऐसे 95 मिनट के इंटरव्यू आपके 56 इंच के सीने को लगातार छोटा कर रहे है । और आने वाले 100 दिनो में ये सीना गायब भी हो सकता है । जाहिर है यहा बहस हो सकती है कि जब प्रधानमंत्री सच सुनना ही नहीं चाहते तो 95 मिनट क्या 95 हजार मिनट तक उनके सामने बैठने में क्या दिक्कत है । या फिर प्रधानमंत्री को सच बताने वाले अगर यही बता रहे है कि आप तो जनता के दिल में बसे हुये हो । एक वक्त "मौत के सौदागर " कहने पर जनता के जवाब दे दिया । तो एक वक्त " नीच" कहने पर जवाब दे दिया । एक वक्त " चायवाला " कहने पर जनता ने जवाब दे दिया । तो अब " चोर " कहने वालो को भी जवाब मिल जायेगा । बस आप घबराइये नहीं । जाहिर है ये उडान है । सत्ता की ऐसी उडान जिसमें सत्ता कमरे में बंद है और जनता खुले आसमान तले उडते परिंदो के पर कतरने को तैयार है । लेकिन उडान तो उडान है । उसलिये लोकतंत्र की गर्दन पर मरोडते हुये भी इंटरव्यू में बंगाल का जिक्र आने पर वहा लोकतंत्र खत्म करने के आरोप ममता पर लगाये तो जा सकते है कि उन्होने रथयात्रा निकलने ना दी । लेकिन ये अंदाज कैसे जनता को अच्छा लगेगा । जब लोकतंत्र के खत्मे का सवाल कोई पीएम किसी सीएम पर ऐसे वक्त लगा रहा हो जब देश में बहस गर्म हो कि लोकतंत्र गायब क्यो हो चला है । दरअसल जो मोदी को हिटलर कहते है या समझते है , वह भूल करते है । और जो मोदी को राजनीति की नब्ज पर अंगुली रखने वाला मानते है वह भी गलती करते है । हिटलर ने कभी अपने से ज्यादा ताकतवर को हिटलर नहीं कहा या फिर हिटलक की लकीर पर चलने वालो को हिटलर ने ही सबसे पहले खत्म कर दिया । तो ममता को अलोकतांत्रिक बताना अलोकतांत्रिक मोदी की भूल है ।दूसरा , 2014 में मां गंगा का जिक्र कर ही जो शख्स चुनाव मैदान में कूदता है उसे ये भी जानकारी नहीं है कि मां गंगा में सबसे ज्यादा कूडा बंगाल में ही गिरता है । यानी अपनी राजनीतिक जमीन की पहचान के बदले ममता की राजनीतिक जमीन के अखाडे में खडा होकर ममता से मोदी कैसे लड सकते है ये बताने वाला तक कोी नहीं । मोदी सरकार के ही आंकडे बताते है कि उत्तरप्रदेश में अगर हर दिन 3275 टन कूडा गंगा में गिरता है तो बंगाल में 6132 टन कूडा गंगा में गिरता है । यानी उत्तराखंड, यूपी , बिहार, झारखंड में मिलाकर हर दिन 5597 टन कूडा-कचरा गंगा में गिरता है तो अकेले बंगाल के 40 शहरो से 6132 टन कूडा गंगा में गिरता है । पर बंगाल का जिक्र आते ही प्रधानमत्री का नजरिया उसी दायरे को क्यो टटोलता है जिस दायरे की रचना उन्होने पूरे देश की है ये सवाल ना तो कोई पूछ सकता है ना ही को बता सकता है कि लकीर कौन सी खिंचे ।
असल में दुनिया जब ये जानती और सुनती है कि भारत में बरस भर के भीतर एक करोड 9 लाख रोजगार कम हो गये या फिर बीते 14 बरस में पहली बार आर्थिक पायदान पर निवेश सबसे कम हो रहा है लेकिन मन तो खुद की सफलता बताने के लिये बेताब है और सामने बैठकर 95 मिनट गुजारने की चाह हो तो ऐसे सवाल निकलेगें नहीं और जवाब ऐसे आयेगें ही नहीं जिससे लगे कि देश के प्रधानमंत्री को कोई चिंता है या पूछने वाले को भी देश को कोई चिंता है । तो क्या जाम टकराने वाले माहौल में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है या फिर पूंजीवाद की नई परिभाषा में लोकतंत्र के नाम पर सत्ता की तरफ से मुनाफे की रकम ही इतनी ज्यादा है कि एक सत्ता सवाल करती है दूसरी सत्ता जवाब देती है । यानी जनता गायब है । तो जनता से सरोकार ना रखने की एवज में दुनिया की सबसे बडी पार्टी सबसे रईस होकर , सबसे बडे इन्फ्रस्ट्रक्चर को पाल कर भी अगर चुनाव हार जाती है तो फिर लोकतंत्र का चौता स्तम्भ भी कैसे जितेगा । सरोकार तो उसके भी नहीं बच रहे है । तो फिर इन हालातो पर इन्ही सत्ता धारियो के नजरिये पर कामेंट राहुल गांधी करें और उसपर टिप्पणी एडिटर गिल्ड के अध्यक्ष करें तो उनका दिवालियापन भी समझा जा सकता है । यानी इस कटघरे में लगता यही है कि जिसे मौका मिलेगा वह अपने दायरे में अब मोदी ही हो जायेगा वह लोकतंत्र का पहला स्तम्भ हो या चौथा स्तम्भ । क्योकि गरीब गुरबो से लेकर किसान मजदूर पर रुपया लुटाने के लिये बैचेन प्रधानमंत्री रिजर्व बैक में जमा तीन लाख करोड निकालने के लिये बेताब है लेकिन इससे ज्यादा रकम जो अलग अलग योजनाओ या नीतियो के आसरे बांटी गई वह यू ही कैसे पडी रह गई इस पर भी प्रधानमंत्री ना देखना चाहते है । ना कोई जवाब देना चाहते है । ना ही कोई सवाल करने को तैयार है । मसलन किसान विकास पत्र करीब ढाई हजार करोड रुपया लेने वाला कोई नहीं है । महीने की इनकम स्कीम का दो हजार करोड से ज्यादा की रकम यू ही पडी हुई है । नेशनल सेविग सर्टिफिक्ट के तहत 1888 करोड की रकम पडी हुई है पीपएफ, रेकरिंग डिपोजिट , टाइम डिपोडिट का करीब तीन हजा करोड की रकम यू ही पडी हुई है कोई दावेदार नहीं है । यानी देश में हालात ऐसे है कि राजनीति सत्ता कही से भी कुछ भी रकम उटाकर त्तकाल सियासी राहत के लिये बांटने को बैचेन है । पर वह कितना सकारात्मक है । कितना असरकारक है कोई देखने-समझने वाला नहीं है । क्योकि राजनीतिक सत्ता का पेट ही कुछ उस तरह भरा हुआ है जहा वह सिर्फ सत्ता भोगने के लिये ही सत्ता को चला रही है ।
तो 95 मिनट के इंटरव्यू में प्रधानमंत्री क्या बोले और सामने वाले ने क्या पूछा । और जो पूछा या कहा गया उसपर वक्त जायर करने का मतलब क्या है ये इससे भी समझा जा सकता है कि देश इस हद तक मोदीमय हो चुका है कि उसे फिक्र ही नहीं है दुनिया के बौध्दिक जगत से भारत गायब हो चला है। हालात इतने बूरे है कि दुनिया के टाप चार हजार स्कालर साइटिस्टो में भारत के सिर्फ 10 साइटिस्ट का नाम ही आया है । और यहा साइटिस्ट का मतलब सिर्फ विज्ञान नहीं है बल्कि सोशल साइस्टिस्ट भी है । जो सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे है । और ऐसा भी नहीं है कि भारत में ये क्षमता नहीं है कि वह दुनिया को राह दिखा सके । पन्द्रह बरस पहले भारत और चीन के साइनटिस्ट की तादा दुनिया के बौद्दिक क्षेत्र में बराबर हुआ करती थी पर 2018 में चीन के 482 साइटिस्ट है तो भारत के महज दस । और शायद उसके सबसे बडी वजह भी यही है कि 95 मिनट तक संवाद में ना प्रधानमंत्री को पता है कि देश को क्या बताना है और ना ही पूछने वालो को पता है कि सामने बैठने से कुछ नहीं होगा .... सुनने वालो के लिये प्रधानमंत्री से पूछना होगा कि जिन्हे चुनाव नहीं लडना है । जो राजनीति में आना ही नहीं चाहते है । जो नोटा पर भरोसा करने लगे है । जो अलग अलग क्षेत्रो में काम करते हुये देस का नाम रोशन करना चाहते है । जो अच्छी उच्च शिक्षा चाहते है . जो बेहतर पब्लिक हेल्थ सर्विस, पब्लिक ट्रसंपोर्ट की सोचते है। जो देश में साफ हवा पानी के लिये संघंर्ष कर रहे है । उन आवाजो को या उनकी जररुरतो को आपने खत्म क्यो कर दिया । क्या 57 महीने की सत्ता भोगने के बाद वाकई कोई अपराधबोध नहीं है । या फिर 60 बरस की सत्ता का जिक्र कर अपने 60 महीने की सत्ता को सही ठहराया जा सकता है । यानी ना खत्म होने वाला सत्ता का सियासी युद्द ही स्वर्णिम भारत का स्वर्णिम इतिहास है ।
Sunday, January 6, 2019
साहेब कभी एंकात में बैठ कर सोचियेगा आपने कितना वक्त बर्बाद किया....
Posted by Punya Prasun Bajpai at 5:07 PM
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34 comments:
खाली दिमाग शैतान का घर होता है और वही आप हैं।कही नौकरी कर लो।
आज तक का सबसे बड़ा झूठा आदमी देश का प्रधानमंत्री बन गया है 😡😡😡😡😡😡😡
सर आप भी अभिसार शर्मा की तरह You tube पर वीडियो के जरिये अपनी राय रखिये और सवाल करिये
Superb.. As always.. U launch u r news channel sir
पुण्य प्रसून वाजपाई जैसे पत्रकार जिसकी राजनीतिक समझ इतनी परिपक्व हैं उसका अपमान करने का प्रयास मत करो महाशय।उनकी बात समझने की कोशिश करो।
श्रीमान जवाब का आकलन तो तब होगा जब सवाल पूछा जाएगा 5 साल में महागठबंधन की बैसाखी पर चलता विपक्ष चाटुकार मीडिया ने सरकार से एक भी सवाल उपयुक्त मंच पर नहीं पूछा अब मैं किसे दोष दू मीडिया को सरकार को या विपक्ष को या अपने आप को जो
बिल्कुल सही कहा है वाजपयी जी ने गलत कुछ नही है
Sir Aap Smita Prakash ko Darpok bata rahhe hai..
Very good analysis
वादे जो BJP ने किए थे,
हर वादा वो निभा रहे हैं नही।
लिया है bjp ने जो संकल्प,
उन्हें पूरा कर रहे नही।।
लोक्तंत्र को खिलोना समझ लिये है बि जे पी वाले
भाई ये पत्रकार तो अनमोल रन्त है। हमारा भारत की वो तो सच्ची हालात बता रहे है हमें वो बात अलग है जिसको ये नही समझ आ रहा है 14 वर्ष के निचले स्तर पर आर्थिक निवेश हुआ है।और जहा हम दुनिया के टॉप चार हजार साइंसटिस्टो में दुसरा नम्बर पे रहते थे आज वहा हमारा संख्या 10 है। जिसको लेख समझ नही आये वो क्या करेगा वो गाय,गोबर,हिन्दू मुस्लिम,मन्दिर महजिद में मजा आये तो बात अलग है। गोबर भक्त का कुछ नही हो सकता।
👌 लाजवाब
Good sir
Sir Kya aap ko lagta hai ki patrakarita jinda hai kis patrakarita ki bat Kar Rahe hai Jo darti ke samapt hone ki tarikh batata hai ya Jo note Mai chip lage hone ki news dekhata hai ya Jo Sach dikhane per channel see nikal deta hai uske bare Mai bat Kya karna
सर बहूत अच्छा लिखा है आपने।पढ़ कर मजा आ गया।लग रहा था जैसे खुद आप सामने खड़े हो और हम मास्टर स्ट्रोक देख रहे हो।
Awesome
Sir बहुत बड़ा लेख हो जाता है . कम शब्दो मे बात कहीये या फिर vidio अपलोड कर दीजिए . Best रहेगा
Sir keep writing , more power to yoi
Sir keep writing , more power to yoi
जब सवाल सत्ता की बजाय विपक्ष से पूछे जाने लगे कि उसने क्या किया था तो हम भूतकाल में जी रहे है। हमे वर्तमान से भटका दिया गया है।
Bahot din ho gaye hai sir aapko sune huye kabhi 10tak aapko dundata Hun to kadhi abpnews master stroke par ... Kuch kijiye sir YouTube par hi video upload kar dijiye ...
भक्त ना बनो ,
देशभक्त बनो ओर देशभक्त का मतलब होता है देश की फिक्र करने वाला ,ना कि किसी राजनीतिक दल की गुलामी करना ।
सर आप मेरे चहेते टीवी एंकर है खास बात है कि आप अपने बिहार से है वीडियो YouTube पर शेयर किजिए
hello sir my name is yash tanwar from a social group satyatra .our work to aware people about social problems and their solution . sir we start a initiative to motivate our youth to take in part in journalism . so we heartly want toyou join this initiative . because indian youth
influenced from you sir .
regards
yash tanwar
email- satyatra30@gmail.com
I can help you to start a youtube channel if you need..
सर सच्चे पत्रकार है आप सलाम है आपको आप यू ट्यूब पर आइये
शानदार पोस्ट!
Sir aap ke baton me dam h jiska.bhi sarkar ho nidar bat rakhiye
Hi Bajpai sir
Sir kaun sa chainal pe aa rahen hain
और आप टोपा हो
लगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
सत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।
You are right sir.
I am biggest fan sir
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