Monday, July 23, 2012

छोटे पर्दे पर बड़े पर्दे के सुपरस्टार की मौत का जश्न


छोटे पर्दे पर बड़ा पर्दा छा जाये ऐसा होता नहीं है। लेकिन 70 के दशक के सुपरस्टार की मौत ने छोटे पर्दे का चरित्र 48 घंटे के लिये बदल दिया। सिर्फ पर्दे का चरित्र नहीं बल्कि उस पीढ़ी के उन सपनों को भी जगा दिया जो उसने न तो अपने दौर में सिल्वर स्क्रीन पर देखे और ना शायद उसके सपनों में कभी आये। क्योंकि मौजूदा न्यूज चैनलों को संभाले पीढ़ी अमिताभ बच्चन से लेकर खान बंधुओ को देखकर बड़ी हुई और अब उसे ही राजेश खन्ना के स्टारडम को छोटे पर्दे पर जिन्दा करना था। और राजेश खन्ना का मतलब ना तो एंग्री यंग मैन था और ना ही आधुनिकता या विलासिता में खोया चरित्र, जो पैसों के बल पर सबकुछ पा सकता है। जो तकनीक के आसरे कुछ भी कर सकता है। सीधे कहें तो जिस समाज, परिवार या परिवेश को जिस पीढ़ी ने देखा ही नहीं और अब जिन्दगी जीने की जद्दोजहद में वह उसे समझ भी नहीं पायेगा, उस दौर के सपनों को जीने का स्वाद राजेश खन्ना ने एक ताजा हवा के झोंके की तरह दिया । कैसे तस्वीर से ही इश्क हो जाता था। कैसे सिल्वर स्क्रीन पर राजेश खन्ना की अदा सिनेमा हाल के अंधेरे में बैठी देखती कमसिन लडकियों के भीतर प्यार का उजियारा भर जाता और वह खून से प्रेम पत्र लिखने से लेकर शरीर गुदवाकर अपने स्टार को अपनी शिराओ में बसा लेती। कैसे राजेश खन्ना की सफेद अंपाला लिपस्टिक से गुलाबी हो जाती और लिपस्टिक लगे होठों में और चमक आ जाती। अद्भभुत है यह सोचना और सोचते हुये इसे छोटे पर्दे पर जीने की कोशिश करना। 

दिल तो आपका भी धड़का होगा...यह सवाल चाहते ना चाहते हुये आशा पारेख से मैंने फोन-इन के वक्त फिल्म कटी-पंतग का जिक्र कर पूछ ही लिया। और जो सोचा उससे उलट बिलकुल सादगी भरा जवाब आया। हाहा..हा कह नहीं सकती लेकिन मैंने देखा है सैट पर कैसे राजेश खन्ना प्रशसंकों से घिरे रहते । हेमा जी, आपने राजेश खन्ना के जादू को महसूस किया। और जवाब फिर सादगी भरा-कई फिल्मों में साथ काम किया..प्रेम नगर, महबूबा और भी कई ...अब याद आ रही है उस दौर की कई फिल्मों की। तो दिल आपका भी धडका ? हाहा...हा वे तो फिल्में थीं।

नंदा जी आपने तो अपने सामने राजेश खन्ना के ग्लैमर को देखा? ठीक कहा आपने मैंने देखा कैसे मेरे साथ पहली फिल्म की शूटिंग के दौरान शूटिंग देखने वाले राजेश खन्ना को देखकर पूछते थे...यह नया हीरो कौन है। और छह महिने बाद ही कैसे राजेश खन्ना हर जुबान और दिल में था। मुझसे किसी ने नहीं पूछा कि वह हीरो कौन है। वजह। वह हर दिल की धड़कन बन चुका था। शायद सादगी के साथ हर घर-परिवार के भीतर का हिस्सा बनकर अपनी अदाओं का जादू बिखेरना ही राजेश शन्ना की फितरत रही। तो क्या घर-परिवार के ही एक सदस्य के तौर पर सीधे सपाट अपनी अदायगी से पूरे माहौल को जीने वाला कलाकार था राजेश खन्ना। तमाम कलाकारो को टटोलते हुये भी अगर ध्यान दें तो हर छोटे पर्दे पर एक कुबुलाहट लगातार रेंगती रही कि आखिर वह रोमांस..वह स्टारडम...वह प्यार उभर क्यों नहीं रहा है जिसे जीने का जुनुन हर कोई राजेश खन्ना के मरने के बाद उसके अतीत के किस्सों को पढ़कर पाल चुका है। और अब उसे उस दौर में गोता लगाना है जहा कोई दूसरा ना पहुंचा हो। यह कुबुलाहट कहीं निजी है तो कहीं सार्वजनिक होने का बड़ा औजार है। यह दोनों सच लगातार न्यूज एंकरों के सवालों और उनकी अपनी कमेन्ट्री के साथ छोटे पर्दे पर उभर रहे थे। और लगातार सवाल और कार्यक्रम के भीतर से यह गूंज भी सुनाई दे रही थी, कि वह कितना शानदार दौर था। राजकपूर ने हिन्दुस्तान को प्यार दिखाया लेकिन राजेश खन्ना ने तो आजाद भारत को प्यार करना सिखाया। और वह प्यार शर्मा जी की बेटी से लेकर त्रिपाठी जी के बेटे के बीच कैसे पनपा और पहली बार कैसे मोहल्लों से दूर पार्क और कॉलेज ग्राउड के अनछुये हिस्से में सांसे गर्म होने लगी यह पता ही नहीं चला। लेकिन यह सब छोटे पर्दे पर बताया जा सकता है, उसे उभारा कैसे जाये। 

जाहिर है पहली बार सुपरस्टार की मौत ने देश को संगीत और गीत के मायने बता दिये। यह तो कोई भी समझ लें कि राजेश खन्ना, किशोर कुमार और पंचम की तिकड़ी गीतों को जिन्दगी के तार के साथ बुन रही थी। इसीलिये जो लफ्ज निकलते वह दिल को भी भेदते और होठों को गुनगुनाने के लिये भी मजबूर करते । तुम बिन जीवन कैसा जीवन, फूल खिले तो दिल मुरझाये, आग लगी जब बरसे सावन। या फिर, कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई, तुम कौन हो क्या नाम है तेरा, सीता भी यहां बदनाम हुई। यह हुनर और मेहनत क्या अब संभव है। लिखने वाले ने समाज को समझा। संगीतकार ने दिलो की आवाज समझी। और राजेश खन्ना ने उसे अपनी अदायगी में ढाल कर हर दिल की धड़कन बना दिया। याद कीजिये फिल्म दो रास्ते के एक गीत से पहले की दो लाइने जिसे सिल्वर स्क्रीन पर जब राजेश खन्ना गुनगुनाते हैं-फलक से सितारे तोड़ कर लोग लाये हैं, मगर मै वह नहीं लाया जो सारे लोग लाये हैं। क्या हारे हुये दिल को यह लाइन सुकुन नहीं पहुंचाती। शायद वह दौर किसी को हराने या नीचा दिखाने का नहीं था। अब की तरह मुठ्ठी बंद कर खुशबु कैद करने का नहीं था। खालिस बेलौसपन था और राजेश खन्ना बेहिचक इसे हर दिल में उतार रहे थे। और ऐसे में जैसे ही राजेश खन्ना की मौत की खबर आती है तो हर न्यूज चैनल में हर किसी की दिल मचलता तो है लेकिन उसे रचा कैसे जाये यह किसी को पता नहीं चलता। क्योंकि राजेश खन्ना की कोई बायोग्राफी भी नहीं है। और किसी ने राजेश खन्ना को पन्नो पर उकेरा भी नहीं।

ऐसे में न्यूज चैनलो के संपादक कोई चित्रकार तो है नहीं और छोटा पर्दा कोई कैनवास तो है नहीं जो दिमाग में चलते भाव उभर जाये। और देखने वाले उस मदहोशी में खो जाये। बस यहीं से छोटा पर्दा वाकई छोटा हो गया। उसका दिल। उसकी समझ का दायरा और उसे परोसने का तरीका। मौत तू एक कविता है, तुझसे मिलने का वादा है.......आंनद के बाबू मोशाय से आगे मौत तू एक जीता जागता सामान है। जिसे बेचा जा सकता है। बस इस थ्योरी को ज्यादातर अब के समझदार ले उड़े। मौत के महज 10 घंटे भी नहीं हुये कि राजेश खन्ना की मौत बिकने के अंदाज में छोटे पर्दे पर अब के हालात में राजेश खन्ना के दौर को परोसने का सिलसिला शुरु हुआ। किसी को राजेश खन्ना के प्यार में उसकी मदहोशी दिखायी दी। किसी को राजेश खन्ना के प्याले में जिन्दगी तबाह करने का समान दिखा। किसी को राजेश खन्ना से 16 बरस छोटी उम्र की डिंपल में राजेश खन्ना का दिलफरेब होना दिखा। तो किसी को राजेश खन्ना की आवारगी में जिन्दगी का सच दिखायी दिया। जिसने जैसा चाहा वैसी परिभाषा गढ़ी। और हर परिभाषा में राजेश खन्ना का मतलब चित्रहार हो गया। हर कोई गीतों का हार बनाकर राजेश खन्ना के सपनो में खो गया। वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है, वो कल भी आसपास थी, वो आज भी करीब है। या फिर ....जिन्दगी को बहुत प्यार हमने दिया, मौत से भी मोहब्बत निभायेगे हम, रोते रोते जमाने में आये मगर, हंसते हंसते जमाने से जायेंगे मगर। कुछ नहीं है फिर भी हर दिल के करीब है। तो क्या यह सादगी भरे बोल ही अब गायब हो चुके है। सच्ची और साफगोई भरे लफ्ज अब कहे या लिखे नहीं जाते। हो सकता है।

लेकिन जिस तरह 70 के दशक के गीतों को छोटे पर्दे पर पिरोकर राजेश खन्ना के श्रदांजलि दी गई, उसने यह एहसास तो दिला ही दिया कि आज भी दिल मचलते है और हर कोई प्यार का भूखा है। एक आवारगी की चाहत और जिन्दगी को मौत में लपेट कर पीने की इच्छा है। शायद इसलिये राजेश खन्ना की मौत के बाद के 48 घंटे में हर वह गीत इतनी बार सुनायी दिया जो प्यार की आस जगाकर जिन्दगी को प्यासा छोड़ने से नहीं कतराता। जीवन से भरी तेरी आंखे, मजबूर किये जीने के लिये, सागर भी तरसते रहते है, तेरे रुप का रस पीने के लिये। और ऐसे गीतो पर जब राजेश खन्ना अपनी अदा से बिना किसी मुकाम को पाये मुकाम को भी नामुमकिन बना दें तो राजेश खन्ना के दौर से अब के दौर की तुलना नहीं बल्कि जिन्दगी की फिलासफी निकलती है और हर कोई बिना कुछ पाये भटकने को ही तृप्त होना समझता है। चिंगारी कोई भडके तो सावन उसे बुझाये , सावन जो अगन लगाये तो उसे कौन बुझाये। शायद इसीलिये धीरे धीरे राजेश खन्ना एक मिथ भी बना और छोटे पर्दे पर राजेश का बाद का दौर छाने लगा। क्या वाकई राजेश खन्ना के बाद अमिताभ बच्चन का आना दोनो की फिल्मों का पोयटिक जस्टिस था। आंनद और नमकहराम। दो ही फिल्में थीं, जिसमें राजेश खन्ना और अमिताभ साथ थे। और दोनों ही फिल्मों में अमिताभ के सामने राजेश खन्ना की मौत होती है। अमिताभ जिन्दा रहता है। और अमिताभ का जिन्दा रहना चाहे फिल्म की कहानी का हिस्सा हो लेकिन राजेश खन्ना की मौत के बाद अमिताभ बच्चन का आशीर्वाद बंगले जा कर राजेश खन्ना के मृत-देह के सामने रोना अब के कैनवास पर एक नयी लकीर खिंचता है। और यहा से राजेश खन्ना पीछे छूटते है और न्यूज चैनलों की होड़ राजेश खन्ना की चाशनी में अमिताभ बच्चन को बिकने वाला माल बना कर राजेश को ही इस हुनर के साथ बेचते हैं, जिससे यह ना लगे कि राजेश खन्ना का साथ छोड़ हर कोई अमिताभ के पीछे चल पड़ा है। बहुत ही महीन तरीके से अमिताभ के उस चरित्र को छोटे पर्दे पर राजेश खन्ना की आखरी यात्रा के वक्त तक उभार दिया जाता है, जहां अमिताभ बाबू मोशाय होकर भी जीते है और एंग्री यंग मैन के दौर को भी। अमिताभ के हर शब्द..हर चाल को बारीकी से छोटा पर्दा पकड़ता है और पंचतत्व में विलीन होते राजेश खन्ना के सामने बिलख बिलख कर रोते अमिताभ में राजेश खन्ना के सामने अपने छाने के युग का समर्पण दिखायी देता है। 

अमिताभ ने जिन हाथों से आगे की डोर पकड़ी और सफलता के साथ आज भी गाहे बगाहे उस डोर को खींच ही लेते हैं, उसे और कोई नहीं राजेश खन्ना का आखिरी डायलॉग ही मान्यता देता है। संयोग से यह फिल्म का होकर भी फिल्म का नहीं है। लेकिन विज्ञापन के जरीये ही सही जब राजेश खन्ना यह कहते हैं, बाबू मोशाय मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता। तो यह खुद से ज्यादा अमिताभ या अपने बाबू मोशाय के मान्यता देने का राजेश खन्ना का अंदाज भी है। और अमिताभ बच्चन राजेश खन्ना के जीते जी यह मानते भी रहे कि बंबई की सड़कों पर अगर उन्हे किसी ने पहली पहचान दिलायी तो वह आंनद के मुंह से निकला बाबू मोशाय शब्द ही था। क्योंकि आंनद फिल्म रिलीज होते ही राजेश खन्ना के फैन्स अमिताभ को देखकर आंनद के अंदाज में अमिताभ को देखकर बाबू मोशाय कहते। शायद इसीलिये पहली बार अमिताभ बच्चन भी अपने सुपरस्टार का चोगा उतार कर अपने आंनद की मौत पर रोये। शायद इसीलिये स्टारडम या सुपर स्टार को याद करते वक्त खान बंधु या अब के नफासत वाले हीरो किसी को याद नहीं आये। अगर ध्यान दें तो जिस आवारापन में शाहरुख, सलमान या आमिर खान खोये हुये हैं, उससे बहुत आगे राजेश खन्ना की आवारगी रही। अभी पैसों की खनक है और उसी भरोसे फैन्स का कोलाहाल है।लेकिन राजेश खन्ना के दौर में सिर्फ फैन्स का मिजाज था। जो हर परिवार में एक राजेश खन्ना को देखता था। अब वह दौर नहीं है तो वह बातें भी 48 घंटे से ज्यादा कैसे जी जा सकती है। और महसूस किजिये तो राजेश खन्ना की तस्वीर अब चाहे धडकन पैदा ना बनती हो लेकिन हर आंख में तो जरुर बसी है। तो सूनी आंखों से ही सही राजेश खन्ना को श्रद्धांजलि देते वक्त एक बार जरा अपने जहन में झांक कर देखे कि दिल के किसी कोने में आपके अंदर का राजेश खन्ना तो नहीं झांक रहा। हां..तो उसे मचलने दें। इस न्यूज चैनल के भागमभाग में उसे यह सोच कर ना दबाये कि एक और राजेश खन्ना मरेगा तो छोटे पर्दे पर हम भी जी लेंगे। अभी जी लीजिये..क्योंकि आनंद फिल्म में चाहे कभी मरा नहीं करता। लेकिन जिन्दगी में यह एक बार ही मरता है। और फिर जिन्दा नहीं होता।

14 comments:

Sarita Chaturvedi said...

JIS ANDAJ ME AAP NE BADI KHABAR ME RAJHESH JI KE BAARE ME BAYAN KIYAA THA ,WAHI ANDAAJ IS LEKH ME HUBAHU HAI. AIK ANTAR HAI..KI US SAMAY AAP LAGATAR MUSKURA RAHE THE AUR YAHA AAPKI KALAM MUSKUR RAHI HAI..BAHARHAL ITANE GITO KA AAPNE JIKR KIAA PAR BEHAD ROMANTIC SONG AAP BHUL GAYE.. APPKA NAGMA , AAPKA NAAM , MERA TARANA AUR NAHI, IN JHUKTI PALKO KI SIWA DIL THIKANA AUR NAHI....AAPNE JEHAN ME JHAKNE KI BAAT KI HAI PAR SACHHAI YAHI HAI KI AAJ KOI BHI SHAKSH AZAAD NAHI HAI KYOKI AZZAD SHAKSH IS DUNIYA ME SWIKAR NAHI..AUR BINA AZZAD HUYE RAJESH KHANAA KISI DIL ME KAISE JHAK SAKTA HAI?

Unknown said...

Amitabhji ki ankho me aansu Anand ko khtm hua dk AYE lekin hamari aankhe aapki lekhni ki dard-e-baya se chalak ayi.

Unknown said...

Sir aap jo bhi likhte dil ko chhu jati hain..

AWADHESH KUMAR SINGH said...

राजा - तुम्हारे इस पोस्ट ने १९७० - ७५ के समय दरभंगा की सारी यादें ताजा कर दी जहाँ के सिनेमा हॉल में हमलोगों ने राजेश खन्ना की तमाम फिल्मे देखी थी जिनका जिक्र तुमने किया है ! सच पूछो तो उस रोमांटिक हीरो की शायद कोई भी मशहूर बात अछूती नहीं रही और ब्लॉग में बखूबी उन सब का जिक्र किया गया है ! चुकी मैं राजेश खन्ना का प्रशंषक रहा हूँ अतः विशेष धन्यबाद ! हाँ एक बात और - दो दिनों तक टी.बी. की दुनिया में आये इस अचानक परिवर्तन से सभी अचंभित थे इसलिए अच्छा हुआ हमें कुछ सचाई का ज्ञान तो हुआ ! वैसे आज समय बदल चुका है और टी.बी. के दरबार में हाजिरी लगाने सभी (जिन्दा ) फिल्म स्टार को भी आना ही पड़ रहा है - पापी पेट का जो सवाल है !

Unknown said...

bahut khoob!!!!!

Unknown said...

Bhaut sahi laga sir..!!

Munish Dixit Blog said...

Sir, Kafi acha laga. Thanks.

Yogendra Srivastava said...

Sir,
Aap jo bhi likte ho wo kalam se nahi dil se nikalta hai
Regards
Yogendra srivastava

kewal tiwari केवल तिवारी said...

प्रसून जी आपका ब्लाॅग अक्सर पढ़ता हूं। लेकिन राजेश खन्ना पर आपके इस अद्भुत लेख को पढ़ने के बाद बिना की बोर्ड पर उंगली चलाए रहा नहीं जा रहा। वाकई उस दौर की फिल्मों में हर व्यक्ति को लगता था अरे यह तो मेरी कहानी है। यदि मेरी नहीं है तो मुझे इसकी तरह रहना चाहिए। कैसा संदेश दिया है। राजेश खन्ना के मरने और उसके बाद 60-70 के दशक के जी उठने की कथा-व्यथा को आपने बहुत मार्मिक और सहज ढंग से उठाया है। साधुवाद

Unknown said...

.आपका प्रशंसक रहा हूं, लेकिन एंकरिंग का...टीवी स्क्रीन पर जब आप होते हैं तब...लेकिन बड़ा सवाल..
आप इतना लंबा लिख कैसे लेते हैं...ये सोचकर कि कोई पढ़ेगा भी ?

Unknown said...

.आपका प्रशंसक रहा हूं, लेकिन एंकरिंग का...टीवी स्क्रीन पर जब आप होते हैं तब...लेकिन बड़ा सवाल..
आप इतना लंबा लिख कैसे लेते हैं...ये सोचकर कि कोई पढ़ेगा भी ?

Saurav Gupta said...

सर
आपसे में वही सवाल करना चाहता हूँ जो अंकुर ने किया है कि आप इतने लम्बे लेख कैसे लिख लेतें हैं किसी भी विषय के ऊपर.........
और सर ये गाना "कुछ रीत जगत की ऐसी है , हर सुबह की एक शाम हुई, तुम कौन हो क्या नाम है तेरा , सीता भी यहाँ बदनाम हुई" ये किस फिल्म का गाना है .

Avinash Scrapwala said...

राजेश खन्ना को एक सच्ची श्रधांजलि ! पुण्य प्रसून जैसे व्यक्ति ही राजेश खन्ना जैसे महान कलाकार के उस दौर का और लोगों में राजेश खन्ना का जो आकर्षण रहा , जिसमे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक शामिल रहे है, का सटीक वर्णन कर सकते थे !और उन्होंने सही मायनो में राजेश खन्ना के उस दौर को इस लेख में फिर से जीवित किया है! आज कल जो टीवी चेनलों पर राजेश खन्ना के देहांत के बाद जो चल रहा है उसकी भी हकीकत बयां की है!
एक जगह मैं सुधार करना चाहूँगा - "फलक से सितारे तोड़ कर लोग लाये हैं, मगर मै वह नहीं लाया जो सारे लोग लाये हैं" गीत फिल्म 'दो रास्ते' नहीं -फिल्म- 'आन मिलो सजना ' से है!
बचपन कि यादें तो 'हाथी मेरे साथी' फिल्म कि है , पर हमारी पीढ़ी जो सन १९८३ में १५/१६ वर्ष कि हुई और फिल्म 'अवतार' से जो राजेश खन्ना का दौर फिर लौट कर आया, तब भी उनकी पुरानी फिल्में देखने का, और बार बार देखने का, जो सिलसिला शुरू हुआ , वह सब यादें फिर से ताज़ा हुई...!

Yogesh Bajpai said...

Dhanyawad, bahut hi sargarbhit jankari dee aapne First Superstar of Bollywood ke bare me. Aapki Lekhni me sakshat Saraswati virajman hai.