Friday, August 8, 2008

स्टिंग ऑपरेशन देखने से पहले आँखे खोलिये, सच सामने है

कहने को बहुत कुछ होता है। अख़बारों में लिखते हैं, चैनल के जरिए भी अपनी बात रखते हैं, लेकिन सोचने की प्रक्रिया लगातार जारी रहती हैं,लिहाजा कहने के लिए बहुत कुछ दिलो-दिमाग में उमड़ता घुमड़ता रहता है। ब्लॉगिंग के बारे में सुना था, सो अब इस मंच का इस्तेमाल करेंगे अपनी बात कहने में। खासकर वो मुद्दे, जिनसे नेता बचते हैं,सरकार बचना चाहती है,हम उन मुद्दों पर साफगोई से अपने विचार रखेंगे। साथ ही,उन तथ्यों को भी रखेंगे,जिन्हें सरकार और नेता छिपाना चाहते हैं। इसके अलावा राजनीति को केंद्रकर मीडिया, समाज और दूसरे कई अहम मसलों पर यहां भी कीबोर्ड पर उंगलियां दौड़ाएंगे। फिलहाल, बहस के लिए ब्लॉग पर पहली किस्त पेश है।

सांसदो की खरीद फरोख्त का स्टिंग ऑपरेशन अगर न्यूज चैनल ने दिखा भी दिया होता तो क्या लोकतंत्र पर लगने वाला धब्बा मिट जाता? जिस संसदीय राजनीति के सरोकार देश की अस्सी फीसदी लोगो से कट चुके हैं क्या वह जुड़ जाते? जिन सांसदो ने खुद की बोली लगायी होगी या दूसरे राजनीतिक दलों की देशभक्ति से प्रभावित होकर अपने ही दल का सा छोड गये, क्या उनकी पार्टीगत सोच को दोबारा मान्यता दी जा सकती है? जो नेता सरकार गिराने या बचाने का ठेका लिये हुये थे, क्या उन्हे मिडिल मैन की जगह कोई दूसरा नाम दे दिया जाता? जिस तरह से स्टिंग ऑपरेशन को लेकर सभी राजनीतिक दल या सांसदो की खरीद फरोख्त में सामने आये तमाम नेता न्यूज चैनलो की स्वतंत्रता के कसीदे पढ रहे है, उनकी अपनी राजनीतिक जमीन किस खून से रंगी है, जरा इस हकीकत को देखिये तो रोंगटे खडे हो जायेगे।

सत्ता में रहते हुये की राज्य की धज्जियां उड़ाने वाले राजनीतिक दलों ने बीते दस साल में किन नीतियों के आसरे भारत भाग्य विधाता के नारे को बुलन्द किया। दस सालों का जिक्र इसलिये क्योकि इस दौर में देश के सभी राजनीतिक दलों ने सत्ता का स्वाद चखा। पहले इन तथ्यों को रखें और नेता इस सवाल को उठायें कि मीडिया ने भी अपना धर्म नहीं निभाया, उससे पहले स्टिंग ऑपरेशन को लेकर मीडिया के उठाये सवालों पर संसद की पहल को ही समझ लीजिये। तहलका ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए देश के धुरन्धर राजनीतिक दलो के अग्रणी नेता-मंत्रियो की पोल पट्टी खोली थी कि कैसे देश को चूना लगाकार हथियारो की खरीद फरोख्त तक में गड़बड़ी होती है। देश की सुरक्षा कमीशनखोरी के आगे कैसे नतमस्तक हो जाती है। लेकिन स्टिंग ऑपरेशन चलने के बाद क्या हुआ? मीडिया अर्से बाद खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था कि अब तो सांसद-मंत्रियो की खैर नही। इस लंबे-चौड़े स्टिंग ऑपरेशन को दिखाये जाने का पूरा मजा संसद ने भी लिया और उन राजनीतिक दलो ने भी, जो विपक्ष में थे। देश में कई दिनो तक भष्ट्राचार की पारदर्शी होती गंगा को लेकर बहस मुहासिब चलती रही। आम आदमी कहने लगा अब और क्या चाहिये सबूत। सांसद चेते और अपनी मान्यता बरकरार रखने के लिये संसद से मामला अदालत तक भी जा पहुचा लेकिन क्या कोई सासंद जेल पहुचा? किसी को सजा हुई? इसके बाद सांसदो के सवाल पूछने पर रुपया कमाने के तरीको को स्टिंग ऑपरेशन के जरिए मीडिया सामने लाया। इसमें हर राष्ट्रीय राजनीतिक दल का नेता घेरे में था। जनता की नुमाइन्दगी के बदले नोटों और घूसखोरी की नुमाइन्गी करने वाले नेताओं पर संसद फिर शर्मसार हुई। मीडिया की पीठ जनता ने ठोंकी लेकिन इस घपले को खुलने के बाद भी क्या कोई सांसद कानूनी तौर पर फंसा? या किसी को सजा हुई? तो स्टिंग ऑपरेशन का मतलब क्या है? आप यहाँ सवाल खड़े कर सकते है कि भारत इसीलिये तो लोकतंत्र का पहरी है क्योकि यहां संविधान के तहत चैक एंड बैलेंस की स्थितियों को समझाया गया है। और मीडिया चौथे खंभे के मद्देनजर बाकि तीन खंभों पर नजर रख सके उसकी भूमिका इतनी भर ही है।

हमारा सवाल यही से शुरु होता है जब बाकि तीन खंभे अपनी भूमिका तो नहीं ही निभा रहे है बल्कि संसदीय राजनीति को ही सांसदो ने अपने अनुकूल इस तरह बना लिया,जहां व्यक्तिगत तौर पर कोई भ्रष्ट्र या आपराधिक काम करने पर उसे विशेषाधिकार मिल जाता है। और सामुदायिक या पार्टी के तौर पर गलत-भ्रष्ट्र-आपराधिक या जन विरोधी काम को व्यवस्था की मान्यता दे दी जाती है । इतना ही नही घोषित तौर पर जनविरोधी नीतियो को लागू करते हुये सीधे सत्ताधारी इस बात का भी ऐलान करने से नही कतराता कि अगर वह गलत होगा तो चुनाव में जनता उसे सत्ता से बेदखल कर देगी। जबकि चुनाव की परिस्थितियों को भी वह इस तरह बना चुका है, जहां जनविरोधी नीतियों का बुरा प्रभाव चाहे समूचे देश पर पड़े लेकिन इस बुरे प्रभाव में भी धर्म-जाति या वर्ग के आधार पर दस या पन्द्रह फीसदी को मुनाफे के बंदरबांट में सहयोगी बनाने को लोभ देकर समाज को भी बांट देता है । यानी चुनावी लोकतंत्र के आसरे जिस चैक एंड बैलेंस की व्यवस्था संविधान के भीतर की गयी, उसे भी संसदीय राजनीति में सत्ता के खातिर तोड मरोड़ दिया गया है।

इतना ही नही खुले तौर पर जनता चुनाव के दौरान जब कई पार्टियों के उम्मीदवारो में से किसी एक पार्टी के किसी एकनेता को चुनती है तो चुनाव खत्म होते ही जनता के वोट की धज्जियां सत्ता के लिये आपसी गठजोड़ बना कर कर दी जाती है। इतना ही नही एक ही राज्य में आमने सामने खडे राजनीतिक दलो के बीच कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ऐसा दस्तावेज बनाया जाता है, जिसके आगे संविधान भी नतमस्तक हो जाए। जो राजनीतिक दल और राजनेता इसे अंजाम दे रहे है, वही इस संसदीय व्यवस्था में छुपाये हुये कैमरे से सूराख दिखाना चाहते है। जाहिर है संसदीय राजनीति के इस लोकतंत्र में बहुत थोडा नष्ट हुआ है बाकि नैतिकता बची हुई है इसीलिए मीडिया का आसरा लेने में भी राजनीति चूकना नही चाहती है।

लेकिन सच कितना गहरा है यह देश के किसी भी राजनीतिक दल के सत्ता में रहते हुये पहलकदमी से समझा जा सकता है। देश के सत्तर करोड़ लोग अभी भी खेती की जमीन पर निर्भर है। जमीन से अन्न उपजाने वाले किसान के लेकर चाहे वाजपेयी सरकार हो या मनमोहन सरकार दोनो की नीतियों ने किसानों को मौत के मुंह में घकेला। सबसे विकसित राज्यो में से एक महाराष्ट्र में वाजपेयी सरकार के दौर में सोलह हजार से ज्यादा किसानों ने इसलिये आत्महत्या कर ली क्योकि उनके उपज की खरीद के लिये सरकार ने कोई उचित व्यवस्था नहीं की। मीडिल मैन के आसरे किसान अपनी उपज की कीमत पाने के लिये मौसम दर मौसम बैठा रहा। बाजार तक माल ले जाने की सौदेबाजी में मीडिल मैन ने ऐसा जाल बिछाया कि दूसरी फसल का मौसम आते ही किसान ने मजबूरी में अपनी उपज कौडियों के मोल दे दी और आगे किसानी चलती रहे उसके लिये कर्ज ले लिया। इस सिलसिले को पहले बीजेपी की अगुवायी वाली सरकार ने तो बाद में यानी अब कांग्रेस की अगुवायी की सरकार आगे बढा रही है। जाहिर है किसान के घर में से रोटी गायब हुई। उसने मौत को गले लगा लिया।

वाजपेयी सरकार के दौर में महाराष्ट के सोलह हजार किसानों की खुदकुशी का आंकडा मनमोहन सरकार ने चार साल में ही सत्रह हजार पार करवा कर तोड़ दिया। यानी मिडिलमैन को व्यवस्था चलाने की कुंजी तक ही मामला ठहरता तो लग सकता है कि देश में सरकार है लेकिन सरकार ही मिडिल मैन की भूमिका में आ जायेगी यह किसने सोचा होगा? विदेशी पूंजी के जुगाड़ में अगर पहले डिसइंवेस्टमेंट के जरिये देश की संपत्ति को मुनाफे की पटरी पर लाने के नाम पर प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने की प्रक्रिया शुरु हुई तो दूसरी पहल खेती की जमीन को विदेशी कंपनियो को देने की प्रक्रिया शुरु हुई। केन्द्र और राज्य सरकार अपने अपने घेरे में आम जनता के जीने के अधिकार को राज्य के अधिकार से कुचलने लगी। खुले तौर पर हर सरकार के नौकरशाह -पुलिस और अदालत सक्रिय हुआ कि समूचे राज्य के विकास और देशहित के आगे किसी को भी अपनी सुविधा देखने या जीने का अधिकार नहीं है। मुआवजे देकर जमीन से पीढीयों की बसावट को बेदखल करने की प्रक्रिया भी शुरु हुई। विदेशी उघोग-घंघे फले फुले और जमकर मुनाफा कमाये, सरकार इसे लागू करने में भिड़ी हुई है। हाँ, मुनाफे में सरकार का कमिशन हर स्तर पर फिक्स है। यहाँ तक भूमि सुधार के जरीये किसान-मजदूरो के बारे सोचले वाली कम्यूनिस्ट सरकार भी इंडोनेशिया के सलीम ग्रुप के लिये जमीन छिनने में मिडिलमैन की भीमिका में आ गयी। सर्वहारा की तानाशाही का पाठ पढने वाला कैडर भी अचानक पूंजी और बाजार की तानाशाही को लागू कराने के लिये खून बहाने को तैयार हो गया।

बीते दस साल में किसी राजनीतिक दल को संविधान या लोकतंत्र का कोई पाठ याद नहीं आया जिसमें जनता के लिये ... जनता द्वारा... सरीखी बात की जाये। न्यूनतम जरुरतो को पूरा कराने का जो वायदा संसदीय सत्ता पिछली तेरह लोकसभा से कर रही है, उसमें पहली बार बीते दस साल में इस सोच के पलिते में ही आग लगा दी गयी कि शिक्षा-स्वास्थ्य और पीने का पानी भी देश को मुहैया कराना पहली प्रथामिकता होनी चाहिये। किसी भी गांव में डेढ से दो लाख प्राथमिक स्कूल या प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोलने में खर्च आता है लेकिन इतना पैसा भी देश के सभी गांव के लिये सरकार के पास नहीं है। इन दस साल में समूचे देश में जितने प्राथमिक स्कूल या स्वास्थ्य केन्द्र खोले गये उससे तीन सौ गुना ज्यादा कार इस देश में लोगो ने खरीदी। स्पेशल इकनामी जोन के नाम पर विकास की जो लकीर खींची गयी है अगर वह सब बन जाते है तो जितने लोगो को रोजगार मिलेगा जो करीब साठ लाख तक का दावा सरकार कर रही है, वही जमीन खत्म होने के बाद देश के करीब छह करोड सीधे जुडे किसान-मजदूर रोजगार से वंचित हो जायेगे। दो जून की रोटी के लाले उन्हे पड़ जायेगे।

सवाल है किस देश के किस संसद और कौन से सांसद यह सवाल उठा रहे हैं कि स्टिंग ऑपरेशन को दिखाना मीडिया की नैतिकता है और कौन स्टिंग ऑपरेशन को ना दिखाये जाने से खामोश चुपचाप खुश है। सवाल तो यह भी है कि स्टिंग ऑपरेशन दिखाने से सरकार रहती या जाती, अगर इस हद तक की भी स्थिति थी तो भी फर्क इस देश अस्सी फिसद लोगो पर क्या पडता। अगर आपके जहन में यह सवाल उठ रहा है कि पहले के स्टिंग ऑपरेशन दिखाने वालो को अगर सजा देने की व्यवस्था कर ली जाये तब... लेकिन इसका दूसरा पक्ष कही ज्यादा त्रासदीदायक है, जब सजायाफ्ता सांसद भी संसद के भीतर आकर सरकार बचाने या गिराने में मायने रखे जा रहे हों तो वहीं स्टिंग ऑपरेशन से सरकार गिरे या बनी रहे फर्क क्या पडता है। दरअसल, आप जिस छुपे हुये सच को देखने के लिये बेचेन है, वह कहीं ज्यादा खुले तौर पर आंखो के सामने मौजूद है। और हम-आप आंख बंद कर स्टिंग ऑपरेशन देख कर अपराधी तय करना चाहते है। किसी को बचा कर किसी को फंसाना चाहते है, जिससे देश का लोकतांत्रिक मुखौटा बचा रहे।

54 comments:

Rajesh Roshan said...

हिन्दी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में स्वागत है.... नामचीन चेहरे लिख रहे हैं.... मुद्दा हमेशा यही रहेगा जो आम जनता देखना नही चाहती लेकिन जो कभी भी गैर जरुरी नही हो सकता, राजनीति..... या फ़िर कुछ सामाजिक मुद्दे भी दिखेंगे ब्लॉग पर.... फिल वक्त तो आप इस लेख के लिए बधाई स्वीकार करे....

अफ़लातून said...

पुण्य प्रसूनजी ब्लॉग जगत में खैरम कदम । हेडर में माइकवा? पहचान के लिए? लेखन की भी बन जाएगी।

राजीव रंजन प्रसाद said...

पुण्य प्रसून जी,


सर्वप्रथम तो ब्लॉग जगत में आपका स्वागत। मैं आपके प्रस्तुतिकरण और राजनीति एवं समाचारों के मर्म पर गहरी पकड का कायल रहा हूँ और आपकी यही विशेषता आपके इस विचारोत्तेजक आलेख में भी परिलक्षित होती है।

आपका कथ्य कि "हमारा सवाल यही से शुरु होता है जब बाकि तीन खंभे अपनी भूमिका तो नहीं ही निभा रहे है बल्कि संसदीय राजनीति को ही सांसदो ने अपने अनुकूल इस तरह बना लिया,जहां व्यक्तिगत तौर पर कोई भ्रष्ट्र या आपराधिक काम करने पर उसे विशेषाधिकार मिल जाता है।" ही वर्तमान का सत्य है।


ब्ळॉग लेखन जारी रखें..


***राजीव रंजन प्रसाद

www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com

अनुनाद सिंह said...

पुण्य प्रसून जी,
हिन्दी चिट्ठाकारी में आपका स्वागत है।

आपका लेख पढ़ते-पढ़ते मैं बीच में ही छोड़ दिया क्योंकि मजा नहीं आ रहा था और मुझे लग रहा था कि इसे आप और अधिक संक्षेप में कह सकते थे। आपके इस लेख के शुरुवाती विचारों से मैं सहमत नहीं हो सकता। आपके लेख से शायद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस देश में कुछ भी सकारात्मक किया ही नहीं जाना चाहिये क्योंकि इसके पहले ऐसे कार्यों से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। आप भी स्टिंग ऑपरेशन को न दिखाये जाने के समर्थन में कुतर्क गढ़ने में लगे हुए दिख रहे हैं।

मिडिया कितना पक्षपातपूर्ण है, भ्रष्ट है - इस पर आप चुप दिखते हैं। मुजे तो लगता है कि राजनीति से अधिक गंदगी मिडिया में है - वह किसी पार्टी का पक्षधर है, किसी पार्टी का विरोधी है, वह अपने स्वार्थ के लिये कुछ भी दिखाता है, कुछ भी छिपाता है।

लेकिन यह सब होते हुए भी जनता को निराश हो जाने की शिक्षा देने के बजाय सदा जागरूक करते रहने की जिम्मेदारी मिडिया की है।

संजय शर्मा said...

स्वागत और बधाई ! बोलते सुना था आज लिखा, पढ़ा .छोटा लिखने और देश के मन की लिखने की गुजारिश है आपसे .चौथा स्तम्भ भी केवल चौथा रह गया है स्तम्भ नही रहा ये सच है या देश ऐसे ही बोलता है ?
पुण्य ब्लॉग आकाश में प्रसुन्न खिलते रहे ! शुभकामना !

Anshu Mali Rastogi said...

प्रसून भाई
इस ई-लिखावटी संसार में आपका स्वागत।
लेख मौजूं है। मुद्दा गंभीर। इस सब पर मेरा एक ही सवाल है कि क्या इस दुश्चरित्र राजनीति में आपको जनता भी उतनी ही दोषी नजर नहीं आती जितना कि राजनेता? आखिर हम ही तो इस सफेदपोशों को चुनकर संसद में भेजते हैं फिर अगर वो वहां कुछ गलत करते या कहते हैं तो शिकायत क्यों?
आखिर ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि जनता अपना नेता चुनना ही बंद कर दे? जब सांप ही नहीं रहेगा फिर लाठी किस पर तोड़ोगे।

Amit Pachauri (अमित पचौरी) said...

"... लेकिन इसका दूसरा पक्ष कही ज्यादा त्रासदीदायक है, जब सजायाफ्ता सांसद भी संसद के भीतर आकर सरकार बचाने या गिराने में मायने रखे जा रहे हों तो वहीं स्टिंग ऑपरेशन से सरकार गिरे या बनी रहे फर्क क्या पडता है। दरअसल, आप जिस छुपे हुये सच को देखने के लिये बेचेन है, वह कहीं ज्यादा खुले तौर पर आंखो के सामने मौजूद है।"

.... आश्चर्यजनक किंतु सत्य ।

आशा है की आगे भी ऐसी ही आँखें खोलने और सच दिखाने वाली पोस्ट पढ़ने को मिलती रहेंगी ।

कृपया अगर वर्ड-वैरीफिकेशन हटा लें तो कमेंट्स करने में सुविधा होगी ।

Shiv Kumar Mishra said...

सरकार, देश के बीस प्रतिशत लोगों से जुडी है? आपको विश्वास है इस बात पर? दूसरी बात यह कि किसानों की जमीन क्या केवल विदेशी कंपनियों को थमा दी गई है?

और स्टिंग आपरेशन दिखाने या न दिखाने से क्या हो जाता है? आजकल तो स्टिंग आपरेशन के एक्टर होते हैं, निर्देशक होते हैं. क्या फरक पड़ता है जी स्टिंग आपरेशन दिखाने से या रोक देने से?

Anil Pusadkar said...

hum aap sab aankh band kar apne apraadhi tay karte rahte hain.badhiya,swaagat hai aapka

रंजना said...

सुस्वागतम,आपका हिन्दी ब्लागिंग में..
अभी तक तो मिडिया के माध्यम से आपको सुना,तो लगा अंकुश कुछ हद तक मौजूद तो रहता ही होगा वहां और स्वतंत्र होकर सबकुछ न कह पाने की बाध्यता भी होगी.
अब एक पत्रकार के व्यक्तिगत और स्वतंत्र विचार जाने का मौका मिलेगा.आशा है हर मुद्दे पर आप अपनी बेबाक राय रखेंगे और हम एक पत्रकार के नजरिये से तथ्यों को देख जान पाएंगे.

अजित वडनेरकर said...

स्वागत है आपका। इस माइक को क्यो बीच में ले आए है ? ये किसका प्रतीक है ? जिसका भी हो , विश्वसनीयता तो इसमें है नहीं। पत्रकारिता का यह प्रतीक अगर है तो बेहद भौंडा है। फिलहाल तो हिन्दी टीवी समाचार ही जनसंचार का सबसे भौडा माध्यम है।
आपने माखनलाल यूनिवर्सिटी के किसी प्रकाशन में कल ही मैने पढ़ा जिसमें आपने टीवी की तुलना में प्रिंट की विश्वसनीयता कायम रहने पर संतोष जताया है। शुक्रिया, मगर माइक हटा दें, साथ ही वर्ड वेरीफिकेशन भी।

संजय बेंगाणी said...

आपका स्वागत है. आशा है जमे रहेंगे.


लेख अवश्यकता से ज्यादा लम्बा है, वैसे आपका चिट्ठा है चाहे उतना लिखें :)


सच तो यह है की चारों खम्बे दुषीत हो चुके है, पत्रकारों ने भी अपनी विश्वसनीयता खो दी है.


स्टींग ऑपरेशन को दिखाने न दिखाने से फर्क नहीं पड़ता तो किया ही क्यों जाता है? ब्लैकमेलिंग के लिए? पैसा मिला तो ठीक नहीं तो समाज के आदर्श प्रहरी के स्वांग में टेलीकास्ट...

रंजू भाटिया said...

स्वागत है आपका .क्या स्टिंग आपरेशन सच में कुछ असर डालते हैं ? आपके विचार यहाँ हम सब स्वतंत्र रूप से पढ़ सकेंगे यही खुशी है ..लिखते रहे

Arun Arora said...

पुण्य प्रसून जी आपका स्वागत ब्लोग जगत मे , फ़िलहाल हम आपको अपने किसी पंगे वाले सवाल मे नही घसीटना चाहते ,लेकिन उम्मीद करते है कि आप पुण्यप्रसून बाजपेयी ब्लोग मे चाहे जितना लंबा लिखे लेकिन उसे एन डी टी वी के पत्रकारो की तरह गंदगी और वैमनस्यता फ़ैलाने वाली जगह की तरह इस्तेमाल नही करेगे , वर्ड वरिफ़िकेशन हटायेगे तो हमे सुविधा जनक लगेगा यहा टिपियाना :)

रंजन (Ranjan) said...

स्वागत है,

"क्या ये स्टिंग १-२-३-४ का मिला जुला गोरख धन्धा नहीं है"

सुशील छौक्कर said...

प्रसून जी आपका स्वागत हैं इस ब्लोग की दुनिया में। रंग जमना चाहिए। ढेरो शुभकामनाऐं।

Bhupendra Singh said...

Prasun ji, Political leaders donot believe in the sting operation. I do know that the political structure in grip of corruption to save powers.Thanks to you to write on sting operation.

डा० अमर कुमार said...

.


चलोजी एक सार्थक ब्लाग भी आया हमारे बीच,
आनंद आ गया जी, स्वागत है, मित्र !

क्या राजनीति से हट कर भी कुछ लिख सकते हो,
या केवल राजनीति और राजनीतिज्ञ ही हम निरीह
प्राणियों का दाल रोटी चावल चटनी अचार पापड़
रह गया है..या इनसे इतर भी भारतवर्ष में कुछ है ?

वहाँ चैनल पर तो पापी पेट का सवाल रहा करता
होगा, किंतु यहाँ किसकी नौकरी कर रहे हो, भाई ?

इतनी हरामपंथियों के बावज़ूद भी हमारे यहाँ कला
लालित्य, सौन्दर्य और प्रतिभा ज़िन्दा है, उनकी अब
इतनी उपेक्षा तो न करो । कब तक जनता को एक ही
अस्वस्थ खुराक परोसते रहोगे, प्रिय पुण्य प्रसून ?

मेरा पापी मन ,यह क्यों कह रहा है कि अभिव्यक्ति
के एक मुक्त माध्यम ब्लागिंग में मीडिया की छवि
सुधारने और कुछ प्रभावशाली संपर्क बनाने के लिये
आपको डिप्यूट किया गया है, माफ़ करना..जो मन
कह रहा है, वही तो लिख रहा हूँ ! यदि यह गलत हो तो..

आपका पुरजोर हार्दिक स्वागत है !

बालकिशन said...

चिठ्ठा जगत में स्वागत है आपका.
आपका लेख बहुत ही चरोत्तेजक और सामयिक है.
सुंदर ढंग से विश्लेषण किया आपने.
बधाई.

नारद संदेश said...

भाई साहब जी,
हिन्दी ब्लॉग के जगत में आपका स्वागत है। अच्छा है अब आपके विचारों के ब्लॉग के माध्यम से जानने का मौका मिलेगा।

bhuvnesh sharma said...

स्‍वागत है हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया में...

सागर नाहर said...

टिप्पणियाँ बहुत कुछ गई प्रसूनजी.. :)
स्वागर है आपका, उम्मीद है कि आप वो सब हमें पढ़ायेंगे बतायेंगे जो टीवी पर आप बता नहीं पाते।
वर्ड वेरिफिकेशन हटवा दें तो अच्छा होगा टिप्प्णी करते समय यह परेशान करता है।
धन्यवाद
॥दस्तक॥

Sarvesh said...

प्रशुन्न जी स्वागत है. आपको पढ कर मजा आ गया. आप जब दाढी पर हाथ रख कर और मुस्कराकर सवाल करतें हैं तो बड़ा मजा आता है. सामने वाला उस सवाल का जवाब तो नहीं हि दे सकता.

आप बहुत हद तक कोशिश किये हैं स्टिंग आपरेशन कि विडियो का नहीं दिखाये जाने का. समाचार चैनल पर ऐसे ऐसे दृश्य दिखा दिये जातें है को नहीं दिखाना चाहिये. इससे उस चैनल के कर्ता धर्ता के विश्वशनियता पर प्रश्न चिन्ह लगने से आप नहीं बचा सकते. उनकी विश्वशनियता पहले भी संदेहस्पद थी. मुझे तो एकाएक विश्वाश नहीं हुआ कि उस चैनल ने युपीए के खिलाफ़ स्टिंग आपरेशन किया है. जब विडियो को रोक दिया गया तो विश्वाश हो गया कि महाशय के बारे मे जो शक था वो सच था. सत्ता के दलाल को लोग सुनने मे आया है कि पत्रकारों का युवा तुर्क कहतें हैं. ये केवल पत्रकार सोचतें हैं, दर्शक नहीं.

Unknown said...

swagat hai bajpai ji ब्लॉग्गिंग की दुनिया में , संसदीय राजनीति को ही सांसदो ने अपने अनुकूल इस तरह बना लिया,जहां व्यक्तिगत तौर पर कोई भ्रष्ट्र या आपराधिक काम करने पर उसे विशेषाधिकार मिल जाता है। aaj to yahi ho raha hai......lekin fir media ki kya bhumika ho??? iska jabab aapke lekh me nahi mila hai........sarkaron ka to yahi ravaiya rahega balki es estar me to aur bhi izafa hi hoga.......

PD said...

बढिया है जो आप भी आ गये चिट्ठाजगत में..
आपका स्वागत है..
अब ये वर्ड वेरीफिकेशन भी हटा लें.. टिपियाने में दिक्कत होती है.. :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

प्रसून जी, आपको यहाँ देखकर अच्छा लगा। आपको भी यहाँ आकर अच्छा लगने की उम्मीद करनी चाहिए।
न्यूज़ चैनेलों से हमारा मोहभंग हो चुका है। उन्हें छोड़ने के बाद हम जिन लोगों को मिस करते थे उसमें एक आप भी थे। अब आपने यह राह अपना कर हमें अच्छी सहूलियत बख़्शी है। मैने आज ही आपको अपने प्रिय चिठ्ठों की सूची में डाल लिया है।
ब्लॉग-सेटिंग ऑप्शन में जाकर word verification को disable कर दें। यह फालतू चीज है।

Anwar Qureshi said...

स्वागत है प्रसून जी आप का ..एक नामी चहरा ब्लॉग से जुड़ा है ..बहुत ख़ुशी हो रही है ..बहुत कुछ पढने और सीखने को मिलेगा आप से ... मुझे हमशा याद रहेगा अजित जोगी के साथ आप का कश्मकश जब आप ने जोगी जी को पानी पिला दिया था ...धन्यवाद ....

Manvinder said...

parsun ji ....
aap b aa gae. chalo achcha hi hua...
ham media waalo ko bahut jiyaada bolne or likhne ki ejaajat nahi haoti hai...
apne platform per...
lekin jaha khul kar man ki baat kahne ka moka mailega...
kam shabdo mai jiayaada kaheange to or b achch rahega...

Unknown said...

Swagat hai BLOGJAGAT main prasoon bhai.

Dr. Anil Kumar Tyagi said...

प्रसून जी, जहां भारत में हर चीज बिकाउ हो गयी है, आज हम जैसे आम आदमी, मीडिया,राजनीति व व्यवसायिकता के विद्रुप गठजोड का चेहरा देखने व पढने को मजबूर हैं। ऎसे समय में सच्ची पत्रिकारिता की अति आवश्यकता है, हम आपसे आशा करते हैं कि आप समज में फैली इस विक्रिती को उजागर करेंगें।

अविनाश वाचस्पति said...

पहली किस्‍त
इतनी सख्‍त
अब आया है
असली वक्‍त।

स्‍वागत है।।

शैलेश भारतवासी said...

प्रसून जी,

अब तो रोज़ ही लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग का पौधा अपनी जड़े जमा चुका हैं और रोज़ नई कोंपलों को जन्म दे रहा है। हिन्दी ब्लॉगिंग में विविधता बढ़ेगी, कंटेंट बढ़ेगा तो फिर साफ है कि हमारी आवाज़ दूर तक जायेगी।

स्वागत है आपका।

हिन्द-युग्म

शोभा said...

tप्रसून जी
स्वागत है आपका। आपको पढ़ना सुखद अनुभव रहा। ब्लाग जगत में आपके लेख तथा अनुभव पढ़ने की सदा प्रतीक्षा रहेगी।

Amit K Sagar said...

प्रणाम महोदय...वधाई हो. आपको यहाँ पाके खुशी हुई.
---
यहाँ भी आयें;
उल्टा तीर

36solutions said...

आपको हिन्‍दी ब्‍लागजगत में देखकर बहुत खुशी हुई ।
आरंभ

Udan Tashtari said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत.

कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी

Sanjeet Tripathi said...

स्वागत आपका हिंदी ब्लॉगजगत में।
आपको हिंदी ब्लॉग लिखता देख वाकई खुशी हुई।

मुझे लगता है मैं अनुनाद सिंह जी से सहमत हूं। आपके इस लेख को आप अगर चाहते तो और संक्षेप में कर सकते थे।

मैं प्रिंट से जुड़ा हुआ हूं। आशा करता हूं कि कभी आप एक स्टोरी इलेक्ट्रानिक मीडिया पर ही करेंगे कि क्यों, आखिर क्यों हमारा इलेक्ट्रानिक मीडिया सतही खबरों(?) पर तैरने की कोशिश कर रहा ही नही बल्कि तैर रहा है।

संगीता पुरी said...

हिन्दी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में स्वागत है....आपको हिंदी ब्लॉग लिखता देख खुशी हुई। बोलते सुना था लेखन जारी रखें..अब एक पत्रकार के व्यक्तिगत और स्वतंत्र विचार जाने का मौका मिलेगा.वर्ड वरिफ़िकेशन हटायेगे तो हमे सुविधा जनक लगेगा सुंदर ढंग से विश्लेषण किया आपने.
बधाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

ब्लागिंग में आप का स्वागत है। वर्ड वेरीफिकेशन हटवाएँ और आलेखों की लम्बाई कम रखें।

Girish Kumar Billore said...

स्वागत है
किंतु याद रखिए रिश्ता बनानें के लिए समीर लाल जी की तरह सभी रेग्युलर ब्लॉग'स को टिप्पणी का टीका लगाते रहिए !
GIRISH BILLORE MUKUL

kahekabeer said...

accha laga aap ka blog padhkar. aap ke shabdon mein hamesha tewar rahe hain, yahan ek dard bhee jhalka hai.

abhai srivastava

सचिन श्रीवास्तव said...

बढिया.... प्राइम टाइम का ब्लॉग है... मगर ये इतना इतना लंबा क्यों लिखा है... थोडा कमती से काम चल जाता बाकी बातें तो हो ही चुकी हैं....

Rakesh Kumar Singh said...

स्वागत. हार्दिक मुबारकबाद.

Hari Joshi said...

ये सच है कि लोकतंत्र के चारों स्तंभों पर सवाल उठ रहें हैं। सच क्या है? कितना सच और कितना झूठ है, यह भी नंगी आंखों से ही दिख रहा है! आपने सही लिखा है..
दरअसल, आप जिस छुपे हुये सच को देखने के लिये बेचेन है, वह कहीं ज्यादा खुले तौर पर आंखो के सामने मौजूद है। और हम-आप आंख बंद कर स्टिंग ऑपरेशन देख कर अपराधी तय करना चाहते है। किसी को बचा कर किसी को फंसाना चाहते है, जिससे देश का लोकतांत्रिक मुखौटा बचा रहे।
लेकिन चेहरों के आगे लगे मुखोटों और सामाजकि सरोकारों से कटी संसदीय राजनीति पटरी पर कैसे लौटे? क्या कोई उपाय बचा है।

Jitendra Chaudhary said...

हिन्दी ब्लॉगजगत मे आपका स्वागत है। आशा है आप यूं ही लगातार लिखते रहेंगे और अपने पत्रकार साथियों को ब्लॉगिंग के लिए प्रेरित करते रहेंगे। ब्लॉगिंग आज की जरुरत है, अभी इसमे ढेर सारी नामचीन हस्तियों के शामिल होने की आशा है। किसी भी प्रकार की तकनीकी सहायता के लिए हम आपसे सिर्फ़ एक इमेल की दूरी पर है।

Nitish Raj said...

स्टिंग किए ही जाते हैं दिखाने के लिए लेकिन यदि वो नहीं दिखाया गया तो मामला साफ है....। वो सभी जानते हैं। उससे दिखाने और ना दिखाने से कई बार फर्क तो पड़ता ही है। लेकिन हां इस स्टिंग को दिखा भी देने से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था। इतनी बात तो तय थी। अब मीडिया के बाद नेतागण ही कूद गए हैं इस स्टिंग की कला में। लेकिन मीडिया को भ्रष्ट कहने वाले जरा सोचें तो कि वो कितने दूध में धुले हुए हैं। मीडिया नेता नहीं बनाती, ऐसे लोग जो कुछ भी बोलने से गुरेज नहीं करते वो बनाते हैं। और भ्रष्ट्र की परिभाषा को भूलने वाले शायद जानते ही नहीं कि इसका मतलब क्या है। और नेता किस खेत की मूली हैं।

cartoonist ABHISHEK said...

प्रसून जी,
बधाई.
लेख आपका बेहद धारदार है.
मगर बहुत ज्यादा लंबा है.
आपकी सोच और समझ के हम क्या, सभी कायल हें.
उम्मीद है ब्लॉग पर भी आप छाये रहेंगे...शुभकामनायें....

मयंक said...

स्वागत है....
ना तो हमेशा आँखों देखा सच होता है और न ही कानो सुना .... सो आपके सच या झूठ पर कोई टिपण्णी नहीं कर सकता ! आप ही के चानेल में नौकरी करता हूँ सो दफ्तर में ब्लॉग पर टीका टिपण्णी भी नही करूँगा, खुछ बातों से सहमत हूँ पर जैसा आपने कहा की स्टिंग दिखाने से क्या हो जाता ? तो सर कहना चाहूँगा की पत्रकारों की ज़्यादातर स्टोरीस से कुछ ख़ास नहीं हो पता तो क्या ये बंद कर दें ? ....... कई बातें उचित और कचोटने वाली थी, लेख लंबा था पर इसकी शिकायत वे ही करेंगे जिनको कंटेंट से कोई ख़ास सरोकार नहीं आपके नाम से है !

ब्लॉग की दुनिया में सुस्वागतम !

लिखें भी और दूसरो को पढ़ें भी !

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laxman said...

excellent,impressive,outstandig-outspokenness,communicability are the virtues beyond the words in your blog. ---------------------------lapraney brihmbodh,

Madhaw said...

Prasoon Jee ko pranam... Apka blog pada... ye lekh bhee pada.. achcha laga.. kuchch din pahle dainik bhashkar me aapka ek editorial pada... sansad ke upar aapne jo likha hai... padhkar kafi jankariya mili...

lekin in sab ke beech mai aapko ye bhee kahunga.. ek lekh aapne s p singh ke naam par likha tha... pad kar kafi dukh hua...

aur maine isse apane blog par likha bhee.. jo dukh hua usse ukerane kee koshish kee hai... chahunga ki aap pade aur reaction de...


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Mahendra Singh said...

Punya Prasoonji
Aap to channel badalane main REMOTE ko bhi maat de rahe hain| Aajtak, phir SAMAY, phir ZEE... aaj kal naa jane kis channel par hain| Tikiye! Prasoonji kisi ek jagah par to tikiye!
Aap ko talaash karanaa ek nayaa kaam ho gayaa hai| aapke vaktritva kaa kaayal hoon|
Aadar sahit
Mahendra

Sajeev said...

वाह आपको यहाँ देख कर बहुत खुशी हुई, अपने प्रशंसकों में मेरा भी नाम जोड़ लीजिए

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

chehare par gambhirta
shabdo me hai dhar,
yahi to wajah hai
karta hai har koi pyar.
---govind goyal sriganganagar
sir jee visit

naradmunig.blogspot.com

अंकुर गुप्ता said...

नमस्ते सर, आपको टीवी में हमेशा देखता था. सोच रहा था कि अगर आपका ब्लाग मिल जाये तो कुछ बात कर सकूं.
मैं एक बात आपसे और सभी पत्रकारों से कहना चाहूंगा कि सब मिलकर अगर एक दल बनायें और चुनाव लडें तो जरूर जीतेंगे.
जिस तरह आप लोग बुद्धिमत्ता से कोई सवाल करते हैं और हर क्षेत्र की जानकारी रखते हैं वही गुण तो एक नेता में चाहिये.
हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि पत्रकार का काम ये नही होता है. पर जब आप्शन ना हो तो वो भी करना चाहिये.
वोट देते समय बहुत कंफ़्यूज हो जाता हूं. किसे वोट दूं. यहां के सांसद/विधायक को या दल के नेता को या किसी पार्टी को?
सारे दल भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक धंसे हुये हैं. एक हिंदू हिंदू चिल्लाता है तो एक मुस्लिम मुस्लिम तो एक दलित दलित.
क्या यही धर्मनिर्पेक्ष भारत है?
आम आदमी राजनीति में आने से कतराता है. उसे ना तो पूरी जानकारी होती है ना ही पैसे.
मुझे तो आप सब में ज्यादा भरोसा लगता है आप सभी सभी क्षेत्रों की जानकारी भी रखते हैं.
मेरे दिल मे जो था बोल दिया. सही गलत आप बताना.मेरा ईमेल पता है ankur_gupta555(at)yahoo.com
blog: http://ankurthoughts.blogspot.com