हैलो, जी आमिर खान आपको इन्वाइट कर रहे हैं। इंटरव्यू देने के लिये । आप तो जानते है कि अमिर खान देश भ्रमण कर रहे हैं। जी...थ्री इंडियट्स को लेकर । हां, रविवार को वह चेन्नई में होंगे...तो आपको चेन्नई आना होगा। आप बीस दिसंबर यानी रविवार को चेन्नई पहुंच जाइये। वहीं आमिर खान से इंटरव्यू भी हो जायेगा। आमिर रविवार को तीन बजे तक चेन्नई पहुचेंगे तो आपका इंटरव्यू चार बजे होगा। आप उससे पहले पहुंच जाएं। और हां... आमिर खान चाहते है कि इंटरव्यू के बाद आप तुरंत दिल्ली ना लौटे बल्कि रात में साथ डिनर लें और अगले दिन सुबह लौटें। तो आप कब पहुंचेंगे। अरे अभी आपने जानकारी दी...हम आपको कल बताते हैं, क्या हो सकता है। नहीं-नहीं आपको आना जरुर है, हम सिर्फ पांच जनर्लिस्ट को ही इन्वाइट कर रहे हैं और आमिर खासतौर से चाहते है कि आप चेन्नई जरुर आएं। ठीक है कल बात करेंगे......तभी बतायेंगे।
फोन पर बात खत्म हई और मेरे दिमाग में ‘थ्री इडियट्स’ को लेकर आमिर खान के देश भ्रमण से जुड़े न्यूज चैनलो पर रेंगने वाली तस्वीरे घुमड़ने लगी । आमिर, जिसकी अपनी एक इमेज है। ऐसी इमेज जो बॉलीवुड में दूसरे नामी कलाकारों से उन्हें अलग करती है....जो सामाजिक सरोकार से भी जुड़ी है। मेधा पाटकर के आंदोलन को नैतिक साहस देने वाले आमिर खान बिना कोई मुखौटा लगाये पहुंचे थे। अच्छा लगा था। लेकिन जेहन में बड़ा सवाल यही था कि बनारस की गलियों में अपनी मां के घर को ढूंढते आमिर खान को चेहरा बदलने की जरुरत क्यों पड़ी। मुंह में पान। गंदे दांत। शर्ट और हाफ स्वेटर.....कांख में बाबू टाइप बैग को दबाये आमिर खुछ इस तरह आम लोगों के बीच घूम रहे थे, जैसे वह बनारसी हो गये या फिर बनारस की पहचान यही है। जबकि मध्य प्रदेश में चंदेरी के बुनकरों की बदहाली में उन्होंने करीना कपूर का तमगा जड़ बुनकरों की हालत में सुधार लाने के लिये लोकप्रिय डिजाइनर सव्यसाची मुखर्जी से भी संपर्क किया। कहा गया कि आमिर बुनकरों के संकटों को समझ रहे हैं। वहीं कोलकत्ता में सौरभ गांगुली के घर के दरवाजे के बाहर किसी फितरती....अफलातून...की तरह नजर आये आमिर। पंजाब में एक विवाह समारोह में दुल्हे के मां-बाप के साथ एक ही थाली में टुकड़ों को बांटते हुये हर्षोउल्लास के साथ खुशी बांटते नजर आये। बनारस के रिक्शे वाले की समझ हो या चंदेरी के बुनकर या फिर पंजाब के बरातियो की समझ.....सब यह मान रहे थे कि आमिर उनके बीच उनके हो गये। फिर आमिर को चेहरा बदलने की जरुरत क्यों पड़ी । क्या आमिर का नजरिया वर्ग-प्रांत के मुताबिक लोगो के बीच बदल जाता है। या फिर आमिर पहले मुखौटे से इस बात को अवगत कराते है कि मै आपके बीच का सामान्य व्यक्ति हूं जो आप ही के प्रांत का है। लेकिन उसके बाद अपनी असल इमेज दिखाकर वह अचानक विशिष्ट हो जाते हैं। जैसे झटके में उनके रंग में रंगा व्यक्ति आमिर खान निकला। अगर आखिर में बताना ही है कि मै आमिर खान हूं तो फिर मुखौटा ओढ़ने की जरुरत क्यों।
कह सकते है यह थ्री इडिट्स के प्रचार का हिस्सा है और इसे इतने गंभीर रुप से नहीं देखना चाहिये । लेकिन यहीं से एक दूसरा सवाल भी पैदा होता है कि जो दबे-कुचले लोग हैं। जो व्यवस्था की नीतियों तले अपने हुनर को भी को खो रहे हैं। जिनके सामने दो जून की रोटी का संकट पैदा हो चुका है। जिनके लिये सरकार के पास कोई नीति नहीं है और राजनीति में वोट बैक के प्यादे बनकर यही लोकतंत्र के नारे को जिलाये हुये हैं तो क्या वाकई आमिर खान की पहल उनकी स्थिति बदल सकती है। या फिर आमिर की इमेज में इससे सामाजिक सरोकार के दो-चार तमगे और जुड़ जायेंगे। यह सारे सवाल जेहन में रेंग ही रहे थे कि मुबंई का नंबर फिर मोबाइल पर चमका। और आमिर खान के इंटरव्यू का निमंत्रण दोहराते हुये इस बार कई सुविधाओ भरे जबाब जो सवाल का पुट ज्यादा लिये हुये थे...दूसरी तरफ से गूंजे। आपके रहने की व्यवस्था चेन्नई से डेढ-दो घंटे की रनिंग बाद फिशरमैन्स क्लोव में की गयी है। यह बेहद खूबसूरत जगह पर है। चेन्नई से महाबलीपुरम की तरफ । आपके कैमरापर्सन की भी ठहरने की व्यवस्था हम कर देंगे। आप उनका नाम हमें बता दें। जिससे उनकी भी व्यवस्था हो जाये। मैं सोचने लगा जब ‘आजतक’ शुरु हुआ था तो एसपी सिंह अक्सर कहा करते थे कि कही किसी भी कार्यक्रम को कवर करने जाना है तो कंपनी के पैसे से जाना है। किसी की सुविधा नहीं लेनी है । और नेताओ का मेहमान तो बिलकुल नहीं बनना है। इतना ही नहीं जब आजतक न्यूज चैनल के रुप में सामने आया तो भी मैंने उस दौर में इंडिया दुडे के मैनेजिंग एडिटर और आजतक के मालिक अरुण पुरी को भी मीटिंग में अक्सर कहते सुना कि किसी दूसरे का मेहमान बनकर उससे प्रभावित होते हुये न्यूज कवर करने का कोई मतलब नहीं है। इससे विश्वसनीयता खत्म होती है। और बाद में न्यूज हेड उदय शंकर बने तो उन्होंने भी इस लकीर को ही पकड़ा कि न्यूज कवर करना है तो अपने बूते। कही डिगना नहीं है। कहीं झुकना नहीं है। और विश्वसनीयता बरकरार रखनी है।
लेकिन फोन पर मुझे आमिर खान के साथ डिनर का न्यौता देकर लुभाया भी जा रहा था। लेकिन आप हमें क्यों बुला रहे हैं ....हम कैसे थ्री इडियट्स का प्रचार कर सकते हैं। आपको प्रचार करने को कहां कह रहे हैं। आप जो चाहे सो आमिर खान से पूछ सकते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि आमिर जिस तर्ज बनारस से चेन्नई तक को नांप रहे हैं, उससे वहां के दर्द को भी थ्री इडियट्स में लपेट रहे हैं। सबकुछ प्रचार का हिस्सा है तो हम कैसे इसमें शरीक हो सकते है। यह आप कैसे कह सकते है....आमिर खान चंदेरी नहीं जाते तो कौन जानता वहां के बुनकरो की बदहाली। मेरा दिमाग ठनका......यानी आमिर चंदेरी गये तो ही देश जान रहा है कि चंदेरी के बुनकरो की बदहाली। क्यों आप जानते है कि देश के पैंतीस लाख से ज्यादा बुनकर आर्थिक सुधार तले मजदूर बन गये। जो देश के अलग अलग शहरो में अब निर्माण मजदूरी कर रहे हैं। सही कह रहे है आप चंदेरी का मामला सामने आया तो बाकी संकट भी आमिर उभारेंगे।
मुझे भी लगा फिल्मों का नायक यूं ही नहीं होता.....सिल्वर स्क्रीन की आंखों से अगर देश को देखा जाये और प्रधानमंत्री किसी नायक सरीखा हो जाये या फिर नायक ही सर्वेसर्वा हो जाये तो शायद देश में कोई संकट ही ना रहे। मुझे याद आया जब बलराज साहनी, दो बीघा जमीन फिल्म की शूटिंग कर रहे थे तो उनसे पूछा गया कि किसानों की त्रासदी की तरफ क्या सरकार इस फिल्म के बाद ध्यान देगी। तो बलराज साहनी जबाब था कि फिल्म उसी व्यवस्था के लिये गुदगुदी का काम करती है जो इस तरह की त्रासदी को पैदा करती है। इसलिये फिल्मों को समाधान ना माने। यह महज मनोरंजन है । और मुझे चरित्र के दर्द को उभारने पर सुकून मिलता है। क्योकि हम जिन सुविधाओं में रहते हैं उसके तले किसी दर्द से कराहते चरित्र को उसी दर्द के साथ जी लेना अदाकारी के साथ मानवीयता भी है।
सोचा तब यह बात कलाकार भी समझते थे और अब मीडियाकर्मी भी नहीं समझ पाते। फिर सोचा कि मीडिया का यह चेहरा ही असल में भूत-प्रेत और नाचा-गाना को खबर के तौर पर पेश करने से ज्यादा त्रासदी वाला हो चला है। दरअसल, आमिर के प्रचार की जिस रणनीति को अंग्रेजी के बिजनेस अखबार बेहतरीन मार्केटिंग करार दे रहे हैं,वो सीधे सीधे लोगों की भावनाओं के साथ खेलना है। फिल्म के प्रचार के लिए लोगों की भावनाओं की संवेदनीशीलता को धंधे में बदलकर मुनाफा कमाते हुए अलग राह पकड़ लेना नया शगल हो गया है। लेकिन,यहीं एक सवाल फिर जेहन में आता है कि यहां एक लकीर से ऊपर पहुचते ही सब एक समान कैसे हो जाते हैं। चाहे वह फिल्म का नायक हो या किसी अखबार या न्यूज चैनल का संपादक या फिर प्रचार में आमिर के साथ खड़े सचिन तेंदुलकर। सोचा आमिर खान चेन्नई में क्या इंटरव्यू देते हैं और थ्री इडियट्स का कैसे प्रचार करते हैं, यह दूसरे न्यूज चैनलों को देखकर समझ ही लेंगे। मैंने फोन पर बिना देर किये कहा, मुझे क्षमा करें मैं चेन्नई नहीं आ पाऊंगा।
16 comments:
हाँ.. कल रात आज तक को चेन्नई से ही interview दे रहे थे ... और interview लेने वाला ज्यादा हंस रहा था...
आमिर खान ने ये साबित कर दिया की वे बेहतरीन मार्केटिंग प्रबंधक है जो मीडिया के साथ साथ जनता को भी अपने वश में कर लेते हैं पर कुछ लोग अभी भी हैं जिन्हें मुखौटे की तह में जाना जरुरी लगता है और आमिर का निमंत्रण भी अस्वीकार हो जाता है
आपकी सोच असल में ही युवा है। जिस बात को आपने इतनी गंभीरता से पेश किया है, उसको आम जन समझ भी नहीं पाता। वो तो बेचारा चमक धमक देखकर ही लुट जाता है। जैसे राहुल गांधी किसी गरीब के घर में चाय पीकर उसको दिखाता है कि मैं कितने भी उच्च खानदान से क्यों न हूं, देख ले तेरे जैसे के घर भी आया।
अहिंसा का सही अर्थ
पुण्य प्रसुन भाई- ये भी एक प्रचार का हिस्सा है, नौटंकी है, लोगों की जेब से इडीयट बनकर पैसा निकालने की ही साजिश है। आपने चदेरी बुनकरों को याद किया, धन्यवाद, आज भारत मे परम्परागत रुप से कार्य करने वाले कारीगरों की हालत बड़ी दयनीय है। कुशल हाथ अब मिट्टी फ़ेंकने पर मजबूर है। जो कभी भारत मे ग्रामीण ईंजिनियर कहलाते थे।
पोस्ट के लिए आभार
Punya Ji
Sadar Pranam
Kaash asweekar karne ki himmat har journalist me hoti . waise khushi hui ye jaan kar koi to itne bade offer ke liye naa kah sakta hai .
Aap ki is baat ne Aadarniye Prabhash ji ki yaad dila di , apne antim samay me unohne paid news ki isee parampara ke khilaff andolan ki baat kahi thee.
इससे पहले मैं चंदेरी के बुनकरों के बारे में नहीं जानता था.. आमिर के वहां जाने से पहले क्यों किसी ने सुध नहीं ली?
आपने आमिर और उसकी ३ idiots की मार्केटिंग के सम्बन्ध मे जो कुछ बताया है, ऐसा तो आप मीडिया के लोग और आपकी पत्रकार बिरादरी रोज ही कर रही है, व्यवस्था के लिये गुदगुदी का काम जो इस तरह की त्रासदी को पैदा करती है ! और आमिर की मार्केटिंग को शायद आप और आपकी बिरादरी के अलावा कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है , और शायद इसी वजह से आपको इसकी सफाई देनी पड़ी ! और ये भी बताना पड़ा की आप चेन्नई आमिर का interview लेने नहीं जा रहे हैं !
आप भी...अगर यही बात कोर्ह और लिख देता तो उसके प्रति पब्लिक का रिस्पांस कुछ और होता। पूण्य प्रसून लिख रहे हैं तो.....यह लेख कुछ वैसा ही लगा जैसा कि आमिर की हरकतें...
एक बाईट के लिये सितारोँ के पीछे भागने वाले हमारे इस मुखौटेबाज मीडिया को अगर आमिर खुद निमँत्रण दे रहे हैँ तो ये आमिर खान का बडप्पन है! वो किसी को इडियट नहीँ बना रहे हैँ! वो तो सिर्फ लोगोँ का मनोरँजन कर रहे हैँ जो उनका पेशा है! लेकिन सवाल ये है कि हम क्या कर रहे हैँ? खबरोँ के नाम पर नाच गाना, भूत-प्रेत, जुर्म, सेक्स, गासिप ये सब दिखा कर क्या हम सारे देश को इडियट नहीँ बना रहे हैँ? भूख से हो रही मौतेँ हमारे लिये कोई खबर नहीँ होती! लेकिन करीना की डाइटिँग ब्रेकिँग न्यूज़ बन जाती है! चुनावी बारिश मेँ कुकुरमुत्तोँ की तरह न्यूज़ चैनल उग आते हैँ! पैकेज लेकर खुले-आम उम्मीदवारोँ के पक्ष और विपक्ष मेँ खबरेँ दिखाते हैँ! थोक के भाव मेँ मीडियाकर्मियोँ की भर्ती करते हैँ और फिर थोक के भाव मेँ उन्हेँ निकाल देते हैँ! क्या आप जानते हैँ अकेले इस साल कितने पत्रकार बेरोज़गार हुए हैँ? लेकिन ये हमारे लिये कोई खबर नहीँ है! क्योँकि दिये तले तो अँधेरा ही रहता है! कहने को लोकतँत्र का चौथा स्तँभ लेकिन है असल मेँ खोखला! क्योँकि मीडिया आज कारपोरेट हितोँ की पूर्ति करने का साधन बन कर रह गया है! मुनाफा कमाने या अपने हित बचाने के लिये धडल्ले से न्यूज़ चैनल खुल रहे हैँ! मेनेजमेँट की गलत नीतियोँ के कारण अगर चैनल नहीँ चला तो छटॅनी के नाम पर छोटॆ मीडियाकर्मियोँ की गर्दन पर छुरी चला दी! जब तक गाय दूध देती है तब तक उसे घास खिलाओ....और दूध देना बँद कर दे तो मुनाफे के लिये उसका माँस बेच दो! कह सकते हैँ टीवी चैनल को चलाने मेँ काफी पैसा लगता है! लेकिन भई अगर धँधा ही करना है तो इँटरटेनमेँट चैनल खोलिए ! न्यूज़ चैंनल चला कर पत्रकारिता का गला घोँटने की क्या ज़रूरत है? ऐसे ही एक न्यूज़ चैनल के आउटपुट हेड का आफर ठुकरा कर मैँने बेरोज़गार बैठने का निर्णय लिया है! लेकिन ये कोई मुद्दा नहीँ है! क्योँकि मेरे जैसे कईँ पत्रकार हैँ जो चाटुकार नहीँ बनना चाहते! लेकिन सवाल ये है कि जो समाज के लिये सोचता है ! देश के लिये लिखता है! और अपनी जान हथेली पर रख कर सारे देश को खबरदार करता है क्या उस पत्रकार को जीने का हक नहीँ है? क्या उसकी कोई सोशल सिक्योरिटी है? होली के रँग उसे याद नहीँ और दिवाली की खुशियाँ मनाने का वक्त उसके पास नहीँ! पिता की बीमारी के बावजूद वो अपने गाँव नहीँ जाता क्योँकि मेन पावर की कमी का रोना रो कर उसका आफ केँसिल कर दिया जाता है! उगता सूरज उसने उस वक्त देखा था जब वो पत्रकारिता की पढाई कर रहा था! उसके बाद से उसे नहीँ पता कब सूरज उगता है और कब डूब जाता है? लाखोँ का पैकेज लेकर देश दुनिया के दुख दर्द की बातेँ करने वाले देश के ये बडे पत्रकार अपनी ही बिरादरी के हक मेँ आवाज़ क्योँ नहीँ उठाते? क्या सफलता इँसान के चेहरे पर मुखौटा लगा देती है? तो आमिर मुखौटा लगा कर क्या गलत कर रहे हैँ? क्योँकि आमिर तो कुछ देर बाद मुखौटा उतार कर ये बता देते हैँ कि मैँ आमिर हूँ! लेकिन क्या हममेँ इतना साहस है? ज़रा सोचिये!
(यदि मेरी बात से सहमत ना होँ तो अपने ब्लोग से आप मेरी टिप्पणी हटा सकते हैँ!)
आपका यह लेख सोचने पर मजबुर कर रहा है, आप में अभी भी नामचिन होने की भुख जिन्दा है। आप कभी खुद से साक्षातकार क्यों नहीं करते। इस लेख और किशनजी से मोबाईल पर वार्तालाप वाले लेख पर विचार करने पर आप नवांगतुक पत्रकार के स्तर में नजर आते हैं। इन दोनो ने ही आपके उँचे स्तर का उपयोग किया,और आप फंस गये। वे जो चाहते थे सो उन्हे मिल गया। चाहे वह जिस रूप मे हो? क्योकि आपका ब्लोग भी किसी चैनल से कम नही है। आशा है आगे से इन बातों का जरुर ध्यान रखेंगे।
प्रसूनजी इससे हटकर भी और कई महत्पूर्ण मुद्द्ये हे उन पर टिपन्नी कर कर अपनी पत्र्कार्ता का परिचय दे मज़ा आयेगा.
सनसनी
दो डिग्री का कहर
खत्म हो जाएगी धरती
सर्द मौसम, गर्म कैलेंडर
मुर्दा बोलेगा
राज़ खोलेगा
मौत देखिए
मौत का लाइव...
ये तमाम वो तमगे हैं जो आज की मीडिया ने हासिल किए हैं....
बात वही है शीशे के चैंबर्स में बैठकर दुनिया देखते हैं पत्रकार...
असल हकीकत ये भी है कि क्या करे पत्रकार क्योंकि उसका कोई साथी, कोई दुश्मन, कोई कलीग...सड़क पर है भूखों मर रहा है...ये कुंठा लफ्जों में ही निकल रही है। पुण्य जी आप भी बेहतर समझ रहे हैं मीडिया की अनिश्चितता को...लोग वही कर रहे हैं जो "शीशे के चैंबर्स में बैठे लोग" कह रहे हैं....
''एक बाईट के लिये सितारोँ के पीछे भागने वाले हमारे इस मुखौटेबाज मीडिया'' पर ''अभिव्यक्ति'' की तल्ख़ टिपण्णी में बड़ी जान है. मै भी ३० साल से मीडिया से जुड़ा हूँ. उसके पाखण्ड को देखा है. आज स्वतंत्र हो कर लिखता रहता हू . मीडिया वाला होने का मतलब यह भी नहीं होता की हर चीज़ में पोल देखी जाये. आमिर कलाकार है.कलाकार कलाकारी करने के बाद ही सामने आता है स्वांग का अपना आनंद है. उसे इसी रूप में लिया जाए. बाल की खाल न निकली जाये. बड़ी बात यही है की जिन फ़िल्मी कलाकारों के बारे यही आम राय है की ये लोग सामान्य जन से कभी जुड़ते ही नहीं, ऐसे दौर में अगर कोई कलाकार आमजन के हुलिए में सामने आता है, तो उसका स्वागत है. उसकी निंदा नहीं होनी चाहिए. आमिर खान आमिर खान के रूप में ही आएगा तो लोग उसको नोंच खाएँगे. इसलिए थोडा तो स्वांग ज़रूरी है. हमें सकारात्मक नजरिया रखना चाहिए. ''अभिव्यक्ति'' ने और भी बाते लिखी है. उस पर भी सोचा जाना चाहिए.
har baat jo bane aek nasihat deti khabar ....uske sath aapka judav jarur hota hai ..aek din mere paas shbad khatam ho jayenge us baat par ki kya likte hai aap ...isliye bas itna hi kahunga .."vah ustad"
सर, आपकी कलम को बहुत-बहुत साधुवाद। यही इन फिल्मकारों की सच्चाई है, ये अपने मुनाफे के लिए कुछ भी कर सकते हैं, हर किसी की भावनाओं से खेल सकते हैं। इनके इस खेल से बचकर चलना ही होगा।
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