Sunday, February 14, 2010

टैरर इज बैक : पुणे में उठे सवाल, निशाना कहीं कॉमनवेल्थ तो नहीं

यह धमाका कहीं भी किया जा सकता था। और कहीं भी का मतलब है...सौ से ज्यादा मौत। क्योंकि पुणे के लिये सेटरडे नाइट का मतलब होता है हंगामा। और धमाका जिस अमोनियम नाइट्रेट के जरिए कराया गया, इसका असर पुणे के किसी भी बार-रेस्तरा में कितना जबरदस्त हो सकता था, यह जर्मन बेकरी की हालत को देखकर समझा जा सकता है। जितने बड़े घेरे में जर्मन-बेकरी बर्बाद हुई, उतने बड़े घेरे में पुणे के किसी भी हंगामा स्थल पर दो सौ से ज्यादा लोग मौजूद रहते हैं। यानी पहली एफआईआर तो यही कहती है कि टेरर इज बैक। क्योंकि बेहद सोची समझी रणनीति के तहत ही निशाना उस जगह को बनाया गया जो पुणे का सबसे ज्यादा महंगा इलाका है। आम आदमी यहां रहना तो दूर...देख भी नहीं पाता। लेकिन इस इलाके में ही सबसे ज्यादा विदेशी हैं तो धमाके के पीछे मकसद विदेशियों को निशाना बनाना भी हो सकता है। आप सही कह रहे हैं। लेकिन पुणे को अगर जानते हैं तो विदेशी सैलानियों की भरमार आपको कई जगहों पर मिल सकती है। कृष्ण मंदिर से लेकर ओपन रेस्तरा तक में। लेकिन इस धमाके का मतलब टैरर का पहला प्रयोग है, जिसमें आंतक फैलाने वाले अपने प्रयोग के असर को भी देखना चाहते होंगे और उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया सरकार और आम लोगो की होगी..यह भी समझना रहा होगा।


पुणे के लोगो से धमाके पर बातचीत ने मेरे सामने यह सवाल भी खड़ा किया कि जिस तरीके से धमाके को अंजाम दिया गया
, वह 26-11 से पहले की उन परिस्थितियों को दुबारा पैदा कर सकता है जिसमें शहर दर शहर धमाके के साये में लगातार आ रहे थे। हैदराबाद, जयपुर,लखनऊ, मुंबई, बेगलुरु, दिल्ली...यानी याद कीजिये तो शहर दर शहर आतंकवादी हिंसा की गिरफ्त में थे। इस शंका की वजह जर्मन बेकरी से तीन किलोमीटर दूर रहने वाले कारपोरेट कंपनी के एक्जीक्यूटिव के सवाल थे। जिस तरह से कैमिकल कंबिनेशन ने धमाको को अंजाम दिया है, उसका मतलब यह भी है कि धमाके का फार्मूला किसी ग्रुप को मिला है। जिसने पहला प्रयोग ऐसी जगह पर किया जो सुरक्षा बंदोबस्त के लिहाज से तो वीआईपी घेरे में आये लेकिन पुणे के भीड़ भाड़ से अलग हो। यानी असर को लेकर कोई शंका जरुर रही होगी। लेकिन असर मारक है तो इसका मतलब है प्रयोग फिर होगा और कई जगहों पर होगा।

पुणेवासियों से चर्चा के दौर में यह सवाल भी उठा कि इस धमाके के पीछे लश्कर-ए-तोएबा सरीखा आंतकवादी संगठन हो सकता है, जो नहीं चाहता हो कि भारत में शांति हो और पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत का सिलसिला शुरु हो। बिलकुल नहीं...बैंक में काम करने वाले एक पुणेवासी का तर्क भी अकाट्य था। लश्कर सरीखे संगठन घोषित तौर पर अपना काम करते हैं। यानी मानव बम बनकर हमला करना उनकी फितरत है क्योंकि एक हमले के बाद उन्हे कई मानव बम धर्म या जेहाद के नाम पर मिल जाते हैं। लेकिन धमाका जिस तरह छुप छुपा कर किया गया है
, यह तरीका बताता है कि कोई ना कोई भारत के भीतर का ही हो सकता है। जिसकी ट्रेनिंग सीमापार हुई हो।

लेकिन इसका मकसद धमाको से दहशत पैदा करना है और लश्कर सरीखे संगठनों के लिये आतंक का रास्ता बनाना है। यह नजरिया मुझे भी बेहद महत्वपूर्ण लगा क्योंकि इंडियन मुजाहिदिन ने तीन साल पहले जिस तरह से आतंक-दर आतंक धमाको के जरिए फैलाना शुरु किया था, उस वक्त भी खुफिया एजेंसियों के सामने यही सवाल उठता था कि गुरिल्ला तरीके से आतंक फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कैसे हो सकती है। यानी उनकी धरपकड कैसे होगी। उस दौर में सवाल यह भी उठा था कि जिस तेजी से शहर-दर-शहर धमाके किये जा रहे थे, उसमें इंडियन मुजाहिदिन ने अपना बेस जिस शहर में बना रखा था, वहां उसने सबसे आखिर में ही घमाका किया। आखिरी घमाका दिल्ली में किया गया। तो क्या इस बार भी आंतकवादियों का बेस पुणे में नहीं किसी दूसरे शहर में है और धमाको की यह शुरुआत है।

इस सवाल ने एक नया सवाल यह भी पैदा किया कि अगर जानबूझकर विदेशी बहुसंख्य इलाके को धमाके के लिये चुना गया और इसी तरह अगर धमाके कुछ और विदेशी नागरिको को निशाना बनाने वाले हो जाये तो भारत पर इसका असर आज के दौर में सबसे बुरा भी पड़ सकता है। यह भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाला धमाका है
, क्योंकि विदेशियों की आवाजाही अगर असुरक्षित भारत के नाम पर दुनिया में फैलती है तो धंधों पर असर पडेगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। यह जवाब अगर पुणे के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का था । तो मेरे सामने सवाल यह भी था कि धमाको के निशाने पर कॉमनवेल्थ गेम्स भी तो हो सकता है। क्योकि अगर विदेशियों पर इसी तरह निशाना साधा गया तो असर कॉमनवेल्थ गेम्स पर पड़ेगा और अचानक की देश कहेंगे कि सुरक्षा के लिहाज से वह अपने खिलाड़ियों को भारत नहीं भेजेंगे।

जाहिर हैं इसमें पहला देश इंग्लैड ही होगा। और उसके इंकार से कॉमनवेल्थ गेम्स ही ठप हो जायेगा। और अगर इसकी नौबत आयी तो यह भारत के लिये सबसे काला अध्याय होगा। हालांकि पुणे के एक टेनिस खिलाडी ने संकेतिक तौर पर कामनवेल्थ गेम्स की दिशा में बढ़ते कदमों पर सहमति जताते हुये यही तर्क दिया कि चूंकि कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों को देख रहे सुरेश कलमाडी पुणे शहर के ही हैं, इसलिये पुणे को निशाना बनाया गया है। जाहिर है यह तर्क सही हो भी सकता है लेकिन इसके लिये अगले तीन महीने इंतजार करना पड़ेगा क्योकि अगला धमाका अगर वाकई फिर विदेशियों को निशाना बनाने वाला हुआ तो आतंक का यह निशाना कोई भी समझ सकता है । अगर ऐसा हुआ तो पहली बार गृहमंत्री पी चिदंबरम के लिये सबसे बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि उन्हें खुफिया एजेंसियों की जानकारी और सुरक्षा बलो की मदद से इस नये गुट को अगले तीन महिने से पहले गिरफ्त में लेना होगा। नहीं तो कहना पड़ेगा
-टैरर इज बैक।

11 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सरकार को तुरन्त साध्वी प्रज्ञा सिंह की जांच करानी चाहिये. और कड़ी कार्रवाई की घोषणा कर दी है. काफी है.

Anonymous said...

पुण्य प्रसून बाजपेयी जी, आपने प्रज्ञा का नाम लिया तो याद आया.. साध्वी प्रज्ञा को मकोका में बन्द हुये कितने साल हो गये? क्या इसके कोई मानवाधिकार नहीं हैं या मानवाधिकार सिर्फ आजमगढियों का होता है...

जब कभी दिमाग संतुलित हो तो इस पर भी विचार करना...

सुशीला पुरी said...

बेबाक लिखा आपने ......

the mask said...

it's really surprising that the blast took place soon after the announcement of foreign secretarial level engagements after a long dilly dallying of 14 months.as the analyst claim it is essentially the handiwork of pepole who do not want the bilateral process to be started.however why do we miss the point that these elements have the capability to create such a mayhem whenever they wish.it's perhaps more worrisome.either our whole internal security is on their mercy or their are elements active in our own country-after all Pune is in the interior and no one can infiltrate and plan a bomb blast in 24 hours.

शिवम मिश्र said...

छीनता हो स्वत्व कोई, और तुम , त्याग तप से काम लो यह पाप है ,
पुण्य है, विछिन्न कर देना उसे , बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है!!!!


दिनकर की इन्ही पंक्तियों से सीख लेने की आवश्यकता है हमारी सरकार को ! ऐसा कैसे हो सकता है कि हम ऐसे देश से हाथ मिलाना चाहे जिसके हाथ हमारे देशवासियों के खून से रंगे हुए हो ! आज समझना होगा कि आखिर क्या है हमारी प्राथमिकता ? एक फिल्म , एक भाषा , एक अभिनेता ,एक नया राज्य ,एक और स्मारक और पार्क, या ये देश जो इन सबके वजूद का स्रोत है! निश्चय ही आज सभी की भूमिकाएं तय होनी चाहिए !


किसी फिल्म का प्रस्तुतीकरण होना चाहिए, लेकिन क्या इसके लिए देश की सुरक्षा से समझौता ? बिलकुल नहीं ! गृह मंत्री का ये बयान कि खुफिया एजेंसियां फेल नहीं हुयी है, इसी बात की ओर इशारा करती है कि कमी राज्य सरकार के तंत्र में है! कोई अभिनेता इतना महत्वपूर्ण कैसे हो सकता कि एक प्रमुख राजनितिक दल पूरे राज्य की ब्यवस्था तहस नहस करने को आतुर हो जाये ! भूमिका की जांच उनकी भी होनी चाहिए जो इस भयावह आतंकवाद और नक्सलवाद को भुलाकर स्वयं की मूर्तियों की रखवाली के लिए विशेष टास्क फोर्स गठित करने में संलग्न हैं !


यहाँ बात उनकी भी होनी चाहिए जो एक भाषा और तथाकथित भूमिपुत्रों के नाम पर संविधान की धज्जियाँ उधेड़ने में ही अपनी सार्थकता की व्यर्थ तलाश कर रहे हैं ! आज इन सभी संकीर्ण हितों से बढ़कर देशहित को महत्व देना समीचीन है क्यूंकि हमें नहीं भूलना चाहिए की हमारी नागरिकता एक है और वो है भारतीय होना ! सभी को मिलकर राष्ट्र भावना से भरकर और अपने तुच्छ स्वार्थों को भुलाकर एक ही उद्देश्य के लिए काम करने की आवश्यकता है जो है भारत की रक्षा ! अन्य सारी बातें इसी से तय होती है !!

vidrohi said...

pune mein uthe sawal, nishana kahi zee news ka office to nahi. is article ka title ye bhi ho sakta tha. Prasoon jee, afwahein failana aur andaja lagana bhi ek tarah ka terrorism hai.aap bus samachar bataiye aur jo ho raha hai ya ho chuka hai, uspe hi apne vichar vyakt karein.

Parul kanani said...

terror gaya hi kab tha,jo vapis aaya hai sir..jindagi is aatank ke saaye ke neeche roj kat rahi hai...!

Ashok Kumar pandey said...

पुणे भगवा आतंकवाद का सबसे बड़ा गढ़ है। मुशरिफ़ साहब ( वही जिन्होंने तेलगी को पकड़ा था) ने अपनी किताब हू किल्ड करकरे में तमाम ख़ुलासे किये हैं। निशाना कामनवेल्थ खेल से ज़्यादा भारत-पाक बातचीत हो सकती है। मुशरिफ़ साहब की किताब में तमाम ख़ुलासों के बीच बंबई के स्टेशन वाले कांड का ज़िक्र है जिसका आरोप मुस्लिम आतंकवादियों पर है लेकिन जिसमें आधे से अधिक मुसलमान मारे गये थे-- वे भी ईद पर घर जा रहे मुसलमान जिनके साथ उनकी धार्मिक पहचान स्पष्ट थी! अभी दो दिन पहले नयी दुनिया में हरिद्वार के पास भगवा ब्रिग्रेड की कुंभ में दंगे फैलाने की साजिश का ज़िक्र भी था। अगर करकरे जैसे अफ़सर ज़िन्दा होते तो शायद अब तक इस गिरोह का पर्दाफ़ाश हो चुका होता।

और दिव्या आज़मगढ़ियों को गाली मत दीजिये हम भी वहीं के हैं, राहुल सांकृत्यायन भी वहीं के थे। यह प्रज्ञा ख़ूनी साजिश करके भी साध्वी है और बाकी सब आज़मगढ़िये!! आपकी समदर्शिता का ज़वाब नहीं।

Unknown said...

Tipaddi karne se pahle kam se kam aik bar lekh ko to padhna hi chahiye .Par ye jahmat shayad hi kisi ne uthai ho tabhi to is tarah ki tipaddiya aai hai.

Anonymous said...

@ अशोक पाण्डेय, आजमगढ़ तो अपने आपराधिक निवासियों के कारण स्वयं ही गाली बन चुका है, राहुल सांस्कृत्यायन तो भूतकाल हैं, वर्तमान में इसकी पहचान दाऊद, अबू सलेम जैसे स्मगलर और हत्यारे आतंकवादियों और अपराधियों से होती है...

पुणे को भगवा आतंकवाद का सबसे बढा गढ़ किन आधार पर बता रहे हैं? आपकी "समदर्शिता" के अनुसार यहां आजमगढ़ जैसा कौन सा स्मगलर, सूपारी किलर, आतंकवादी, पाकिस्तान के इशारों पर विस्फोट कराने वाला हुआ है?

दिव्या को खूनी साजिश करने वाला किन आधार पर कह रहे हैं? कौन सा अपराध साबित हुआ उसके ऊपर? सबूतों को अदालत में पेश तो कीजिये, यदि अदालत उसे अपराधी कहे तो तुरन्त फांसी पर चढ़ा दीजिये, अफज़लों की तरह न बचाईये

लेकिन उसको तो मकोका के अन्दर बन्द करके रखा है? इसके नाम पर तो मानवाधिकार के नाम पर रुदन मचाने वाले विदेशी पैसे से एनजीओ चलाने वाले भी चुप हैं...

आप अपनी 'समदर्शिता' से भी जबाब पूछिये

Ashok Kumar pandey said...

ओह मैने आपको नहीं प्रज्ञा को कहा था…आप भाव में कुछ ज़्यादा ही बह गयीं।
जितने मुसलमानों को आतंकवादी कहकर पकड़ा गया क्या उन सब पर कोई आरोप साबित हुआ? लेकिन कोई मुसलमान जब गिरफ़्तार होता है तो सारे मीडिया चैनल और आप जैसे 'देशभक्त' उसे आतंकवादी क़रार देते हैं। सैकड़ों ऐसे लड़कों के निर्दोष साबित होने के बाद भी उनके परिवार यह दंश झेल रहे हैं।

लेकिन जब प्रज्ञा या उसके साथी गिरफ़्तार होते हैं तो केस शुरु होने से पहले ही संघी भोंपू अपने दसों मुंह से आर्तनाद करते हुए उसे देशभक्त होने का सर्टीफ़िकेट बांटने लगते हैं। यह दोहरा मापदंण्ड क्यूं?

करकरे साहब ने अपनी तफ़्शीश में पुणे के उस सैनिक स्कूल को भगवा आतंकवाद की सेमिनेरी बताया था जिसकी स्थापना सावरकर ने की थी। उस केस में पकड़े गये सभी संदिग्ध आतंकवादियों की जड़ें पुणे में थीं। गांधी की हत्या की योजना पुणे में बनी थी और मुशरिफ़ साहब बंबई हादसे की जड़ों की तलाश करते हुए पुणे तक पहुंचे हैं वह भी उन दिनों के प्रमुख समाचार पत्रों की रिपोर्ट के आधार पर।

विस्फ़ोट एक अपराध ही है इशारा पाकिस्तान का हो, नागपुर का या फिर अमेरिका का!