Monday, November 24, 2008

आरएसएस को हिन्दुत्व का पाठ पढ़ाएंगी सावरकर की पाती

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की मानें तो एटीएस पंचतंत्र की कहानी लिख रहा है। क्योंकि जो लोग मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी हो सकते हैं, वही लोग संघ के कार्यवाह मोहनराव भागवत और कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार की हत्या की साजिश कैसे रच सकते हैं। लेकिन हिन्दुत्व की जिस राह को 'अभिनव भारत' सरीखा संगठन पकड़े हुये है और हिन्दुत्व का नाम लेते लेते आरएसएस जिस राह पर जा चुका है अगर दोनो की स्थिति को दोनो के घेरे में ही देखे तो पहला सवाल यही उठेगा कि मालेगांव को लेकर जो सोच अभिनव भारत में है, कमोवेश वही सोच आरएसएस को भी लेकर है। यानी मालेगाव और संघ के हिन्दुत्व में कोई अंतर करने की स्थिति में 'अभिनव भारत' नहीं है।

इस स्थिति को समझने से पहले जरा दोनों के अतीत को समझ लें। दरअसल, अभिनव भारत जिस हिन्दु महासभा से निकला उसके कर्ता-धर्त्ता सावरकर थे जो सीधे कहते थे," इस ब्रह्माण्ड में हिन्दुओं का अपना देश होना ही चाहिये, जहां हम हिन्दुओं के रुप में, शक्तिशाली लोगो के वंशज के रुप में फलते-फूलते रहें। सो, शुद्दि को अपनाये, जिसका केवल धार्मिक नहीं, राजनीतिक पहलू भी है । " वहीं हेडगेवार समाज के शुद्दिकरण के रास्ते हिन्दु राष्ट्र का सपना देशवासियो की आंखों में संजोना चाहते थे।

सावरकर पुणे की जमीन और कोकणस्थ ब्रह्माणों के बीच से हिन्दुसभा को खड़ा कर सैनिक संघर्ष के लिये 1904 में अभिनव भारत को लेकर ब्रिट्रिश सरकार को चुनौती दे रहे थे। वहीं दो दशक बाद हेडगेवार नागपुर की जमीन पर तेलुगु ब्राह्मणों के बीच से हिन्दुओं के अनुकुल स्थिति बनाने के लिये कांग्रेस की नीतियों का विरोध कर हिन्दुत्व शुद्दिकरण पर जोर दे रहे थे। उस दौर में सावरकर के तेवर के आगे आरएसएस कोई मायने नहीं रखती थी । ठीक उसी तरह जैसे अब आरएसएस के आगे हिन्दु महासभा कोई मायने नहीं रखती । सावरकर की पुत्रवधु हिमानी सावरकर 2004 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हिन्दुमहासभा का अलख लिये चुनाव लड़ रही थीं। उस समय बीजेपी ही नहीं आरएसएस के स्वयंसेवक भी मजा ले रहे थे। हिमानी अपना चुनाव प्रचार करने ऑटो पर निकलती थीं और बीजेपी के समर्थक जो शायद आरएसएस से भी जुड़े रहे होगे, आटोवाले को कहते थे "हिमानी पैसा ना दे पाये तो हमसे ले लेना ।"

लेकिन वही दौर ऐसा भी था जब आरएसएस के भीतर बीजेपी को लेकर घमासान मचा हुआ था । इसलिये कार्यवाह का पद जब मोहन राव भागवत ने संभाला तो मोहनराव में लोग मधुकर राव भागवत को देख रहे थे । मधुकर राव भागवत ना सिर्फ मोहन भागवत के पिता थे बल्कि हेगडेवार जब आरएसएस को भारत की धमनियो में दौड़ाने की बात कहते थे तो मधुकरराव हमेशा उनके साथ खड़े रहे । उस दौर में मधुकर राव भागवत गुजरात में संघ के प्रांत प्रचारक थे, जो राजनीतिक नजरिए को खारिज कर हिन्दुत्व के जरिये समाज का शुद्दिकरण सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर करना चाहते थे। लेकिन मोहन भागवत ने जब कार्यवाह का पद संभाला तो अयोध्या में मंदिर निर्माण एक सपना बना दिया गया था। स्वदेशी मुद्दा एफडीआई के आगे घुटने टेक रहा था। गो-रक्षा का सवाल उठाना आर्थिक विकास की राह में पुरातनपंथी राग अलापने सरीखा करार दिया जा रहा था । धारा-370 का जिक्र राजनीतिक तौर पर एक बेमानी भरा शब्द हो चुका था। धर्मातरंण के आगे आरएसएस नतमस्तक नजर आ रहा था । बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला वाजपेयी सरकार में ठंडे बस्ते में डल चुका था ।
पूर्वोत्तर में संघ के चार स्वंयसेवकों की हत्या के बावजूद तब के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की खामोशी ने संघ के माथे पर लकीर खिंच दी थी । जम्मू-कश्मीर को तीन हिस्सो में बांट कर देश को जोडने के संघ कार्यकारिणी के फैसले को वाजपेयी सरकार ने ही ठेंगा दिखा दिया था । और इन सबके बीच बीजेपी की तर्ज पर मुस्लिमो को साथ लाने की जो पहल संघ के भीतर इन्द्रेश कुमार कर रहे थे उसने संघ के एक बडे तबके में बैचेनी पैदा कर दी थी ।

जाहिर है इन परिस्तिथितियो को महज संघ के भीतर का कट्टर हिन्दुत्व ही नही देख कर खुद को अलग थलग समझ रहा था बल्कि मराठी समाज का वह तबका जो सावरकर के आसरे कभी आरएसएस को मान्यता नहीं देता था, वह कहीं ज्यादा खिन्न भी था । 2002 से लेकर 2006 के दौरान विश्व हिन्दु परिषद से लेकर भारतीय मजदूर संघ,स्वदेशी जागरण मंच और किसान संघ के बीच का तालमेल भी बिगड़ता गया । इन सब के बीच सरसंघचालक कुपं सीं सुदर्शन की उस पहल ने आग में घी का काम किया जब आरएसएस पर लगी सांप्रदायिक छवि को धोने के लिये सुदर्शन ने मुस्लिम समारोह-सम्मेलनो में जाना शुरु कर दिया । महाराष्ट्र के हिन्दुवादी आंदोलन में संघ की इन तमाम पहल का नतीजा समाज के भीतर संघ की घटती हैसियत से साफ नजर आने लगा । 2004 में बाजपेयी सरकार की चुनाव में हार ने ना सिर्फ संघ के एंजेडे की हवा निकाल दी जो संघ के लिबरल होने पर बीजेपी की सत्ता का स्वाद चख रहा था और सत्ता को अपना औजार बनाकर हिन्दुत्व का राग अलापने से भी नही कतरा रहा था । बल्कि इस दौर में संघ के भीतर जिस मराठी लॉबी को हाशिये पर ठकेला गया था उसने खुलकर संघ की सेक्यूलर सोच को निशाना बनाना शुरु किया ।

इस दौर में सावरकर -गोडसे की नयी पीढ़ी, जो संघ से पहले अंसतुष्ट थी, उसने सावरकर की संस्था 'अभिनव भारत' को फिर से सक्रिय करने की दिशा में वर्तमान कालखंड को ही उचित माना । इस विंग ने संघ पर भी मुस्लिम परस्ती और हिन्दु विरोधी सेक्यूलर राह पर जाने के आरोप मढ़ा। ऐसा नही है कि अभिनव भारत एकाएक उभरा और उसने संघ को निशाने पर ले लिया । दरअसल, 2006 में अभिनव भारत को दुबारा जब शुरु करने का सवाल उठा तो संघ के हिन्दुत्व को खारिज करने वाले हिन्दुवादी नेताओ की पंरपरा भी खुलकर सामने आयी। पुणे में हुई बैठक में , जिसमे हिमानी सावरकर भी मौजूद थीं, उसमें यह सवाल उठाया गया कि आरएसएस हमेशा हिन्दुओं के मुद्दे पर कोई खुली राय रखने की जगह खामोश रहकर उसका लाभ उठाना चाहता रहा है। बैठक में शिवाजी मराठा और लोकमान्य तिलक से हिन्दुत्व की पाती जोड कर सावरकर की फिलास्फी और गोडसे की थ्योरी को मान्यता दी गयी । बैठक में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी से लेकर गोरक्षा पीठ के मंहत दिग्विजय नाथ और शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद के भक्तो की मौजूदगी थी । या कहे उनकी पंरपरा को मानने वालो ने इस बैठक में माना कि संघ के आसरे हिन्दुत्व की बात को आगे बढाने का कोई मतलब नहीं है।

माना यह भी गया कि बीजेपी को आगे रख कर संघ अब अपनी कमजोरी छुपाने में भी ज्यादा वक्त जाया कर रहा है इसलिये नये तरीके से हिन्दुराष्ट्र का सवाल खड़ा करना है तो पहले आरएसएस को खारिज करना होगा । हालांकि, ऐरएलएल के भीतर यह अब भी माना जाता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी हिन्दुमहासभा की ही रही । 1937 तक तो जिस पंडाल में कांग्रेस का अधिवेशन होता था, उसी पंडाल में दो दिन बाद हिन्दुमहासभा का अधिवेशन होता। और मदन मोहन मालवीय के दौर में तो दोनो अधिवेशनों की अध्यक्षता मालवीय जी ने ही की। इसलिये आरएसएस कांग्रेस की थ्योरी से हटकर सोचती रही । लेकिन हिन्दु महासभा का मानना है कि संघ ने बीजेपी की सत्ता का मजा लेकर सत्ता दोबारा पाने के लिये खुद के संगठन का कांग्रेसीकरण ज्यादा कर लिया है और हिन्दु राष्ट्र की थ्योरी को पूरी तरह नकार दिया है।

महत्वपूर्ण यह भी है ब्राह्मणों की पंरपरा को लेकर भी मतभेद उभरे। चूकि हेडगेवार की तरह सुदर्शन भी तेलुगु ब्रह्मण है, तो हिन्दुत्व पर कड़ा रुख अपनाने की सुदर्शन की क्षमता को लेकर भी यह बहस हुई कि संघ फिलहाल सबसे कमजोर रुप में काम कर रहा है। इसलिये संघ की मराठी लाबी भी सावरकर की सोच को आगे बढाने में मदद करेगी। इन सब का असर संघ पर किस रुप में पड़ा है या फिर देश में जो राजनीतिक हालात हैं, उसमे सरसंघचालक सुदर्शन भी अंदर से किस तरह हिले हुये है इसका अंदाजा पिछले महीने 7 नबंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर गो-रक्षा के सवाल पर हिमानी सावरकर के साथ मंच पर खडे सुदर्शन को देख कर समझा जा सकता था । यानी जो परिस्थितियां सावरकर और संघ को अलग किये हुये थीं, उसमे पहली बार संघ के भीतर भी इस बात को लेकर कुलबलाहट है कि जिस राह पर वह चल रही है वह रास्ता सही नहीं है।

मामला सिर्फ मोहन भागवत या इन्द्रेश की हत्या की साजिश का नहीं है , पुणे में गोखले-साठे-पेशवा-सावरकर की कतार में खडे कोकनस्थ बह्मण अब स्वदेशी अर्थव्यवस्था के उस ढांचे को जीवित करना चाह रहे हैं, जिसकी बात कभी संघ के नेता दत्तोपंत ढेंगडी किया करते थे। लेकिन ढेंगडी अपनी बात कहते कहते मर गये मगर न वाजपेयी सरकार ने उनकी बात सुनी ना सरसंघचालक ने उन्हे तरजीह दी । जाहिर है, आजादी के बाद पहली बार अगर अभिनव भारत को बनाने की जरुरत सावरकर को मानने वाले कर रहे है तो इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि हिन्दुत्व की जो थ्योरी सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर अभी तक आरएसएस परोस रही है और बीजेपी उसे राजनीतिक धार दे रही है, वह अपने ही कटघरे में पहली बार खड़ी है।

16 comments:

Anonymous said...

very interesting analysis of the entire issue. I am a regular visitor to this blog and the posts are really insightful.

drdhabhai said...

काश संघ के बारे मैं इतना अधिकृत होकर छापने से पहले आप संघ की एबीसी के बारे मैं जानते...पर ये हिंदुस्तान मैं पत्रकारों से अपेक्षा करना शायद बेमानी होगी....कभी आरूषी,कभी साध्वी शायद इसी पर जिंदा है भारतीय पत्रकारिता भगवान इनको सद्बुद्धी दे....

Unknown said...

vajpyi sahab jitni bebaki se shabdo aur content ko rakh kar ye bat aap ne prastut ki hai nischit taur par kabile tarif hai ------ leki n kahi na kahi puri jach ho jane de tabhi dudh ka dudh aur pani ka pani ho payega==

"अर्श" said...

बेबाक लेखन बेहतर प्रस्तुति वाजपई साहब ,बहोत खूब लिखा है आपने... आपको ढेरो बधाई .. कभी फुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पे आए आपका ढेरो स्वागत है ,आपका स्नेह चाहूँगा.......... ढेरो साधुवाद ..

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

संघ के भटकाव का बहुत ही बेहतरीन विश्लेषण किया है आप ने .बहुत बहुत धन्यबाद

Anonymous said...

you have told us the history of both rss and hindu mahasabha. I would like to remind you about some more history. In the eyes of Jinnah Congress was a Hindu party in the eyes of Congress Rss and Hindu Mahasabha.Everything depends on perspective. The whole spectrum of diferent ideologies is there.
The equation changed around indipendence. Savarkar was accused of Gandhi murder. So that he may not be able to play an active part in politics.
Gandhi murder was used as a terror tactic for merger of Scindias in Indian republic.
Ambedkar was used to nutralize Kokanastha Brahmans power.
कृपया एक जाति के रूप में कोकणस्थ ब्राह्मणों का उल्लेख न करें. अभी भी यह जाति गांधी हत्या के कलंक से मुक्त नही हुई है. क्या अन्य गांधियों के हत्यारों की जातियों का उल्लेख आप इस तरह से करते जैसा यहां किया है. सावरकर जी को भारत के उच्चतम न्यायालय ने बाइज़्ज़त बरी किया है. उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को भुलाया नही जा सकता. राजनैतिक लाभ के लिये तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं ने उन्हे कोर्ट कचहरी के जाल में फसाये रखा. जिस तरीके से सारे मुस्लिम आतंकवादी नहीं हैं वैसे ही इस जाति के कुछ व्यक्तियों के कारनामो के लिये सारी जाति को कलंकित नही किया जा सकता.
kokanastha brahmans are already suffering the stigma of Gandhi murder. For this they are being discriminated at many places.

Anonymous said...

क्या विचारों का अंतर
बना दे आदमी को बंदर
कुछ हटके सोचें
तो लगता है डर
आसमान काला है
फैला गिद्धों का साया है
तू तेरा मै मेरा
गिद्धों ने डाला शमसान में डेरा
हमने भी मुह अपना
ओर दूसरी फेरा
कुटिल कुचक्रों का यह जाल
फिर भी नही कभी मलाल
हे मानव खुद तू ही हलाल
तुम हमेशा किसी के विरुद्ध
ही क्यों होते हो एक
क्या इरादे तुम्हारे नही हैं नेक
अगर किसी के साथ मिल नही सकते
कोई बात नही
किसी के विरोध को
अपनी एकता का बहाना
क्यों बनाते हो
क्या एकता के लिये कोई
अन्य कारण नही ढूंढ पाते हो
कब सीखोगे तुम
विविध विचारों का आदर
किसी एक का नही है
विचारों पर अधिकार
है वह उर्वर मन की उपज
अपनी उपज मीठी
दूसरे की जहरीली
हे बुद्धिजीवी
विचारों के मन्थन से ही अमृत निकलेगा
पर उसके पहले का विष
कौन शिव निगलेगा
असहमति और विविध विचार
आते जीवन में बार बार
हर किसी को अपने विचार
रखने का है अधिकार
भिन्नता असहनीय
नही वह जीवन पद्धति है
विभिन्न स्थानो में जीवन की
अपनी अपनी रीति है
नये विचार पाना है
या फिर कूपमंडूक रह जाना है
तुझपर है
इतिहास वताता है
किसी विचारधारा को
तुम नही रोक
चाहे कितना रोको ताल ठोक

MEDIA GURU said...

bahut sundar visleshan kafi jankari hui. badhai.

Sarita Chaturvedi said...

1- MALEGAON AUR SANGH KE HINDUTWA ME KOI ANTAR KARNE KI ISTHTI ME ABHINAW BHARAT NAHI HAI.....?

2- SAWARKAR....SHUDHI KO APNAYE , JISKA KEWAL DHARMIK NAHI, RAJNITIK PAHLU BHI HAI

HEDGEWAR.....SAMAJ KE SHUDHIKARAN KE RASTE HINDU RASTR KA SAPNA DESWASIWO KI MANG ME SANJONA CHAHTE THE......?

3. HIMANI...HAI KAHA........?

4. RSS KI GHATI HAISIYAT....PHIR BHI US PAR BALWA ............?

5. SANGH NE BJP KI SATTA KA MAJA LEKAR SATTA DOBARA PANE KE LIYE KHUD KE SANGTHAN KA CONGRESIKARAN JYADA KAR LIYA HAI...SABSE KATHOR SATYA.

Dev said...

Welcome Punya ji on blog world.

Regards

prakharhindutva said...

ये लोग जो आपकी तारीफ़ो के पुल बाँध रहे हैं आपके क़द को देख कर। शायद ये नहीं जानते कि आपको नुक़्ते और तलफ्फुज़ का ज़रा भी शऊर नहीं है। मैं सोचता था आप अच्छा लिख लेते होंगे लेकिन आप तो यहाँ भी फ़ेल हो गए। मिज़ाज या मिजाज आपको एक जैसा लगता है। बाज़ार और बाज्जार में आप कोई भेद नहीं करते। इतने पर भी सर्वश्रेष्ठ पत्रकार का पुरस्कार लेते लज्जा नहीं आई।

पैनापन और धार देखनी हो तो हमारे ह्लॉग पर देखें

www.prakharhindu.blogspot.com

Anonymous said...

अब सिर्फ़ मुझे सुनो क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
मैं इस वक हिंदुस्तान की हर बिगड़ी हुई तस्वीर को 24 घंटे के अंदर बदलने का माद्दा रखता हूँ, वह भी केवल अपनी एक स्पीच से. क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ. क्या आप के ग्रुप के सभी एड़ीटर्स सिर्फ़ एक बार मुझसे बहस करने को तैयार होंगे? एक ही बार में फ़ैसला हो जाएगा मैं यक़ीन के साथ दावा कर रहा हूँ की प्राकृत ने मुझे ही चुना है देश की तकदीर बदलने के लिए . अगर मुझे आपका जबाब नहीं मिला तो भी यक़ीन दिलाता हूँ की किसी भी वक़्त इस देश की पूरी सत्ता को पूरी तरह बदलने के लिए एक ऐसा खेल शुरू कर दूँगा जिसमे आठ दिन के अंदर सब कुछ बदलने की गारांट भी है. संत महात्मा, पीर, फ़क़ीर, गुरुओं व 100% सच्चे इंसान, जिनका रूप फ़रिशतों का होता है को छो. किसी से भी किसी भी वक़्त बहस करने को तैयार हूँ. हर प्रश्न भी सब कुछ बदलने का माद्दा रखता है व मेरे हर जबाब में जीत का ही प्रत्यक्ष दर्शन होगा.हर जबाब men . आपके मीडिया क के इतिहास में आज तक ऐसी क घटना न घाटी है. बल्कि आज तक सुनी भी नही गयी है बल्कि आज ताज किसी ने सोच ही नही पाई है. मुझे बहुत प्रसन्नता होगी आप जैसे महान देशभक्त, देशप्रेमी, सच्चे जागरूक , बहादुर , कर्तव्यनिष्ट, विस सर्वोक्च पद दयावान इस संदेश को बेवकूफ़ी, पागलपन, सिरफिरा,बडबोला समझा ही सही अपने मीडिया धर्मं व अपने मीडिया अभियान के तहत नीतिगत मुझे शीघ्रातिशीघ्र ज़रूर जबाब देंगे. इंतज़ार अभी से शुरू है, जो आपके जबाब के लिए ही जागता रहेगा.
साधन्यवाद
आपका अपना ही 'मस्ताना'

prakharhindutva said...

हम नहीं सुधरेंगे। इस ग़द्दार क़ौम के साथ एकता और सद्भाव फैलाएँगे। और जैसा चल रहा है वैसा चलता रहेगा। फिर कल आतंकवादी हमला होगा फिर कुछ निर्दोष हिन्दू मारे जाएँगे, फिर से राष्ट्र के नाम प्रधानमन्त्री का मरियल सन्देश आएगा, फिर से शहीदों की याद में कुछ मोमबत्तियाँ जलेंगी और हम एक बार फिर एक नए हमले का इंतज़ार करने लगेंगे। सच्चा मुसलमान (अर्थात् धोखेबाज़ नागरिक) भी घड़ियाली आँसू बहाकर कर फिर ऐसे ही नए कुकृत्य के लिए असला जमा करने लग जाएगा। फिर से हमला होगा और इसी घटनाक्रम की पुनरावृति होती रहेगी।

अब समय किसी पर दोष मढ़ने का नहीं बल्कि राष्ट्र के असली शत्रु को पहचानने का है। ग़द्दारी और आतंकवाद तो मुसलमान की फ़ितरत है ही। वो कहाँ चुप बैठने वाला है? पर बहुसंख्यक होने के बावजूद यदि तुम उसे चुप न करा पाओ तो यह तुम्हारी कमी है। नृशंसता और पशुता तो मुहम्मद द्वारा सिखाई ही गई है पर तुम यदि ऐसे लोगों को भजन सुनाओ तो वो तुम्हारी मूर्खता है।

www.prakharhindu.blogspot.com

कुमार आलोक said...

कम से कम इतना फख्र होना चाहिये कि बाजपेयी साहब की अपनी विचारघारा है और पिछले सारे पोस्ट पर गौर किया जाये तो भटकाव की गुंजाइश नही कहीं दिखती । नागपुर गया था तो सबसे पहले संघ के मुख्यालय में गया .. मेरी बडी प्रबल इच्छा थी की वहां जाउं और हिन्दुत्तव के हैडक्वार्टर के दरश को देखूं । संग्रहालय देखा और संघ के पूरे इतिहास के सचित्र वर्णण को देखा ...ज्यादा इतिहास नही पढा हूं ..लेकिन यह जानकर बडा आश्चर्य हुआ कि संघ के संस्थापक कांग्रेस के ही सदस्य थे और मतविभिन्नता के बाद उन्होने संघ की आधारशिला रखी । यह करीब १५ साल पहले की बात है । बाद में मैनें संघ के इतिहास का विस्तृत अध्य्यन किया । जो बातें बाजपेयी जी ने अपने पोस्ट में कही है उसमें आलोचना की गुंजाइश नही है ।

ASIT NATH TIWARI said...

वाजपेयी जी, आपको भी पढा और प्रतिक्रियाएं भी पढी। अच्छा लगा आपको पढकर,और कोई आश्चर्य नहीं हुआ प्रतिक्रियाएं पढकर। दरअसल जो खतरा मैं महसूसता हूं वो है विभाजन का खतरा। संघ या ऐसे संगठन इसके लिए प्रयासरत हैं। संदेह तो ये भी होता है कि इसके लिए इन्हे पडोसी मुल्क से मदद मिलती है।
देश को बचाना है, तो हमें तटस्थ रहना होगा।

असित नाथ तिवारी

Bharat Chintan said...

Vajpayee's Analysis is correct. I'm myself from sangh background, rather have discharged certain "Dayitva" as well. But Sangh has greatly changed. The change has not been for the good.Sangh must do Aatmachintan. Some shuddhikaran is also required. I want Sangh back to the same glory. Lets work together.